आज जब मेरी पत्नी ने मुझे से यह कहा ‘‘दीये जो बड़े हो गये वह मुझे ला दो’’ तो एक बार मैं सोचता रहा फिर थोड़ा सोचने लगा। उनकी जरूरत समझी तो समझ में आया कि उनको जो दीये बूझ गये हैं वे चाहिए। काजल निकालने के लिए सराई को उलटने के लिए बड़े हो गये दीये से सहारा देने के लिए। कितना सम्मान होता है हमारे संस्कारों में कि हम दीये को भी बूझा न कह कर, दीये को बड़े हो गये कहतें हैं। दीया जब जलने के बाद अन्त में पूरी बाती एक साथ जल उठती हैं। इसी जलती लौ के करण ऐसा लगता है कि उसकी लौ बड़ी हो गई। बस इसके बाद वह बूझने ही वाली है। इसलिए इसका नाम हो गया ‘‘दीये जो बड़े हो गये’’ दीपावली की आप सभी को शुकामनाएं।
आपका ही।
शंभु चौधरी
बुधवार, 26 अक्तूबर 2011
दीये जो बड़े हो गये
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 9:37 am
Labels: शंभु चौधरी
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