अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो करता ही है। प्रेम के अंधों के लिए गाना लिखा गया था है ‘‘जो तुमको हो पसंद, वही बात कहेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे’’ आज हम यही देख सुन रहें हैं। मोदी सरकार की मंसा में दो सवाल खड़ा करता हूँ।
1. कानून का शीर्षक हिन्दी में किया गया, कानून को अंग्रेजी में प्रस्तुत क्यों किया गया?
2. भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में परिवर्तन की इतनी ही जल्दी थी तो उच्च अदालतों व उच्चतम अदालतों में कार्यवाही अंग्रजी में ही क्यों?
जब उच्चतम अदालत की सभी कुर्सियों को काट कर रातों-रात बराबर किया जा सकता है तो कानून लिखने वाले को भी रातों-रात हिन्दी लिखने व पढ़ने के लिए बोला तो जा ही सकता है।
संसद के मानसून सत्र के अंतिम दिन यानि कि 11 अगस्त 2023 को भारत के केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने तीन बिल लोक सभा में प्रस्तुत किए। इस बिल का ड्राफ्ट अंग्रेजी में जारी किया गया, जबकि बिल का शीर्षक अंग्रेजी से बदल कर हिन्दी में कर दिया गया। जैसे-
आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता 2023, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 कर दिया गया। सीआरपीसी कानून पुराने कानून की कुल 511 धाराओं की जगह अब नये कानून में मात्र 356 धाराएं ही होंगी ।
1. भारतीय न्याय संहिता, 2023
(The Bharatiya Nyaya Sanhita Bill, 2023)
2.भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और
(The Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita Bill, 2023)
3.भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023
The Bharatiya Sakshya Bill, 2023
इस बिल के ड्रफ्ट पर और विभिन्न वैधानिक उपायों के साथ-साथ इसके कानून बन जाने पर समाज को इससे कितना न्याय मिलेगा या इस कानून से समाज पर जूल्म की एक नया अध्याय जूड़ जाएगा, इस पर भी हम यहाँ विस्तार से चर्चा करेंगे। दण्ड शब्द के बदल देने मात्र से समाज को न्या मिल जायेगा। यह सोचना ही हमारी विकलांग मानसिकता को दर्शता है। आपने बहरा-गूंगा और एक अंधे की कहानी से इसके तथ्य को समझाता हूँ। जब बहरा-गूंगा और अंधे लोग, सब मिलकर किसी बात पर अपनी विद्वता दिखाने की कोशिश करते हैं तब उस देश का पतन शुरू निश्चित तय है। संसद में जिस प्रगकार आनन-फानन में इन तीनों बिल को प्रस्तुत किया इससे राजनीतिक लाभ लेने को प्रयास इनाक भले ही सफल हो, पर पुराने कानून को बदलने के पीछे उनकी जो मंशा है की देश के लिए कितनी घातक साबित होगी यह तो भविष्य ही बता पायेगा, परन्तु हम यदि अभी से सजग नहीं हुए तो देश को गर्त में डालने के इनके सारे प्रयास सफल हो जाएंगे।
जिस प्रकार इन लोगों ने चुनाव आयोग के ऊपर कानून लाया गया, दिल्ली के ऊपर कानून बनाया गया, किसान के तीन काले कानून बनाये गए, जमीन हड़पने का कानून बनाया गया, ये सब इनकी मानसिकता को ही दर्शाता है कि इनके दिमाग में आखिर चल क्या रहा है?
इनका कहना है कि इन लोगों ने एक लंबी प्रक्रिया अपना कर इन तीन कानून को अमली जामा पहनाने का प्रयास किया है जिसमें 18 राज्यों 6 संघ शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक, अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैं। गृह मंत्री ने कहा कि 4 सालों तक इस कानून पर गहन विचार विमर्श हुआ और वे स्वयं इस पर हुई 158 बैठकों में उपस्थित रहे। भारतीय दंड संहिता-1860, दंड प्रक्रिया संहिता (1898) -1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम.1872 जो कि ब्रितानी हुकूमत के द्वारा बनाया गया था, हम इसके गुण व अवगुणों पर भी यहां चर्चा करेंगे।
फिलहाल हम आईपीसी की धारा 124ए जो ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय के ऊपर एक काला कानून था जिसके इस्तेमाल इन दिनों जमकर विभिन्न सरकारें पत्रकारों के खिलाफ करने लगी थी जिस पर उच्चतम अदालत ने प्रतिबंध लगाकर सरकार को इसे समाप्त करने का आदेश दिया था इसके बदले जो नये प्रावधान लाये गये हैं हम इसके ऊपर विस्तार से बात करते हैं।
जब सरकार बोलती है कि भारतीय पीनल कोड -1860 (आइ.पी.सी एक्ट) को पूरी तरह ही समाप्त कर देगी और इसकी जगह नया कानून भारतीय न्यायिक संहिता-2023 ले लेगी, तो यह प्रचारित करना कि इस (धारा 124ए) कानून को समाप्त कर दिया जाएगा। यह बात गले नहीं उतरती।
सरकार साफ-साफ यह क्यों नहीं बताती कि अब देश के जितने भी कानून ब्रिटिश हुकूमत के प्रचलित हैं। जो भी व्यवस्था उनके द्वारा बनी हुई है जिसमें अंगूठा छाप राष्ट्रपति के लिए 380 कमरे के आलीशान भवन, राज्यपालों के द्वारा चुनी हुई सरकारों पर हुकूमत चलाने के सभी नियमों को समाप्त कर वास्तव में लोकतंत्र की स्थापना की जाएगी। परंतु जिस प्रकार दिल्ली में एक चुनी हुई सरकार के अधिकारों को उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद आनन-फानन में बिल लाकर संसद में जिस प्रकार पास किया गया, इससे से तो यही लगता है कि सरकार को बिल के माध्यम से, अपने दलाल राज्यपालों के द्वारा सरकार चलाना चाहती है। जिसे हम संवैधानिक व्यवस्था की आड़ देकर देश की संपदा को बेचने और विपक्ष की आवाज को दबा कर माओवादी प्रथा को लागू करना ही कहा जाएगा। यह जो कुछ भी आज देश में घट रहा है, यह ना तो आर.एस.एस. के सिद्धान्तों को प्रतिपादित करता है ना की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करता है। भारत के संविधान की तो कदापि नहीं।
जारी...
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