श्री प्रशांत भूषण जी यह भी चाहते थे कि किसी भी प्रकार दिल्ली के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित की जा सके इसके लिये इन तथाकथित आप’ के नेताओं ने संघ से सांठगांठ कर ली आवाम के बहाने पार्टी पर राजनीति हमला करना और भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती किरणवेदी की प्रशंसा कर केजरीवाल को हर कदम पर नीचा दिखाने की गंदी राजनीति करते रहे। क्या इसी का नाम लोकतंत्र है?
नईदिल्ली/कोलकाताः (28’ मार्च 2015) ‘आप’ की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में वही हुआ जो लगभग जो पहले से तय था। आम आदमी पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता सहित चार सदस्यों को राष्ट्रीय से बहार का रास्ता दिखा दिया गया। एक शायर की कि एक शायरी है- बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। आज की हुई आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद ने बहुमत प्रस्ताव से श्री प्रशांत भूषण, श्री योगेंद्र यादव, प्रो. आनंद कुमार और श्री अजित झा को पार्टी में बगावत करने और पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में हराने का प्रयास करने का आरोप लगाते हुए इन चारों नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निष्कासित कर दिया। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पीएसी से पहले ही निकाला जा चुका था।
बैठक से निकलकर श्री योग्रेंद्र यादव ने आरोप लगाया कि लोकतंत्र की हत्या हो गई। सवाल उठता है कि योगेंद्र जी किसे लोकतंत्र मानते हैं। जो उनके समर्थन में खड़े थे या वे जिसे अरविंद केजरीवाल फूटी आंखों नहीं सुहाते? उसे? राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अलग-थलग पड़े इन नेताओं ने बैठक के दौरान सिवा आरोप लगाने और अपने चंद समर्थकों के लेकर धरने में बैठने के अलावा सिर्फ इतना ही किया कि पूरी देश को यह बता दिया कि हम कितने जिम्मेदार नेता हैं।
जो प्रशांत जी कहते हैं कि उनको राजनीति नहीं आती वे कमरे के भीतर से लगातार केजरीवाल के खिलाफ साज़िश पे साज़िश रचने में लगे थे। विभिन्न प्रांतों के अपने प्रभाव में आने वाली तमाम ताकतों को पार्टी को बदनाम करने की रणनीति बनाने में जुटे थे। इसे क्या कहते हैं?
यह बात उसी समय तय हो गई थी जब दिल्ली में श्री केजरीवाल ने 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटों पर जीत दर्जकर सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी थी कि वे 5 साल सिर्फ दिल्ली की जनता से किये वादों पर ही अपना ध्यान केंद्रित करगें। इसी बात से बौखलाये श्री योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जी ने सवाल उठाने शुरू कर दिये कि दिल्ली का चुनाव ‘‘5 साल केजरीवाल ’’ के नारे से क्यों लड़ा गया? श्री प्रशांत भूषण जी यह भी चाहते थे कि किसी भी प्रकार दिल्ली के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित की जा सके इसके लिये इन तथाकथित आप’ के नेताओं ने संघ से सांठगांठ कर ली आवाम के बहाने पार्टी पर राजनीति हमला करना और भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती किरणवेदी की प्रशंसा कर केजरीवाल को हर कदम पर नीचा दिखाने की गंदी राजनीति करते रहे। क्या इसी का नाम लोकतंत्र है? जो प्रशांत जी कहते हैं कि वे एक स्वस्थ्य राजनीति विकल्प के लिये ‘आम आदमी पार्टी’ में आये थे तो ये ओछी हरकत क्यों? इन सब सवालों का जबाब इन्हें देना ही पड़ेगा। जयहिन्द!
0 विचार मंच:
हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा