भारत में सभी अल्पसंख्यकों को जो जिस जगह वे खुद को अल्पसंख्यक समझते हों चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू, जैन, सिख या क्रिश्चन आदि सभी संप्रदायों को उनके परिवार व अपने-अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा, भारतीय संविधान में प्रदान की गई है ना कि भारतीय संप्रभुता की असुरक्षा । धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हम देश की सुरक्षा से हम कोई समझौता नहीं करेंगें यह बात भारत का हर नागरिक चाहेगा । यदि वह ऐसा नहीं चाहता तो इसका सीधा सा अर्थ होगा वह व्यक्ति पाकिस्तानी है, अल्पसंख्यक नहीं ।
भारत में धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर राजनीतिज्ञों की बोलती उस समय बंद होती नजर आती है जब-जब देश में पाकिस्तानी समर्थक इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा सांप्रदायिकता का बीजारोपन किया जाता है। पिछले दिनों किश्तवार में जिसप्रकार मुसलमानों ने भारत के खिलाफ जहर उगला और देश विरोधी घटना को अंजाम दिया और इसे सांप्रदायिकता का चौला पहनाकर कश्मीर के मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला जी का इस बात के लेकर रोना कि इस दंगे में दो मुसलमानों की भी मौत हो गई, यह उनके ना सिर्फ विचारों का दर्शता है, भारत को चेतावनी भी दे रहा है ।
दरअसल यह कोई सांप्रदायिक दंगा था ही नहीं बल्की यह घटना मुसलमानों द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत भारतीयता में आस्था रखने वालों पर हमला था। ईद के दिन सामूहिक रूप से एकत्रित होकर मुसलमानों ने सरे आम भारत के प्रति वफादारों के सैकड़ों हिन्दू परिवार के करोबार व घरों को चन्द घंटों में ही आग के हवाले कर दिया प्रशासन सुरक्षा की व्यवस्था करने में ना सिर्फ नाकाम रही, केन्द्रीय हस्तक्षेप भी भाजपा की दखल के बाद हरकत में आई। इस घटना को किसी भी रूप में सांप्रदायिक दंगा नहीं कहा जा सकता। यह एक सुनियोजित षड़यंत्र है जो किश्तवार व उसके आस-पास के ईलाकों से अल्पसंख्यक हो चुके हिन्दू परिवारों को उनकी पुश्तैनी जगहों से बेदखल करने का प्रयास है। जिस प्रकार एक दशक पूर्व सन् 1990 में कश्मीर के कई हिस्सों से बड़ी संख्या में हिन्दू कश्मीरियों के साथ किया गया था।
किश्तवार की घटना कई प्रश्नों को एक साथ समेटे हुए हमें सोचने पर विवश तो किया ही है साथ ही पाकिस्तानी मुसलमानों ने भारतीय धर्मनिरपेक्षता को खुले रूप से चुनौती भी दी है। 1990 की घटना जिसके शिकार सैकड़ों हिन्दू पंडितों का परिवार आज भी अपने ही देश में धर्मनिरपेक्षता की तराजु में कहीं फिट नहीं बैठते। गुजरात के दंगों पर रोजना सुबह-शाम मुर्गो की तरह बांग देने वाले राजनीतिज्ञों ने एक दिन भी उनकी सुध लेने की नहीं सोची, यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जी भी उनको देखने नहीं गये। अपने ही घर से बेघर हुए कश्मीरी पंडितों की जो लोग सुघ लेने जाएंगे उन लोगों से भी कहीं मुसलमानों का वह तबका नाराज ना हो जाए जो देश में सांप्रदायिता की राजनीति कर रहें हैं। अर्थात यह बात स्पष्ट रूप से हमें समझने की है कि कहीं धर्मनिरपेक्षता सिर्फ मुसलमानों के हितों की रक्षा व उनके कट्टरपंथी सांप्रदायिक ताकतों के लिए एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने का हथकंडा तो नहीं बन गया ।
सेक्लुरिजम की राजनीति करने वाले दल ना सिर्फ देश की सुरक्षा के साथ सौदा कर रहे हैं ये लोग देश के साथ भी गद्दारी कर रहे हैं । जिस प्रकार किश्तवार की घटना पर धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने अपनी जुबानों पर ताला लगा रखा है, इनकी चुप्पी हमें इस तरफ भी संकेत करती है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ मुसलमानों की सुरक्षा, उनके आतंकवाद को संरक्षण, उनकी कट्टरपंथी नीतियों का समर्थन, और देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने के लिए ही प्रयोग में ली जा रही है। जिसे कोई भी देश प्रेमी किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है ।
भारत में सभी अल्पसंख्यकों को जो जिस जगह वे खुद को अल्पसंख्यक समझते हों चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू, जैन, सिख या क्रिश्चन आदि सभी संप्रदायों को उनके परिवार व अपने-अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा भारतीय संविधान में प्रदान की गई है ना कि भारतीय संप्रभुता की असुरक्षा। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हम देश की सुरक्षा से हम कोई समझौता नहीं करेंगें यह बात भारत का हर नागरिक चाहेगा । यदि वह ऐसा नहीं चाहता तो इसका सीधा सा अर्थ होगा वह व्यक्ति पाकिस्तानी है, अल्पसंख्यक नहीं । ऐसे तत्वों को भारत में भारतीय कानून के तहत किसी भी रूप में सुरक्षा नहीं दी जा सकती । यदि ऐसा किया जाता है तो यह भारत की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ माना जाना चाहिए ।
-लेखक एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक हैं।
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