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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

दागी अध्यादेश: राष्ट्रपति भवन की यात्रा...- शम्भु चौधरी

अचानक से दोपहर दो बजे श्री राहुल गांधी को प्रसव पीढ़ा होने लगी कि देश की सभी पार्टियाँ दागियों का बचाव करती है अतः इस अध्यादेश को फाड़कर फैंक देना चाहिए । इस बात को मीडिया के सामने कहते हुए राहुलजी के बाड़ी लेंग्वेज से यह सहज ही अंदाज लगाया जा सकता थ कि सबकुछ पहले से ही फिक्स था । कांग्रेस पार्टी के तमाम दिग्गजों ने तत्काल यू टर्न ले लिया और उसी प्रेस कांफ्रेंस में श्री अजय माखन ने भी यह एलान भी कर दिया कि राहुल बाबा जो बोलतें हैं वही कांग्रेस पार्टी की जुबान है ।

कोलकाता- 27 सितम्बर’2013

कल रात को जैसे ही राष्ट्रपति भवन से यह खबर सामने आई कि राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने इस सिलसिले में कैबिनेट के तीन मंत्रियों जिनमें कानून मंत्री श्री कपिल सिब्बल, लोकसभा में सदन के नेता और गृहमंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे और संसदीय कार्यमंत्री श्री कमलनाथ को तलब किया है । इस अध्यादेश को लेकर राष्ट्रपति जी की नाराजगी छन-छन कर बहार आने लगी । देश के तमाम अखबारों में इस बात की खबर भी छप चुकी कि श्री प्रणब मुखर्जी ने इस बिल को लेकर अपनी कुछ शंकाओं का इजहार इन मंत्रियों के सामने कर दिया है । भले ही इन तीनों काँग्रेसी नेताओं ने इस बात का उजागर ना किया हो पर इनके चेहरे के भाव इस बात की तरफ साफ संकेत दे रहे थे कि इस बिल को लेकर राष्ट्रपति जी की चिंताएं आम होने से पहले या उनके द्वारा इस अध्यादेश को वापस करने से पहले कोई एक दूसरा रास्ता निकाल जाए जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।

इस दागी अध्यादेश को लेकर देश भर में विरोध खुल कर सामने आ रहा था । जिसका लाभ सीधे तौर पर भाजपा के खेमे को मिलना तय सा लग रहा था । हांलाकि भाजपा इस दागी बिल को लेकर राज्यसभा में लचिला रूख अपना चुकी है। जिस प्रकार भाजपा ने पिछले दिनों लोकपाल बिल या सूचना के अधिकार में राजनीति पार्टियों द्वारा जानकारी देने के मामले से जूड़े बिल या खाद्य सुरक्षा का बिल हो सभी मामलों में अपने चरित्र के अनुसार दोगली बातें करती रही है ने इस बिल पर भी कल शाम राष्ट्रपति महोदय से मिलकर अपना प्रतिवाद जताते हुए महामहिम से इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर ना करने का अनुरोध की थी ।

मौका अच्छा था देश के करोड़ों लोगों की भावना से जुड़ा मुद्दा भी था । दागियों को बचाने के प्रश्न पर जब ये खुद को असफल होते नजर आए तो इन्होंने इस मुद्दे का राजनैतिक लाभ लेने के लिए एक मास्टर प्लान बनाया जिस प्लान की भूमिका बनी कांग्रेस पार्टी के दफ्तर में दोपहर होते-होते यह तय कर लिया कि इस अध्यादेश का राजनीति लाभ लेने के लिए राहुल गांधी को ठीक राष्ट्रपति जी के विचारों के अनुसार जनता के सामने प्रस्तुत किया जाए ताकी श्री राहुल गांधी रातों-रात देश के हीरो बनकर जनता के सामने उभर सके ।

आज दोपहर को इस प्लान को सभी कांग्रेसियों ने मंजूरी प्रदान कर दी और अचानक से दोपहर दो बजे श्री राहुल गांधी को प्रसव पीढ़ा होने लगी कि देश की सभी पार्टियाँ दागियों का बचाव करती है अतः इस अध्यादेश को फाड़कर फैंक देना चाहिए । इस बात को मीडिया के सामने कहते हुए राहुलजी के बाड़ी लेंग्वेज से यह सहज ही अंदाज लगाया जा सकता थ कि सबकुछ पहले से ही फिक्स था । कांग्रेस पार्टी के तमाम दिग्गजों ने तत्काल यू टर्न ले लिया और उसी प्रेस कांफ्रेंस में श्री अजय माखन ने भी यह एलान भी कर दिया कि राहुल बाबा जो बोलतें हैं वही कांग्रेस पार्टी की जुबान है । चलो राहुल बाबा को इससे चुनावी फायदा होगा कि नहीं यह तो वक्त हा बता पायेगा हाँ! उच्चतम न्यायलय के लिए एक शुभ संदेश तो अवश्य है कि उनके विचारों का गला अभी नहीं घोंटा जा सका है । संसद को अपवित्र करने की साज़िश का जिस प्रकार पर्दाफ़ाश हुआ है इससे सभी कांग्रेसियों को यह तो आभास हो गया होगा कि सक्रिय राजनीति से अलग कर श्री प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन में भेजना उनके लिए कितना मंहगा हो चुका है।-

सोमवार, 23 सितंबर 2013

राष्ट्रीय एकता परिषद बैठक की सफलता-असफलता - शम्भु चौधरी

मुलायम व अखिलेश सरकार को इस बात से अब भी सबक लेने की जरूरत है । अपने पाप का घड़ा दूसरे राजनीति दलों पर फोड़ने की जगह खुद ही इस स्थिति को आगे बड़कर नियंत्रण करते तो आज हजारों मुसलमानों को यह दिन नहीं देखने पड़ते । खैर! अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है उत्तरप्रदेश की सरकार वोट बैंक की राजनीति छोड़कर सबसे पहले उन परिवारों को पुनः बसाने का काम करें इसी में हम सबका भला है ।

कोलकाता- 23 सितम्बर’2013: आज केन्द्र की कांग्रेसी सरकार को अमूमन दो साल के बाद अचानक राष्ट्रीय एकता परिषद की अचानक से याद आ गई । 147 सदस्यों वाली इस समिति की बैठक पिछले दो साल पूर्व 10 सितम्बर 2011 को हुई थी। एनआईसी की बैठक में जिस प्रकार एक राजनीति बहस का मुद्दा छाया रहा इससे तो नहीं लगता कि यह बैठक जिन उद्देश्यों को लेकर बुलाई गई थी उसमें कुछ भी सफलता प्राप्त की होगी । राजनीति दलों के एक कुनबे का एक ही एजेंडा था वोट बैंक की राजनीति । मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के तुरंत बाद बुलाई गई इस बैठक के ऊपर राजनीति महत्वाकांक्षा की पूर्ति तो प्रश्न चिन्ह खड़ा करता ही है साथ ही उन सेकुलरवादी ताकतों को वोट बैंक की राजनीति करने का अवसर भी देती है । लालू यादव सहित तमाम फिरकापरस्ती ताकतों ने इस बैठक को माखौल बनाकर रख दिया ।

प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ने राष्ट्रीय एकता परिषद के मैदान में अपने सभी खिलाड़ियों को गेंद खेलने की आजादी दे दी । इस बैठक में यदि प्रधानमंत्री जी विशेष कर सिर्फ वर्तमान में हुई तीन बड़ी सांप्रदायिक घटना का जिक्र कर उन घटनाओं पर देश का ध्यान ही आकर्षित किये होते और राजनैतिक दलों से इस तरह की घटनाओं पर उनके विचार जाने होते व मुज़फ़्फ़रनगर दंगों की वस्तु स्थिति का बैठक में जायजा लिया गया होता तो भी कुछ हद तक इस बैठक की सफलता मानी जा सकती थी । अफसोस इस बात का रहा इस पर कोई विशेष चर्चा नहीं हो सकी ।

प्रधानमंत्री जी ने इस बैठक को जिन विषयों पर जोर दिया 1. वर्तमान में देश के कुछ प्रान्तों में हुए सांप्रदायिक तनाव व हिंसा 2. महिलाओं की सुरक्षा व उनके ऊपर हो रहे हमले 3. अनुसूचित जाति व अनुसूचित जन जाति पर बढ़ते अत्याचार 4. सोशल मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग व उसके कुपरिणाम व मीडिया के लोगों की भूमिका । आपने कहा कि देश में राष्ट्र विरोधी ताकतें सक्रिय है। चाहे वह किसी भी राजनैतिक दल से संबंधित हो इसमें कोई समझौता नहीं किया जाएगा । कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी । आपने बहुत स्पष्ट होते हुए कहा कि सांप्रदायिक हिंसा से किसी भी राजनैतिक दलों का फायदा नहीं होगा । इन दिनों दंगों के पीछे कुछ लोग वोट बैंक की बात जो लोग कर रहें हैं इसमें फायदा सोचना भी गलत है ।

इस बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बना रहा वहीं श्री नीतिश कुमार की श्री लालकृष्ण आडवाणी जी से मुलाकात से भी कई राजनीति मायने निकाले गये ।

कुल मिलाकर इस बैठक में जो प्रस्ताव पारित हुए वह बैठक की सफलता को कम असफलता और कमजोर नेतृत्व की तरफ इशारा तो करता ही है । असम, किश्तवार और मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से पीड़ित लोगों के लिए कोई राहत लेकर नहीं सामने आ सका ।

हां ! प्रधानमंत्री जी ने बातों-बातों में यह इशारा भी कर दिया कि जिस प्रकार मुज़फ़्फ़रनगर में एक छोटी सी घटना ने दंगा का रूप धारण किया है इसमें प्रशासन की बड़ी चुक रही है । आज इस आग में सैकड़ों लोगों की जहां जान चली गई, वहीं परिणाम स्वरूप हजारों परिवारों को राहत शिविरों में रहना पड़ रहा है । लाखों की संपत्ति का नूकशान भी हुआ है । मुलायम व अखिलेश सरकार को इस बात से अब भी सबक लेने की जरूरत है । अपने पाप का घड़ा दूसरे राजनीति दलों पर फोड़ने की जगह खुद ही इस स्थिति को आगे बड़कर नियंत्रण करते तो आज हजारों मुसलमानों को यह दिन नहीं देखने पड़ते । खैर! अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है उत्तरप्रदेश की सरकार वोट बैंक की राजनीति छोड़कर सबसे पहले उन परिवारों को पुनः बसाने का काम करें इसी में हम सबका भला है ।


रविवार, 22 सितंबर 2013

आज का ‘संजय’

इन दिनों समाचार चैनलों के चरित्र इस कदर गिर चुका है कि इन बेलगाम घोड़ों की सवारी करना भी अपराध सा लगने लगा है। पत्रकारिता को इन लोगों ने इस तरह प्रस्तुत करने का प्रयास किया है कि घर के बच्चे भी दहशत में आ जाते हैं। बच्चों के चेहरे का भाव यह बताता है कि इस देश में आखिर यह हो क्या रहा है? हमारी कुछ भी जिम्मेदारी नहीं बनती क्या? वे अपराधी हैं तो इनकी भूमिका भी अपराधियों जैसी हो जाती है। चैनलों द्वारा इस प्रकार का बौद्धिक अपराध जो इन दिनों देखने को मिल रहा है इसे बंद किया जाना चाहिए।

कहावत कई बार खुद ही सही साबित हो जाती है। कहावत है ‘‘सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को’’ हमारे देश के नेताओं पर कितनी सटीक यानी की फीट बैठती है। एक बार ‘हरिओमजी‘ अरे वह अपने गांव का गुरु ‘शिक्षकजी’!, क्लास लेते-लेते सठिया गए और बोलने लगे कि देश के नेता सबके सब चोर हैं। भाषण देने लगे कि ‘‘यहीं नेताओं के चलते देश में महंगाई, बेरोजगारी, बलात्कार, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और तो और सीमाओं पर देश के जवानों के हत्या हो रही है। देश के युवा शिक्षा लेकर दूसरे देश की सेवा करने चले जाते हैं। देश के भीतर प्रतिभाओं को कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा ।’’ हम भी सोचने लगे बात तो पते की है। कभी कोई नेता जेल जा रहा है तो कभी कोई। मानो आपस में हौड़ सी लगी है। इनके कारनामे भी बड़े विचित्र होते हैं 2जी, 3जी, कोयला, जमीन, हवा, पानी, जहाज, मकान, खेल, छोकड़ीबाजी, दंगा भड़काना । परन्तु हमें यह बात नहीं समझ में आ रही थी कि इन बातों से बच्चों का क्या लेना-देना?

जब से देश में इन नेताओं के खिलाफ जनता में जागरूकता आई है नेताओं की जमीं धंसती नजर आने लगी। इन्होंने भी कमर ठान ली। एक हींजड़े ने जैसे ही अपनी पतलून उतारी, दूसरा भी सामने आ गया । लगे सबके सब नाचने ‘मेरे अंगने में तेरा क्या काम है?’ बस क्या था इसके साथ ही आज का ‘संजय’ अरे वही जो दिन भर हमारे घर का पहरेदार बना दिन भर भौंपा की तरह भौंखने वाला मीडिया जो खुद को इस तरह प्रस्तुत करता है कि सच का सारा ठेका इन्हीं लोगों ने ले रखा है । मानो इन्होंने ही रातों रात अन्नाहजारे के पक्ष में या दामणी के दरिंदों के खिलाफ जन मानस खड़ा किया हो । रोज़ाना लाश बेचने वाले समाचार को कभी कोई मुद्दा ना मिले तो पगला जाते हैं। बहस में नकारात्मक विचारों को लेकर कई एंकर कार्य करते पाये गए। सवाल यह नहीं है कि बहस होनी चाहिए कि नहीं? सवाल यह भी नहीं हैं कि किसी ने अपराध किया या नहीं और अपराधी है भी तो सजा अदालत ही देगी। परन्तु इनका व्यवहार कुछ इस प्रकार होता है कि कोई समाचार चैनल नहीं चला रहे, देश को चला रहे हैं।

इन दिनों समाचार चैनलों के चरित्र इस कदर गिर चुका है कि इन बेलगाम घोड़ों की सवारी करना भी अपराध सा लगने लगा है। पत्रकारिता को इन लोगों ने इस तरह प्रस्तुत करने का प्रयास किया है कि घर के बच्चे भी दहशत में आ जाते हैं। बच्चों के चेहरे का भाव यह बताता है कि इस देश में आखिर यह हो क्या रहा है? हमारी कुछ भी जिम्मेदारी नहीं बनती क्या? वे अपराधी हैं तो इनकी भूमिका भी अपराधियों जैसी हो जाती है। चैनलों द्वारा इस प्रकार का बौद्धिक अपराध जो इन दिनों देखने को मिल रहा है इसे बंद किया जाना चाहिए। समाचारों को प्रस्तुत करते समय श्रोताओं या पाठकों के मनः स्थिति को भांपना भी उतना ही जरूरी है जितना उसका प्रसारण व प्रकाशन । संचार माध्यमों के माध्यम से खुद की विचारधारा को समाज पर थोपा नहीं जा सकता । समाचार माध्यम समाज का प्रहरी होता है । प्रहरी का अर्थ होता है खुद जगा रहना ना कि समाज के बीच खुद के विचारों का आतंक फैलाना।

इन दिनों चैनलों पर सीधी बहस एक रोग सा बनता जा रहा है। इस रोग में ऐंकरों की भी टिप्पणी देखी जाती है। इनकी भूमिका कई समय खुद के विचारों को थोपने जैसी भी लगती है। कई ऐसे लोग इस विचार पैनलों में हिस्सा लेते हैं जिसका समाज में कोई योगदान नहीं रहता । इस तरह की परम्परा पर ना सिर्फ अंकुश होनी ही चाहिए बहस के मुद्दे जब भी तय हो तो उसमें सिर्फ बौद्धिक विचारधाराओं के लोगों को ही जगह देनी चाहिए। राजनेताओं या धर्मगुरुओं को इस मंच पर जगह देना ही नहीं चाहिए । - शम्भु चौधरी


सोमवार, 16 सितंबर 2013

गन्ने के खेत में वोट की खेती - शम्भु चौधरी

हे सूर्य ! जब-जब तेरा प्रताप डगमगाएगा,
दीपक की एक लौ से भी, अंधेरा मिट जायेगा ।
जिनको गुमान है सत्ता का, शाम ढलते ही डूब जायेगा ।

कहावत भी है कि ‘‘रोपे पेड़ बबुल के आम कहां से होय’’ हमलोग जैसा रोपेगें, सोचेगें वैसी ही फसल हमें काटने को मिलेगी । 27 अगस्त’ 13 की मामूली सी एक घटना ने सत्तारूढ़ दल के अहांकार को चूर-चूर कर रख दिया । वोट बैंक की राजनीति इनको इतनी मंहगी पड़ी की, जिसकी भरपाई करते-करते, कीमत चुकाते-चुकाते अखिलेश सरकार के दम फूलने लगे, फिर भी वे दंगे को रोकने में सफल नहीं हो सके ।

मुज़फ़्फ़रनगर कवाल गांव की घटना ना सिर्फ एक दुर्भाग्यजनक व दुखद घटना है । इस घटना ने सेकुलरवादी सत्तारूढ़ दल के चेहरे को बेनकाब कर दिया है । राजधर्म की दुहाई देने वाले सेकुलरवादी ताकतों को नंगा कर दिया । इसके लिए जिम्मेदार हम ही हैं । कहावत भी है कि ‘‘रोपे पेड़ बबुल के आम कहां से होय’’ हमलोग जैसा रोपेगें, सोचेगें वैसी ही फसल हमें काटने को मिलेगी । 27 अगस्त’ 13 की मामूली सी एक घटना ने सत्तारूढ़ दल के अहांकार को चूर-चूर कर रख दिया । वोट बैंक की राजनीति इनको इतनी मंहगी पड़ी की, जिसकी भरपाई करते-करते, कीमत चुकाते-चुकाते अखिलेश सरकार के दम फूलने लगे, फिर भी वे दंगे को रोकने में सफल नहीं हो सके । सेकुलरवाद की राजनीति करने वाले आजाम खान, कादिर राणा, सईद उर जमां, रासिद सिद्दकी, हरेन्द्र मलिक, राज्यपाल बाल्यान और राकेश टिकैत और सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले हुकुम सिंह, भारतेन्दु, संगीत सोम और साध्वी प्राची । सबके मुह में जहर भरा था, हर कोई खेत में लहलहाती गन्ने की फसल को काटने में लगा था, तो कोई इसमें आग लगाने में । किसी ने भी इस आग को रोकने की जिम्मेदारी नहीं निभाई ।

सत्ताधारी दल के सेकुलरवादी नेताओं ने जहर के बीज इस कदर रोपे की उसमें से सौंप ही सौंप निकलने लगे । मात्र सात दिनों में यह फसल मुज़फ़्फ़रनगर के आस-पास के गांवों में बलखाने लगी । सत्ता के नशे में चूर सेकुलरवादी नेताओं ने मामूली सी छेड़छाड़ की घटना को इतान जवान कर दिया कि देखते ही देखते वहाँ सेना को बुलानी पड़ी । जबतक एक समुदाय पर जुल्म ढहाया जाता रहा, उनके परिवारों व गांव के लोगों पर झूठे मामले गढ़ कर कवाल गांव के सैकड़ों अपराधियों को बचाने का प्रयास किया जाता रहा सबकुछ ठीक था । एक तरफ खालापुर में पंचायत कर लोगों जहन में ज़हर के बीज रोपे जा रहे थे ता दूसरी तरफ शाम को महापंचायत से लौटते निहते लोगों को घात लगा-लगा कर मारा गया, कई ट्रेक्टरों को आग के हवाले कर दिया गया कई लोगों को जान गंवा देनी पड़ी या वे घायल हो गए । जबतक सेकुलरवाद का ख़ौफ़ सर चढ़कर बोलता रहा और एक विशेष समुदाय के लोग मारे जाते रहे तब तक सरकार को कुछ भी पता नहीं चला कि उनकी नाक के नीचे क्या सब चल रहा है । चारों तरफ हा-हाकार की गुंज होने लगी । सुरक्षा के अभाव में मामला उलटा पड़ने लगा तब जाकर केन्द्र और राज्य सरकार हरकत में आई और तत्काल सेना को बुलाया गया । परिणाम सामने है । गन्ने के खेत में वोट की खेती, दोनों समुदाय पुस्तों से इस जमीन में गन्ने की खेती करते रहें हैं, अपनी बोली से समाज में मिठृठास घोलते रहें हैं, उनको चंद सियासतदानों ने सेकुलरवाद राजनीति की रोटी सेंकने के लिए उपजाऊ जमीन बना डाली । फसल तो 2014 के आगामी लोकसभा चुनाव में कटेगी । अब दिलचस्प देखना यह होगा कि यह फसल किसके पाले में जायेगी ? जयहिंद !

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

हिन्दू-मुसलमानों को बांटती ताकतें - शम्भु चौधरी

जब भी कोई दंगा होगा, कोई न कोई नंगा होगा,
हिन्दू-मुस्लिम ना हो भाई ऐसा ही कोई बंदा होगा।

देश के मुसलमानों को हिन्दूओं से दूरी बनाने के बदले उन्हें ऐसे अवसर तलाशने चाहिए कि जो दूरियाँ सेकुलरवादी ताकतों ने बना दी है उसे कैसे कम किया जा सके । हमें मिलकर दोनों समुदाय के बीच के बिचौलियों को हटाकर भारत के विकास व अपने बच्चों की शिक्षा पर केंद्रित होने की जरूरत है। यह तभी संभव हो सकता है जब मुसलमान सेकुलरवादी ताकतों को उखाड़ फैंकने के लिए खुद को प्रस्तुत कर दे तो पूरे राष्ट्र में उनके प्रति स्वतः सम्मान पैदा हो जाएगा ।

उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर की घटना ना सिर्फ एक दुर्भगयजनक व दुखद घटना है । यह घटना इस बात को प्रमाणित करने में सझम है कि सेकुलरवादी चौला पहनकर मुसलमानों को जो लोग मुर्ख बनाते रहें हैं दरअसल वे मुसलमानों की सुरक्षा के लिए नहीं, उनको हिन्दुओं से दूरी बनाये रखने के लिए है । उत्तरप्रदेश में यदि दोनों समुदाय के बीच सामाजिक ताने-बाने तौड़े ना जाते तो जिस छोटी सी घटना ने, जो कि भारतवर्ष में आम घटना मानी जाती है को लेकर इतना बड़ा नुकसान दोनों समुदाय को नहीं उठाना पड़ता । लगातार 10 दिनों तक शहर में तनाव बना रहा, जातीय व धार्मिक धूव्रीकरण आस-पास के गाँवों में होता रहा । इस बीच ना सिर्फ स्थानीय प्रशासन, लखनऊ भी सोता रहा । अब यही सेकुलरवादी ताकतें कभी इसके लिए जातीय संघर्ष की बात दौहराती है तो कभी इसके लिए सांप्रदायिक ताकतों को दंगा भड़काने के लिए जिम्मेदार मानती है । अर्थात दिल्ली में बैठी कांग्रेस की सेकुलरवादी सरकार और उत्तरप्रदेश की सेकुलरवादी सरकार हाथ पर हाथ धर कर तमाशा देखती रही । शायद यह सोचती रही होगी कि दंगे फैलने के बाद मुसलमानों को पुनः बहलाया या फुसलाया जा सकेगा । मानों मुसलमानों को ऐन-केन-प्रकारेण डराये रखना सेकुलरवादी ताकतों का उद्देश्य बन गया हो । ना सिर्फ उद्देश्य मुसलमानों को हिन्दूवादी विचारधारा से अलग करते हुए देश की सत्ता पर खुद को स्थापित कर सामाजिक सौहार्द को बांटे रखना ताकि दोनों समुदायों के बीच आपसी संवाद न बन सके ।

कुल मिलाकर हिन्दू और मुसलमानों के बीच आपसी संवाद के रूप में यह सेकुलरवादी ताकतें खुद को बिचौलिये के रूप में रखना चाहती है । देश आज परिवर्तन की तरफ जाने को बैताब हो रहा है। वहीं सेकुलरवादी ताकतें देश में दंगों की आड़ में पुनः मुसलमानों के वोट बैंक पर कब्जा जमाने की हौड़ में लगी है । इन सब के बीच कहीं मुसलमान मारा जा रहा है तो कहीं हिन्दू ।

सीयासी पार्टी सत्ता को प्राप्त करने के लिए अपने भ्रष्टाचार के कार्यकाल को मोदी बनाम सेकुलरवाद की तरफ ले जाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है । अचानक से देश के गृहमंत्रीजी का एक बयान आता है कि देश के कई राज्यों में दंगा होने की संभावना है । दरअसल देश में कोई दंगा-वंगा नहीं होने का यह इन लोगों की सोची समझी साजिस है कि इससे मुसलमानों के बड़े वर्ग को हिन्दूओं के विचारों से अलग-थलग कर ‘मोदी की लहर’ को किसी प्रकार से रोका जा सके ।

मुजफ्फरनगर की घटना ना सिर्फ मुसलमानों के लिए चिंता का विषय है, हिन्दुओं के परिवार भी कई गाँवों से पलायन कर चुके हैं । क्षति का पैमाना इतना बड़ा है कि इसे पाटने में कई साल लग सकते हैं । सामाजिक तानें-बानें बिखर से गए हैं । 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व ही दोनों समुदाय को आमने-सामने खड़ा कर दिया है । ऐसे में इन तथाकथित सेकुलरवादी ताकतों से सत्ता छीन कर मोदी के नेतृत्व में दोनों समुदायों को एक जुट होकर देश में एक नए वातावरण का निर्माण किया जाना चाहिए । यह अवसर ना सिर्फ देश के हित में होगा जो लोग सत्ता प्राप्त करने के लिए मुसलमानों को वोट बैंक समझते हैं उनको करारा तमाचा भी होगा ।

देश के मुसलमानों को हिन्दूओं से दूरी बनाने के बदले उन्हें ऐसे अवसर तलाशने चाहिए कि जो दूरियाँ सेकुलरवादी ताकतों ने बना दी है उसे कैसे कम किया जा सके । हमें मिलकर दोनों समुदाय के बीच के बिचौलियों को हटाकर भारत के विकास व अपने बच्चों की शिक्षा पर केंद्रित होने की जरूरत है। यह तभी संभव हो सकता है जब मुसलमान सेकुलरवादी ताकतों को उखाड़ फैंकने के लिए खुद को प्रस्तुत कर दे तो पूरे राष्ट्र में उनके प्रति स्वतः सम्मान पैदा हो जाएगा।