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शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

दीपावली की शुभकामनाएँ - शम्भु चौधरी

नक्सलवाद पर लिखी मेरी एक कविता से आज आपको दीपावली की शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ।

एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
मैं सोचा यह क्या कहता है? हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है।


सर्वप्रथम हमें आतंकवाद को व्याखित करना होगा, खुद की जमीं पर रहकर अपने हक की लड़ाई लड़ना आतंकवाद नहीं हो सकता चाहे वह कश्मीर की समस्या ही क्यों न हो, लेकिन को कुछ ईश्लामिक धार्मिक संगठनों ने धर्म को आधार मानते हुए सारी दुनिया में आतांकवाद फैला दिया, पाक प्रायोजित तालिबानियों द्वारा धर्म को जिहाद बताया उनलोगों ने न सिर्फ़ कश्मीर समस्या को उलझाया। भारत, पाकिस्तान और बंग्लादेश सहित विश्व के अनेक देशों के भीतर आतंकवाद को देखने का एक अलग नजरिया प्रदान कर दिया। जिसक परिणाम यह हुआ कि आज विश्व में हर तरफ यह प्रश्न उठता है कि आखिर एशिया महाद्वीप में ही आतंकवाद क्यों पैदा हो रहा, सारे विश्व के अपराधियों का सुरक्षा केन्द्र बनता जा रहा है यह महाद्वीप। संभवतः भारत विश्व में एक मात्र देश होगा जो लगातार आज़ादी के बाद से इस समस्या से झूझता आ रहा है। ९/११ की घटना यदि अमेरीका की जगह भारत में हुई होती तो शायद अमेरिका, तालिबानियों का सफ़ाया कभी नहीं करती़। कारण स्पष्ट है अमेरिका को किसी बात का दर्द तभी होता है जबतक वह खुद इस दर्द को न सह ले।
इसी प्रकार भारत में नक्सलवाद का काफी तेजी से विकास हुआ खासकर आदिवासी इलाकों में जहाँ हम अभी तक विकास, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत ज़रूरतों को भी नहीं पहुँचा पाये। हमने उनके घर (वन, वनिस्पत, खनिज, पर्वत, जंगल आदि) को सरकारी समझा और उनको उस जगह से वेदखलकर उन्हें जानवर का जीवन जीने को मजबूर करते रहे। जब इन लोगों को कुछ लोगों ने वगावत का पाठ पढ़ाया तो ये देश के लिये गले की फांस बन गई। आपको सबसे पहले यह समझना होगा कि आखिर समस्या क्या है, सिर्फ हथियार उठा लेने से आतंकवाद हो जाता तो भारत स्वतंत्रता आन्दोलन के हजारों शहीद को भी हमें आतंकवाद कहना होगा। इसमें कोई शक नहीं नक्सलवाद को कुछ लोगों ने इसे सरकारी ताक़तों को नुकशना पहुँचाने के नाम से बेकसूर जनता को भी काफी हानी पहुँचाई जिसका लाभ लेकर सरकारी ताक़तों ने सेना को इस मैदान पर उतार दिया है। जो किसी भी दृष्टिकोण से न तो उन्हें सही ठहराया जा सकता है ना ही इसे। हम अपनी दीपावली के दीये उन आदिवासी के साथ जलाना पसंद करेंगे जिन्हें सरकार नक्सलवादी समझती है। माना कि सरकार पर देश की सुरक्षा का भार है। परन्तु एक को सुरक्षा देने के नाम पर दूसरे का घर ही उजाड़ दिया जाय यह सुरक्षा नहीं हो सकती। आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ।

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