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शनिवार, 27 जून 2009

कहानी: अपना मुकद्दमा वापस लेती हूँ..... -शम्भु चौधरी

अरे...आप चिन्ता मत किजिए....एक ठाहके के बीच ही वकील सा'ब ने अपने मुवक्किल जो गाँव के मुखिया भी हैं को कहा.....आपके लड़के को कोई सजा नहीं होगी। "जी....जी... पर...आप तो जानते ही हैं कि अगले साल चुनाव है... पार्टी ने मुझे चुनाव लड़ने को कहा है... इस मामले में लड़के को सजा हो गई तो मेरी इज़्ज़त ही सारी मिट्टी में मिल जायेगी.... बीच में ही मुखिया जी बोल पड़े।" "अरे सा'ब आप बस देखते जाईये....वकील सा'ब ने पुनः मुखिया जी को ढाढ़स बंधाया।" एक ठहाका..... फिर बोले..." ये तो आपके लड़के ने एक ही लड़की की इज़्ज़त लूटी है.. मुखिया जी...गाँव का कन्हैया है... पूरे गाँव की लड़कियोँ की भी... समझ रहे हैं न मैं क्या कहना चाह रहा हूँ...आप चिन्ता न करें .. फिर थोड़ा रुककर...मुखिया जी का लड़का है.. शौक भी तो मुखिया जैसे ही होने चाहिये।".. ठहाका...... "आप निश्चिंत रहें आपका काम हो जायेगा। एक लड़की की इज़्ज़त से ज्यादा जरूरी है आपकी इज़्ज़त को बचाना... आखिर आप हमारे गाँव के मुखिया भी तो हैं....वकील सा'ब ने यह बात कह कर मुखिया जी के दिल को मजबूत आधार प्रदान कर दिया" हाँ ! सो तो है...मुखिया जी ने वकील सा'ब से सहमति जताते हुए कहा- "आप भी चिन्ता न करें बस किसी तरह हमारी इज़्ज़त को बचा लीजिये...आपको....गाँव की तिजौरी संभला दूँगा।" "हूँ.... सो तो ठीक है.. पर आप तो जानते ही हैं... मामला पेचीदा बनता जा रहा है...आपने सुना नहीं कि कल किस तरह पत्रकारों ने कुत्ते की तरह पीछा किया था... बार-बार पूछ रहे थे.. कि मैं इस मामले की पैरवी क्यों कर रहा हूँ। "बीच में ही टोकते हुए मुखिया जी ने पूछा.. फिर आपने क्या कहा उनको..." - कहना क्या था वकील हूँ मेरा पेशा है अपने मुवक्किल की पैरवी करना.. जब तक अपराध साबित नहीं हो जाता, कानून की नज़र में कोई अपराधी नहीं है।.. मुखिया जी का लड़का तो निर्दोष है बेचारे को फंसाया गया है।...." "फिर वे लोग (पत्रकार) पूछने लगे...कि वो जो मेडिकल रिपोर्ट है....?" पास टेबल पर पड़े पानी के गिलास को उठाकर पानी पीते हुए... "फिर क्या कहा आपने......एक साथ कई प्रश्नों से घिरे मुखिया जी पत्रकारों की बात सुनकर एकबार कांप से गये..... कड़ाके की ठंडक में भी चेहरे पर पसीना साफ झलकने लगा था" "कहता क्या....कह दिया मामला अदालत में है...अदालत में देखा जायेगा वकील सा'ब ने जवाब दिया।" "वकील सा'ब आप इस जिले के सबसे बड़े वकील हैं....." "हां ... सो तो है ही... आपकी इज़्ज़त से कहीं ज्यादा मेरी इज़्ज़त का भी ख़्याल है मुझे।.... फिर कहने लगे कि मैंने आजतक कोई मुकदमा नहीं हारा है.. आप देखते रहिये...कोर्ट में लड़की की ऐसी इज़्ज़त उतारूँगा कि कमरे के अन्दर आपके लड़के ने क्या इज़्ज़त उतारी होगी वह भी भूल जायेगी।....ठहाका....." (मानो वकील सा'ब यह बताना चाहते थे कि इज़्ज़त कचहरी के अन्दर ही उतरती है, इनकी हँसी में वासना की भूख नज़र आ रही थी।) यह सुनकर मुखिया जी को अब थोड़ी राहत महसूस होने लगी थी। "वकील सा'ब ने अपनी बात को बढ़ाते हुए आगे कहा- अपने नाम के साथ वकील लिखना बन्द कर दूँगा.. आपका मुक़द्दमा हार गया तो।" अपने बैग से कुछ नोटों के बण्डल टेबल पर रखते हुए... "बस आप मामला लड़ते जाईए...किसी तरह से लड़की मामला उठा ले तो भी मैं समझौता करने को तैयार हूँ ...लड़के की शादी भी करनी ही है....मुखिया जी ने एक मझे-मझाये हुए अंदाज में वकील सा'ब की इंसानियत को भी परखने का प्रयास किया।" "नहीं...नहीं....यह बात दिमाग में भी नहीं लायें...किसी के सामने बोल मत दीजियेगा.... सारा मामला हाथ से निकल जायेगा.... समझे न क्या कह रहा हूँ.....वकील सा'ब ने अपने अनुभव से मुखिया जी की इंसानियत को जिंदा ही दफ़ना दिया।..... फिर बोलने लगे न जात .....न पात...... ऐसी लड़की को तो गाँव में नहीं, शहर के कोठे पर होना चाहिये...... आपके पवित्र मंदिर जैसे घर की शोभा कैसे बन सकती है?...... जिसने आपकी इज़्ज़त को कचहरी में चुनौती दे दी हो........ मामला कमजोर पड़ जायेगा।...... आपके यह सब बोलने से........ कचहरी में कानून बोलता है,......... इंसानियत नहीं बोलती..........गवाह देने होते हैं...........फिर एक ठहाका........आपने सुना नहीं ....-"कानून अंधा होता है"........फिर एक ठहाका........ कमरे के भीतर एक अजीब सी हलचल पैदा हो गई थी, मानो किसी जानवर ने वकील के शरीर में प्रवेश कर सारे वातावरण में हड़कम्प पैदा कर दिया हो........मुखिया जी की बात ने कुछ ऐसा ही माहौल पैदा कर दिया था।" "हां सो तो .....मुखिया जी ने अपनी बात को वापस लेते हुए कहा ...आप जैसा कहेंगे.. ठीक वैसा ही होगा.. वकील सा'ब ...आप पर मुझे पूरा भरोसा है। पर वो दो टकिया छोकड़ी तो मुँह पर लगाम देती ही नहीं....." "सब ठीक हो जायेगा... कतरन की सी जुबान पर जब सूई चुभने लगेगी तो खुद व खुद जुबान भी बंद हो जायेगी... फिर एक ठहाका...हहाहहह....बस आप देखते जाईये।" "हाँ.. पर.. मामला कमजोर है.....वो मेडिकल रिपोर्ट?...फिर एक प्रश्न के समाधान खोजने का प्रयास किया था मुखिया जी के मन ने" "आप भी कैसी बात करते हैं....मुखिया जी....कैसा मामला....कोर्ट...कचहरी...थाना...पुलिस....पी.पी....पेशकार...सबतो आपके साथ खड़े हैं...बस वो जज का बच्चा नया आया है....उसे भी कुछ समय लगेगा..... सब ठीक हो जायेगा......।" "हां!.........जज का नाम सुनते ही मुखिया जी को एक नई शंका ने घेर लिया । [मुखिया जी हर प्रश्न का समाधान पहले ही खोज लेना चाहेते थे] अब तक वकील सा'ब की बातों से जितना आश्वस्त हुए थे, नये जज का नाम सामने आते ही पुनः चेहरे पर पसीने की बूंदे झलकने लगी थी..........पर आप तो बता रहे थे....कि जज को आप मेनैज कर लेंगे.....? "कोशिश तो की थी......पर....मन ही मन में कुछ सोचते हुए अभी बताना मुनासिब नहीं होगा......अब वकील सा'ब ने मुखिया जी की कमजोर नबज़ को टटोलते हुए ....एक काम करियेगा...आप कल एक पेटी भिजवा दीजियेगा।" "किसकी सेव की या संतरा की.. मुखिया जी ने सोचा कि शायद जज सा'ब को भेंट भेजने को कह रहे हैं वकील सा'ब...... वकील सा'ब से पूछा.." "अरे इतने भोले मत बनिये....... मुखिया जी.. अभी आपका लड़का तो रिमाण्ड पर ही गया है.. ख़ुदा न करे, कल उसे जेल हो जाये। मुझे बताना पड़ेगा कि.... पेटी का क्या मतलब होता है।" "हां...हाँ समझ गया.. कल सुबह आठ बजे तक आपके पास मेरा आदमी एक पेटी लेकर आ जायेगा।" "तो बस आप भी समझो कि आपका काम हो गया" दृश्य बदलता है: दिन का समय है सुहानी धूप ने मौसम को सुहावना बना दिया है। "वाह... मदनगोपाल जी (वकील सा'ब का नाम).....आपने तो कमाल ही कर दिया.. क्या इज़्ज़त उतारी.... आपने.... उस लड़की की..... अदालत में मजा आ गया, जैसे लग रहा था, मनोरमा कहानी सुना रहे हों आप......वाह...... मज़्ज़्जा आआआअग्या।" "दूसरे वकील ने कहा....अरे सा'ब मदनगोपाल जी का जोड़ा नहीं है अदालत में, कोई फांसी पर भी लटकता हो तो बचा लेंगे उसको।.....क्या टियूस्ट किया था, उस समय... आपने.... "अपने कपड़े खुद खोले थे कि लड़के ने खोले थे"......." "तीसरे ने कहा...... अरे उस समय तो बड़ा मजा आ गया जब आपने उस लड़की से पूछा था...तुम और कितनों से संबंध रखती हो? सच मुझे तो लगा कि आपको सब पता है कि इस लड़की के कितने मर्दों से संबंध है.. वाह सा'ब!..... कहीं आप भी इस चक्कर में तो नहीं...... रहते..? ठहाका.....इतने राज की बात तो बस वही जान सकता है...." "चौथे ने कहा देखा नहीं कैसे बात खुलते ही सहम गई बेचारी...... चिल्ला पड़ी...........नहीं.............नहीं मेरी और इज़्ज़त मत उतारो.........बेचारी......""मैं अपना मुकद्दमा वापस ले लेती हूँ।""" उसके वकील की तो आपने बोलती ही बन्द कर दी थी बेचारा शर्म के मारे सर नीचे कर लिया था ......ठहाका......" " पुनः एक ने कहा- देखा नहीं कैसे भावनात्मक बातें कर रहा था.... नारी जाति .....नारी जाति.......जैसे कोर्ट में मुकद्दमा नहीं किसी फिल्म में भाषण देने आया हो।" "दूसरे ने एक प्रश्न भरी निगाहों से मदनगोपाल जी से पूछा... सर वो फोटो कहाँ से मिली उसकी जिसमें उसके........" अरे रहने भी दो यार.... सब यहीं पूछ लोगे तो कल क्या सुनोगे वकील साब ने एक बार सबको अपना आभार व्यक्त करते हुए बात को समाप्त करने की चेष्टा की।" तभी पास खड़े एक पत्रकार ने पूछ लिया... सर आपने मामला तो जीत ही लिया है मानो, पर यह तो बताते जाईये कि कल को यही घटना आपकी लड़की के साथ हो जाती तो आप क्या करते?.... पत्रकार के इस प्रश्न ने अचानक पास खड़े सभी वकीलों के चेहरे पर सन्नाटा ही पैदा कर दिया था । अभी तक जो हँस-हँस के वकील सा'ब को बधाई दे रहे थे, धीरे से सटक लिये... मदनगोपाल जी अकेले खड़े इस प्रश्न का उत्तर खोजने में लग गये। रातभर बिस्तर पर तड़पते रहे........ सुबह पुनः उसी अदालत में सभी खड़े थे.. जज साहेब ने अदालत की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। लड़की के बायन को पुनः दर्ज किया जाना था.... लड़की उठी और मदनगोपाल जी को हाथ जोड़ते हुए कहा..... आप मेरे पिता तुल्य हैं और कटघरे में जाकर खड़ी हो गई। आज फैसला होना ही था यह सबकी जुबान पर था कि लड़की मुकद्दमा हार चुकी है। मदनगोपाल जी उठे....... अदालत के चारों तरफ देखा। अपने मुवक्किल को ध्यान से देखा उसके चेहरे पर उसकी हँसी देखी...... लड़की को देखते हुए कहा...... मैं इस मुकदमे को नहीं लडूँगा.. अपना वकालतनाम वापस लेता हूँ। अदालत परिसर में यह बात आग की तरह फैल गई....... मदन जी ने मुकदमा लड़ने से इंकार कर दिया है। जज ने स्वीकृति प्रदान करते हुए लिखा काश! मदनगोपाल जी की जगह यह गौरव मेरे को मिल पाता...... मदनगोपाल जी ने आज इस अदालत में जो इतिहास रचा है.. वह हमेशा याद रखा जायेगा। नोट: सभी पात्र और घटना काल्पनिक है।

लेखक : शम्भु चौधरी,