कोलकाता- 7 अगस्त 2018
पिछले दिनों असम के गुवाहाटी शहर में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के संगठनों ने मिलकर सरकार के इस व्यवहार पर और नाम काटे जाने को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 25 लाख हिन्दू हिन्दी व बांग्ला भाषी समाज के नाम एनआरसी की सूची से ग़ायब बतायें जा रहें हैं जिसे भाजपा के अध्यक्ष श्री अमित शाह बांग्लादेशी घुसपैठिये बताते नहीं थक रहे ।
असम में विदेशी नागरिकों के प्रश्न पर छात्र आंदोलन (1979-1985) हुए । छात्र आंदोलन का एक गुट अगप बनकर सत्ता में आ गई। दूसरा गुट अल्फा के नाम पर पाकिस्तानियों के सहयोग से भारत में आतंक का साम्राज्य फैला दिया । एक लंबा भय और आतंक का सृजन पूरे असम में फैला दिया गया । अगप के तात्कालिक गृह मंत्री भृगु फूकन ने अल्फा के साम्राज्य के लिये खुलकर तात्कालिक मुख्यमंत्री प्रफ्फुला कुमार महंत पर आरोप लगाये। अगप की सरकार गई । कांग्रेस की सरकार आ गई । आज वही प्रफ्फुला कुमार महंत भाजपा की सरकार में शामिल है। जिसके कार्यकाल में असम में सैकड़ों हिन्दी भाषी जनता को मौत के घाट सुला दिया गया था। हजारों हिन्दी भाषी व बँगला भाषियों को असम छोड़कर पलायन करना पड़ा था ।
एनआरसीः यानि कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मूल उद्देश्य बंग्लादेश से आये बंग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करनी व उसे भारतीय नागरिकता के मतदाता सूची से अलग करना है। बार-बार इस बात का उल्लेख हर जगह हो रहा है कि भारतीयों को घबड़ाने की या भयभीत होने की जरूरत नहीं । परन्तु जिस प्रकार भाजपा के नेताओं के बयान आ रहें हैं इससे पूरा देश एक बार भयभीत तो हो ही चुका है कि क्या जिस तरह से असम में विदेशियों के नाम पर मूल भारतीय जिसमें बड़ी संख्या में बिहार, उत्तरप्रदेश के भौजपुरी समाज, बंगाल के हिन्दू बंगाली समाज, पंजाब के पंजाबी या राजस्थान के मूल निवासी जो कई पुश्तों से असम में रह रहे हैं उनके नाम को तमाम दस्तावेज प्रस्तुत किये जाने के वाबजूद एनआरसी के दस्तावेज़ में शामिल नहीं किया गया और मजे कि बात है कि चंद दलाल मीडिया ने इन्हें विदेशी घुसपैठिये तक करार दे दिया ।
पिछले दिनों असम के गुवाहाटी शहर में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के संगठनों ने मिलकर सरकार के इस व्यवहार पर और नाम काटे जाने को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 25 लाख हिन्दू हिन्दी व बांग्ला भाषी समाज के नाम, सोची समझी साजिश के तहत एनआरसी की सूची से ग़ायब बतायें जा रहें हैं जिसे भाजपा के अध्यक्ष श्री अमित शाह बांग्लादेशी घुसपैठिये बताते नहीं थक रहे । उनमें बड़ी संख्या में हिन्दू भारतीय की हैं, जबकि इस एनआरसी के बहाने अब तक 10 लाख से अधिक बंग्लादेशी मुसलमानों को भारतीय बना दिया गया है। सवाल उठता है तो फिर असली भारतीय कौन? जो भाजपा के अध्यक्ष अफवाह फैला रहे वो या फिर जिनके नाम एक साजिश के तहत काटे और जोड़े जा रहें वो?
एक आंकड़े को यदि सही माना जाए तो असम के जिन-जिन इलाकों में 50 प्रतिशत की संख्या में मुसलमानों की आबादी हो चुकी है वहां की आबादी का महज 10 प्रतिशत नाम ही चिन्हीत किये गये अर्थात 45 प्रतिशत मुसलमानों को भारतीय मान लिया गया व इलाके हैं। हैलाकांदी, साउथ सालमारा, धुबड़ी व करीमगंज । ऐसे ही सैकड़ों गांव है जहां मुस्लिमों को खुले रूप में एनआरसी में दर्ज कर लिया गया जबकि हिन्दू भारतीयों के नाम सूची में नहीं शामिल किये गये। उदाहरण के लिये शोणितपुर जिले की ही बात कर लें इस क्षेत्र में लगभग 20 से 45 प्रतिशत प्रवासी भारतीय पुश्तों से अपना जीवन बसर कर रहें हैं यहां की लगभग आधी आबादी का नाम ही एनआरसी से ग़ायब कर दिया गया। भाजपा एक प्रकार से भारतीय संवेदना के नाम पर देश के विभिन्न राज्यों में रमे बसे लोगों के बीच असुरक्षा की भावना का सृजन करने में सफल हो चुकी है। जिसे भले आज हम घुसपैठिये के नाम पर समर्थन दे लें, दरअसल जमीनी हकिकत कुछ ओर ही बयान कर रही है। इसका परिणाम अंततः संपूर्ण भारतीयों को भोगना पड़ सकता है । शायद आप जिस राज्य में हैं आने वाले समय में आप भी एक दिन विदेशी बना दिये जायेगें। - शंभु चौधरी
एक आंकड़े को यदि सही माना जाए तो असम के जिन-जिन इलाकों में 50 प्रतिशत की संख्या में मुसलमानों की आबादी हो चुकी है वहां की आबादी का महज 10 प्रतिशत नाम ही चिन्हीत किये गये अर्थात 45 प्रतिशत मुसलमानों को भारतीय मान लिया गया व इलाके हैं। हैलाकांदी, साउथ सालमारा, धुबड़ी व करीमगंज । ऐसे ही सैकड़ों गांव है जहां मुस्लिमों को खुले रूप में एनआरसी में दर्ज कर लिया गया जबकि हिन्दू भारतीयों के नाम सूची में नहीं शामिल किये गये। उदाहरण के लिये शोणितपुर जिले की ही बात कर लें इस क्षेत्र में लगभग 20 से 45 प्रतिशत प्रवासी भारतीय पुश्तों से अपना जीवन बसर कर रहें हैं यहां की लगभग आधी आबादी का नाम ही एनआरसी से ग़ायब कर दिया गया। भाजपा एक प्रकार से भारतीय संवेदना के नाम पर देश के विभिन्न राज्यों में रमे बसे लोगों के बीच असुरक्षा की भावना का सृजन करने में सफल हो चुकी है। जिसे भले आज हम घुसपैठिये के नाम पर समर्थन दे लें, दरअसल जमीनी हकिकत कुछ ओर ही बयान कर रही है। इसका परिणाम अंततः संपूर्ण भारतीयों को भोगना पड़ सकता है । शायद आप जिस राज्य में हैं आने वाले समय में आप भी एक दिन विदेशी बना दिये जायेगें। - शंभु चौधरी
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