राफेल सौदा बनाम देश मोदी की सुरक्षा?
" यह सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ा मामला है ।"
तब बोफोर्स का मामला किसकी सुरक्षा से जुड़ा था ?
भारत सरकार के अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि
"अदालत को इसमें दखल नहीं देना चाहिए ।
ये नेशनल सिक्योरिटी का मामला है ।
ये जनहित याचिका नहीं है बल्कि राजनीति से प्रेरित याचिका है।
दिनांक 11 अक्टूबर 2018: देश की सर्वोच्च अदालत ने कल एक प्रकार से दबी ज़ुबान से ही सही यह राफेल सौदे की प्रक्रिया संबंधी पूरा विवरण अदालत में सौंपने का निर्देश अंततः दे दिया। अभी पिछले सप्ताह ही मुख्य न्यायाधीश के पद पर मोदी सरकार की तरफ से कालेजियम व वरियता को फेर-बदल कर बनाये गये मुख्य न्यायाधीश माननीय रंजन गोगोई, जस्टिस एस.के.कोल, व जस्टिस के.एम. जोसेप की खंडपीठ ने विनीत ढंडा बनाम भारत सरकार W.P.(C) No. 1205/2018 पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार से कहा कि वे दाम से जुड़े प्रश्न पर कोई सवाल नहीं कर रहे । ना ही वे देश की सुरक्षा से कोई समझौता कर रहे । ना ही वे इस पीआईएल का स्वीकार या रद्द कर रहे । अदालत सरकार से सिर्फ यह जानना चाहती है कि इसमें अपनाये जाने वाली प्रक्रिया क्या थी ?
कहने का सार यह है अदालत यह नही जानना चाहती -
1. कि युपीए सरकार के सौदे 526 करोड़ रुपये प्रति राफेल विमान को रद्द कर मोदी सरकार ने कैसे 1670 करोड़ रुपये का कर दिया?
2. कि देश की रक्षा के नाम पर मोदी की सरकार संसद को गुमराह करती रही, कि सरकार का इस सौदे में कोई भूमिका नहीं?
3. कि एक पत्रकार के द्वारा सच को सामने लाने पर मोदी सरकार के प्यादे अनिल अंबानी ने 5000 करोड़ रुपये का मानहानि का दावा एक पत्रकार के उपर ठोक दिया ताकि मामला दबा रहे।
4. कि प्रधान सेवक ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही यह इस योजना को कैसे पग-पग पर अमली जामा पहनाया गया।
5. कि कैसे 20 दिसम्बर 2014 को तीन नई कंपनी रिलायंस डिफेंस टेक्नोलॉजी प्रा. लि. , रिलायंस डिफेंस सिस्टम प्रा. लि. और रिलायंस डिफेंस एंड ऐरोस्पेश प्रा. लि. को जन्म दिया गया ।
6. कि कैसे 28 मार्च 2015 को पुनः एक नई कंपनी रिलायंस डिफेंस लि. को जन्म दिया गया ।
7. कि कैसे और क्यों? 10 फरवरी 2017 को पुनः एक नई कंपनी डास्साल्ड रिलायंस ऐरोस्पेश लि. को जन्म दिया गया ।
अब इन प्रश्नों का जबाब ना लेकर सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश माननीय रंजन गोगोई ही बता पायेंगे कि अंबानी परिवार की 5000 करोड़ रुपये की मानहानि की भरपाई कैसे और कौन करेगा?
किसी पत्रकार की आवाज को दबा देने का नया नुख्सा मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने निकाल लिया है मानहानि का मामला ठोक दो चाहे काई भी मामला हो दब जायेगा । अब वेचारा गरीब पत्रकार लोकतंत्र की बात कर के तो देख ले जबान काटकर उसके हाथ में ना थमा दिया तो मोदी की सरकार नहीं।
अब जरा मोदी सरकार का अदालत में दलील देखिये -
भारत सरकार के अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि "अदालत को इसमें दखल नहीं देना चाहिए ।ये नेशनल सिक्योरिटी का मामला है । ये जनहित याचिका नहीं है बल्कि राजनीति से प्रेरित याचिका है। यह सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ा मामला है ।"
माने सीधे तौर पर अदालत को धमकाया गया है । तो अदालत ने भी वहीं किया जो सरकार चाहती थी । इधर अचानक से रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण फ्रांस की यात्रा पर चली गई । मोदी को डर है कि कहीं फ्रांस की सरकार भारत सरकार के उस दस्तावेज़ को जारी ना कर दे जिसमें एचएएल ‘‘हिन्दुस्थान एयरोनेटिक्स लिमिटेड’’ जो एक सरकारी कंपनी है से सौदा छीन कर अनील अम्बानी की कम्पनी को सौदा दे दिया गया।
जिस कंपनी की स्थापना मोदी जी की फ्रांस यात्रा ( दिनांक 11-12 अप्रैल 2015) कंपनी की स्थापना (28 मार्च 2015 ) कूल 15 दिन की इस कंपनी को कैसे दे दिया गया ? अब तक एक के बाद एक कूल पांच कंपनी की स्थापना क्यों की गई?
मजे की बात देखिये भारत के वायुसेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल बीएस धनोआ भी देश की रक्षा के लिये नहीं सरकार की रक्षा के लिये इस मैदान में कूद पड़े।
सवाल देश की सुरक्षा से जुड़ा है । अब अदालत यह भी बता दे कि तब बोफोर्स का मामला किसकी सुरक्षा से जुड़ा था ?
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं। -शंभु चौधरी
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