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शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

मेरे ही स्वरूपों को.. - अंकिता सिंह, कोलकाता।

मत कहो देवी अपने मुख से

क्यूकि और सहा नहीं जाता है

मेरे ही स्वरूपों को

हर पल रूलाया जाता है।


मत दो प्रलोभन अपनी श्रद्धा का

अपनी भक्ति, अपनी पूजा का

ये सब आडम्बर लगते हैं

ऐसा लगता है जैसे

मुझे रिझाया जाता है ।

मेरे ही स्वरूपों को

हर पल रूलाया जाता है ।


"मत करो गर्व अपने पराक्रम का

अपनी वुद्धि और अपनी मान का

ये सब क्षणिक होते हैं, पलभर में नष्ट होते हैं,

मेरे द्वारा तुमको आज, यही सिखाया जाता है

मेरे ही स्वरूपों को, हर पल रूलाया जाता है ।"


मत करो गर्व अपने पराक्रम का

अपनी वुद्धि और अपनी मान का

ये सब क्षणिक होते हैं, 

पलभर में नष्ट होते हैं,

मेरे द्वारा तुमको आज

यही सिखाया जाता है

मेरे ही स्वरूपों को

हर पल रूलाया जाता है ।


पुरुष बनकर मान रखो तुम पुरुषार्थ का

कार्य करो वह, जो हो जग कल्याणार्थ का,

मेरे मन को तो, ये ही सब भाते हैं

पाते हैं मेरी कृपा, जो इसे निभाते हैं

इन पथ पर चलकर ही

मुझे पाया जाता है

मेरे ही स्वरूपों को

हर पल रूलाया जाता है ।

______


रविवार, 18 अक्टूबर 2020

क्रांति की आवाज... -शंभु चौधरी

 


आज भारत में फिर जगेगी क्रांति की आवाज है,

वही ‘बिहार’ फिर जगा है, 

लेकर हाथ में मशाल है।

इसी भूमि पर जन्म लिये थे,

वीर कुवंर, गांधी, सुभाष और जयप्रकाश है।



                

                            कुछ गद्दारों ने मिलकर,

                            किया ‘बिहार’ बर्बाद है। 

                            कमर तौड़ डालो उन

                            गद्दारों का, 

                            जो बात-बात में करते कहीं,

                            हिन्दू-मुस्लीम,

                            कहीं राजपूत-भूमियार,

                            कहीं कुर्मी और चमार है।


इनका धर्म जो पूछो तो,

ये हैं - सारे के सारे गद्दार

ना तो इनका  धर्म है कोई,

ना इनका कोई गांव है।

ना इनका दोस्त है कोई,

ना इनका कोई परिवार है।

झूठ-फरैब, चलाकी-मक्कारी,

जुमला और बेईमानी

बात-बात में भ्रमित करना

इनका बस यही व्यवसाय है।


                            आज मौका है पलट के मारो

                            पैदल जिसने दौड़ाया था हमको,

                            उसको, दौड़ा-दोड़ा के मारो

                            जिसने हमारा रोजगार जो छिना

                            उसको अपने वोट से मारो।

                            जिसने हमारे बच्चों को अनाथ किया,

                            उसको अपने वोट से मारो।

                            जिसने हमारी फसल को छिना

                            उसको अपने वोट से मारो।

                            जिसने हमको भूखा मारा,

                            उसको अपने वोट से मारो।

                            जिसने हमको सड़कों पर प्यासा मारा,

                            उसको अपने वोट से मारो।

                            जिसके मुह में आवाज नहीं थी,

                            जो बरसा रहा था भूखों पर फूल

                            उसको अपने वोट से मारो।

                            जो लूट रहा है बहनों की इज्जत।

                            उसको अपने वोट से मारो।

                            जो मार रहा है गोली हम पर

                            उसको अपने वोट से मारो।


आज भारत में फिर जगेगी क्रांति की आवाज है,

वही ‘बिहार’ फिर जगा है, 

लेकर हाथ में मशाल है।

इसी भूमि पर जन्म लिये थे,

वीर कुवंर, गांधी, सुभाष और जयप्रकाश है।

-शंभु चौधरी