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शनिवार, 12 मार्च 2016

छद्म धर्मनिरपेक्ष वनाम संघीय राष्ट्रवाद?


लेखक: शम्भु चौधरी

एक तरफ गाय का मांस खानेवालों की जमात इस बात पर बहस कर रही थी गाय के मांस खाना ही धर्मनिरपेक्षता का उनका पहला सिद्धांत है तो दूसरी तरफ राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति कर देश में नये संघवाद के प्रयोग में लगी है कि संघ की विचारधारा जिसमें संघ का राष्ट्रवाद भी शामिल है उसके नाम पर सर्मथकों को साथ लेकर अन्य सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की आवाज को देशद्रोही बना दिया जाए।

कोलकाताः ( 28 फरवरी ,2016) संसद व राज्यसभा में जोरदार बहस छड़ी हुई थी एक तरफ धर्मनिपेक्षता का चोला पहने वे लोग थे जो देश में पिछले 60 सालों से धर्मनिपेक्षता की आड़ में राज करते आ रहे थे तो दूसरी तरफ देश पिछले 60 सालों से देश में सत्ता का सपना देखने वाली आज की सत्ताधारी दल संघ विचारधारा द्वारा संचालित भाजपा की सरकार। बहस का मुद्दा था वोट की आड़ में चलाये जा रहे छद्म धर्मनिरपेक्षता का कैसे वचाव किया जाए तो दूसरी तरफ सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार चाहती थी कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ में संघीय ( आर.एस.एस ) राष्ट्रवाद को कैसे हवा दी जा सके।
एक तरफ गाय का मांस खानेवालों की जमात इस बात पर बहस कर रही थी गाय के मांस खाना ही धर्मनिरपेक्षता का उनका पहला सिद्धांत है तो दूसरी तरफ राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति कर देश में नये संघवाद के प्रयोग में लगी है कि संघ की विचारधारा जिसमें संघ का राष्ट्रवाद भी शामिल है उसके नाम पर सर्मथकों को साथ लेकर अन्य सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की आवाज को देशद्रोही बना दिया जाए।
जो भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में हिन्दूवादी विचारधारा को जम कर गाली देने व एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के बाद सत्ता के लिये उसी थूक को चाटने लगी। जम्मू-कश्मीर में जिसे चुनाव के वक्त देशद्रोही बोलती नहीं थक रही थी, दूम हिलाने लगी । यह तो है "संघ का संघिय राष्ट्रवाद जो उनका साथ दे वह तो देशभक्त बाकी सारे के सारे देशद्रोही। " कहने का अभिप्राय है कि भाजपा देश के मिजाज को कभी धर्म के नाम पर, कभी देशभक्ती के नाम पर नोचाने में लगी है तो दूसरी तरफ धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कांग्रेस सहित वे तमाम ताकतें देश में अल्पसंख्यकों को राजनैतिक ताकत के प्रयोग से प्रत्यक्ष रूप से स्नेहः स्नेहः देश के लिये खतरा बनता जा रहा है। हमें किसे चुनना है अब इस बात की बहस है।
पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में देश विरोधी नारे लगाये गये, भारत की बर्बादी के नारे लगे कांग्रेस का धर्मनिरपेक्ष इसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सही ठहराने में लगी है। कश्मीर में देश विरोधी नारे लगाये जातें है, पाकिस्तानी झंडे दिखाये जाते हैं भाजपा की आंख में चश्मा लग जाता है। भाजपा का राष्ट्रवाद तब बुट लादने चला जाता हैं
परन्तु जेएनयूएसयू अध्यक्ष छात्र कन्हैया कुमार को इसलिये भाजपा देशद्रोही बना देने में पलक भी नहीं झपकती। विभिन्न प्रकार के प्रजाती जमात में देश अब यह सोचने को विवश हो चुका कि हम अब किसे राष्ट्रवादी समझें और किसे धर्मनिरपेक्षवादी ? क्या जो धर्मनिरपेक्षवादी हैं व राष्ट्रवादी नहीं? या जो राष्ट्रवादी हैं वह धर्मनिरपेक्षवादी नहीं? यदि देश को इस प्रकार बांट दिया जायेगा कि राष्ट्रवादी का सिर्फ वही मायने रह जायेगा जो संघ की विचारधारा से सहमत होगा या धर्मनिरपेक्षवादी उसे ही समक्षा जायेगा जो संधवाद का विरोधी होगा तो इसे देश का दुर्भाग्य ही हम मानेगें । जयहिन्द!

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