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रविवार, 25 नवंबर 2018

व्यंग्य: सीलबंद लीफाफा


अब मुख्य न्यायाधीश महोदय गोगई को कुछ तो करना ही होगा तो सीलबंद लिफाफे में सारी प्रक्रिया मांगते हुए सरकार को यह भी बोल दिये किसी अदालती आदेश के लिये नहीं बल्कि सिर्फ जनता को गुमराह करने के लिये और मामले को रफा-दफा करने के लिये वे सीलबंद लीफाफे में बस सौदे की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है उसे देख लेना चाहते हैं।  जैसे सुप्रीम कोर्ट सीलबंद फैसला भी देने लगेगी ? मानो देश में मोदी से जुड़े तमाम भ्रष्ट्राचार के मामले बस सीलबंद ही रहेंगे।
कोलकाता- 18 नवम्बर 2018
सुप्रीम कोर्ट इन दिनों सीलबंद लिफाफे के चलते मशहूर हो चला है। राफेल सौदे से लेकर सीबीआई के आलोक वर्मा की जांच तक मानो सड़क पर एक पंडित जी महोदय एक तोते को पिंजड़े से बहार निकालकर सीलबंद एक लिफाफा लाने को कहता है और उस लिफाफे में लिखी बात उस व्यक्ति को बताकर उसका भविष्य बताता है ।  जब से माननीय रंजन गोगई महोदय सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश बने हैं तब से सीलबंद लिफाफे का रहस्य भी गहराता चला जा रहा है ।
अब राफेल सौदे में क्या रहस्य छुपा है सब तो किस्तों में जनता के सामने सच आ गया कि जिस दिन से मोदी सरकार सत्ता में आई तब से अनिल अंबानी नई कंपनी बननी शुरू कर दी थी। इस साहुकार से कोई यह पूछे कि इन कंपनियों को बनाने के पीछे उनकी मंशा जब राफेल सौदे को लेने की थी ही नहीं तो  एक के बाद एक शुरू में तीन कंपनियों का पंजीकरण, फिर दो नई कंपनी का गठन किन कारणों से हुआ? कि क्या साहुकार के साथ-साथ चाौकीदार भी हिस्सेदार हैं देश को लूटने में? जब बात उच्चतम अदालत में पंहुची तो अब मुख्य न्यायाधीश महोदय गोगई को कुछ तो करना ही होगा तो सीलबंद लिफाफे में सारी प्रक्रिया मांगते हुए सरकार को यह भी बोल दिये किसी अदालती आदेश के लिये नहीं बल्कि सिर्फ जनता को गुमराह करने के लिये और मामले को रफा-दफा करने के लिये वे सीलबंद लीफाफे में बस सौदे की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है उसे देख लेना चाहते हैं।  जैसे सुप्रीम कोर्ट सीलबंद फैसला भी देने लगेगी ? मानो देश में मोदी से जुड़े तमाम भ्रष्ट्राचार के मामले बस सीलबंद ही रहेंगे।
अब सीबआई के मामले में देख लें इनका लिफाफा मीडिया वाले उड़ा लिया। साथ ही सीलबंद लिफाफे में जिस सीवीसी ने जांच की, वह खुद पाप के घड़े से लदा पड़ा है । उसकी जांच में क्या निकलेगा सबको पता है। तो आलोक वर्मा का सीलबंद लिफाफे को ही किसी ने सार्वजनिक कर दिया और उसका ठीकरा आलोक वर्मा के उपर ही फोड़ दिया । अब माननीय गोगई ने यह पहले से ही सोच लिया है कि उनको सिर्फ वही करना है जो चाौकीदार चाहेगा अर्थात राकेश अस्थाना की पुनः नियुक्ति वह भी उस पद पर जिसपर आलोक वर्मा कुछ दिन पूर्व विराजमान थे। कहने का अर्थ है सब कुछ सीलबंद सौदा है।

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