मैंने पूछा वो कैसे?बताने लगा कि उसके महल्ले में ही 1000/- में हॉस्पीटल के लोग आकर बुकिंग कर रहैं हैं। सामाजिक संस्था उनको सहयोग भी दे रही है।600 की वैक्सीन 1000 में? 400 का मुनाफा?मुझे लगा कि यह अपराधियों का बढ़ावा ही तो है?सरकार जब तक वैक्सीन खोजकर लायेगी, तब तक देश की आधी आबादी पैसा देकर वैक्सीन लगवा चुकी होगी।जान है तो जहान है।प्रधानमंत्री जी ने पहले ही सबको बता दिया था।
रामप्रसाद जी आज सुबह-सुबह ही तमतमाए हुए लगे।
मित्रों ने उनके व्यवहार से ही भांप लिया था, हो न हो आज किसी पर बिजली गिरने वाली
है, सो सभी संभल कर उनसे बात कर रहे थे।
पर कहतें हैं, कुछ लोग ऐसे मौके का ही इंतजार करतें रहतें हैं, हमारे ग्रुप में भी मुंगेरीलाल जी को आदत है, जबतक वो उस आदमी के जख्मों को छेड़ ना दे।
मुंगेरीलाल ने जैसे ही रामप्रसाद जी को तमतमाया हुआ देखा, तवे पर पानी छिड़क कर उसके गर्मी का अंदाज लेने लगा।
"और रामप्रसाद जी-कैसे हो"
कलतक तुम-ताम, गालियाँ दिये बने जो आदमी बात न करता हो आज शरीफाई से बात करे, वह भी 'जी' लगा कर, तो कटे पर नमक ही छिड़कना था।
बस अब क्या था, घर का चूहा, चूहेदानी से, चूहा एक ही झटके में बहार निकलकर 440 वाट वोल्टेज का करेंट मारने लगा।
दनादन एक-दो चांटे जड़ दिए, मुंगेरीलाल के।
हम सभी पहले से ही सतर्क थे।
दोनों का बीचबचाव करते हुए, मैंने बात को बदलना चाह।
क्या मुंगेरी, बेचारा बुखार से तप रहा है, तुमको मजाक सूझता है। चलो आज तुमको ही चाय के पैसे चुकाने होंगे।
एक तो बेचारा अपनी हरकतों से सुबह-सुबह प्रसाद में दो थप्पड़ खा ही चुका था, ऊपर से चाय का भुगतना भी उसे ही करने का प्रस्ताव सभी ने पास कर दिया था।
अब मुंगेरीलाल ने भी ठान लिया कि आज चाय का भी पैसे मेरे से ही वसूल कर के रहेगा।
तभी हमारे पास एक सब्जी बेचने वाली आकर पूछने लगी-
खिच्ची-खिच्ची परवल,भिन्डी ... 90 रुपये किलो।
रामप्रसाद जी का दिमाग भीतर से पहले ही तमतमाया हुआ था, परवल-भिन्डी के भाव सुनकर और तमतमाने लगा।
सब्जी वाली को बोल- "दीदी ओ दीदी... आप जाओ"
"दीदी" सुनते ही उस सब्जी वाली ने दो चांटे रामप्रसाद जी को रसीद कर दिए।
मुंगेरीलाल का हिसाब बराबर होते ही वह भी बीच में कूद पड़ा।
अरे रामप्रसाद ये 'बिहार' नहीं है, जो, जो मन आवै बोल दो।
उधर सब्जी वाली शांत ही नहीं हुई थी।
दीदी किसको बोला रे बिहारी?
तुम्हारी दीदी लगती हूँ?
अब रामप्रसाद जी यह तो समझ चुके थे कि एक तो यह महिला, दूसरे में इनका संगठन, हाथ लगाया कि जल जाएगा। सो बचाव कि मुद्रा में आ गए, और थोड़ा नरमी से बोले-"नहीं बहन जी" आप बुरा मान गई, शौरी ...
उसका गुस्सा अब सांतवें आकाश पर था.. बहन जी?
भाईईईईई सा'ब बहनजी आपके घर में होगी।
जबान संभाल कर बोलिए।
तभी मुंगेरीलाल ने उस सब्जी वाली का आंकलन किया... 40 के आसपास की होगी। अंदाज लगाकर फिर बीचबचाव किया..
जाने दिजिए भाभीजी जी!
भाभीजी सुनकर वह फिर नागिन की तरह फुफकारने लगी।
अबे- तेरी भाभीजी कब से लगी, ज्यादा पचड़-पचड़ किया ने तो सबको थाने में ले जाऊँगी।
अब सुबह - सुबह से ही सबका मूड पहले से ही रामप्रसाद ने खराब कर रखा था, ऊपर से ये एक नई आफत सामने आ गई।
मैंने बात को बदलते हुए कहा - "ये भिन्डी तो बहुत खिच्ची है...
अब बोलते-बोलते रुक गया...
दीदी बोला तो फिर मेरा गाल भी लाल हो जाएगा..
कुछ संभलकर...
उसने जबाब दिया.. नहीं बेचनी आप लोगों को सब्जी, सुबह-सुबह बोहनी खराब कर दी, और वह आगे बढ़ गई।
उसके जाते ही हम सब ने राहत की सांस ली ही थी कि मुंगेरीलाल लाल लगा अपने चाय का पैसा वसूलने।
और बताओ रामप्रसाद ! भाभीजी कैसी है?
वैक्सीन दिला दी ने भाभीजी को?
रामप्रसाद जी भी समझ चुके थे कि अब चाय का भुगतान चुपचाप कर दो नहीं तो यह वैक्सीन भी लगवा देगा सीमा को।
रात ही सीमा बोल रही थी कि वैक्सीन प्राइवेट हॉस्पीटल में 1000/- प्रति डोज की बिक रही है। चलो लगवा आतें हैं। मैंने हिसाब लगाया इस भुखमरी में घर में अनाज नहीं ला पा रहे, भाड़ा नहीं चुका पा रहे, दो जन के 4000/-और चुकाने पड़ेंगे?
पर प्रधानमंत्री जी तो सबको मुफ्त में वैक्सीन दे रहें हैं?
महीना-दो महीना देर ही सही सरकार व्यवस्था कर ही देगी।
सीमा चिल्लाने लगी.. तुम तो यही चाहते हो मैं मर जाऊँ... और रोने लगी..।
अभी नौकरी मिलने में 10 दिन बाकी था। 2000/-जमा करने का पैसा हाथों-हाथ कहां से लाऊँ..?
बस इस बात को लेकर रात को सीमा से बहस हो गई।
मरता क्या नहीं करता।
जब जान पर आफ़त आई तो लोगों ने तो इन अस्पतालों के आगे घूटने टेक दिए थे। घर, गहने गिरवी कर के पैसे जमा करा के परिजनों को बचाने की जी-तौड़ कोशिश की। फिर आक्सीजन की क़िल्लत ने सबकी सांसें छीन ली।
मुझे तो बस 2000/- ही अभी चुकाने थे। 2000/-तो तीन-चार माह बाद देने हैं सो 'हां' कर दिया था कि ठीक है कल जमा करा देना पैसा।
इधर अचानक से मुंगेरीलाल लाल ने वैक्सीन की बात चला दी।
मैंने भी उससे पलट सवाल किया, नहीं यार, 'स्लोट खाली नहीं मिल रहा' तुमने लगवा ली?
बताने लगा "अरे तुम गधे के गधे ही रहोगे!" स्लेट तो खुले आम पहले से ही बुक हो रहा है।
मैंने पूछा वो कैसे?
बताने लगा कि उसके महल्ले में ही 1000/- में हॉस्पीटल के लोग आकर बुकिंग कर रहैं हैं। सामाजिक संस्था उनको सहयोग भी दे रही है।
600 की वैक्सीन 1000 में? 400 का मुनाफा?
मुझे लगा कि यह अपराधियों का बढ़ावा ही तो है?
सरकार जब तक वैक्सीन खोजकर लायेगी, तब तक देश की आधी आबादी पैसा देकर वैक्सीन लगवा चुकी होगी।
जान है तो जहान है।
प्रधानमंत्री जी ने पहले ही सबको बता दिया
था।
अब भाई मैंने तो सीमा के और मेरे पैसे चुका
दिये थे। आप किस कोविन के चक्कर में फंसे हो।
बस पैसा आप चुका, सरकार कल आंकड़े बता देगी
हमने अब तक इतने लोगों को वैक्सीन लगा दी।
इसे कहतें हैं दिमाग।
चाय का भुगतान तो मैंने किया, वाह-वाही मुंगेरीलाल ने लूट ली।
व्यंग्यकार -शंभु चौधरी।
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