सत्ता को बचाये रखना या सत्ता प्राप्त करने के लिए हम इस तरह के सांप्रदायिक हमलों को कबतक सहते रहेगें? किश्तवाड़ में पाक प्रयोजित इस सांप्रदायिक हमले की हमें एकजुट होकर विरोध करने की जरूरत है ना कि हर बात में गुजरात दंगों या अन्य घटनाओं से जोड़कर उनके मनोबल को मजबूती प्रदान करने की। देश की संसद, देश के सांसदों , राजनेताओं को खुलकर इस घटना का विरोध करना चाहिय। जिसप्रकार ये लोग एकजुट होकर गुजरात पर हमला करते नहीं थकते, काश! यही राजनेताओं के मुंह किश्तवाड़ के सांप्रदायिक हमले की गुंज सुनाई देती तो हम कुछ हद तक उनको धर्मनिरपेक्ष मान लेते, पर इनको देश से ज्यादा बोट बैंक की चिन्ता नजर आती है। तब यह प्रश्न जरूर उठता है कि हिन्दुओं की सुरक्षा कौन करेगा और जो हिन्दुओं के सुरक्षा की बात करेगा या करना चाहेगा क्या वह सांप्रदायिक बन जायेगा?
किश्तवाड़ में पिछले तीन दिनों जिसप्रकार एक विशेष समुदाय के लोगों को मौत के घाट सुलाया गया। यह इस बात की तरफ हमें सोचने को विवश करता है कि धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनने वाले लोगों की चुप्पी, ऐसा लगता है कि किसी विशेष समुदाय के देशद्रोही व सांप्रदायिक हरकतों के विरूद्ध ना बोलना इनकी लाचारी सी बन गई है। पाकिस्तानी हमारी सीमाओं आकर हमारे सैनिकों को मौत के घाट सुला जाता हैं। और हमारे देश की तथाकथित राजनैतिक पार्टियां कुछ इसप्रकार का सफाई देती नजर आती है कि जैसे वे भारत के नहीं पाकिस्तान की तरफ से बयान दे रहें हों । हर जगह वोटबैंक एक तमाशा हो गया हैं। देश की सुरक्षा से भी अब ये लोग समझौता करने में नहीं हिचकचाते। किस बेशर्मी के साथ संसद में एक ही बयान को तीन-तीन बार देकर देश को गुमराह करने का प्रयास ये किस साजिश का हिस्सा है इनके पीछे कौन से लोग शामिल थे उनके नकाब को उतारना जरूरी हो गया है। मुझे तो इस बात का दर्द हो रहा है देश के पत्रकार व बुद्धिजीवी वर्ग भी अपनी कलम को इस अंधकार में धकेल चुके हैं। मानो देश की सुरक्षा धर्मनिरपेंक्षता के सामने नपुंसक सी बन चुकी है।
आतंकवादी हमारे देश की संसद पर हमला करते हैं हम उनका पक्ष लेते नहीं थकते। पाकिस्तान हमारे जवानों का सर काट ले जाते हैं हम चुपचाप सह लेते हैं। पाकिस्तानी सीमाओं पर रात के अंधरे में हमारे जवानों को भूनकर चले जाते हैं हमारा विदेश व गृह मंत्रालय संयुक्त रूप से पाकिस्तान को बचाने की हरकतें करता है। कुल मिलाकर हमें यह मान लेना होगा कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर पाकिस्तानी समर्थकों ने हमारे देश पर एक प्रकार से सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिज्ञ हमला सा कर दिया है। और हम एक दूसरे को नीचा दिखाने में या अपनी सत्ता पर बचाने में लगे हैं।
जब कुछ लोग देश के भीतर हिन्दू सांप्रदायिकता का सवाल उठाते हैं तो उनको मुस्लिम सांप्रदायिकता के विरूद्ध बोलने में किस बात का डर सताता है? सांप्रदायिकता तो दोनों ही है। पर हमारे धर्मनिरपेक्षता के विद्वानों को हिन्दू सांप्रदायिकता से देश के टूटने व सांप्रदायिक दंगों का तो खतरा नजर आता है पर वहीं जब को मुस्लिम सांप्रदायिकता की बात या देश के विरूद्ध उठती हुई आवाज के तब इन राजनेताओं को देश पर कोई खतरा नहीं मंडराता नजर आता।
इस बात पर एक बात तो माननी ही होगी कि देश का मुसलमान एक साथ है। चुकीं जब ओबामा को पत्र लिखने की बात सामने आती है तो उस पत्र पर देश के अधिकांशतः मुस्लिम सांसदों और विधायकों ने अपने हस्ताक्षर किये थे। ये संकेत को देश भले ही आज ना भांप पा रहा हो। इसके परिणाम भविष्य में घातक सिद्ध होगें। किसी समुदाय के विरूद्ध हमें नहीं सोचना चाहिये यह बात सही है कि हर समुदाय में अच्छे-बुरे लोग होते हैं पर यहां तो उस जमात का एक बड़ा हिस्सा ही देश के विरूद्ध साजिश में लगा चुका है। पाक प्रायोजित षडयंत्र को हम अनदेखा करते हुए किसी विशेष समुदाय के बोट बैंक पाने या खुद को सत्ता में बनाये रखने के लिए उनका राजनैतिक प्रयोग करना एक प्रकार से देश के साथ गद्दारी देश के संविधान की आड़ में पाक प्रायोजित आतंकवाद को संरक्षण देना है।
सत्ता को बचाये रखना या सत्ता प्राप्त करने के लिए हम इस तरह के सांप्रदायिक हमलों को कबतक सहते रहेगें? किश्तवाड़ में पाक प्रयोजित इस सांप्रदायिक हमले की हमें एकजुट होकर विरोध करने की जरूरत है ना कि हर बात में गुजरात दंगों या अन्य घटनाओं से जोड़कर उनके मनोबल को मजबूती प्रदान करने की। देश की संसद, देश के सांसदों , राजनेताओं को खुलकर इस घटना का विरोध करना चाहिय। जिसप्रकार ये लोग एकजुट होकर गुजरात पर हमला करते नहीं थकते, काश! यही राजनेताओं के मुंह किश्तवाड़ के सांप्रदायिक हमले की गुंज सुनाई देती तो हम कुछ हद तक उनको धर्मनिरपेक्ष मान लेते, पर इनको देश से ज्यादा बोट बैंक की चिन्ता नजर आती है। तब यह प्रश्न जरूर उठता है कि हिन्दुओं की सुरक्षा कौन करेगा और जो हिन्दुओं के सुरक्षा की बात करेगा या करना चाहेगा क्या वह सांप्रदायिक बन जायेगा?
-लेखक एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक हैं।
सही चिंतन.शायद हर जिम्मेदार नागरिक की आवाज़ यही है.
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