2014 में चुनाव में मोदी का सबसे बड़ा मुद्दा था, काला धन, भ्रष्टाचार और तेल-डालर के दाम के साथ-साथ, देश के युवाओं को प्रति साल दो करोड़ नौकरी देने के वादा किया था। ‘‘अच्छे दिन आयेंगे, 15 लाख देश के लोगों के खाते में जमा करायेगें। यह सब बातें झूठे वादे साबित हुए। चाय बेच कर सरकार बनायी और आते ही सबसे पहले यह बोल दिया कि पकौड़े बेचो । भाजपा के अध्यक्ष अमित साह ने खुद स्वीकार किया चुनाव में जो वादे किये थे सभी वादे जुमले थे। तब तो इनकी देश भक्ति का यह नये नाटक को भी जुमला ही क्यों ना मान लिया जाए?
गत् पांच सालों में मोदी ने बिना किसी संस्थान के अनुमति के नोट बंदी किया जिसका परिणाम हमने देखा कि 25 दिनों में आरबीआई को बार-बार नियमों में बदलाव लाना पड़ा, सैकड़ों लोगों की जान चली गई। ठीक इसी प्रकार 'जीएसटी' को लेकर जिस एक्ट में जितनी धाराएं नहीं उससे अधिक तो एक साल में इनको संशोधन लाना पड़ा। 100 पेज के एक्ट में 200 पेज का संशोधन यह है हमारे पढ़े-लिखे मोदी का हाल । व्यापारियों की कमर तौड़ डाली । लाखों युवाओं की नौकरी चली गई। किसानों की आत्महत्या थमने का नाम नहीं ले रही। कालेधन के नाम देश को गुमराह किया गया । नोट बंदी से आतंकवाद को लगाम तो नहीं लगा पाये सेनाओं की जम कर हत्या करवाते रहे। पठानकोट, उरी, पुलमावा जैसी कई आतंकवादी घटना भारत की सीमा में आकार, आतंकवादी ‘‘सर्जिकल आतंक’’ करते रहे और पांच साल मोदी जी हाथ पर हाथ धरे चुप-चाप आतंकवाद को कश्मीर में (मु्फ्ती सरकार) समर्थन देते रहे।
तमाम संवैधानिक संस्थाओं, आरबीआई, सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों में हेरा-फेरी, कॉलिजियम के द्वारा तय नामों में बिना सहमति से बदलाव, पूर्व में तय नामों की सूची में हेरा-फेरी, चुनाव आयोग में भ्रष्ट अधिकारियों का चयन इस बात का इंगित करता है कि मोदी सरकार देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को कठपुतली बनाकर अपने भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का काम करते पाये गये। जिस प्रकार राफेल सौदा किया गया, देश की एक दिवालिया कंम्पनी के मालिक को राफेल का कान्ट्रेक्ट दिलाया गया यह सब कई खतरनाक संकेतों की तरफ इशारा कर रहा है।
अब जब मोदी को लगा कि उनकी सरकार पिछले पांच सालों में देश की जनता का ठगा और छला ही छला है। खुद विदेश के दौरा करते रहे और इधर देश में कभी गाय के नाम पर कभी छदम राष्ट्रवाद के नाम पर तो कभी भारत माता के नाम पर देश की जनता को 'गोदी मीडिया' के सहयोग से उलझाये रखकर नीरव मोदी या दिवालिया कंम्पनी के मालिकों के साथ फोटो खिंचवाने में लगे रहे । 100 से भी अधिक देशों के चक्कर लगाने वाला चौकीदार भ्रष्टाचार के इतने खिलाफ था कि पिछले पांच सालों में 'लोकपाल' का गठन तक नहीं होने दिया ।
जब लोकसभा का चुनाव सर पर आ गया तो इनका मानसिक दिवालियापन देखिये ये अब देश भक्ति को भजाने में लगे हैं । देश के युवाओं को नौकरी तो दे नहीं सके सबको बोल रहें कि चौकीदारी करो अब।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं। - शंभु चौधरी