भले ही उनका तर्क ‘‘भारतमाता की जय’’ पर कुछ भी रहे। यह फतवा सीधे तौर पर भारत की अखण्डता पर एक सांप्रदायिक हमला है। यह फतवा उस समय आया जब संघ प्रमुख ने लगभग अपनी बात को वापस ले ली थी। देश को सोचना होगा कि इस फतवे के अंदर छुपा संदेश आखिर में क्या कहता है?
कोलकाताः ( 1 अप्रैल,2016) आज धर्मनिरपेक्ष राजनेताओं ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते देश की यह हालात बना दी कि भारत में, भारत का ही एक वर्ग भारत में रह कर भारत को गाली दे रहा है कोई भारत मां डायन कह रहा है तो कोई कुछ है। मजे की बात यह है कि इसे बोलने वाले सभी एक विशेष समुदाय के हैं।
आज तो हद कि उस सीमा को भी इन लोगों ने पार कर दी दारुम-उलूम देवबंद के द्वारा एक फ़तवा जारी कर कहा गया है कि भारत माता की जय कहना मूर्ति पूजा के बराबर है। ‘‘इस्लाम में किसी भी तरीके से मूर्ति पूजा नहीं की जा सकती। अतः भारत माता की जय बोली जाए या वंदना की जाए तो इस्लाम में ये मना है, नाजायज है।’’
इसके पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख श्री मोहन भागवतजीने देशभर में आलोचना के शिकार हो जाने के कारण अपने सूर बदलते हुए ‘‘भारतमाता की जय’’ पर दो बार सफाई दी कहा कि ‘‘हमें ऐसा कार्य करना है कि, पूरी दुनियाँ भारत माता की जय का नारा लगायेगी’’ जब इससे भी बात नहीं बनी तो कहा कि ‘‘ हम ऐसा भारत बनाएँगे जहां लोग खुद-ब-खुद भारत माता की जय हो.... हम नहीं चाहते कि किसी पर इसके लिये दबाव डाला जाए, इसे थोपा ना जाए।’’
देश की आज़ादी के पश्चात भारत की नींव को संविधान निर्माताओं ने भारत के मांस के टुकड़े को चन्द गिद्धों के खाने के लिए छोड़ दिया, ताकि सत्ता स्वार्थ बना रहें। दुर्भाग्य की बात है कि एक तरफ हमें ऐसे फतवे पढ़ने-सुनने को मिल रहें हैं। यह फतवा उस कौम की मानसिकता को दर्शाता है कि वे मौका मिलते ही भारत की बर्बादी का नया इतिहास लिख डालेगें।
भले ही उनका तर्क ‘‘भारतमाता की जय’’ पर कुछ भी रहे। यह फतवा सीधे तौर पर भारत की अखण्डता पर एक सांप्रदायिक हमला है। यह फतवा उस समय आया जब संघ प्रमुख ने लगभग अपनी बात को वापस ले ली थी। देश को सोचना होगा कि इस फतवे के अंदर छुपा संदेश आखिर में क्या कहता है? - भारतमाता की जय!
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