नोटः पिछला लेख ‘‘देश के बेईमान अर्थशास्त्री’’ आपने पढ़ा होगा आगे इस लेख का दूसरा भाग पढ़ें "वैष्णव जन तो तेने कहिये"।
कानून के इस अंधेपन, गूंगापन और नंगेपन को यदि देखना हो तो वह भारत के किसी भी हिस्से में जाकर देख सकते हैं। इस देश में पहले कुछ विदेशी भ्रमणकारी भारतीयों की गरीब बस्तियों में जाकर रहते उसका अध्ययन करते और भारत की दरिद्रता व नग्नता को एक अच्छा सा नाम जैसे ‘‘सिटी ऑफ जॉय’’ देकर अपना माल हमें ही बेचने में सफल हो जाते और हम भारतीय इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि "Kolkata is City of Joy" यह न सिर्फ हमारी खोखली मानसिकता को दर्शाती है।
भारतीय अर्थशास्त्री जिन आंकड़ों से देश की अर्थव्यवस्था चला रहें हैं उससे देश के किसानों का कोई भला नहीं हो सकता। जमीन अधिग्रहण की ख़ामियाँ जगजाहिर हो चुकी है। जिस कानून को राष्ट्र के विकास व जनहित को ध्यान में रखकर बनाया गया था आज उसका खुलकर व्यवसायीकरण होने लगा है। राष्ट्र के विकास के माध्यम से खुद का पोषन व किसानों का शोषण जमकर होने लगा। सरकारी सहयोग से सरकार के ही कानून की दलीलें दे जमीनों के सौदागर किसानों की उपजाऊ जमीनों का ओने-पौने दामों में खरीद रातों-रात खरबपति बनने का सपना संजोये जा रहें हैं जिसमें प्रायः सभी राज्यों की सरकार व सरकारी एजेंसियां सहयोग प्रदान करती नजर आती है। कानून के इस अंधेपन, गूंगापन और नंगेपन को यदि देखना हो तो वह भारत के किसी भी हिस्से में जाकर देख सकते हैं। इस देश में पहले कुछ विदेशी भ्रमणकारी भारतीयों की गरीब बस्तियों में जाकर रहते उसका अध्ययन करते और भारत की दरिद्रता व नग्नता को एक अच्छा सा नाम जैसे ‘‘सिटी ऑफ जॉय’’ देकर अपना माल हमें ही बेचने में सफल हो जाते और हम भारतीय इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि "Kolkata is City of Joy" यह न सिर्फ हमारी खोखली मानसिकता को दर्शाती है। हमारे भारतीय दर्शन पर भी प्रहार करती है। कहावत है कि अंधे लोगों को सिर्फ काला ही काला दिखता है पर इसका अर्थ यह नहीं कि आंखों के अंधे को काला दिखता है भारतीय संस्कृति विश्व को दर्शन देने की क्षमता रखती है जब शिकागो के एक विश्व सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द ने जैसे ही यह कहा कि ‘‘जिस तरह सारी नदियां एक ही समुद्र में समा जाती उसी तरह धर्म भी’’ तो सारा विश्व उस रात सो नहीं पाया रात भर विश्व के समाचार पत्र इस समाचार को प्रधानता देने की अलग-अलग से तैयारियों में जुट गये थे। सुबह का अखबार विवेकानन्द के रंग हुआ था। भारत दर्शन की इस प्रधानता को आज भी कोई नहीं छीन पाया परन्तु दुर्भाग्य से इस देश के 80 प्रतिशत राजनेताओं ने भारत के दर्शन को न सिर्फ सांप्रदायिक स्वरूप दे दिया। वोट बैंक की राजनीति देश में हर उस व्यक्ति को सांप्रदायिक बना दिया जो भारतीय दर्शन और संस्कृति की बात करता है। वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे । लेख जारी.... (लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार है।)
2 विचार मंच:
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आदरणीय शम्भू चौधरी जी, "सिटी ऑफ जॉय" जैसा एक उदाहरण "स्लमडॉग" भी है|
हम भारतीयों की मानसिकता इतनी खोखली क्यों होती जा रही है?
WEST में सब BEST ही नज़र आता है, जबकि WASTE अधिक है|
Dewas Bhai se 100% sahmat.