यह देश सूफी-संतों का देश रहा है। यहां राम भी है तो रहीम भी। दुनियाभर में भारत एक मात्र एकलौता देश है जहां दो धर्म के लोग आपसी भाईचारे के साथ युगों-युगों से साथ रहते आयें हैं। देश की सत्ता विभाजन की दीवार ने कई जख्म दोनों सरहदों के इस पार हा या उस पार दिया है। इन जख्मों को भरने में दोनों सांप्रदाय के लोगों ने अपनी तरफ से कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। परन्तु सत्ता के दलाल इन जख्मों को हर पांच सालों में हरा-भरा कर देते हैं। उनका उद्देश कभी भी दोनों सांप्रदायों को मिलाना या उनमें भाईचारा हो ऐसा प्रयास करना नहीं रहा।
यह देश सूफी-संतों का देश रहा है। यहां राम भी है तो रहीम भी। दुनियाभर में भारत एक मात्र एकलौता देश है जहां दो धर्म के लोग आपसी भाईचारे के साथ युगों-युगों से साथ रहते आयें हैं। देश की सत्ता विभाजन की दीवार ने कई जख्म दोनों सरहदों के इस पार हा या उस पार दिया है। इन जख्मों को भरने में दोनों सांप्रदाय के लोगों ने अपनी तरफ से कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। परन्तु सत्ता के दलाल इन जख्मों को हर पांच सालों में हरा-भरा कर देते हैं। उनका उद्देश कभी भी दोनों सांप्रदायों को मिलाना या उनमें भाईचारा हो ऐसा प्रयास करना नहीं रहा।
देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें इतनी विवेकशील हो चुकी है कि देश की देशभक्ति इनको सांप्रदायिक लगने लगी है। देशभक्ति की बात करने वाले, इस देश के हर नागरिक इनकी नजर में देश को सांप्रदायिकता की आग में झौंकने वाला माना जाने लगे हैं उनकी परिभाषा में सिर्फ वे लोग देशभक्त हैं जो देश को अंदर से खोखला करने में उनकी मदद कर रहें हैं। जो लोग देश की एकता और अखंडता की बात करते हैं उसको भगवा आंतकवाद का नाम दिया जा रहा है, इससे स्पष्ट परिलक्षित हो जाता कि देश में धर्मनिरपेक्ष आतंकवाद उनके सर चढ़कर बोल रहा है। यह सब बातें हमारी पौंगी धर्मनिरपेक्षता को खुली चुनौती है। जो इनके बचाव में गाहे-बगाहे कुछ दलील देश के सामने रखते हैं जो निम्न प्रकार है -
इस परिपेक्ष में जो दलीलें दी जाती है-
1. अल्पसंख्यकों को भयभीत करना।
2. देश को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोकना।
3. देश को पुनः विभाजन की तरफ ले जाना।
हमें देखना होगा कि इन दलीलों के पीछे किन स्वार्थी तत्वों का दिमाग कार्य कर रहा है? दरअसल देश में जिन-जिन स्थानों में दंगों के खतरे ज्यादा महसूस किये जाते रहे हैं वैसे अधिकतर स्थान मुस्लीम बाहुलता वाले होते हैं। दंगों की शुरुआत ऐसे ही तत्वों द्वारा होती है जो देश में खुद को धर्मनिरपेक्ष ताकतें मानती रही है। इसका स्पष्ट संकेत है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष ताकतें मानने वाले तत्व देश की धर्मनिरपेक्षता को न सिर्फ खतरा साबित हो चुके हैं वे राजनीति स्वार्थपुर्ति के लिए बार-बार इस तरह का वातावरण भी सृजन करते रहें हैं।
1. अल्पसंख्यकों को भयभीत करना - आजादी के पश्चात अबतक हम जिन्हें अल्पसंख्यक मानते रहें हैं वे अपने-अपने क्षेत्र में अब न सिर्फ बहुसंख्यक हो चुके हैं उन क्षेत्रों में हिन्दू महिलाओं के उनके साथ विवाह के भी कई मामले सामने आने लगे हैं। सही अर्थों मे कहा जाए तो अब इस कौम के अंदर भय नाम की कोई बात नहीं रह गई कारण कि इनको दोहरे कानून का समर्थन प्राप्त हो रहा है। पहला इस्लामिक कानून जो हिन्दुओं की लड़कियों को मुस्लीम बनाने की इज्जाजत देता है। दूसरा भारतीय संविधान जो वयस्कों धर्म-जाति के बंधन से परे रहकर शादी करने की इज्जाजत। जबकि इसके विपरित कोई अन्य प्रकार की घटना घटते ही सांप्रदायिकता व कानून व्यवस्था की दुहाई दी जाती हैं। आनन-फानन में ऐसे संबन्धों का जो भी हर्ष निकले पर यह बात तय है कि उस समय भारत का संविधान गौन हो जाता है। चुकीं मामला एक विशेष धर्म से जुड़ा होता है। जहां से सांप्रदायिक दंगे फैलने की प्रवल संभावनाएं बनी रहती है। यह इस बात की ओर संकेत देता है कि भयभीत होने वाली कोई बात इस कौम पर लागू नहीं होती।
2. सांप्रदायिक दंगों की आग - प्रायः राजनैतिक दलों द्वारा इस बात की चेतावनी दी जाती है कि कोई भी बात जो उनको पसंद न हो न करें, अन्यथा दंगा होने की संभावना जताई जाती रही है। हर बात में इस खौफ को पैदा किया जाता रहा है। कोई भी व्यक्ति ऐसी बात न करें या ऐसा कार्यक्रम न करें जिससे सांप्रदायिक सदभावना का खतरा पैदा हो जाए। यह बात किसे कहा जाता है? क्या यही बात हमारे राजनैतिक दलों ने कभी मुसलमानों को भी कहा है? जो लोग सांप्रदायिकता की बात करतें हैं वे लोग ही खुद सबसे बड़े सांप्रदायिक हैं चुंकि उनका उद्देश्य न सिर्फ राजनीति करना रहा है इसके माध्यम से वे कई बार सत्ता भी प्राप्त करने में सफल रहें हैं।
3. देश को पुनः विभाजन की तरफ ले जाना- जो लोग बार-बार देश के टूकरे करने की बात कर देश की जनता को भयभीत करते रहते हैं उनके लिए एक बात याद आती है कि जो रोज-रोज शेर आया शेर आया करते रहते हैं ऐसे ही लोगों को एक दिन सच में शेर आकर खा जाता है। ऐसे ही लोग देश में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कट्टरपंथी ताकतों को मोहरा बनाकर अपनी सत्ता का दावा मजबूत करने में लगें हैं वे ही वास्तव में देश को पुनः विभाजन की कगार पर ले जाने का कार्य कर रहें हैं। जब एकबार धर्म के नाम पर देश के तीन बंटवारे हो चुके, तो प्रमाणित आंकड़े कहते हैं कि अब जो लोग देश को पुनः बांटने की धमकी देकर देश में धर्मनिरपेक्षता की वकालत कर एक विशेष संप्रदाय के वोट बैंक को अपने पक्ष में एकत्रित करने का काम कर रहें है। वे सही अर्थों में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में सत्ता की राजनीति करने में लगे हैं। ऐसी ताकतें जो खुद की राजनीति में लगा हो वह किसी भी सांप्रदाय का कभी भी भला नहीं सोच सकती।
आने वाले दिनों में जैसे-जैसे इन तत्वों की ताकतों में इजाफा होगा। देश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ता चला जाएगा और इसके लिए एक मात्र वे ही लोग जिम्मेदार माने जाएंगें या धर्मनिरपेक्ष ताकतों का वह चेहरा ज्यादा जिम्मेदार माना जायेगा जो देश में धर्मनिरपेक्ष की आड़ में वोट की राजनीति करते रहें है।।
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