कांग्रेस के लाचार और ईमानदारी का चौला पहने देश के इतिहास में सबसे भ्रष्टतम प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह मानते है कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र की सबसे बड़ी मजबूरी है और वे सिर्फ इस मजबूरी धर्म का निर्वाह कर रहे हैं। उनकी पार्टी में इस मुद्दे को लेकर उनके विचार कुछ अलग हैं। चोरों का सरदार कहता है कि मैंने माँस नहीं खाया? जो जेलों की सलाख़ों में बन्द हैं सिर्फ उसने ही खाया? किसी को लग रहा है कि अन्ना संसद को चुनौती दे रहें हैं तो किसी को लग रहा कि ये लोकतंत्र को ही चुनौती हैं? अब इनसे कौन बात करे?
पिछले 35 सालों से कांग्रेस पार्टी बंगाल में माकपा की पिछलग्गू पार्टी के रूप में कार्य करती रही। एक समय वाममोर्चा के खिलाफ लड़ाई में ममता दीदी को पार्टी से धक्का देने वाले कांग्रेसी चम्मचे आज प्रायः सभी एक-एक कर ममोता दीदी के चरणों में जाप करना शुरु कर दिये। ज्यों-ज्यों ममता दीदी का प्रभाव बंगाल की राजनीति में सत्ता के करीब आने लगा त्यों-त्यों कांग्रेसी सूर-ताल भी बदलने लगे। जो प्रणब दा एक प्रकार से कहा जाय तो बंगाल में कांग्रेस की राजनीति सफाया के एकमात्र सूत्रधार माने जा सकतें हैं ने कल कोलकाता शहर में गत विधानसभा में हुई जीत का जश्न चुनाव के दो माह गुजर जाने के बाद मनाया। शहर के आस-पास के उपनगरिय ईलाकों से कुल मिलाकर भी पांच हजार लोगों की भीड़ भी नहीं जुटा पाये ये कांग्रसी।
जीत के इस जिस जश्न को मनाने की असली हकदार तृणमूल कांग्रेस की नेत्री सूश्री ममता दीदी ने जबकि इस जश्न को मनाने की जगह अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा की ‘‘काज कोरोंन’’ और हर रोज खुद भी देर रात तक काम कर रही है, सुबह घर से निकलते समय ममता का सीधा संपर्क किसके ऊपर गाज गिरायेगा किसी को पता नहीं। रातों-रात गत 35 सालों से चरमराई हुई व्यवस्था खुद व खुद पटरी पर आने लगी। दूसरी तरफ इनकी सहयोगी कांग्रेस जीत का जश्न मनाने में लगी है। पर अचानक से चुनाव के दो माह गुजरने के बाद यह इस जश्न की भूमिका पर नजर डालें तो प्रणब दा का पूरा आक्रोश भ्रष्टाचार को लेकर ही रहा। केंद्रीय सरकार के मंत्रीगण मानते हैं कि देश में इस मुद्दे के लेकर जो भी बात करेगा वह ‘‘देश का शत्रु’’ है। वे लोग लोकतंत्र को चुनौती दे रहे हैं। केंद्रीय सरकार के मंत्रीगण एक के बाद एक लोकतंत्र की नई व्याख्या देने में जुटे है। प्रणब दा देश की बढ़ती कीमतों पर जो बयान दिये थे वह तो आपको याद होगा ही] नहीं तो आपको पुनः याद दिला देता हूँ - ‘‘देश में लोगों की आमदनी बढ़ गई है इसलिए चीजों के दाम बढ़ गये।’’ अब इनका नया फरमान भी सामने आ गया कि ‘‘अन्ना हजारे तथा बाबा रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के नाम पर वे लोकतंत्र को चुनौती दे रहे हैं।’’ वैसे भी लोकतंत्र पर बात करने का अधिकार सिर्फ चुने हुए सांसदों को ही है चूंकि उनको देश को लूटने का सरकारी अधिकार प्राप्त है। ये सड़क छाप अन्ना हजारे बार-बार धमकी देगा तो सरकार यही न समझेगी।
कांग्रेस के लाचार और ईमानदारी का चौला पहने देश के इतिहास में सबसे भ्रष्टतम प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह मानते है कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र की सबसे बड़ी मजबूरी है और वे सिर्फ इस मजबूरी धर्म का निर्वाह कर रहे हैं। उनकी पार्टी में इस मुद्दे को लेकर उनके विचार कुछ अलग हैं। चोरों का सरदार कहता है कि मैंने माँस नहीं खाया? जो जेलों की सलाख़ों में बन्द हैं सिर्फ उसने ही खाया? किसी को लग रहा है कि अन्ना संसद को चुनौती दे रहें हैं तो किसी को लग रहा कि ये लोकतंत्र को ही चुनौती हैं? अब इनसे कौन बात करे? हम उनसे पूछ रहे हैं कि आपका जो ड्राफ्ट है आप उसी के बारे में जनता को बतायें कि आप देश में व्याप्त भ्रष्टाचार व्यवस्था पर लगाम लगाने के लिए कैसा जन लोकपाल बिल में ला रहे हैं। इस पर तो बोल नहीं रहे। धमकी इस बात की दे रहे हैं कि हमारी काली करतूतों को कोई जगजाहिर करेगें तो अच्छा नहीं होगा। चुनौती पर चुनौती अब एक और चुनौती। साहब! लोकपाल बिल पर बहस कीजिए लोकतंत्र की चिंता छोड़ दीजिए। देश की जनता को साफ करें कि आप जो बिल लाने की बात कर रहे हैं उसमें क्या-क्या है? और उससे किन-किन श्रेणी के लोगों पर अंकुश लगाया जा सकेगा? क्या उन लुटेरों पर भी इसका कोई प्रभाव होगा जो संसद के अन्दर ही देश को लूटने में लगें हैं? इसका संचलान व्यवस्था किन लोगों के हाथ में रहेगी?
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