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बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

आप’की ऐतिहासिक जीत

लेखक: शम्भु चौधरी
10 तारीख के दिन 11.00 बजते-बजते ‘‘5 साल केजरीवाल’’ के नारे से दिल्ली गुंज उठा। एक के बाद एक भाजपा के उम्मीदवार मैदान में धूल चाटते नजर आये। जैसे ही चुनाव परिणाम 'आम आदमी' के पक्ष में आने लगे तो लगा कि किसी तरह 40 तक पंहुच जायेगा। जब 35...36.. 40.. के बाद अचानक 50..51.. पर विजयी होने के आंकड़े आने लगे तो कई लोगों के नीचे की जमीन घिसकने लगी। भाजपा दलाल सटोरियों ने अपने मोबाईल को स्वीचआॅफ कर दिये।

कोलकाताः (10 फरवरी 2015) दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम ईपीएम मेशीन से ज्यूं-ज्यूं बहार आने लगे, कई मीडिया हाउस जो झूटे ही भाजपा को शुरू में बढ़त दिखाने का ढोंग रचते रहे दिन सुबह के 10 बजते-बजते उनकी जुबान लड़खराने लगी और ईपीएम मेशीन से निकल के आंकड़े बोलने लगे। कलतक जो लोग ‘आम आदमी पार्टी’ के दफ्तर में ताला लगाने की बात बोलते थकते नहीं थे। लोकतंत्र की ताकत ने उनके जुबान पर ऐसा ताला जड़ दिया कि पांच साल तक रह-रहकर सरकार को ब्लैकमेल भी नहीं पायेगें।। मेरी रचना -

जल जायेगी धरती जब, सत्ता के गलियारों में, भड़क उठेगी ज्वाला तब, नन्हे से पहरेदारों में।

दिल्ली के चुनाव में आम आदमी की जीत ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में अहंकार की कोई जगह नहीं है। आम आदमी पार्टी की सफलता ‘जनता की, जनता के द्वारा और जनता के लिये’ भारत के संविधान में सत्य को साकार कर दिया। भाजपा के नाकारात्मक प्रचार, धन की बर्वादी, अर्मादित और असभ्य भाषा का प्रयोग, 200 से अधिक सांसदों, कई केन्द्रीय मंत्री, प्रधानमंत्री स्वयं, भाजपा के अध्यक्ष की पूरी ताकत, संध परिवार, कई राज्यों के मंत्री-मुख्यमंत्री सबके-सब एक परिंदे के सामने धूल चाटते नजर आये।

मोदी जी ने लोकसभा चुनाव जीतने के लिये जिन जुमले का प्रयोग कर कांग्रेस पार्टी को सत्ता से वेदखल किया था, उन्हीं जुमलों ने मोदीजी के अश्वमेध विजयी घोड़े को दिल्ली में रोक दिया। जिस विजयी यात्रा ने भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह सह प्रधानमंत्री श्री मोदीजी को अहंकारी बना दिया था, यही अहंकार भाजपा को दिल्ली में डूबा दिया। भाजपा और संघ की केडर बेस ताकत, किरण बेदी का मास्टर स्ट्रोक, चपलुस मीडिया का एक वर्ग, नाकारात्मक विज्ञापनों की झड़ी ये सब प्रहार केजरीवाल के मजबूत इरादों के सामने पानी भरते नजर आये। केजरीवाल के एक-एक शब्द इनलोगों पर भारी पड़ने लगे। त्रिकोणात्मक संर्घष में किसी एक राजनीति दल को 54.2 प्रतिशत मतों का मिलना भारत के चुनावी इतिहास अबतक सभी आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया।

10 तारिख के दिन 11.00 बजते-बजते ‘‘5 साल केजरीवाल’’ के नारे से दिल्ली गुंज उठा। एक के बाद एक भाजपा के उम्मीदवार मैदान में धूल चाटते नजर आये। जैसे ही चुनाव परिणाम 'आम आदमी' के पक्ष में आने लगे तो लगा कि किसी तरह 40 तक पंहुच जायेगा। जब 35...36.. 40.. के बाद अचानक 50..51.. पर विजयी होने के आंकड़े आने लगे तो कई लोगों के नीचे की जमीन घिसकने लगी। भाजपा दलाल सटोरियों ने अपने मोबाईल को स्वीचआॅफ कर दिये। परिणाम देखते-देखते कई लोगों की सांसे फूलने लगी। अबतक कांग्रेस पार्टी मैदान से बहार हो चुकी थी। तभी चुनाव आयोग की तरफ से एक सूचना आई कि ‘आम आदमी पार्टी’ को 54.2 प्रतिशत मिले हैं। तबतक रूझान अपने अंतिम चरण की तरफ कदम रख चुका था। आम आदमी -61, भाजपा-9, कांग्रेस - 0, और अन्य -0 । सभी की सांसें थम सी गई थी। आम आदमी पार्टी के दफ्तर में जश्न को माहौल था, भाजपा कार्यलय के बहार हल्की चहल-पहल थी और कांग्रेस के कार्यालय के बहार सन्नाटा छाया हुआ था। अंतिम चरण में मुकाबला एक तरफा हो गया था। ‘आप-65’ , ‘भाजपा -5’ ...आप-66, भाजपा-4 समाचार आया किरण बेदी चुनाव हार गई। अंतिम परिणाम ‘आप-67’ और ‘भाजपा-3’ केजरीवाल अपने मित्रों व धर्मपत्नी के साथ जनता के सामने आते हैं कहते हैं - यह आप‘की’ जीत है।

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

हिन्दू ‘भाजपा’ के बंधवा वोटर? -शम्भु चौधरी

बुखारी साब के समर्थन को ठुकरातेे हुए ‘‘आम आदमी पार्टी’’ ने जो साहासिक कदम उठाया यह भारत की राजनीति के लिये एक सबक है। चुनाव परिणाम में इसका क्या प्रभाव होगा यह अलग बात है लेकिन यह जरूर है ‘आप’ ने भारतीय राजनेताओं को दर्पण दिखा दिया है कि मजबूत ईरादे से यदि चुनाव लड़ा जाये तो सांप्रदायिक ताकतों को तमाचा जड़ा जा सकता है।

कोलकाताः (08 फरवरी 2015) दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार कल शाम थम गया परन्तु चुनाव के ठीक ऐन वक्त पर धर्म की राजनीति करने वाले नकाबपोश चेहरे सामने आ गये। ऐसा प्रायः हर चुनाव के समय होता है। राजनैतिक ताकतें भी अपने फायदे की बात सोच उन बयानों का लाभ लेने में लग जाती है। विश्वनाथ प्रताप सिंह के दौर से कई फिरकाफरस्ती ताकतें अमूमन हर चुनाव के वक्त इस तरह के बयानबाजी करतें हैं और जनता के मतों के ठेकेदार बनकर राजनीति दलों को अपने फायदे के लिये इस्तमाल करती रही हैं।

दिल्ली के इस चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ। भाजपा को जहाँ डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम का समर्थन मिला जिसमें उन्होंने दावा किया कि दिल्ली में 10 लाख सिख उनके समर्थक हैं। 'भाजपा' ने इसे स्वीकार कर लिया तो दूसरी तरफ दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी साब एक अपील जारी कर कहे कि ‘‘मुसलमान ‘आप’ को वोट दें’’। जबकि ‘आप’ ने इस तरह के समर्थन को ठुकराते हुए कहा कि उन्हें आम लोगों का समर्थन चाहिये धर्म-जाति के आधार पर सर्मथन देने वालों से उन्हें समर्थन नहीं चाहिये। ‘आप’ ने इसे अवसरवाद की राजनीति करार दिया।

‘आप’ के इस निर्णय से चुनाव के वक्त शाही इमाम बुखारी साब के दरबार पर घुटने टेकने वाले भारत की तमाम राजनीति दलों को मानो सांप सूंघ गया कि ‘आप’ की यह कैसी राजनीति? सामने आयी हुई थाली को ठुकरा दिया जबकि दूसरी तरफ ‘आप’ पर सांप्रदायिकता की राजनीति का आरोप लगाने वाली भाजपा के प्रवक्ता ने हिन्दुओं को भड़काने का बयान देकर कहा कि ‘‘इस फतवे के खिलाफ हिन्दू एकतरफा मतदान करें’’ भाजपा हमेशा से ही धर्म को चुनाव जीतने का एक हथकंडा मानती रही है। वहीं 'आप' ने एक नई लकीर खींच दी और धर्म को एक किनारे करते हुए आम लोगों की समस्या को अधिक महत्व दिया।

दूसरे पर सांप्रदायिकता का आरोप जड़नेवाली भाजपा भीतर से कितनी जहरीली है कि इसका इस बात से ही पता चलता है कि एक तरफ वह जब खुद धर्म के आधार पर किसी का समर्थन लेती है या बयानबाजी करती है तो उसे उसमें इसे सांप्रदायिकता की ‘बू’ नहीं झलकती। वहीं कोई दूसरे सांप्रदाय के लोग खासकर मुसलमान समाज के बयान पर तिलमिला जाती है। भाजपा को मुसलमान समर्थन दे तो वह तो वह भारतीय नहीं तो पाकिस्तानी? कलतक जिस बंगलादेशी को लेकर भाजपा सांप की तरह फुफकार मारती नहीं थकती थी आज ये सारे मुद्दे कहां चले गये?

बुखारी साब के समर्थन को ठुकरातेे हुए ‘‘आम आदमी पार्टी’’ ने जो साहासिक कदम उठाया यह भारत की राजनीति के लिये एक सबक है। चुनाव परिणाम में इसका क्या प्रभाव होगा यह अलग बात है लेकिन यह जरूर है ‘आप’ ने भारतीय राजनेताओं को दर्पण दिखा दिया है कि मजबूत ईरादे से यदि चुनाव लड़ा जाये तो सांप्रदायिक ताकतों को तमाचा जड़ा जा सकता है।

दिल्ली के चुनाव में इमाम बुखारी के प्रस्वात को ठुकरा देने के पश्चात भी मसलमानों ने बड़ी संख्या में ‘आप’ के पक्ष में मतदान किया वहीं भाजपा के हुक्म को किनारे करते हुए हिन्दुओं ने भी यह स्वीकार किया की ‘केजरीवाल’ की राजनीति में कुछ तो नया जरूर है। जो भाजपा हिन्दुओं को अपना बंधवा वोटर समझती है उसके इस भ्रम को भी चकनाचुर कर दिया दिल्ली की जनता ने। जयहिन्द!

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

स्वच्छ भारत का निर्माण -शम्भु चौधरी

यह लड़ाई अकेले ‘केजरीवाल’ की नहीं है। आम आदमी यही चाहता है कि भारत की राजनीति में अच्छे लोग आयें। भले ही वह किसी भी दल से क्यों न जूड़ा हो। राजनीति के इस गंदे प्रदुषित वातावरण में 'आम आदमी पार्टी' का छोटा सा प्रयास है कितना कारगार सिद्ध हुआ हम और आप इस बात से ही अंदाज लगा लें कि दिल्ली चुनाव के ठीक ऐन वक्त पर कांग्रेस और भाजपा को साफ छवि के चेहरे को जनता के सामने रखना पड़ा। चुनाव में हार-जीत होती रहेगी। राजनीति को स्वच्छ बनाकर ही हम ‘‘स्वच्छ भारत का निर्माण’’ कर सकतें हैं।
कोलकाताः (05 फरवरी 2015) आज दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरम पर है। शाम पांच बजे से चुनाव प्रचार पर विराम लग जायेगा। इसके साथ ही विराम लग जायेगा भारत में गंदी राजनीति करने वाले उन मुनसबों पर जो पिछले 10 दिनों से दिल्ली में नाकारात्मक प्रचार में लगे हुए थे। विराम लग जायेगा जिनके हाथ किचड़ में सने थे उन पर, विराम लग जायेगा जो किचड़ में पैदा होते हैं। देश के कुछ के युवाओं का एक छोटा सा सपना पुनः जीवित हो उठेगा जिसे कुचलने के लिये भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी थी। चुनाव आयोग ने अपनी टिप्पणी पर राजनैतिक नेताओं की इस वयानबाजी पर काफी असंतोष व्यक्त किया है। हमें चुनाव आयोग की इस टिप्पणी को काफी गंभीरता से लेने की जरूरत है।
यह चुनाव भारत की राजनीति का एक आईना माना जायेगा। जिस मोदीजी को चंद दिनों पहले ही इसी जनता ने सर का ताज बनाया था, आज उसी जनता ने इनके घंमड को चकनाचूर करके रख दिया। एक चिराग को बुझाने के लिये ‘भाजपा’ ने क्या-क्या पापड़ नहीं सैंके। बल्की यह लिखा जाए कि क्या नहीं बेलन नहीं बेले। भारतीय संस्कृति की बात करने वाली ‘भाजपा’ ने व्यक्तिगत-जातिगत हमले तक करने से परहेज नहीं किया। चुनाव नहीं जैसे मोदीजी की ‘‘मूंछ की लड़ाई’’ हो गई। भाजपा मैदान से गौन हो चुकी थी।
‘स्वच्छ भारत अभियान’ के नाम पर सिर्फ सड़कों की गंदगी को दूर करने का ढोंग करने वाले मोदीजी ने दिल्ली के इस चुनाव नाकारात्मक विज्ञापनों भरमार कर दी। जो लोकतंत्र में किसी भी रूप में स्वीकार नहीं हो सकता। आरोप-प्रत्यारोप लोकतंत्र में जरूरी है। लेकिन नाकारात्मक प्रचार और व्यक्तिगत-जातिगत हमले को जनता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकती। आज लगता है आदरणीय श्री अटल जी के इस कथन को कि ‘‘किचड़ में फूल खिलेगा’’ का मायने को ही मोदीजी ने बदल डाला। दिल्ली के चुनाव में भाजपा खासकर मोदीजी के इस व्यवहार से देश को बड़ी निराशा ही हाथ लगी है। दिल्ली के चुनाव में देश की जनता ने यह देख लिया कि भाजपा के नेताओं में ठीक वैसा ही घंमड झलकने लगा जो कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस के नेताओं में देखा जा सकता था।
मोदीजी के सपने का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से कुछ हटकर केजरीवाल के ‘स्वच्छ भारत निर्माण’ पर लोगों ने अपनी मोहर लगा दी। मोदीजी सड़कों की गंदगी साफ करने की बात करतें हैं वहीं केजरीवाल जी कहते हैं ‘‘भारत को अच्छा माहौल देना है तो अच्छे लोगों को इस गंदी राजनीति के अंदर आना होगा, तभी हम इस गंदगी को दूर कर पायेगें। आज जब हम किसी युवा से राजनीति की बात करतें तो उसका सीधा सा जबाब होता है - ‘‘राजनीति बहुत गंदी है’’ हमारे अंदर भी यही भावना भरी हुई थी। लेकिन अन्नाजी के आंदोलन के दौरान हमने महसूस किया कि कहीं से तो हमें इसे साफ करने की शुरूआत करनी ही होगी। यह लड़ाई अकेले की नहीं है। हम सबकी है। किरण जी का राजनीति में आना भी ‘‘बूराई पर अच्छाई’’ की एक जीत मानता हूँ। उनका स्वागत करता हूँ। वह मेरी बड़ी बहन है। कोई भी व्यक्ति साफ-सुथरे छवि का चेहरा अपनी इच्छानुसार किसी भी राजनीति दल का सदस्य बने इसमें कोई अड़चन नहीं। हमें युवाओं के अंदर व्याप्त इस हीन भावना को दूर करना होगा कि ‘‘राजनीति बहुत गंदी है’’ राजनीति बहुत अच्छी है। इसे चंदलोगों ने गंदा बना डाला है।’’
यह लड़ाई अकेले ‘केजरीवाल’ की नहीं है। आम आदमी यही चाहता है कि भारत की राजनीति में अच्छे लोग आयें। भले ही वह किसी भी दल से क्यों न जूड़ा हो। राजनीति के इस गंदे प्रदुषित वातावरण में 'आम आदमी पार्टी' का छोटा सा प्रयास है कितना कारगार सिद्ध हुआ हम और आप इस बात से ही अंदाज लगा लें कि दिल्ली चुनाव के ठीक ऐन वक्त पर कांग्रेस और भाजपा को साफ छवि के चेहरे को जनता के सामने रखना पड़ा। चुनाव में हार-जीत होती रहेगी। राजनीति को स्वच्छ बनाकर ही हम ‘‘स्वच्छ भारत का निर्माण’’ कर सकतें हैं। जयहिन्द! वंदे मातरम्