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गुरुवार, 31 जनवरी 2008

व्यंग्य: बड़ाबाजार में आग तो रोज लगती है!

वाममोर्चा सरकार एक तरफ 30 वर्षों की अपनी सफलता का जश्न मना रही थी, दूसरी तरफ दमकल कर्मी खतरे की घंटी बजाना बन्द कर रैली के पीछे-पीछे सरकते जा रहे थे, और बड़ाबाजार धू-धू कर जलता रहा। संवेदनशील विचारधारा के धनी मुख्यमंत्री माननीय श्री बुद्धदेव बाबू की ज़ुबान राज्य के 100 से कम कट्टरपंथियों के आगे लडखड़ा गयी। परन्तु बिग्रेड मैदान में खूब जमकर बोले राज्य की तरक्की के लिये उद्योगपतियों की सराहना की और कहा कि राज्य में उद्योग लगाने के लिये कई देशी-विदेशी प्रस्ताव सरकार के पास आयें हैं, उन्होंने माना कि बाम विचारधारा और प्रगति एक साथ नहीं चल सकती, तीस साल बाद बामपंथियों को यह बात समक्ष में आयी, यही एक अच्छी बात है, सर्वहारा वर्ग के मसिहा होने का ढींढोरा पिटने वली वाममोर्चा की सरकार, किसानों की हत्याकर, उद्योग बैठायेगें यह बात गले नहीं उतरती, मुक्षे क्या किसी भी वाम विचारधारा को नजदिक से जानने वाले को भी नहीं उतरेगी। किसानों की उपजाऊ जमीन को गैरकानूनी तरिके से अधिकृत कर उद्योगपतियों को औने-पौने दाम में बैच देना, नंदीग्राम के खेतिहर मजदूरों को मौत के घाट सुला देना, कोई इनसे सीखे। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की जुबान पर नपे-तुले शब्द थे, राज्य की प्रगति बस ! दूसरी तरफ एक कोस की दूरी बड़ाबाजार में व्यापारियों का सबकुछ जलकर खाक हो रहा था, सारा का सारा प्रशासन इस बात के लिये लगा था कि, मुख्यमंत्री महोदय को धूआं न लग जाये। राज्य के वित्तमंत्री श्री असीमदास गुप्ता को छोड़कर सभी मंत्री मकरसंक्रांति की ठण्ड में अपने-अपने घरों में वातानुकुलित शयनकक्ष का आनन्द उठा रहे थे। वेतुके शब्दों की राजनीति करने वाले श्री विमान बोस जिस तरह तस्लीमा के लिये अपनी जीभ हिला सकते थे, थोड़ा बहुत बड़ाबाजार के व्यापारियों के प्रति भी हिला पाते तो कुछ सुकून मिलता, लेकिन बामपंथी स्वभाव ने इनके हमदर्दी भरे शब्दों को भी जात और धर्म में वांट रखा है, समाज के अन्दर असभ्यता फैलाने वाले एक शिक्षक जिसने अपनी एक छात्रा को बहला-फुसला कर निकाह कर प्रेम का जामा पहनाया, जिसे राज्य के स्पीकर हालीम साहेब ने राजस्थान की याद दिलाते हुये इस अपराध को नई पीढ़ी का परिवर्तन बताया, राज्य के मुख्यमंत्री एक आम घटना पर उसके घर जाकर सहानुभुति बटोर आये, शायद इसलिये कि मामला एक धर्मविशेष से जुड़ा था, वाम विचारधारा को मानने वाले मेरे जैसे अनेक स्वतंत्र लोगों को तब घोर आश्चर्य हुआ, जब 30 वर्षों से जो दल आम के फल को खट्टा बता कर , जी भर कर कोसते रहे, आज उसी फल के गुण बताते नहीं थकते। हर मंत्री यहां तक एक जमाने में पाँच पैसे भाड़े में वृद्धी को लेकर शहर की कई ट्रामों को आग के हवाले कर देने वाले माननीय ज्योति बसु भी इस बात से सहमत नजर आये, पूरे बंगाल के कल-कारखाने जब नरकंकाल बन चुके तब जाकर इनको, इस बात का ख्याल आया कि इन नरकंकालों में अब भी थोड़ी जान बची है, जिससे राज्य का विकास संभव है।
बड़ाबाजार आग की लपटें देशभर में फैल चुकी थी, परन्तु 100 गज की दूरी पर खड़े राइटर्स भवन की लाल दीवारें इतनी शख्त विचारों की बनी है कि उस भवन में बैठे मंत्री के चेम्बर तक नहीं पहूंच पाई। नगरनिगम के कर्मी और महाखलनायक कोलकाता के मेयर श्री विकास रंजन भट्टाचार्य बाबू और इनके प्यादे यह बताने में लगे थे कि बड़ाबाजार की सारी इमारते गैरकानूनी है, कहने का अर्थ यह था कि बंगाल में सिर्फ बड़ाबाजार में ही गैरकानूनी निर्माण होता है, आग बुझे इस बात की चिन्ता किसी भी निगमकर्मी को नहीं थी, सारा का सारा कॉरपोरेशन इस बात को लेकर परेशान था, कि यदि कोई कानूनी रूप से सही भवन को आग लग जायेगी तो उसे भी गैरकानूनी कैसे साबित किया जाय सके। राज्य में राजस्थान का एक तीन सदस्यी मंत्रियों का एक दल घटनास्थल का निरक्षण करने राजस्थान से पहुंच गया, राज्य के दमकल मंत्री से मिलने उनके कार्यलय भी गये, परन्तु राज्य के दमकल मंत्री श्री प्रतिम चटर्जी आग बुझाने में इतने व्यस्थ थे कि इनके पास मिलने का भी वक्त नहीं था, भला हो भी क्यों, विचारधारा का भी तो सवाल था, सांप्रदायिक लोगों से मिलकर अपनी छवी को खराब करनी थी क्या? राजस्थान सरकार को सोचना चाहिये कि वह इसकी दुश्मन नम्बर एक है, पहले ही तस्लीमा को लेकर राजस्थान ने आग में घी का काम किया, उनका एक नुमांइदा जो समाज को किस तरह से नीचा करे की दौड़ में लगा है, जिसके चलते पहले ही बंगाली समाचार पत्रों ने मारवाड़ी को जी भरकर गाली दे डाली, पता नहीं किस मानसिकता का बना हुआ है, मारवाड़ी कौम! जिसे जो चाहे जितना गाली दे डाले कोई फर्क ही नहीं पड़ता। राजस्थान के मंत्री आने से आग कितनी बुझी यह तो वक्त ही बतायेगा, हां बामपंथियों के दिल में आग जरूर लग गय़ी। अब भला सच ही तो है, दमकल मंत्री क्या केवल यही इंतजार करता रहेगा कि कब और कहां आग लगे, और भी तो उनके पास बहुत सारे काम हैं, आपलोग खामांखा हो हल्ला करते रहिये। बड़ाबाजार में आग लग गयी तो क्या हुआ, तपसीया, या न्यूमार्केट में तो आग नहीं लगी है, जो बाममोर्चा के चिन्ता कारण बनती। बड़ाबाजार में तो यूँ ही रोजना आग लगती रह्ती है, कभी प्याज के दाम में , तो कभी अनाज के दाम में, दमकल मंत्री है, कोई खाद्यमंत्री तो है नहीं, जो बार-बार आप आग लगाते रहिये और ये आकर बुझाते रहे। मछली य चमड़ा बाजार होती तो फिर भी सोचने की बात थी, त्रिपाल पट्टी, कपड़ा बाजार था। आग तो लगना ही था। यह तो एहशान है कि वे आग बुझाने आ गये, वर्ना आप क्या कर लेते।
-शम्भु चौधरी, पता: एफ.डी:- 453, सल्टलेक सिटी,कोलकाता-700106

3 विचार मंच:

हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा

Dr Mandhata Singh ने कहा…

शंभूजी आपका यह सारा लेख हिंदीभाषा समूह के जरिए मेल से मुझे मिला। इस में जो बातें आपने कही थी वह और लोगों तक पहुचाने के काबिल थीं। डा. रूपेश के अलावा एक और टिप्पणी पत्रकार दिलीप मंडल ने भी दी है। डा. रूपेश को तो मुझे थोड़ा उग्र होकर जवाब देना पड़ा क्यों कि वे लेखक के मर्म को ही समझने से इंकार कर रहे थे। आपका लेख बड़ाबाजार की व्यथा के साथ और भी बहुत सारी बातें कहता है। इस प्रस्तुति के लिए आपका शुक्रिया। आपका ब्लाग पढ़ा । विचार और मिशन दोनों अच्छा है।
डा. मान्धाता सिंह
कोलकाता
my contact mail-drmandhata@gamil.com
mywebsite----
http://hamaravatan.blogspot.com
http://chintan.wbdunia.com

अनुनाद सिंह ने कहा…

शम्भु चौधरी जी,

हिन्दी चर्चा समूह से प्राप्त सन्द्र्श के सहारे आपके प्रयास के बारे में पता चला। हिन्दी का उत्कर्ष हो, यह करोंड़ों लोगों की इच्छा है। किन्तु आगे बढ़कर बहुत कम लोग ही काम आरम्भ कर पाते हैं। आपका यह आरम्भ अत्यन्त पवित्र ध्येय को समर्पित है। यह सुयश पाने का अधिकारी है।


एक-दो सलाह :

अपने साइट की सूचना (रजिस्ट्रेशन) 'नारद'; चिठाजगत, ब्लागवाणी आदि हिन्दी एग्रीगेटरों को दे दें। और लोगों को जानकारी मिलेगी। और जनता यहाँ आयेगी।


आप अपने पोस्टों को 'जस्टिफाई' न करें क्योकि 'जस्टिफ़ाई' किया हुआ टेक्स्ट फायरफाक्स वेबब्राउजर में ठीक से नहीं दिखता (यद्यपि यह इन्टरनेट इक्स्प्लोरर पर तो ठीक दिखता है।)

Dr Mandhata Singh ने कहा…

अनुनादजी धन्यवाद।
मान्धाता सिंह

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