जबतक भारतीय संस्कृति इस देश में कायम रहेगी तभी तक धर्मनिरपेक्षता इस देश में जीवित रह सकेगी, यही अंतिम सत्य है। जो लोग वोट बैंक की राजनीति करते हैं वे वोट बैंक की राजनीति करें पर साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रखें कि भारतीय संस्कृति को चोट पंहुचाने वाले तत्वों से सत्ता को कैसे दूर रखा जाए। जो लोग भारतीय संस्कृति को भी नूकसान पंहुचाकर अपनी राजनीति स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं वे लोग कहीं भूल से ही सही भारत की संप्रभूता के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे? यदि वे ऐसा कर रहे हैं तो उनको सावधान होने की जरूरत है।
पिछले एक दशक से भारत में धर्मनिरपेक्षता को लेकर लोगों के मन में शंकाएं होने लगी है कि जिसप्रकार देश के विभिन्न राजनैतिक दलों में एक विशेष सांप्रदाय के वोट बैंक को लेकर राजनीति की जा रही है कहीं आगे चलकर यही राजनीति देश की संप्रभूता के लिए घातक ना साबित हो जाए। भारतीय संविधान में सभी धर्मावलंबी को समान अधिकार दिया गया है ताकि वे अपने धर्मानुसार अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा करते हुए भारतीय भौगोलिक सीमा के अन्दर एक अच्छे नागरिक बनकर अपना जीवन यापन कर सकें। अर्थात जिन लोगों को भारतीय संविधान में विश्वास है उनको भारतीय संस्कृति में भी आस्था रखनी चाहिए चुंकि भारतीय संस्कृति ने जिस धर्मनिरपेक्षता की संरचना की है यदि हम उसकी भावना को ही समाप्त कर देगें तो इस संविधान की संरचना ही गलत हो जाएगी।
पिछले दिनों राष्ट्रीय राजनीति दल के एक प्रवक्ता ने इस बात की पूरजोर वकालत की कि भारत में ‘सेक्लुरिजम’ पर बहस हो जानी चाहिए। हाँ ! मैं भी इस बात का समर्थन करता हूँ कि इस बात पर देश में बहस होनी ही चाहिए ताकि आज की नई पीढ़ी को पता चल सके कि ‘‘धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा क्या है?’’ जिस प्रकार इन दिनों इसकी परिभाषा व्यक्त की जा रही है क्या वास्तव में यही धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप होना चाहिए हमें इस बात पर भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है। इससे पहले की हम धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा क्या हो पर चर्चा करें, हमें इसके उन पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति ही इस व्यवस्था की जनक मानी जाती है। जबकि अन्य धर्म या संस्कृति इस व्यवस्था को सिरे से नकारती रही है। भारत में जो मुसलमान धर्मनिरपेक्षता की वकालत कर खुद को भारतीय समझते हैं वही मुसलमान कश्मीर में हिन्दुओं के प्रति ना सिर्फ भेदभाव उनको विस्थापित करते समय मौन धारन कर लेते हैं । जो लोग देश की एकता व अखंडता के प्रति अपना दोहरा मापदंड रखते हैं वैसे ही लोग देश में धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते नजर आते हैं। जो लोग भारतीय संस्कृति को मटियामेट करने में आमदा हैं वैसे ही लोग धर्मनिरपेक्षता को भारतीय राजनीति का एक हथकंडा मानते हैं। इसके विपरीत जो लोग देश की एकता व अखंडता की रक्षा करना चाहते हैं वैसे लोग हमें सिर्फ इसलिए सांप्रदायिक नजर आतें हैं चुकि उसमें भारतीयता की खुशबू महकती है। जबकि धर्मनिरपेक्षता को जो लोग वोट बैंक का जरिया बना चुके हैं उनमें भारतीयता के प्रति संवेदना उस समय समाप्त नजर आती है जब उनको लगने लगता है कि उनके बयान से एक विशेष संप्रदायवर्ग नाराज हो सकता है। इसलिए वे गाहे-बगाहे हमेशा इस बात को ध्यान में रखते हैं कि उनके वोट बैंक को कोई क्षति न हो सके।
जब हम धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा पर विचार करते हैं तो हमें देश के विभाजन के पूर्व और बाद की स्थिति पर भी विचार करना होगा। जब देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ तो यह तय किया गया कि भारत में बचे हुए मुसलमान चुंकि वे अब देश में अल्पसंख्यक हो चुके हैं उनके जान-माल की सुरक्षा हमें देना हमारा फर्ज बनता है । जबकि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कोई भी ऐसा प्रस्ताव ग्रहित नहीं किया गया। अर्थात इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति जहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास करती नजर आती है वहीं पकिस्तानी संस्कृति में अल्पसंख्यकों के लिए कोई स्थान नहीं है। जिसके आंकड़े परिणाम सहित भी हमारे सामने है।
खैर! इस बहस को हम उस दिशा में नहीं ले जाना चाहते। धर्मनिरपेक्षता भारतीय संस्कृति की देन है। और जबतक भारतीय संस्कृति इस देश में कायम रहेगी तभी तक धर्मनिरपेक्षता इस देश में जीवित रह सकेगी, यही अंतिम सत्य है। जो लोग वोट बैंक की राजनीति करते हैं वे वोट बैंक की राजनीति करें पर साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रखें कि भारतीय संस्कृति को चोट पंहुचाने वाले तत्वों से सत्ता को कैसे दूर रखा जाए। जो लोग भारतीय संस्कृति को भी नुकसान पंहुचाकर अपनी राजनीति स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं वे लोग कहीं भूल से ही सही भारत की संप्रभूता के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे? यदि वे ऐसा कर रहे हैं तो उनको सावधान होने की जरूरत है। भारतीय संस्कृति जबतक जीवित रहेगी तभीतक इस देश में सभी धर्म के लोग भाईचारे के साथ रह सकेगें। अर्थात धर्मनिरपेक्षता के मूल तत्व में भारतीय संस्कृति छिपी हुई है जो हिन्दूधर्म के विशाल हृदय का सूचक माना सकता है ना कि संकीर्ण मानसिकता का ।जो लोग धर्मनिरपेक्षता को वोटबैंक की राजनीति से जोड़कर देखने का प्रयास कर रहें हैं वे अंततः उस सांप्रदाय को भले ही अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए पक्ष में कर ले, इसके दूरगामी राजनीति परिणाम देश की संप्रभूता को क्षति करने की दिशा में एक कदम ही माना जाएगा।
-लेखक एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक हैं।
Date: 08/08/2013
आपके एक एक शब्द से सहमत हूँ !!
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