गुरुवार, 22 अगस्त 2013

किश्तवारः भारत को चेतावनी - शम्भु चौधरी

भारत में सभी अल्पसंख्यकों को जो जिस जगह वे खुद को अल्पसंख्यक समझते हों चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू, जैन, सिख या क्रिश्चन आदि सभी संप्रदायों को उनके परिवार व अपने-अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा, भारतीय संविधान में प्रदान की गई है ना कि भारतीय संप्रभुता की असुरक्षा । धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हम देश की सुरक्षा से हम कोई समझौता नहीं करेंगें यह बात भारत का हर नागरिक चाहेगा । यदि वह ऐसा नहीं चाहता तो इसका सीधा सा अर्थ होगा वह व्यक्ति पाकिस्तानी है, अल्पसंख्यक नहीं ।



भारत में धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर राजनीतिज्ञों की बोलती उस समय बंद होती नजर आती है जब-जब देश में पाकिस्तानी समर्थक इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा सांप्रदायिकता का बीजारोपन किया जाता है। पिछले दिनों किश्तवार में जिसप्रकार मुसलमानों ने भारत के खिलाफ जहर उगला और देश विरोधी घटना को अंजाम दिया और इसे सांप्रदायिकता का चौला पहनाकर कश्मीर के मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला जी का इस बात के लेकर रोना कि इस दंगे में दो मुसलमानों की भी मौत हो गई, यह उनके ना सिर्फ विचारों का दर्शता है, भारत को चेतावनी भी दे रहा है ।

दरअसल यह कोई सांप्रदायिक दंगा था ही नहीं बल्की यह घटना मुसलमानों द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत भारतीयता में आस्था रखने वालों पर हमला था। ईद के दिन सामूहिक रूप से एकत्रित होकर मुसलमानों ने सरे आम भारत के प्रति वफादारों के सैकड़ों हिन्दू परिवार के करोबार व घरों को चन्द घंटों में ही आग के हवाले कर दिया प्रशासन सुरक्षा की व्यवस्था करने में ना सिर्फ नाकाम रही, केन्द्रीय हस्तक्षेप भी भाजपा की दखल के बाद हरकत में आई। इस घटना को किसी भी रूप में सांप्रदायिक दंगा नहीं कहा जा सकता। यह एक सुनियोजित षड़यंत्र है जो किश्तवार व उसके आस-पास के ईलाकों से अल्पसंख्यक हो चुके हिन्दू परिवारों को उनकी पुश्तैनी जगहों से बेदखल करने का प्रयास है। जिस प्रकार एक दशक पूर्व सन् 1990 में कश्मीर के कई हिस्सों से बड़ी संख्या में हिन्दू कश्मीरियों के साथ किया गया था।

किश्तवार की घटना कई प्रश्नों को एक साथ समेटे हुए हमें सोचने पर विवश तो किया ही है साथ ही पाकिस्तानी मुसलमानों ने भारतीय धर्मनिरपेक्षता को खुले रूप से चुनौती भी दी है। 1990 की घटना जिसके शिकार सैकड़ों हिन्दू पंडितों का परिवार आज भी अपने ही देश में धर्मनिरपेक्षता की तराजु में कहीं फिट नहीं बैठते। गुजरात के दंगों पर रोजना सुबह-शाम मुर्गो की तरह बांग देने वाले राजनीतिज्ञों ने एक दिन भी उनकी सुध लेने की नहीं सोची, यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जी भी उनको देखने नहीं गये। अपने ही घर से बेघर हुए कश्मीरी पंडितों की जो लोग सुघ लेने जाएंगे उन लोगों से भी कहीं मुसलमानों का वह तबका नाराज ना हो जाए जो देश में सांप्रदायिता की राजनीति कर रहें हैं। अर्थात यह बात स्पष्ट रूप से हमें समझने की है कि कहीं धर्मनिरपेक्षता सिर्फ मुसलमानों के हितों की रक्षा व उनके कट्टरपंथी सांप्रदायिक ताकतों के लिए एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने का हथकंडा तो नहीं बन गया ।

सेक्लुरिजम की राजनीति करने वाले दल ना सिर्फ देश की सुरक्षा के साथ सौदा कर रहे हैं ये लोग देश के साथ भी गद्दारी कर रहे हैं । जिस प्रकार किश्तवार की घटना पर धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने अपनी जुबानों पर ताला लगा रखा है, इनकी चुप्पी हमें इस तरफ भी संकेत करती है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ मुसलमानों की सुरक्षा, उनके आतंकवाद को संरक्षण, उनकी कट्टरपंथी नीतियों का समर्थन, और देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने के लिए ही प्रयोग में ली जा रही है। जिसे कोई भी देश प्रेमी किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है ।

भारत में सभी अल्पसंख्यकों को जो जिस जगह वे खुद को अल्पसंख्यक समझते हों चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू, जैन, सिख या क्रिश्चन आदि सभी संप्रदायों को उनके परिवार व अपने-अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा भारतीय संविधान में प्रदान की गई है ना कि भारतीय संप्रभुता की असुरक्षा। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हम देश की सुरक्षा से हम कोई समझौता नहीं करेंगें यह बात भारत का हर नागरिक चाहेगा । यदि वह ऐसा नहीं चाहता तो इसका सीधा सा अर्थ होगा वह व्यक्ति पाकिस्तानी है, अल्पसंख्यक नहीं । ऐसे तत्वों को भारत में भारतीय कानून के तहत किसी भी रूप में सुरक्षा नहीं दी जा सकती । यदि ऐसा किया जाता है तो यह भारत की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ माना जाना चाहिए ।

-लेखक एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक हैं।

शनिवार, 17 अगस्त 2013

प्रधानमंत्री जी का लालकिले से भाषण- शम्भु चौधरी

जिस प्रकार देश के जाने-माने बुद्धिजीवी वर्ग की एक जमात जिसमें श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित कुछ राजनीति दल के लोग भी शामिल हैं श्री मोदी जी के भाषण को लेकर जिस परंपरा की दुहाई दे रहें उनसे एक सीधा सा सवाल है कि क्या वे बतायेंगे कि लालकिले के जिस मंच से माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो भाषण दिया वो देश के एक प्रधानमंत्री का भाषण होना चाहिए था? यदि आप में जरा भी देश भक्ति का जज्बा बचा होगा तो कदापि इस बात से आप भी सहमत नहीं होंगे। दुर्भाग्य है कि हमलोगों की नियति सी बन गई है कि हम व्यक्तिगत स्वार्थ की राजनीति को देश से बड़ा मानने लगे हैं।

जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी 67वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से देश को संबोधित कर रहे तो इसके पूर्व हमलोगों के दिमाग में एक कल्पना सी थी कि देश के प्रधानमंत्री देश के भविष्य, बढ़ती मंहगाई, भ्रष्टाचार, महिलाओं की सुरक्षा, लोकपाल बिल, रुपये के गिरते मूल्य की चिन्ता, देश की अर्थव्यवस्था व देश की सुरक्षा के खतरे से देश को आगाह करते हुए चीन और पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने का प्रयास करेंगे। आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने इन सभी बातों को ना सिर्फ जिक्र तक नहीं किया, अपनी नौ साल की सरकार के सारी काली करतूतों पर पर्दा डालते हुए उन्होंने गांधी परिवार के सामने सर झूकाकर अपना आभार व्यक्त करते हुए स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के अभी हाल ही में हुए हमारे सैनिकों को श्रद्धांजलि भी देने की जरूरत महसूस नहीं की। देश के शहिदों को याद करने की बात तो बहुत दूर की उन्होंने पाकिस्तानियों द्वारा देश में फैलाये जा रहे सांप्रदायिक दंगों तक का भी जिक्र अपने भाषण में नहीं किया। कुल मिलाकर इनके भाषण का सार इस बात से लगाया जा सकता है कि इनका भाषण देश के उस प्रधानमंत्री का नहीं जो देश की आजादी के लिए मर मिटने वालों शहीदों की कुर्बानियों को याद करता हो। इन्होंने इस मंच का प्रयोग खुद के एहसान को चुकाने के लिए व सोनिया और गांधी परिवार के कर्ज का फर्ज अदा करने के लिए किया है।

जब हम देश के प्रधानमंत्री जी को 67वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से भाषण देते सुन रहे थे तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानों कोई मुर्दा देश की बागडोर पर बैठकर देश को संबोधित कर रहा हो । इनके भाषण में जो तीन प्रमुख हिस्से थे

1. गांधी परिवार को संस्मरण कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करना

2. अपने पिछले चार साल के भ्रष्ट कार्यकाल की उपलब्धियों को छुपाये रखना एवं

3. अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए देश को गुमराह करना।

जिसप्रकार देश के जाने-माने बुद्धिजीवी वर्ग की एक जमात जिसमें श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित कुछ राजनीति दल के लोग भी शामिल हैं श्री मोदी जी के भाषण को लेकर जिस परंपरा की दुहाई दे रहें उनसे एक सीधा सा सवाल है कि क्या वे बतायेंगे कि लालकिले के जिस मंच से माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो भाषण दिया वो देश के एक प्रधानमंत्री का भाषण होना चाहिए था? यदि आप में जरा भी देशभक्ति का जज्बा बचा होगा तो कदापि इस बात से आप भी सहमत नहीं होंगे। दुर्भाग्य है कि हमलोगों की नियति सी बन गई है कि हम व्यक्तिगत स्वार्थ की राजनीति को देश से बड़ा मानने लगे हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 67वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने राष्ट्र के नाम संदेश में भी कहा कि ‘‘आधुनिक, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष देश में संकीर्ण और सांप्रदायिक विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।’’ कि जगह यदि वे किश्तवार व भारत की सीमाओं की घटनाओं का जिक्र करते हुए पाकिस्तान को सीधे-सीधे जिम्मेवार ठहराते हुए उनको इस देश में सांप्रदायिक सदभाव को खराब करने के लिए यदि कसूरवार मानते हुए देश में पनप रहे ऐसे तत्वों को सावधान किये होते तो कुछ हद तक उनकी देशभक्ति पर मुझे भी विश्वास होता, परन्तु किसी पाकिस्तानी प्रायोजित सांप्रदायिक हरकतों को नजरअंदाज कर दूसरे समुदाय को धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देना या उनको ही हर घटना के लिए कसूरवार मानना धर्मनिरपेक्षता नहीं हो सकती। धर्मनिरपेक्षता को कायम रखना सभी पक्षों की ज़िम्मेदारी है। मुसलमानों के उग्रवाद को धर्मनिरपेक्ष कहना व उसके प्रतिफल को सांप्रदायिकता यह किसी को भी स्वीकार नहीं।

आज देश उस चौराहे पर खड़ा है जहां एक तरफ बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत में खुलआम देश के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में प्रवेश की आजादी दे दी गई व उनको भारतीय राजनीति में जगह दिया जाना तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी प्रायोजित आतंकवाद भारत में अपनी जड़ें मजबूत करता जा रहा है। तीसरी तरफ पाकिस्तानी समर्थक भारतीय मुसलमानों के कई सक्रिय दल भारत की धरती पर रहकर भारत के खिलाफ साज़िश कर भारतीय मुसलमानों के मन में भारतीयता के विरूद्ध वगावत के बीज पैदा करना। और चौथी तरफ देश की परवाह ना करते हुए हम धर्मनिरपेक्षता की आड़ में इनकी सभी हरकतों से खुद को किनारा करते पाये जाना। यदि ऐसी स्थिति पर देश के राजनेतागण आदि अपनी राजनीति स्वार्थ को त्यागकर देश के लिए कुछ कर पायें तो अच्छा होगा।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

सेकुलरिज्म बनाम देश की सुरक्षा - शम्भु चौधरी

देश के सैनिकों का अपमान या देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का नाम सेकुलर नहीं हो सकता। जो लोग ऐसा सोचते हैं कि इससे उनको चुनावों में फायदा हो सकता है से भी स्पष्ट हो जाता है कि देश में पकिस्तानियों की संख्या भारत की संप्रभुता के लिए खतरा बनती जा रही है। अर्थात सेकुलरवादी राजनेता देश की सुरक्षा के सौदागर बन चुके हैं।

जबसे भारतीय संविधान में सेकुलर शब्द को अंकित किया गया है तब से देश के भीतर पाकिस्तानी समर्थकों का मनोबल इतना ऊँचा हो गया है कि देश की सुरक्षा को भी खतरा मंडराने लगा है। पाकिस्तानी समर्थकों से आप जो भी अर्थ लगायें वह आपकी सोच हो सकती है। जहां तक मेरा मानना है कि जो लोग भारतीयता को नहीं स्वीकारते, भारतीय संस्कृति को अपनाने में जिनको अड़चनें आती हों। भारतीय सैनिकों की बलि पर जो लोग संसद के भीतर और बहार देश को गुमराह करते हों, जो लोग पकिस्तानियों को दोष मुक्त करार देने में जरा भी संकोच नहीं करते, भारतीय क्षेत्र में रहकर भारत के विरूद्ध साजिश करने में सहयोग प्रदान करना, आतंकवादियों व उन से जुड़ी घटनाओं की वकालत करना व देश की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ कर उन्हें भारतीय राजनीति का हिस्सा बनाना या बनाने का प्रयास करना यह सभी कारनामे देशद्रोही की श्रेणी में आते हैं। और इसके लिए खुद को सेकुलरवादी बताने वाले लोग ही जिम्मेदार हैं । यही सेकुलरवादी ना सिर्फ आतंकी घटनाओं के लिए देश में जगह-जगह होने वाले दंगों के लिए भी जिम्मेदार हैं।

इन दिनों देश की संसद व विभिन्न राज्यों की विधान सभाओं में कुछ ऐसे तत्वों की भरमार सी हो चुकी है जो सेकुलरिजम के बहाने देश की सुरक्षा के खिलाफ न सिर्फ सार्वजनिक बयान देते पाये जाते हैं इन लोगों ने देश के सैनिकों के मनोबल को भी कमजोर करने का प्रयास किया है। इन सबके बीच देश का लोकतंत्र तमाशबीन बनकर रह गया। इस बात को लेकर भी हम आश्चर्यचकित हैं कि आखिर में हमारे सेकुलरवादी विचारधारा के झंडावाज नेतागण देश को किस दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। इनका जमीर इस कदर समाप्त हो चुका कि ये लोग सत्ता प्राप्त करने के लिए देश की सुरक्षा तक को भी दाव में लगाने से बाज नहीं आते।

ऐसे नेताओं के विरूद्ध देशद्रोह का मामला बनाया जाना चाहिए जिससे इस तरह के बयानों से जिससे देश की सुरक्षा को खतरा बनता हो पर लगाम लगाया जा सके। देश के सैनिकों का अपमान या देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का नाम सेकुलर नहीं हो सकता। इससे उनको चुनावों में किसी विशेष समुदाय के वोटों का फायदा तो हो सकता है परन्तु कालान्तर में यही फायदा देश की संप्रभुता के लिए खतरा भी बनता जा रहा है। जो लोग ऐसा सोचते हैं उनकी इन हरकतों से उनको या उनके दल का राजनीति फायदा होता है वे लोग देश के इतिहास को उठाकर देख लें कि इसके क्या परिणाम सामने हमें देखने को मिल रहें हैं। जैसे-जैसे सत्ता पर सांप्रदायिक ताकतों का पल्ला मजबूत होता जा रहा है देश में उतने ही तेजी से सांप्रदायिक तनाव फैलता जा रहा है। अब तो कई जगह खुले रूप में देश के विरूद्ध जहर तक उगलने लगे हैं।

यहाँ यह सवाल नहीं है कि किसी संप्रदाय या दल विशेष की बात हो या उनकी नीतियों को दोषी ठहराया जाए। सवाल है कि हम इन मुद्दों को लेकर देश को किस जगह ले जाने का प्रयास कर रहें हैं इससे किसको फायदा होने वाला है। जो लोग भारतीयता को स्वीकार नहीं कर पा रहे उनको हम भारतीय राजनीति में जगह देकर ना सिर्फ खुद को कमजोर करने का प्रयास कर रहें हैं अन्ततः इसका परिणाम सभी राजनैतिक दलों को झेलना पड़ सकता हैं । उस समय आज कि इस राजनीति के परिणाम कितने घातक होगें इसकी कल्पना मात्र से देश की रूह कांप जाऐगी। सभी राजनीति दलों को इस सेकुलरवादी विचारधारा के परिणामों पर ना सिर्फ पुनः सोचने की जरूरत है। भारतीय राजनीति का उद्देश्य सिर्फ सत्ता को प्राप्त करना नहीं, भारतीय संस्कृति की रक्षा भी होना जरूरी है। ताकी सभी धर्म के लोग आपसी भाई-चारे के साथ रह कर अपने-अपने समाज का विकास कर सकें।

-लेखक एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक हैं।

सोमवार, 12 अगस्त 2013

नपुंसक बनता जा रहा धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत- - शम्भु चौधरी

सत्ता को बचाये रखना या सत्ता प्राप्त करने के लिए हम इस तरह के सांप्रदायिक हमलों को कबतक सहते रहेगें? किश्तवाड़ में पाक प्रयोजित इस सांप्रदायिक हमले की हमें एकजुट होकर विरोध करने की जरूरत है ना कि हर बात में गुजरात दंगों या अन्य घटनाओं से जोड़कर उनके मनोबल को मजबूती प्रदान करने की। देश की संसद, देश के सांसदों , राजनेताओं को खुलकर इस घटना का विरोध करना चाहिय। जिसप्रकार ये लोग एकजुट होकर गुजरात पर हमला करते नहीं थकते, काश! यही राजनेताओं के मुंह किश्तवाड़ के सांप्रदायिक हमले की गुंज सुनाई देती तो हम कुछ हद तक उनको धर्मनिरपेक्ष मान लेते, पर इनको देश से ज्यादा बोट बैंक की चिन्ता नजर आती है। तब यह प्रश्न जरूर उठता है कि हिन्दुओं की सुरक्षा कौन करेगा और जो हिन्दुओं के सुरक्षा की बात करेगा या करना चाहेगा क्या वह सांप्रदायिक बन जायेगा?

किश्तवाड़ में पिछले तीन दिनों जिसप्रकार एक विशेष समुदाय के लोगों को मौत के घाट सुलाया गया। यह इस बात की तरफ हमें सोचने को विवश करता है कि धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनने वाले लोगों की चुप्पी, ऐसा लगता है कि किसी विशेष समुदाय के देशद्रोही व सांप्रदायिक हरकतों के विरूद्ध ना बोलना इनकी लाचारी सी बन गई है। पाकिस्तानी हमारी सीमाओं आकर हमारे सैनिकों को मौत के घाट सुला जाता हैं। और हमारे देश की तथाकथित राजनैतिक पार्टियां कुछ इसप्रकार का सफाई देती नजर आती है कि जैसे वे भारत के नहीं पाकिस्तान की तरफ से बयान दे रहें हों । हर जगह वोटबैंक एक तमाशा हो गया हैं। देश की सुरक्षा से भी अब ये लोग समझौता करने में नहीं हिचकचाते। किस बेशर्मी के साथ संसद में एक ही बयान को तीन-तीन बार देकर देश को गुमराह करने का प्रयास ये किस साजिश का हिस्सा है इनके पीछे कौन से लोग शामिल थे उनके नकाब को उतारना जरूरी हो गया है। मुझे तो इस बात का दर्द हो रहा है देश के पत्रकार व बुद्धिजीवी वर्ग भी अपनी कलम को इस अंधकार में धकेल चुके हैं। मानो देश की सुरक्षा धर्मनिरपेंक्षता के सामने नपुंसक सी बन चुकी है।

आतंकवादी हमारे देश की संसद पर हमला करते हैं हम उनका पक्ष लेते नहीं थकते। पाकिस्तान हमारे जवानों का सर काट ले जाते हैं हम चुपचाप सह लेते हैं। पाकिस्तानी सीमाओं पर रात के अंधरे में हमारे जवानों को भूनकर चले जाते हैं हमारा विदेश व गृह मंत्रालय संयुक्त रूप से पाकिस्तान को बचाने की हरकतें करता है। कुल मिलाकर हमें यह मान लेना होगा कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर पाकिस्तानी समर्थकों ने हमारे देश पर एक प्रकार से सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिज्ञ हमला सा कर दिया है। और हम एक दूसरे को नीचा दिखाने में या अपनी सत्ता पर बचाने में लगे हैं।

जब कुछ लोग देश के भीतर हिन्दू सांप्रदायिकता का सवाल उठाते हैं तो उनको मुस्लिम सांप्रदायिकता के विरूद्ध बोलने में किस बात का डर सताता है? सांप्रदायिकता तो दोनों ही है। पर हमारे धर्मनिरपेक्षता के विद्वानों को हिन्दू सांप्रदायिकता से देश के टूटने व सांप्रदायिक दंगों का तो खतरा नजर आता है पर वहीं जब को मुस्लिम सांप्रदायिकता की बात या देश के विरूद्ध उठती हुई आवाज के तब इन राजनेताओं को देश पर कोई खतरा नहीं मंडराता नजर आता।

इस बात पर एक बात तो माननी ही होगी कि देश का मुसलमान एक साथ है। चुकीं जब ओबामा को पत्र लिखने की बात सामने आती है तो उस पत्र पर देश के अधिकांशतः मुस्लिम सांसदों और विधायकों ने अपने हस्ताक्षर किये थे। ये संकेत को देश भले ही आज ना भांप पा रहा हो। इसके परिणाम भविष्य में घातक सिद्ध होगें। किसी समुदाय के विरूद्ध हमें नहीं सोचना चाहिये यह बात सही है कि हर समुदाय में अच्छे-बुरे लोग होते हैं पर यहां तो उस जमात का एक बड़ा हिस्सा ही देश के विरूद्ध साजिश में लगा चुका है। पाक प्रायोजित षडयंत्र को हम अनदेखा करते हुए किसी विशेष समुदाय के बोट बैंक पाने या खुद को सत्ता में बनाये रखने के लिए उनका राजनैतिक प्रयोग करना एक प्रकार से देश के साथ गद्दारी देश के संविधान की आड़ में पाक प्रायोजित आतंकवाद को संरक्षण देना है।

सत्ता को बचाये रखना या सत्ता प्राप्त करने के लिए हम इस तरह के सांप्रदायिक हमलों को कबतक सहते रहेगें? किश्तवाड़ में पाक प्रयोजित इस सांप्रदायिक हमले की हमें एकजुट होकर विरोध करने की जरूरत है ना कि हर बात में गुजरात दंगों या अन्य घटनाओं से जोड़कर उनके मनोबल को मजबूती प्रदान करने की। देश की संसद, देश के सांसदों , राजनेताओं को खुलकर इस घटना का विरोध करना चाहिय। जिसप्रकार ये लोग एकजुट होकर गुजरात पर हमला करते नहीं थकते, काश! यही राजनेताओं के मुंह किश्तवाड़ के सांप्रदायिक हमले की गुंज सुनाई देती तो हम कुछ हद तक उनको धर्मनिरपेक्ष मान लेते, पर इनको देश से ज्यादा बोट बैंक की चिन्ता नजर आती है। तब यह प्रश्न जरूर उठता है कि हिन्दुओं की सुरक्षा कौन करेगा और जो हिन्दुओं के सुरक्षा की बात करेगा या करना चाहेगा क्या वह सांप्रदायिक बन जायेगा?

-लेखक एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक हैं।

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

भारतीय धर्मनिरपेक्षता - शम्भु चौधरी

जबतक भारतीय संस्कृति इस देश में कायम रहेगी तभी तक धर्मनिरपेक्षता इस देश में जीवित रह सकेगी, यही अंतिम सत्य है। जो लोग वोट बैंक की राजनीति करते हैं वे वोट बैंक की राजनीति करें पर साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रखें कि भारतीय संस्कृति को चोट पंहुचाने वाले तत्वों से सत्ता को कैसे दूर रखा जाए। जो लोग भारतीय संस्कृति को भी नूकसान पंहुचाकर अपनी राजनीति स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं वे लोग कहीं भूल से ही सही भारत की संप्रभूता के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे? यदि वे ऐसा कर रहे हैं तो उनको सावधान होने की जरूरत है।

पिछले एक दशक से भारत में धर्मनिरपेक्षता को लेकर लोगों के मन में शंकाएं होने लगी है कि जिसप्रकार देश के विभिन्न राजनैतिक दलों में एक विशेष सांप्रदाय के वोट बैंक को लेकर राजनीति की जा रही है कहीं आगे चलकर यही राजनीति देश की संप्रभूता के लिए घातक ना साबित हो जाए। भारतीय संविधान में सभी धर्मावलंबी को समान अधिकार दिया गया है ताकि वे अपने धर्मानुसार अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा करते हुए भारतीय भौगोलिक सीमा के अन्दर एक अच्छे नागरिक बनकर अपना जीवन यापन कर सकें। अर्थात जिन लोगों को भारतीय संविधान में विश्वास है उनको भारतीय संस्कृति में भी आस्था रखनी चाहिए चुंकि भारतीय संस्कृति ने जिस धर्मनिरपेक्षता की संरचना की है यदि हम उसकी भावना को ही समाप्त कर देगें तो इस संविधान की संरचना ही गलत हो जाएगी।

पिछले दिनों राष्ट्रीय राजनीति दल के एक प्रवक्ता ने इस बात की पूरजोर वकालत की कि भारत में ‘सेक्लुरिजम’ पर बहस हो जानी चाहिए। हाँ ! मैं भी इस बात का समर्थन करता हूँ कि इस बात पर देश में बहस होनी ही चाहिए ताकि आज की नई पीढ़ी को पता चल सके कि ‘‘धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा क्या है?’’ जिस प्रकार इन दिनों इसकी परिभाषा व्यक्त की जा रही है क्या वास्तव में यही धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप होना चाहिए हमें इस बात पर भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है। इससे पहले की हम धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा क्या हो पर चर्चा करें, हमें इसके उन पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति ही इस व्यवस्था की जनक मानी जाती है। जबकि अन्य धर्म या संस्कृति इस व्यवस्था को सिरे से नकारती रही है। भारत में जो मुसलमान धर्मनिरपेक्षता की वकालत कर खुद को भारतीय समझते हैं वही मुसलमान कश्मीर में हिन्दुओं के प्रति ना सिर्फ भेदभाव उनको विस्थापित करते समय मौन धारन कर लेते हैं । जो लोग देश की एकता व अखंडता के प्रति अपना दोहरा मापदंड रखते हैं वैसे ही लोग देश में धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते नजर आते हैं। जो लोग भारतीय संस्कृति को मटियामेट करने में आमदा हैं वैसे ही लोग धर्मनिरपेक्षता को भारतीय राजनीति का एक हथकंडा मानते हैं। इसके विपरीत जो लोग देश की एकता व अखंडता की रक्षा करना चाहते हैं वैसे लोग हमें सिर्फ इसलिए सांप्रदायिक नजर आतें हैं चुकि उसमें भारतीयता की खुशबू महकती है। जबकि धर्मनिरपेक्षता को जो लोग वोट बैंक का जरिया बना चुके हैं उनमें भारतीयता के प्रति संवेदना उस समय समाप्त नजर आती है जब उनको लगने लगता है कि उनके बयान से एक विशेष संप्रदायवर्ग नाराज हो सकता है। इसलिए वे गाहे-बगाहे हमेशा इस बात को ध्यान में रखते हैं कि उनके वोट बैंक को कोई क्षति न हो सके।

जब हम धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा पर विचार करते हैं तो हमें देश के विभाजन के पूर्व और बाद की स्थिति पर भी विचार करना होगा। जब देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ तो यह तय किया गया कि भारत में बचे हुए मुसलमान चुंकि वे अब देश में अल्पसंख्यक हो चुके हैं उनके जान-माल की सुरक्षा हमें देना हमारा फर्ज बनता है । जबकि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कोई भी ऐसा प्रस्ताव ग्रहित नहीं किया गया। अर्थात इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति जहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास करती नजर आती है वहीं पकिस्तानी संस्कृति में अल्पसंख्यकों के लिए कोई स्थान नहीं है। जिसके आंकड़े परिणाम सहित भी हमारे सामने है।

खैर! इस बहस को हम उस दिशा में नहीं ले जाना चाहते। धर्मनिरपेक्षता भारतीय संस्कृति की देन है। और जबतक भारतीय संस्कृति इस देश में कायम रहेगी तभी तक धर्मनिरपेक्षता इस देश में जीवित रह सकेगी, यही अंतिम सत्य है। जो लोग वोट बैंक की राजनीति करते हैं वे वोट बैंक की राजनीति करें पर साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रखें कि भारतीय संस्कृति को चोट पंहुचाने वाले तत्वों से सत्ता को कैसे दूर रखा जाए। जो लोग भारतीय संस्कृति को भी नुकसान पंहुचाकर अपनी राजनीति स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं वे लोग कहीं भूल से ही सही भारत की संप्रभूता के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे? यदि वे ऐसा कर रहे हैं तो उनको सावधान होने की जरूरत है। भारतीय संस्कृति जबतक जीवित रहेगी तभीतक इस देश में सभी धर्म के लोग भाईचारे के साथ रह सकेगें। अर्थात धर्मनिरपेक्षता के मूल तत्व में भारतीय संस्कृति छिपी हुई है जो हिन्दूधर्म के विशाल हृदय का सूचक माना सकता है ना कि संकीर्ण मानसिकता का ।जो लोग धर्मनिरपेक्षता को वोटबैंक की राजनीति से जोड़कर देखने का प्रयास कर रहें हैं वे अंततः उस सांप्रदाय को भले ही अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए पक्ष में कर ले, इसके दूरगामी राजनीति परिणाम देश की संप्रभूता को क्षति करने की दिशा में एक कदम ही माना जाएगा।

-लेखक एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक हैं। Date: 08/08/2013