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गुरुवार, 10 जनवरी 2019

आरक्षण - “Separate but ‘Not’ equal”

उच्चतम अदालत को अपनी उसी परिभाषा को नये सिरे से लिखना होगा जिसमें 1993 में कहा था कि  & “Separate but equal”    यानि कि 50% - 50%  अर्थात अदालत को  अब 2019 में    50% = 10% + 40%  लिखना होगा यानि कि & “Separate but ‘Not’ equal”   ।
लेखक: शंभु चौधरी, कोलकाता 10 जनवरी 2019

भाजपा ने 2014 में अपने चुनावी घोषणा पत्र में कई वायदे जनता से किये थे, जिनमें प्रमुख रूप से ‘‘अच्छे दिन आयेंगे’’, 15 लाख सबके खाते में आयेंगे, प्रति वर्ष 2 करोड़ युवकों को नौकरी देगें, मंहगाई पर लगाम लगायेगी, राष्ट्रीय स्तर पर कृषि बाजार निर्मित करना, पीपीपीपी यानि "पीपल पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप माॅडल" निश्चित करना, फास्ट ट्रेक कोर्ट स्थापना करना,  वैकल्पिक न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाना,  अमीर-गरीब के मध्य अंतर को कम करना,  शिक्षा के स्तर का विकास, कौशल विकास, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना, राम मंदिर निर्माण भी कार्य करेगी के साथ ही मोदी ने ‘‘सबका साथ-सबका विकास’’ का नारा भी दिया था । 
आज पौने पांच साल गुजर जाने के बाद भी ये सभी वादे मुंह बाये जस की तस खड़े हैं । मंहगाई ने अपनी चरम सीमा को पार कर दी है। रोज़ाना घरों में काम आने वाले गैस का मूल्य 400 से एक हजार रुपये प्रति सिलेंडर को छू गया, तेल में सरकारी लूट का आलम यह था कि 20 रुपये का तेल 90 रुपये की सीमा को छूने लगा था। चुनाव सर पर आते ही मोदी सरकार को फिर वे बातें याद आने लगी जो पांच साल पहले जनता से की थी । यानी युवाओं को नौकरी देना, राम मंदिर बनाना , तेल के दामों में गिरावट दर्ज करना ।    तो दूसरी तरफ अपने पांच साल के कार्यकाल में 100 अधिक देशों के विदेशी भ्रमण 2000 करोड़ का मौज़, राफेल के सौदे में हुई खुली डकैती जो उच्चतम अदालत को भी विवाद के घेरे में ला खड़ा की । तोते की लड़ाई किसी से छुपी नहीं है। आर्थिक रूप से नोटबंदी और जीएसटी की असफलता, व तमाम संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने, मोब लांचिंग व गौ रक्षा के नाम पर तालिबानी आतंक का सृजन करना । बैंकों के लुटेरों के साथ पार्टी मनाना और भारतीय की रक्षा के साथ खिलवाड़ करते हुए पाकिस्थानियों को' उरी' घटना जांच में का निमंत्रण देना, भारतीय सेनाओं की सेना के मनोबल को कमजोर करते हुए मुफ्ती की सरकार बनवाना आदि कई ऐसे एकतरफ़ा  फैसले मोदी ने लिये जो लोकतंत्र के लिये कभी भी घातक साबित हो सकता है। 
अब चूंकि सत्तरवीं लोकसभा का चुनाव सर पर आ चुका है। इधर पिछले माह तीन हिन्दी भाषी राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार, मोदी लहर का ना होना, साथ ही विभिन्न राजनीति पार्टियों का राजनीति समीकरण जिसमें प्रमुख रूप से महाराष्ट्र में शिवसेना का आँख तरेरना और असम में अगप का एनडीए से अलग होना, बिहार और गुजरात में कड़ी टक्कर व उत्तरप्रदेश में मायावती व अखिलेश का मिलकर चुनाव लड़ना मोदी सरकार के लिये भारी पड़ने वाला है । यदि इसे सीटों के अनुसार जिनमें पिछले कई विधान सभाओं के चुनाव परिणामों और राजनैतिक समीकरण का कुल जोड़ जहां आज भाजपा को 200 सीटों का आंकड़ा 100 सीटों पर आकर थम जाती है। यानि की भाजपा को चंद राज्यों में जैसे त्रिपुरा, केरल, और पश्चिम बंगाल में एक-दो सीटों का फायदा भी भाजपा को 271 के जादुई आंकड़े को पार नहीं कर पायेगी । यदि इनको परिणाम में बदल दिया जाय तो भाजपा की वर्तमान मोदी सरकार 150 से 180 सीटों के बीच सिमट जायेगी ।
तो मोदी जी को अब याद आया कि ‘‘सबका साथ और सबका विकास’’ भी कुछ कर ही दिया जाए नही तो किस मुंह से जनता के बीच जायेगें। राम मंदिर के 25 सालों की चुप्पी के बाद आरएसएस का अलाप, अध्यादेश लाने के मामले में बिखरती एनडीए को रोकने के लिये मादीजी को स्पष्ट करना पड़ा कि वे अदालत के फैसले का इंतजार करेगें और शीतकालीन सत्र के अंतिम पल में आरक्षण को नया हथियार बना लिया । 
1896 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने एक सिद्धांत बनाया था - “Separate but equal” जिसमें यह कहा गया कि हर इंसान की अलग व्यवस्था तो संभव पर समान होनी चाहिये। अदालत ने स्वीकार किया था कि समानता के विभिन्न रंग जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों संभव है। जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के बीच असमानताओं को कम करने और न्यायोचित और सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देने की राज्य की जिम्मेदारी है।  जिसमें सभी वर्गों को समान लाभ मिल सके। जिसें सामाजिक सुरक्षा, न्याय, समानता, रोज़गार के समान अवसर, शिक्षा व स्वस्थ्य जैसे महत्व को इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य माना गया ।
डाॅ. अंबेडकर ने भी उपरोक्त सिद्धांत सही मानते हुए भी अल्पसंख्यकों के आरक्षण को उचित ठहराया था । 1993  में भी उच्चतम अदालत आठ जजों की संविधान पीठ ने ‘‘ इंदिरा साहनी और अन्य बनाम भारत सरकार में इस सिद्धान्त को पुनः 100 साल के बाद प्रतिपादित करते हुए 50 प्रतिशत के आरक्षण को स्वीकारते हुए निम्न बातें प्रमुखता से कही -
(i) अनुच्छेद 16 (4) के तहत आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।
(ii)) अनुच्छेद 16 (1) या 16 (4) के तहत पिछड़े वर्ग के अलावा किसी भी वर्ग के लिए कोई आरक्षण नहीं किया जा सकता है।
(iii) किसी समुदाय को सहयोग प्रदान करना जो अनुच्छेद 16 (1) में शामिल हैं, लेकिन यह भी बहुत सीमित है।
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले संविधान संशोधन बिल को मंगलवार को निचली सदन (लोकसभा) में और बुधवार को ऊपरी सदन (राज्यसभा) से मंजूरी मिल गयी। सवर्ण आरक्षण बिल को लोकसभा के अंतिम दिन सदन में रखते हुए केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि- ‘‘हम गरीबी हटाने के सिर्फ वादे नहीं इरादे लेकर आए हैं’’ और अंत में मोदी के नारे  ‘‘सबका साथ - सबका विकास’’ की बात को दोहराते हुए भाजपा की मंशा को साफ कर दिया कि मोदी सरकार इस आरक्षण के सहारे चुनावी समर में अपने प्रतिपक्षों की एकता को तौड़ने के काट खोज रही है। साथ ही गहलोत ने उच्चतम अदालत के उक्त फैसले का जिक्र करते हुए भी कहा कि हम इसी लिए संविधान में संशोधन ला रहे है कि इसे अदालत में चुनौती ना दी जा सके जैसा की 1993 में हुआ था । सवाल वहीं आज भी खड़ा है जहां हम 1993 में थे । संविधान की धारा अनुच्छेद 15  में नया उपबंध (6) a & b - जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान  और अनुच्छेद 16  में नया उपबंध (6) जिसमें कहा गया यह संशोधन अनुच्छेद 16(4) में दिये प्रावधानों के अतिरिक्त होगा।
सवाल उठता है क्या यह भी ‘‘मोदी का जमुला’’  बन कर रह जायेगा । चुंकि बिल को प्रस्तुत करते समय इस बात को गौन रखा गया कि 10% किसका होगा? बचे शेष भाग 50% का 10%  होगा कि 100% का, किसका होगा? यदि हम इसे 100% का ही मान लें यह आरक्षण, समानता का कौन सा पैमाना माना जायेगा? उच्चतम अदालत को अपनी उसी परिभाषा को नये सिरे से लिखना होगा जिसमें 1993 में कहा था कि  & “Separate but equal”    यानि कि 50% - 50%  अर्थात अदालत को  अब 2019 में    50% = 10%+40%  लिखना होगा यानि कि & “Separate but ‘Not’ equal”   ।  जयहिन्द !        
शंभु चौधरीलेखक एक स्वतंत्र त्रकार हैं  विधि विशेषज्ञ भी है।

बुधवार, 2 जनवरी 2019

चोर की दाढ़ी में तिनका - शंभु चौधरी



कोलकाता 03 जनवरी 2019 ( शंभु चौधरी ) - नये साल में प्रधानमंत्री मोदी का प्रिपेड भाषण एक खास संवाददाता के माध्यम से देश की जनता को सुनने को व प्रिंट मीडिया के माध्यम से पढ़ने को मिला । मोदी जी ने यह पहले से ही मान लिया कि 2019 का आगामी लोकसभा चुनाव में जनता का  वही प्यार मिलेगा जो उन्हें 2014 के लोकसभा के चुनाव में मिला था, परन्तु  मोदी जी यह भूल गये कि ठीक चंद महीनों के बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव भी हुए थे मोदी जी अपनी तमाम ताकत, भाजपा, आरएसएस, बजरंग दल, प्रिपेड मीडिया की जमात, सरकारी बल, दिल्ली पुलिस, सेक्स वीडियो, अफ़वाह, केजरीवाल के परिवार पर अशोभनीय, अभद्र, अपमान जनक भद्दे लाक्षण लगाना, भगोड़ा-भगोड़ा बोल कर अपमानित करना, पैसों को पानी की तरह बहाना, मानो मोदी  जी ने यह ठान लिया था कि दिल्ली की जनता को अपने झूठ-प्रपंच के जाल में फंसा कर उनको ठग लिया जाए । परन्तु इन सबके बावजूद परिणाम जो सामने आये वह ऐतिहासिक थे । 54.2 प्रतिशत वोट 70 में 67 सीटों पर केजरीवाल की वापसी, मोदीजी को यह बताने के लिये काफी है कि यही लोकतंत्र हैं जिसे धन-बल और छल से ग़ुलाम नहीं बनाया जा सकता, ना ही स्व. इंदिरा गांधी के आपातकाल  से ।

मोदी जी ने अपने उक्त प्रिपेड भाषण में पिछले अपने साढ़े चार सालों में किये कार्यों की चर्चा करते हुए  अपने कार्यों की  एक प्रकार से सफाई दे रहे थे। मानो उन्होंने जो कुछ भी किया वही सही था और जो गलत हुआ वह सब कांग्रेस के जमाने का था।
सर्जिकल स्ट्राइक पर साढ़े चार सालों के बाद  उन्हें  वे पल याद आने लगे जो सेना के जवानों के साथ गुजरे, मानो  सर्जिकल स्ट्राइक के समय, प्रधानमंत्री इतने भावुक थे कि एक भी सेना मर जाता  तो वे आत्महत्या कर लेते? वहीं उनके नाक के नीचे पाकिस्तान से चंद पाक आतंकवादी भारतीय सीमा के अंदर  'उरी' में आये और  सर्जिकल स्ट्राइक कर के चले गये। सेना के 18 जवानों को मौत के घाट सुला गये और भारत के प्रधानमंत्री पाकिस्तानी सेना से ‘उरी घटना’ जांच करने में लग गये। लगातार पाकिस्तान, भारतीय जवानों के साथ कायरता पूर्ण कार्यवाही करता रहा और मोदी जी देश को गुमराह कर छुप कर नवाज शरीफ से मिलते रहे। भारतीय सेनाओं को कश्मीर की सड़कों पर जूतों से पिटवाते रहे व खुद मुफ्ती की सरकार में अनुच्छेद 370 पर गुप्त समझौता करते रहे। पाकिस्तान से सेना के दो ‘सर’ वापस लाने की बात दूर, इनकी आंखों के सामने भारतीय सेना के कई जवानों के सर कलम कर के साथ ले गये।

दूसरा उन्होंने नोट बंदी पर कहा कि - वे इसकी चेतावनी कई बार देते रहे। काला धन निकालने के लिए सरकार ने डिस्क्लोजर स्कीम भी लाई । मोदी जी यह बताने का कष्ट करेंगें कि डिस्क्लोजर स्कीम का ग़रीबों से क्या लेना देना था? 120 लोगों की जान ले लेने के बाद, देश की अर्थव्यवस्था को खोखला बना देने या फिर किसानों की, व्यापारियों की कमर तोड़ देने को मोदी जी अपनी सफलता मानतें हों तो फिर तो इस तुगलकी फरमान का दर्ज देना कहीं ज्यादा उपयुक्त होगा।
तीसरा उन्होंने जीएसटी को लेकर यह सफाई दी - कि यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया फैसला था। जब सर्वसम्मति का ही फैसला था और कांग्रेस कार्यकाल का ही निर्णय था तो इसमें मोदी की क्या भूमिका? अर्थात कांग्रेस की योजनाओं को लाभ मिले तो मेरा और हानि हो तो तेरा? अभी बंगाल के वित मंत्री अमित मित्रा ने एक चौंकाने वाला बयान दिया कहा कि ‘‘जीएसटी हवाला का कारोबार हो गया। चंद बड़े उद्योगपतियों ने इसे नकली रिफंड लेने का जरिया बना लिया  है।" अर्थात भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहीं जानबूझ इन हवाला कारोबारियों के लिये सुराख तो नहीं छोड़ दिया?
चौथा राफेल को लेकर आपने कहा कि वे काम करते रहेगें - मोदी जी ने उच्चतम अदालत का हवाला तो दे दिया पर यह नहीं बोले कि अदालत के "एकतरफ़ा निर्णय" में जिन ख़ामियों को भारत सरकार ने भी चिन्हित कर उच्चतम अदालत को अपमानीत करने का काम आपकी सरकार ने किया "कहीं यह क्या चोर की दाढ़ी में तिनका तो नहीं ?"
अंत में राम मंदिर को लेकर एक कहानी याद आ गई - एक किसान ने  एक तोता पाल रखा था । उनके परिवार के सभी सदस्य तोता को आते-जाते यही सिखाते ‘‘तोता ! राम-राम बोलो’’ तोता भी यह समझ जाता कि उसे ‘‘राम-राम’’ बोलने को कहा जा रहा है । परन्तु  तोता "राम-राम" बोलने के बदले "चोर-चोर"  चिल्लाने लगता । एक रात मोहल्ले का चौकीदार रात को, घर का आंगन सूना देखकर घुस आया । तोता जोर से ‘‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगा । किसान ने चौकीदार को धर-दबोचा। तब चौकीदार ने अपना बचाव करते हुए दलील दी कि वह तो मोहल्ले का चौकीदार है। वह तो चोर को पकड़ने के लिये आया था ना कि चोरी करने । जयहिन्द !
शंभु चौधरीलेखक एक स्वतंत्र त्रकार हैं  आपने विधि स्नातक (LL.B)  और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से एम.ए. (एमसी) की है।