‘‘आपको ही जल्दी लगी थी इसकी शादी करने की, पोता-पोती से खेलने की । कुछ तो शर्म करो अपने पाप पर पर्दा डाल कर सारा दोष बेटे पर लाद दिए ।’’
श्यामा को दो बच्चे पढ़ते-पढ़ते ही हो गए, मां-बाप ने सोचा कि जल्दी शादी कर देगें तो काम में लग जाएगा, पर हुआ कुछ उल्टा ही ।
श्याम (घर का नाम श्यामा) की शादी को अभी दो साल ही हुए होंगे, पर इस दो साल में उसकी जिन्दगी नरक के समान होती चली गई, ऊपर से दो बच्चों की जिम्मेदारी अलग से। रोज मां-बाप के ताने सुन-सुन कर श्याम के कान पकने लगे थे ।
प्राइवेट स्कूल की एक नौकरी बड़ी मुश्किल से मिली भी तो सैलरी इतनी कम की बस काम चलाया जा सकता था । अच्छी नौकरी मिल नहीं रही थी जो मिल रही थी उससे परिवार के साथ बहार जाना व रहाना, गुजर-बसर करना भी मुश्किल होगा। घर में कम से कम खेत का अनाज तो मिल जाता है खाने को। यह सब सोचकर श्याम की पत्नी चुप ही रहती ।
सोचती एक दिन हमारे अच्छे दिन जरूर आयेंगे।
आज सुबह की बात, बार-बार श्याम के दिमाग में घुम रही थी ।
उसके पापा इन दिनों रोजाना उसको और उसकी बीबी को ताना कसने लगे -
बात-बात में बड़ा आया है ‘‘भीख मांग लुंगा - भीख मांग लुंगा’’ पढ़ा-लिखा कर तुमको बड़ा किया कि मां-बाप का सहारा बनेगा, पर खुद के बीबी-बच्चों को भी संभाल लो तब समझूं ....
अरे काम नहीं करना था, तो पढ़ा किस लिए? स्कूल की चार टके की नौकरी से एक आदमी का पेट नहीं भरेगा तुम तो चार हो, फिर थोड़ा सांस लेते हुए काम करना ही नही था, तो दो-दो बच्चे करने को किसने कहा था ? इनको खिला नहीं सकते तो बच्चा पैदा ही क्यों किए ?
हमारी तो जैसे-तैसे कट जाएगी - माँ-बाप को ख्याल तो दूर की बात अपने बच्चों को लेकर कहीं जाता भी नहीं... यह कह कर रामप्रसाद जी हाँफने लगते हैं ।
श्यामा की पत्नी जल्दी से पानी का एक ग्लास लेकर आई उनको देते हुए बोली ‘‘पापा जी थोड़ा आराम कर लीजिए ।’’
बहु के हाथ से पानी का ग्लास लेते हुए- "बेटा तू मेरी बात का बुरा मत मानना। मैंने अपने साथ तेरा भी भविष्य खराब कर दिया। तू ही इस नालायक को कुछ समझा । पानी पीते हुए "
मैं तो जलती लकड़ी हूँ, कब बुझ जाऊँगा कुछ पता नहीं, तेरे बाप को बड़े सपने दिखाये थे मैंने, अब किस मुँह से आंख मिलाऊँगा ?
तभी दरवाजे के चौखट से रामप्रसादजी की पत्नी ने अपने सन्नाटे को तौड़ते हुए बीच में बोली -
‘‘आपको ही जल्दी लगी थी इसकी शादी करने की, पोता-पोती से खेलने की । कुछ तो शर्म करो अपने पाप पर पर्दा डाल कर सारा दोष बेटे पर लाद दिए ।’’
लड़की के बाप ने चारा क्या डाला बस लगे बेटे को बेचने, कितना मना किया था इसको काम पर लग जाने दो फिर कर लेना शादी । पर किसी की सुनते ही कब हो जिन्दगी भर दूसरों को दोष देते आये।
कभी अपनी गलती को भी देख लिए होते तो आज शमा की जिन्दगी बर्वाद नहीं होती। अब किसी के साथ सुलाओगे तो बच्चा तो होगा ही न ! तुम क्या सबको अपनी तरह समझते हो क्या शादी के 5 साल तक मेरे से मिलने से भी डरते थे ।
श्यामा की माँ बहु के हाथ उसका बच्चा थमाते हुए बोली - ‘‘बहु तू अंदर जा देख बबुआ कितना भूखा हो गया’’
बहु के अंदर जाते ही श्यामा की माँ लगी रामप्रसाद जी का कच्चा चिट्ठा खोलने । दहेज का लालच जितना कर लो काम तो बेटे की कमाई ही आएगी, एक मोटर साईकिल से पेट नहीं भरने वाला ।
जब तक दिमाग की सोच नहीं बदलोगो तब तक बच्चे को कोसते रहो।
मानो श्यामा के पक्ष को मजबूती से रखने माँ खड़ी हो गई थी । माँ का हृदय जो ठहरा, बेटा कितना भी नालायक्र क्यों न हो, माँ उसका बचाव करेगी ही।
आज रात श्याम बिस्तर पर काफी बेचैन था, पत्नी ने उसके सर पर हाथ रखा तो देखा उसको हल्की बुखार भी है। उसने श्याम को सहारा दिया, हिम्मत बंधाई बोली आप किसी दूसरे शहर की नौकरी खोजो,
मैं आपके साथ रहूंगी। आप बोले तो पापा से बात कर लेती हूँ उनके जान-पहचान से कोई नौकरी मिल जाए ।
श्याम एक बार उठा, अपनी डिग्री को खोल कर देखने लगा ।
सोच रहा था क्या यह डिग्री कभी कुछ बोल पायेगी कि ऐसे ही ताने सुनाएगी ?
लेखक - शंभु चौधरी, कोलकाता।