चारों तरफ विकास के स्वर गुंज रहे थे जिसमें हमारा वन जीवन हमसे छीना जा रहा था। हमने उनके जीवन में कभी दखल नहीं दिया।सवाल उठता है कि उनका विकास जो हमारे वन जीवन को नष्ट करता हो इसकी इजाजत इनको कौन दे रहा था? सदियों से आदिवासी वन जीवन-यापन करते आये हैं, अब इनका विकास हमारे जीवन को तहस-नहस करने पर तुला है। इसे रोकना ही होगा ।
चित्र साभार: Hemwant Singh Mehta
[विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई जारी, जाखनी (उत्तराखंड) की महिलाएं अपने गांव के पास प्रस्तावित दो किलोमीटर सड़क का विरोध करती। चित्र 2021]
मेरे टेबल के आस-पास छोटी काली चीटियां इन दिनों आने लगी। एक दिन मैंने चाय बिस्कुट खाकर जूठी कप टेबल पर ही छोड़ दी थी, देखा कई चीटियां उस कप के चारों तरफ फैल चुकी थी, कुछ बिस्कुट के छोटे-छोटे टुकडों को उठाकर ले जाने का प्रयास कर रही थी तो कई चीटियां चाय के प्याले से चाय का मजा ले रही थी।
काफी देर तक उनको देखता रहा। तभी लगा कि मैं भी एक चींटी बन चुका हूँ और उन चीटियों के साथ मिलकर बिस्कुट के छोटे-छोटे कणों को अपने कांटों से पकड़ कर उसे घर के अंदर ले जाने का प्रयास करने लगा हूँ। चावल के दाने के बराबर इस छोटे से बिस्कुट के टूकड़े को मैं जैसे ही उठा कर आगे बढ़ ही रहा था कि कई चीटियों भी मुझे सहयोग देने आ गई। अब हम बड़ी आसानी से उस बिस्कुट के टुकड़े को उठा पा रहे थे। धीरे-धीरे हम घर के दरवाजे के पास पंहुचने ही वाले थे कि अचानक से वह बिस्कुट का टुकड़ा हमसे छूट गया। अब सब एक दूसरे को देखने लगे। तभी हमार दूसरा ग्रूप वह भी बिस्कुट का हम लोगों से आधा दाना के बराबर का टुकडा लेकर आगे बढ़ने लगा। हमने तत्काल उनसे सारी बात बताई वे लोग अपने टुकड़े को छोड़कर हमारे साथ हो गए।
तभी देखा कि हमारे घर की तरफ से कई सारी चींटियां मेरी तरफ आने लगी, सब एक-दूसरे को संदेश भेजने लगी। बीच-बीच में वे रुक-रुक कर आपस में कुछ बातें करती और तेजी से आगे बढ़ जाती। मैंने देखा कि पलक झपकते ही उस बिस्कुट के दाने को सबने मिलकर उठा लिया था, उस दाने को घर के अंदर ले आये थे। पर समस्या अभी भी समाप्त नहीं हुई थी, घर के अंदर का रास्ता इतना संकरा था कि आने-जाने में सबको असुविधा का सामना होने लगा।, फिर सबने एक नई तरकीब निकाली।
घर के एक कोने को कुछ चींटियों ने मिलकर बड़ा करने लगी। देखते-देखते घर का एक कोना इतना बड़ा हो गया कि बिस्कुट के दाने को उसमें रख जा सकता था। अब तक किसी ने उस दाने को खाया नहीं, सबका एक ही लक्ष्य था पहले इसे सुरक्षित घर के अंदर ले जाए। जिसमें हम सफल हो चुके थे, धीरे-धीर सारी चीटियां कुछ-कुछ साथ में ले कर अंदर आने लगी।
जिसे जो मिला खाने का लेकर आ रहीं थी, पर सबसे बड़ा दाना मेरा ही था।
अब हम इस बात पर विचार करने लगे कि पहले बच्चों को खाने दिया जाए क्यों कि हम जब भी बहार जाते थे तो कुछ न कुछ जरूर खा ही लेते थे पर बच्चों को अभी बहार जाना मना था। सो सब बच्चों को बुला कर उनके पास खाना रखा दिया सबने।
अंदर बहुत बड़ा हॉल नुमा घर में सब बच्चे जमा होने लगे।
चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। जमीन के अंदर सांप, चूहों ने भी जान बचानी शुरू कर दी। हम तो उनके सामने कुछ भी नहीं थे।
आदमी का विकास एक साथ कई लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने लगा था। हम चिल्ला रहे थे, हमें लोग अपराधी समझ रहे थे। न्याय की अदालत में हमने गुहार लगाई।
विकास की आंधी के सामने हमारी आवाज दब कर रह गई।
हम अपने आंखों के सामने अपने घर को बच्चों को उजड़ते-मरते देख रहे थे।
कुछ जान बचाकर भाग गए पर कहां तक सवाल यह भी था। इस पूरी जमीन को तो इन लोगों ने घेर लिया था।
चारों तरफ विकास के स्वर गुंज रहे थे जिसमें हमारा वन जीवन हमसे छीना जा रहा था।
हमने उनके जीवन में कभी दखल नहीं दिया। सवाल उठता है कि उनका विकास जो हमारे वन जीवन को नष्ट करता हो इसकी इजाजत इनको कौन दे रहा था? सदियों से आदिवासी वन जीवन-यापन करते आये हैं, अब इनका विकास हमारे जीवन को तहस-नहस करने पर तुला है। इसे रोकना ही होगा। - शंभु चौधरी