भुपेन हजारिका
(8 सितंबर, 1926 - ५ नवम्बर २०११)
जाने-माने गायक और संगीतकार इस सदी के महा नायक श्री भूपेन हजारिका जी का शनिवार को मूम्बई के एक अस्पताल में निधन हो गया। श्री हजारिका जी के कई अंगों ने काम करने बंद कर दिये थे। उनकी उम्र 86 वर्ष की थी। कल देर शाम लगभग साढ़े चार बजे उनका निधन हो गया। हजारिका जी का इस अस्पताल में 29 जून से इलाज चल रहा था। अक्तूबर के अंत में निमोनिया होने के बाद से उनकी सेहत और खराब हो गई। हजारिका ने अपना अंतिम गीत फिल्म गांधी टू हिटलर के लिए गाया, जिसमें उन्होंने बापू के पसंदीदा भजन वैष्णव जन गाया था। इनके दो गीतों ने ‘‘दिल हूम-हूम करे’’ और ‘‘ओ गंगा बहती हो क्यूं’’ ने देश भर के हिन्दूस्तानियों पर राज किया।
भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम से एक बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे। हजारिका का जन्म असम के सादिया में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने अपना प्रथम गीत लिखा और दस वर्ष की आयु में उसे गाया। साथ ही उन्होंने असमिया चलचित्र की दूसरी फिल्म इंद्रमालती के लिए १९३९ में बारह वर्ष की आयु मॆं काम भी किया। ई-हिन्दी साहित्य सभा की तरफ से आपको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित।
ओ गंगा बहती हो क्यूं?
© - डॉ.भूपेन हजारिका -
[मूल असमिया भाषा से हिन्दी में रूपान्तर]
विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
निःशब्द सदा, ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यों ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुआ
निर्लज्य भाव से बहती हो क्यों ?
अनपढ़ जन खाध्य विहीन,
नेत्र विहीन देख मौन हो क्यों ?
इतिहास की पुकार, करें हँकार
ओ गंगा की धार, निर्वल जन को सकल संग्रामी
समग्रगामी बनाती नहीं हो क्यों ?
व्यक्ति रहे व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निष्प्राण समाज नहीं तोड़ती हो क्यों ?
स्त्रोतस्विनी तुम न रही, तुम निश्चय चेतना नहीं
प्राणों से प्रेरणा बनती न क्यों ?
[मूल असमिया भाषा से राजस्थानी में रूपान्तर]
लांबी है अथाग, प्रजा दोन्यू पार
करे त्राय-त्राय, अणबोली सदा ओ गंगा तू
ओ गंगा बैवे है क्यूं ?
नेकपाणो नष्ट हुयो, मिनख पणो भ्रष्ट हुयो,
निरलज्जा बण बैवे है क्यूं
अणभणिया आखरहीन, अणगिण जन रोटी स्यूं त्रीण
नैत्रहीन लख चुप है क्यूं
इतिहास की पुकार, करें हुंकार-
हे गंगा की धार निवले मानव ने जुद्ध वणी,
सब ठौरजयी वणावै नहीं है क्यूं ?
मिनक रहवै मिनखांचारी, सगळा समाज निभ्हे स्वैच्छाचारी
प्राणहीन समाज नै तोड़े नहीं हैं क्यूं ?
सुरसरी तू ना रै वै, तू निश्चय चेतना हीन
प्राणों में प्रेरणा बणै नहीं है क्यूं ?
ओ गंगा बैवे है क्यूं
Translated In Rajsthani by : Raju Khemka, Assam
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