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मंगलवार, 31 मार्च 2015

आतंकवादी पत्रकारिता ?

कोलकाताः 1’अप्रेल,2015, लेखक- शम्भु चौधरी

ये पत्रकार दिन-रात पूरे देश की गंदगी को पाठकों के मानस पटल पर अपनी थोपी गई विकलांग मानसिकता से एक साजिश के तहत हमें परोसनेवाली पत्रकारिता खुद को लोकतंत्र की प्रहरी मानती है परन्तु इसके कार्य तो समाज में गंदगी फैलाने के अलावा कुछ भी नहीं रह गया। विचारों की स्वतंत्रता, स्वतंत्र अभिव्यक्ति के नाम पर रोज़ाना ये पत्रकार इतने गुनाह करतें हैं कि इनके गुनाह पर बोलनेवाले वाले भी उस समय चुप हो जातें हैं जब ये पत्रकार एक साथ उस व्यक्ति पर धावा बोल उसे इतना घायल कर देते हैं कि वह खुद को समाज का अपराधी समझने लगता है। दरअसल भारत में पत्रकारिता अब विचारप्रधान ना रहकर हमला प्रधान बन गई है।

नईदिल्ली/कोलकाताः (1’अप्रेल,2015) गत् 28’ मार्च 2015 को ‘आप’ की राष्ट्रीय परिषद की बैठक बहुमत प्रस्ताव से श्री प्रशांत भूषण, श्री योगेन्द्र यादव, प्रो. आनन्द कुमार और श्री अजित झा को क्या हटाया गया जैसे पूरे हिन्दूस्तान के राजनीति दलों द्वारा पोषित पत्रकार व मीडिया समूह, व शिवसेना की थूकचाटू पत्रिका ‘सामना’ सबके सब केजरीवाल पर ऐसे पिल गये जैसे कोई बहुत बड़ा जूल्म हो गया। मानो शिवसेना में कभी विभाजन ही ना हुआ हो। भाजपा, कांग्रेस या माकपा में कभी वगावत के स्वरों को दबाया ही ना गया हो। इन राजनीति दलों में किसी व्यक्ति को पार्टी विरोधी कार्याें के लिये दंडित ही ना किया गया हो? इनकी पार्टी में तो लोकतंत्र बचा है और कल कि जन्मी पार्टी के लोकतंत्र को बचाने की चिन्ता इनको ऐसे हो गई जैसे किसी अकेले व्यक्ति ने इनके राजनीति विचारधाराओं पर हमला कर दिया हो।

ऐसे लगता है जैसे भारत के लोकतंत्र की रक्षा का लाइसेंस सिर्फ इनके पास ही हो और केजरीवाल इस लाइसेंस को भी हथिया लेना चाहता है। जो माकपा खुद को मजदूरों कर पार्टी बताती रही, देश और विश्व की आर्थिक स्थिति पर इनके पास कोई विचारधारा नहीं कि जिन मज़दूरों के अधिकार की लड़ाई वे (माकपा, भाकपा) लड़ना चाहतें हैं उन्हें रोजगार कैसे प्रदान किया जा सकेगा।

बंगाल में 35 सालों से सत्ता पे काबिज रही माकपा के शासनकाल में 60 हजार से अधिक छोटे-बड़े कल-कारखाने बंद हो गये। सैकड़ों मज़दूरों ने माकपा के लाल डंडे को ढोते-ढोते अपनी जान दे दी। उनके बच्चों ने आत्महत्या कर ली । पर इनके पोषित पत्रकारों ने ज़ुबान तक नहीं खोली की यह गलत हो रहा है। जिन राजनैतिक विचारें के सिद्धांत 320 कमरे के आलीशान महल से बनता है वे लोग मजदूरों की, किसानों के हक की बात करतें हैं। जो लेखक आजतक सोना पैदा करने वाले किसानों का मरता देखता रहा। जो पत्रकार बैंकों के ‘एनपीए’ के नाम पर बैंकों की लाखों -करोंडों की लूट को दिनदहाड़े औद्योगिक जगत द्वारा सरेआम लूटते देखते रहे वे पत्रकार केजरीवाल के ‘स्वराज’ पर ऐसे हमला कर रहें है कि जैसे इनके खूनपसिने की कमाई को केजरीवाल लूटा देगा?

सवाल उठता है केजरीवाल की तुलना आज इंदिरागांधी के एमेरजेंसी जैसी हालात से करने की नौबत इन पत्रकारों को क्यों आन पड़ी? क्या इनके पास दूसरे उदाहरण की कमी पड़ गई थी? या जानबुझ कर देश को भ्रमित करना चाहतें हैं कि केजरीवाल किसी निरंकुश शासक की तरह बन गया है। वो भी उस सत्ता की कमान पाने के बाद जिस सत्ता के पांच पति है। ये पत्रकार दिन-रात पूरे देश की गंदगी को पाठकों के मानस पटल पर अपनी थोपी गई विकलांग मानसिकता से एक साजिश के तहत हमें परोसनेवाली पत्रकारिता खुद को लोकतंत्र की प्रहरी मानती है परन्तु इसके कार्य तो समाज में गंदगी फैलाने के अलावा कुछ भी नहीं रह गया। विचारों की स्वतंत्रता, स्वतंत्र अभिव्यक्ति के नाम पर रोज़ाना ये पत्रकार इतने गुनाह करतें हैं कि इनके गुनाह पर बोलनेवाले वाले भी उस समय चुप हो जातें हैं जब ये पत्रकार एक साथ उस व्यक्ति पर धावा बोल उसे इतना घायल कर देते हैं कि वह खुद को समाज का अपराधी समझने लगता है। दरअसल भारत में पत्रकारिता अब विचारप्रधान ना रहकर हमला प्रधान बन गई है। अतः अब इस पत्रकारिता को आतंकवादी पत्रकारिता का नाम दिया जा सकता है।


शनिवार, 28 मार्च 2015

आप’का लोकतंत्र? लेखक: शम्भु चौधरी

कोलकाताः 28 मार्च 2015, लेखक- शम्भु चौधरी

श्री प्रशांत भूषण जी यह भी चाहते थे कि किसी भी प्रकार दिल्ली के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित की जा सके इसके लिये इन तथाकथित आप’ के नेताओं ने संघ से सांठगांठ कर ली आवाम के बहाने पार्टी पर राजनीति हमला करना और भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती किरणवेदी की प्रशंसा कर केजरीवाल को हर कदम पर नीचा दिखाने की गंदी राजनीति करते रहे। क्या इसी का नाम लोकतंत्र है?

नईदिल्ली/कोलकाताः (28’ मार्च 2015) ‘आप’ की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में वही हुआ जो लगभग जो पहले से तय था। आम आदमी पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता सहित चार सदस्यों को राष्ट्रीय से बहार का रास्ता दिखा दिया गया। एक शायर की कि एक शायरी है- बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। आज की हुई आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद ने बहुमत प्रस्ताव से श्री प्रशांत भूषण, श्री योगेंद्र यादव, प्रो. आनंद कुमार और श्री अजित झा को पार्टी में बगावत करने और पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में हराने का प्रयास करने का आरोप लगाते हुए इन चारों नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निष्कासित कर दिया। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पीएसी से पहले ही निकाला जा चुका था।

बैठक से निकलकर श्री योग्रेंद्र यादव ने आरोप लगाया कि लोकतंत्र की हत्या हो गई। सवाल उठता है कि योगेंद्र जी किसे लोकतंत्र मानते हैं। जो उनके समर्थन में खड़े थे या वे जिसे अरविंद केजरीवाल फूटी आंखों नहीं सुहाते? उसे? राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अलग-थलग पड़े इन नेताओं ने बैठक के दौरान सिवा आरोप लगाने और अपने चंद समर्थकों के लेकर धरने में बैठने के अलावा सिर्फ इतना ही किया कि पूरी देश को यह बता दिया कि हम कितने जिम्मेदार नेता हैं।

जो प्रशांत जी कहते हैं कि उनको राजनीति नहीं आती वे कमरे के भीतर से लगातार केजरीवाल के खिलाफ साज़िश पे साज़िश रचने में लगे थे। विभिन्न प्रांतों के अपने प्रभाव में आने वाली तमाम ताकतों को पार्टी को बदनाम करने की रणनीति बनाने में जुटे थे। इसे क्या कहते हैं?

यह बात उसी समय तय हो गई थी जब दिल्ली में श्री केजरीवाल ने 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटों पर जीत दर्जकर सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी थी कि वे 5 साल सिर्फ दिल्ली की जनता से किये वादों पर ही अपना ध्यान केंद्रित करगें। इसी बात से बौखलाये श्री योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जी ने सवाल उठाने शुरू कर दिये कि दिल्ली का चुनाव ‘‘5 साल केजरीवाल ’’ के नारे से क्यों लड़ा गया? श्री प्रशांत भूषण जी यह भी चाहते थे कि किसी भी प्रकार दिल्ली के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित की जा सके इसके लिये इन तथाकथित आप’ के नेताओं ने संघ से सांठगांठ कर ली आवाम के बहाने पार्टी पर राजनीति हमला करना और भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती किरणवेदी की प्रशंसा कर केजरीवाल को हर कदम पर नीचा दिखाने की गंदी राजनीति करते रहे। क्या इसी का नाम लोकतंत्र है? जो प्रशांत जी कहते हैं कि वे एक स्वस्थ्य राजनीति विकल्प के लिये ‘आम आदमी पार्टी’ में आये थे तो ये ओछी हरकत क्यों? इन सब सवालों का जबाब इन्हें देना ही पड़ेगा। जयहिन्द!

रविवार, 1 मार्च 2015

गद्दार कौन? आतंकवादी या मोदी?

प्रमाणित हो गया कि कभी 'राम' तो कभी 'देशभक्ति' को बेचने में भाजपा से बड़ा धोखेबाज दूसरा कोई नहीं जो आंस्तीन के सांप की तरह हिन्दुस्तानियों की भावना को भंजाकर सत्ता पर काबिज होते ही अपनी दौगली 'जात' दिखा देता है। आज जिस प्रकार से देश को चलाने का प्रयास भाजपा कर रही है इससे देश की जनता में भारी असंतोष पनपने लगा है कि स्पष्ट शब्दों में लोग कहने लगे है कि ‘‘यह भी गद्दार निकला’’

कोलकाताः 3 मार्च 2015, लेखक- शम्भु चौधरी ; जम्मू-कश्मीर में चुनाव परिणाम के पश्चात सरकार बनाने हेतु हुए एक लंबी सौदाबाजी के बाद भाजपा ने पीडीपी के साथ ठीक वैसे ही समझौता कर सरकार बना ली जैसे दूध और दही का मिश्रण। अब जम्मू-कश्मीर के नये मुख्यमंत्री जनाब मुफ्ती मोहम्मद सईद आखिरकार अपना दाव खेलने में सफल रहे। मुख्यमंत्री बनते ही आपने एक रहस्य का पर से पर्दा उठाकर कम से कम देश की जनता को बता दिया कि आप जिस इंसान पर भरोसा कर रहे हैं वह कितना भरोसेमंद है? मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने बता दिया था कि ‘‘मैं ऑन रेकॉर्ड कहना चाहता हूं मैंने प्रधानमंत्री से कहा है कि राज्य में विधानसभा चुनावों के लिए हमें हुर्रियत, आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान को श्रेय देना चाहिये’’ इनके इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि प्रधानमंत्री यह सब बात पहले से ही जानते हुए चुप रहकर देश की जनता से गद्दारी कर रहे थे।

जिस 370 को लेकर संध (RSS) हमेशा से देश की जनता को गुमराह करती रही, वह रामजादे आज चुप क्यों? सोचने की बात है। शायद अपनी मां का श्राद्ध कराने लगे थे? भारत सरकार को सरकारी बयान देना पड़ा कि वे धारा 370 पर कोई विचार नहीं कर रहीं। इस बयान का क्या अर्थ निकाला जाय कि यह भाजपा सरकार की तरफ से एक लिखित दस्तावेज है जो मोदी ने पीडीपी का दिया है। क्या भाजपा इस बात का जबाब देगी? या संघ के रामजादे इस पर भी चुप रहेगें? संध की बोलती पर ताला लगानेवाले मोदी की जबान में जहर ही जहर भरा है अब तो हमें लगता है कि मोदी जिताना पाकिस्तान के लिये खतरा नहीं उससे भी कहीं अधिक हिन्दुस्तान के लिये खतरनाक साबित होते जा रहा है।

मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ गठबंधन कर भाजपा भले ही कांग्रेस को सत्ता से अलग करने की राजनीति में सफल रही हो पर इस बात से यह तो प्रमाणित हो गया कि कभी 'राम' तो कभी 'देशभक्ति' को बेचने में भाजपा से बड़ा धोखेबाज दूसरा कोई नहीं जो आंस्तीन के सांप की तरह हिन्दुस्तानियों की भावना को भंजाकर सत्ता पर काबिज होते ही अपनी दौगली 'जात' दिखा देता है। आज जिस प्रकार से देश को चलाने का प्रयास भाजपा कर रही है इससे देश की जनता में भारी असंतोष पनपने लगा है कि स्पष्ट शब्दों में लोग कहने लगे है कि ‘‘यह भी गद्दार निकला’’। जयहिन्द!