बुधवार, 29 जून 2011

संपादक भी मुँह चुराकर भागे -शम्भु चौधरी


लोकपाल बिल पर सरकार इतनी ईमानदार दिखती है तो केन्द्रीय कानून मंत्री बिल में सुझाये गये सरकारी प्रवधानों की जानकारी प्रेस के माध्यम से जनता को दें और बताये कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जन आन्दोलन में किस तरह से वे भी जनता के साथ हैं। बजाय इसके गोलबंध की राजनीति करें। कल जिन संपादकों को प्रधानमंत्री की गुप्त दावात खाने मिली वे लोग जब बाहार आये तो मुँह छुपाते फिरे मानो किसी बदनाम महखाने से निकले हों कि कोई इनको देख न लें। देश आज नये युग की तरफ करवट बदल रहा है एक तरफ लोकतंत्र को बेचने वालों की जमात है तो दूसरी तरफ लाचार और बेबस आवाज। हमें अब तय करना है कि हमें किसका साथ देना है।


अब तो आपको यह बात साफ हो गई होगी कि मैंने पिछले लेख में समाचार पत्र व मीडिया पर यह आरोप क्यों लगाया कि - ‘‘कोई इनको लोकतंत्र का रक्षक कहे तो सुनने में भी अब शर्म आने लगी’’ कल कि घटना से अब तो आपको विश्वास हो गया होगा कि ये शेर की घाल में भेड़िये छुपें हैं जो पत्रकारिता की आड़ में सत्ता के सौदागर बन गये हैं आज देश में एक तरफ भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पंहुच गया है सत्ता पक्ष के मंत्रीगण, व्यापारी और दर्जनों अधिकारी लाखों की हेरा-फेरी में जेलों में बन्द हैं और देश के सबसे कमजोर भ्रष्टों के सरदार निर्लज प्रधानमंत्री संसद में बयान देते हैं कि ‘‘यह गठबंधन धर्म की मजबूरी है।’’ मजे की बात लोकपाल बिल का जो ड्राफ्ट सरकारी पक्ष ने तैयार किया है उनमें इन पर मुकद्दमा चलाने का कोई प्रवधान ही नहीं दिया गया है। मजे कि बात तो यह है कि सारा मामला संसद की प्रतिष्ठा से जोड़ कर या समानान्तर सरकार चलाने जैसी बातों में तो सांप्रदायिकता से जोड़ कर देश के पढ़े-लिखे समझदार संपादकों से राय ली जा रही है कि वे देश को किसी तरह बचायें अन्यथा सिविल सोसाइटी के चन्द लोग देश में संसद की मर्यादा को ही समाप्त कर देगें? भाई! किस बात की मर्यादा? क्या समाज क सदस्य संसद का रास्ता रोक रहें हैं या संसद के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रहें हैं? देश में संविधान बनाने का अधिकार जिनको प्राप्त है समाज के सदस्य सिर्फ उनकों ही तो अपनी बात कह रहें हैं। तो वे सांप्रदायिक कैसे हो गये? इसका अर्थ है कि संसद में सिर्फ वे ही लोग जा सकते हैं जो साम्प्रदायिक नहीं हो। ये वोट बैंक की राजनीति छोड़े कांग्रसी। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सीध-सीधी बात करें। अब वे नहीं मानते तो समाज के सदस्य संसद में तो जाकर चिल्ला तो नहीं सकते। संसद के बाहार ही अपनी बात कहेगें तो इसमें कौन सा अपराध हो गया? क्या देश की जनता को इतना भी अधिकार नहीं है कि वे जनता को यह बता सके कि लोकपाल बिल में जो बात जनता चाहती है वह नहीं बल्कि जनता को ही सजा देने का प्रवाधान उसमें है। लोकपाल बिल पर सरकार इतनी ईमानदार दिखती है तो केन्द्रीय कानून मंत्री बिल में सुझाये गये सरकारी प्रवधानों की जानकारी प्रेस के माध्यम से जनता को दें और बताये कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जन आन्दोलन में किस तरह से वे भी जनता के साथ हैं। बजाय इसके गोलबंध की राजनीति करें। कल जिन संपादकों को प्रधानमंत्री की गुप्त दावात खाने मिली वे लोग जब बाहार आये तो मुँह छुपाते फिरे मानो किसी बदनाम महखाने से निकले हों कि कोई इनको देख न लें। देश आज नये युग की तरफ करवट बदल रहा है एक तरफ लोकतंत्र को बेचने वालों की जमात है तो दूसरी तरफ लाचार और बेबस आवाज। हमें अब तय करना है कि हमें किसका साथ देना है।
Read More...
shambhuchoudhary.jagranjunction.com/

मंगलवार, 28 जून 2011

सरकार भी संसद से ऊपर नहीं - शम्भु चौधरी



आज सत्तापक्ष के 4-5 मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हवा खा रहें हैं ऐसे में जनता एक सीधा सा सवाल जानना चाहती है कि जिस भ्रष्टाचार की बात देश की जनता करना चाह रही है, क्या सरकार द्वारा सुझाये गये लोकपाल विधेयक में उसी बातों का उल्लेख है? यदि हाँ! तो सरकार साफ तौर पर उसका जिक्र करें न कि कभी सांप्रदायिकाता की आड़ लें तो कभी संसद की आड़ लेकर देश को गुमराह करने का काम करें।


भारत जब से आजाद हुआ इसके आजादी के मायने ही बदल गये। सांप्रदायिकता के नये-नये अर्थ शब्द कोश में भरने लगे। इसका सबसे ताजा उदाहरण है भ्रष्टाचार की बात करने वाले भी अब सांप्रदायिक तकतों से हाथ मिला लिये। कुछ दिन पहले बाबा रामदेव के लिए लाला कारपेट बीछाने वाली कांग्रेस को अचानक से एक ही दिन में सांप्रदायिक नजर आने लगे। अब अन्ना हजारे पर भी आरोप मढ़ दिया कि वे भ्रष्टाचार की लड़ाई में सांप्रदायिक ताकतों को साथ लेकर सरकार से लड़ाई कर रहे हैं। जब तक कांग्रेसियों का मन होगा और आप उनकी बात मानते रहेगें वो धर्मनिरपेक्ष नहीं तो सांप्रदायिक।
इस लेख को पढ़ने से पहले हम इस बात पर बहस शुरु करें कि हमें बात किस विषय पर करनी है? हमारी बातों का मुख्य मुद्दा क्या है? भ्रष्टाचार है कि सांप्रदायिकता।
सरकार जो जन लोकपाल बिल संसद के सदन में रखने जा रही है उसमें किन-किन बातों का उल्लेख सरकार करना चाहती है और कौन से मुद्दे को वो अलोकतांत्रिक मानती है? और किसे लोकतांत्रिक।
सरकार के जो बयान हमें पढ़ने और सुनने को मिल रहें हैं वे न सिर्फ तानाशाही बयान है बल्कि भ्रष्टाचार के मुद्दे की उन सभी बातों को सांप्रदायिकता के साथ जोड़ मुसलमानों के एक वर्ग को इस आन्दोलन से अलग-थलग रखना चाहती है। कांग्रेस एक तरफ असम का उदाहरण देती है तो दूसरी तरफ तामिलनाडू के चुनाव परिणामों को बताना भूल जाती है। एक तरफ देश में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दर्शाती है तो दूसरी तरफ अपंग जन लोकपाल बिल की वकालत करती है। एक तरफ विधेयक के प्रारूप पर चर्चा करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुला रही है तो दूसरी तरफ सिविल सोसाईटी के सदस्यों को सांप्रदाकिता से जोड़ कर देश को गुमराह करना चाहती है। भला हो भी क्यों नहीं? पिछले 30 सालों में देश के अन्दर धर्मनिपेक्षता के मायने काफी बदल गये। देश में बुद्धिजीवियों की एक बहुत बड़ी जमात पैदा हो गई जो देश को सांप्रदायिक ताकतों से बचाकर रखना चाहती है। ये वही है जो एक समय देश को गांधी परिवार से बचा कर रखना चाहती थी। सरकार चाहती है कि वे अपनी सभी बातों को सांप्रदायिकता की आड़ लेकर मना लें। भला हो भी क्यों नहीं हम जब अन्ना को तानाशाह के रूप में स्वीकार कर सकतें हैं तो सरकार के सभी बातों को जायज क्यों नहीं मान सकते। सिविल सोसाईटी के सदस्य क्या चाहतें हैं और इनके द्वारा सूझाये गये सुझावों को कौन संसद में कानून की मान्यता देगा? जब मान्यता देने वाले ही वे लोग है जो खुद को चुने हुए देश के प्रतिनिधि मानते हैं तो उनको इतना भय किस बात का हो गया कि वे 16 अगस्त के अनशन को संसद की चुनौती मान रहे हैं? जब सरकार अपने सूझाये गये बिल पर इतनी ईमानदार है तो बजाय बिल में सूझाये गये अपने पक्ष को मजबूती से रखने के समाज सदस्यों पर बयानबाजी करने की क्या जरूरत पड़ गई? जब सरकार खुद ही मानती है कि संसद से ऊपर कोई नहीं, तो इसमें यह भी जोड़ दें कि सरकार भी संसद से ऊपर नहीं है। जन लोकपाल का विधेयक संसद में सरकार लायेगी और गलत विधेयक का संसद के बाहर विरोध करना और उसके विरोध में जनता के बीच अपनी बातों को पंहुचाना जनता का लोकतांत्रिक अधिकार है। परन्तु सरकार शब्दों के प्रयोग से देश को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है। माना कि भारत की अदालतें शब्दों के बाजीगर को महत्व देती है पर यहाँ अदालत में बहस नहीं देश की संसद के भीतर सांसदगण अपना पक्ष रखेगें। देश की जनता से जुड़े कई सवाल इस लोकपाल बिल से जुड़ चुकें हैं। आज सत्तापक्ष के 4-5 मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हवा खा रहें हैं ऐसे में जनता एक सीधा सा सवाल जानना चाहती है कि जिस भ्रष्टाचार की बात देश की जनता करना चाह रही है, क्या सरकार द्वारा सुझाये गये लोकपाल विधेयक में उसी बातों का उल्लेख है? यदि हाँ! तो सरकार साफ तौर पर उसका जिक्र करें न कि कभी सांप्रदायिकाता की आड़ लें तो कभी संसद की आड़ लेकर देश को गुमराह करने का काम करें।

सोमवार, 27 जून 2011

व्यंग्यः ओटने लगे कपास..- शम्भु चौधरी



भारत में राजनीति के श्रीगणेश ही होवेतानी भ्रष्टाचार से और अन्ना कहतबानी की राजनीति में जै लोगण बाड़े उनको पहले लोकपाल के दायरे में लावा। भईया ईंइ..कैसे होई? आइरे बाबा! फिर तो अनर्थ हो जाई..। लोकसभा और विधानसभा में अल्पमत के सरकार पर तो बड़ा जूर्म न हो जाई.. सोचन तानी कि हमनी के दिमाग का फितुर सोचन में लाग ग्यैल। सरकार जै भ्रष्टाचार के बात करतानी जनता से तो उकरो कोने ताल मेल नैईखे। अब तुहू लो पढ़ कि सरकार जन लोकपाल बिल के बीलवा में कै-कै सजाए मौत दे रहल है बा और काके-काके सजाए जाम। एक दो पेग हमनियों को भेज देते घुस में तो हमरी कलमवा भी मस्त होकर बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी के जम के लताड़ देत। साली दारू पिये बिना चलबे नहीं करत। अब जै दारू सप्लाई करै सके सै कै गुनगान तो होके ही चाही न। एईमें भ्रष्टाचार के कौन बात बा। बाबा रामदेव कै ही देखो अब बोली के धार बदल देन बानी। सोचन लागल कि एई..ई का जूल्म करदेलम कि सरकावा के कुत्तण उक..रे..पण ही भौंखन लागले। दो-चार रोटी फैकन ही पड़ी नहीं तो चुप कराये बड़ा मुश्किल हो ग्यैल। हमनी के एक कहानी सुनाये के बड़ी देर से मनवा झटपटा रहैल सुनो-
दो चोर को पकड़ कर सिपाही राजा के पास ले गये। राजा ने दांेनो से सवाल किया तुमने चोरी क्यों की। एक ने कहा- ‘‘हजूर मैंने नहीं इसने की है।’’ दूसरे ने कहा- ‘‘नहीं हजूर इसने ही की है ये झूठ बोल रहा है।’’ राजा ने सिपाही से पूछा- ‘‘तुम बताओ कि इस दोनों में से किसने चोरी की है?’’ सिपाही ने जबाब दिया कि हमको तो उस व्यापारी ने कहा कि ये दोनों चोर है सो पकड़ लिया और आपके सामने पेश कर दिया। राजा ने चोर से दोबारा प्रश्न किया क्या यह सिपाही सच बोल रहा है? पहले वाले चोर ने कहा - नहीं जहांपनाह इसने व्यापारी से रिश्वत ली है मैंने देखा है अपनी आंखों से। दूसरे ने भी तुरन्त अपने दोस्त की बात में हाँ में हाँ मिला दी। राजा ने उस व्यापारी को बुला भेजा। व्यापारी भागता-भगता दरबार में हाजीर हुआ। राजा ने उससे सवाल किया कि तुमने क्या सिपाही को रिश्वत दी थी चोर को पकड़ने के लिए? व्यापारी मन ही मन सोचा कि राजा को सबकुछ सच-सच बता देगा उसे ही मौत की सजा हो जायेगी। सो उसने बड़ी चतुराई से जबाब पेश किया कि ये दोनों चोर रात को मेरे घर में घुस आये थे। मैं और मेरी पत्नी ने मिलकर दोनों चोर को पकड़ सिपाही के हवाले कर दिया। राजा ने उनकी पत्नी को भी दरबार में हाजिर होने का फरमान जारी कर दिया। इधर दोंनो चोर और सिपाही एक हो गये सिपाही को लगा कि कहिं उसकी ही पोल न खुल जाए सो खुद बचाव की मुद्रा में आ गया। इस अवसर पर उसे चोर का साथ लेना जरूरी हो गया। तीनों ने मिलकर यह योजना बनाई कि किसी प्रकार साहुकार को ही झूठे आरोप में फंसा दिया जाए तो तीनों राजा की नजर से बच जायेगें। पत्नी के आते ही व्यापारी से रात की घटना राजा को बताने को कही। पत्नी ने व्यापार से बोली थारो दिमाग पगला ग्यो कै? रात न तो किमी कोनी होयो। तब राजा ने पूछा कि ये सिपाही तब इन दोनों का किधर से पकड़ा। पत्नी ने पलटते ही जबाब दिया - ‘‘म्हाने कै पतो’’ म तो सोई’री थी। राजा ने दोनों चोर के छोड़ किया। सिपाही को हिदायत दी की आगे से चोर पकड़ने से पहले इस बात की जाँच-पड़ताल कर लें कि वह सच में ही चोर है। व्यापारी को झूठ-मूठ सरकारी कर्मचारियों को परेशान करने के जूर्म में 5 कोड़े की सजा सुना दी। भाई इस लोकपाल बिल में भी कुछ ऐसे ही प्रावधान बना दिये गये हैं कि अपराधी को पकड़ाने वाला शत-प्रतिशत झूठे मुकद्दमें से बरी हो जायेगें और सरकारी खर्च पर उस नेक इंसान को कोर्ट के चक्कर जिन्दगी भर लगाने पड़ेगें। गए थे राम भजन को ओटने लगे कपास.... इसे कहते हैं मति.मति का फेर। अब थे ही सोचे ईसा बिल ने लाकर थे कुण सो अक्लमंदी को काम करोगा। अन्ना हजारे की तो मती खराब होगी। सागे-सागे देश की भी। भया भ्रष्टाचार खतम करने के लिए भ्रष्ट सरकार से उम्मीद करक ही पगलामी कर रहा हो।
अगला व्यंग्य लेख "भ्रष्टाचार की आड़ में सांप्रदायिकता ण बढ़ाव दे रहा है अन्ना जी।"

रविवार, 26 जून 2011

जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल


HIGHLIGHTS

  • सरकारी लोकपाल कानून में कलेक्टर, पुलिस, राशन, अस्पताल, शिक्षा, सड़क, उद्योग, पंचायत, नगर पालिका, वन विभाग, सिंचाई विभाग, लाईसेंस, पेंशन, रोड़वेज़ जैसे तमाम विभागों के भ्रष्टाचार को जांच से बाहर रखा गया है।
    २ जी, कॉमनवेल्थ, आदर्श जैसे घोटालें इसके बावजूद चलते रहेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री इसकी जाँच से बाहर रहेंगे और मंत्री या अफसरों के खिलाफ जाँच बड़ी मुश्किल से होगी।
  • सरकारी लोकपाल कानून के दायरे में किसी ज़िले में केवल केन्द्र सरकार के विभागों के डायरेक्टर रैंक के अधिकारी आएंगे। यानि जिस ज़िले में डाक, रेलवे, इन्कम टैक्स, टेलीकॉम आदि विभाग का कोई दफ्तर यदि हुआ तो लोकपाल केवल उसके सबसे बड़े अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा। उसके अलावा केन्द्र या राज्य सरकार का कोई भी कर्मचारी इस कानून के दायरे में नहीं आएगा।
  • पूरे देश में यह कानून केन्द्र सरकार के कुल 65000 सीनियर अधिकारियों पर लागू होगा। इसके अलावा पूरे देश के करीब 4.5 लाख एनजीओ और असंख्य गैर पंजीकृत समूह (बड़े बड़े आन्दोलनों से लेकर शहरों गांवो के छोटे छोटे युवा समूह तक) इस कानून की जांच के दायरे में होंगे।
  • सरकारी लोकपाल कानून में भ्रष्टाचार के दोषी के लिए न्यूनतम सज़ा 6 महीने की जेल है। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले को (शिकायत गलत पाए जाने पर) मिलने वाली सज़ा दो साल है।
    यदि कोई सरकारी कर्मचारी, अपने खिलाफ शिकायत करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा चलाना चाहेगा तो वकील की फीस व अन्य खर्चे सरकार भरेगी।
  • बईमान, नकारा आदि सरकार के करीबी लोग लोकपाल बनकर बैठ जायेगे।
      मुद्दे : 1. प्रधानमंत्री
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर।
    • टिप्पणी: आज की व्यवस्था में प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत की जा सकती है। सरकार चाहती है कि इसकी जांच निष्पक्ष और स्वायत्त लोकपाल की जगह प्रधानमंत्री के अधीन आने वाली सीबीआई ही करे।

      मुद्दे : 2. न्यायपालिका
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के पास न्यायपालिका के खिलाफ भष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर
    • टिप्पणी: सरकार इसे ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में लाना चाहती है। इस बिल के मुताबिक किसी जज के भ्रष्टाचार की जांच की इजाज़त तीन सदस्यीय पैनल देगा (जिसमें से दो उसी अदालत से वर्तमान जज होंगे और एक उसी अदालत के रिटायर मुख्य न्यायधीश होंगे।)ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में बहुत सी और खामियां हैं। हमें न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को इसके दायरे में लाने पर कोई आपत्ति नही है बशर्ते कि यह सख्त हो और लोकपाल के साथ साथ बनाया जाए। न्यायपालिका के भ्रष्टाचार से मुक्ति को आगे के लिए लटकाना ठीक नहीं है।

      मुद्दे : 3. सांसद
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अगर किसी सांसद पर रिश्वत लेकर संसद में वोट देने या सवाल पूछने के आरोप लगते हैं तो लोकपाल के पास उसकी जांच करने का अधिकार होना चाहिए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार ने इसे लोकपाल के दायरे से बाहर रखा है।
    • टिप्पणी: रिश्वत लेकर संसद में वोट डालने या सवाल उठाने का काम किसी भी लोकतन्त्र की नींव हिला सकता है। इतने संगीन भ्रष्ट आचरण को निष्पक्ष जांच के दायरे से बाहर रखकर सरकार सांसदों को संसद में रिश्वत लेकर बोलने का लाईसेंस देकर उन्हें संरक्षण प्रदान करना चाहती है।

      मुद्दे : 4. जनता की आम शिकायतों का निवारण
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: यदि कोई अधिकारी सिटीज़न चार्टर में निर्धारित समय सीमा में जनता का काम पूरा नहीं करता है तो लोकपाल उसके ऊपर ज़ुर्माना लगाएगा और भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाएगा।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सिटीज़न चार्टर का उल्लंघन करने वाले अधिकारी पर ज़ुर्माने का कोई प्रावधान नहीं। अत: सिटीज़न चार्टर की समय सीमा सिर्फ कागज़ पर लिखने के लिए होगी।
    • टिप्पणी: 23 मई की बैठक में सरकार ने हमारी ये मांग स्वीकार कर ली थी लेकिन यह दुर्भाग्यजनक है कि सरकार अपनी बात से पलट गई।

      मुद्दे : 5. सीबीआई
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में मिला देना चाहिए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार सीबीआई को अपने हाथ में रखना चाहती है।
    • टिप्पणी: केन्द्र सरकारें सीबीआई का दुरुपयोग विपक्षी दलों और उनकी राज्य सरकारों के खिलाफ करती रही हैं। सरकार ने सीबीआई को सूचना अधिकार के दायरे से भी निकाल लिया है जिससे इस संस्था में भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। जब तक सीबीआई सरकार के अधीन रहेगी इसी तरह भ्रष्ट बनी रहेगी।

      मुद्दे : 6. लोकपाल के सदस्यों का चयन
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: . एक व्यापक आधार वाली चयन समिति जिसमें दो राजनेता, 4 जज और 2 संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख शामिल हैं।
      2. चयन समिति के लिए सम्भावित उम्मीदवारों की सूची बनाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं के अवकाशप्राप्त प्रमुखों वाली एक सर्च कमेटी जो चयन समिति से स्वतन्त्र होगी। 3. चयन की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और जनभागीदारी वाली होगी।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: 1. सरकारी बिल में दस सदस्यों वाली चयन समिति में से पांच लोग सत्ता पक्ष से होंगे, कुल मिलाकर 6 राजनेता होंगे। इससे यह तय है कि लोकपाल सदस्य पद पर बेईमान, पक्षपाती और कमज़ोर लोग ही पहुंच पाएंगे।
      2. सर्च कमेटी बनाने का काम चयन समिति करेगी अत: यह पूरी तरह चयन समिति के अनुसार काम करेगी।
      3. चयन की कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं यह पूरी तरह चयन समिति पर निर्भर करेगी।
    • टिप्पणी: सरकार के प्रस्ताव में साफ है कि सरकार जिसे चाहे लोकपाल सदस्य और अध्यक्ष बना सकेगी। आश्चर्यजनक है कि सरकार 7 मई की बैठक में चयन समिति के स्वरूप और चयन की प्रक्रिया पर सहमत हो गई थी। केवल सर्च कमेटी में किसे होना इस मुद्दे पर असहमति थी। लेकिन सरकार आश्चर्यजनक रूप से अपनी बात से पलट गई है।

      मुद्दे : 7. लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह होगा?
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: देश के आम लोगों के प्रति। कोई भी नागरिक सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर लोकपाल को हटाने की मांग कर सकता है।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार के प्रति। केवल सरकार ही लोकपाल को हटाने की मांग कर सकती है।
    • टिप्पणी: लोकपाल के चयन और उसे हटाने की ताकत सरकार के हाथ में होने से यह सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर ही रह जाएगा। इसका भविष्य उन्हीं सीनियर अफसरों के हाथों में होगा जिसके खिलाफ इसे जांच करनी है। यह अपने आप में विरोधभासी है।

      मुद्दे : 8. लोकपाल के कर्मचारियों की निष्ठा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें सुनने का काम एक स्वायत्त व्यवस्था
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल खुद अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ जांच करेगा। इससे उसके काम में ज़बर्दस्त विरोधाभास पैदा होगा।
    • टिप्पणी: सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल या तो स्वयं के प्रति जवाबदेह होगा या फिर सरकार के प्रति। हम इसे देश के आम लोगों के प्रति जवाबदेह बनाना चाहते हैं।

      मुद्दे : 9. जांच का तरीका
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल द्वारा जांच करने का तरीका सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार वही होगा जो किसी अपराध के मामले में होता है। शुरुआती जांच के बाद एक एफ.आई.आर. दर्ज होगी। जांच के बाद मामला अदालत के सामने रखा जाएगा जहां इस पर सुनवाई होगी।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सरकार सीआरपीसी को बदल रही है। आरोपी को विशेष संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। शुरुआती जांच के बाद तमाम सबूत आरोपी को दिखाए जाएंगे और उससे पूछा जाएगा कि उसके खिलाफ एफ.आई.आर क्यों न दर्ज की जाए। जांच पूरी होने के बाद, एक बार फिर सारे सबूत उसके सामने रखे जाएंगे और सुनवाई करके उससे पुछा जाएगा कि उसके खिलाफ मुकदमा क्यों न चलाया जाए। जांच के दौरान अगर किसी और व्यक्ति के खिलाफ भी जांच शुरू की जानी है तो उसे भी अब तक के तमाम सबूत दिखाकर उसकी सुनवाई की जाएगी।
    • टिप्पणी: सरकार ने जांच प्रक्रिया को पूरा का पूरा मज़ाक बना कर रख दिया है। यदि आरोपियों को हर स्तर पर इस तरह सबूत दिखाए गए तो इससे न सिर्फ उन्हें बाकी के सबूत मिटाने में मदद मिलेगी बल्कि उनके खिलाफ गवाही देने वालों एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की जान भी खतरे में पड़ जाएगी। जांच का ऐसा अनोखा तरीका दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता। इससे हरेक मामले को शुरू में ही दफना दिया जाएगा।

      मुद्दे : 10. निचले स्तर के अधिकारी
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: भ्रष्टाचार निरोधी कानून में लोकसेवक की परिभाषा में शामिल सभी लोग इसके दायरे में आएंगे। जिसमें निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसमें केवल केन्द्र सरकार के क्लास-1 अधिकारियों को ही शामिल किया जा रहा है।
    • टिप्पणी: निचले स्तर की नौकरशाही को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की सरकार की मंशा समझ से परे है। इसका कारण हो सकता है कि सरकार सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखना चाहती है। क्योंकि अगर सभी कर्मचारी लोकपाल के अधीन आ जाएंगे तो सरकार के पास सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखने का कोई आधार नहीं बचेगा।

      मुद्दे : 11. लोकायुक्ता
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों का गठन एक ही कानून बनाकर किया जाए।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इस कानून से केवल केन्द्र में लोकपाल का गठन होगा।
    • टिप्पणी: प्रणब मुखर्जी के अनुसार कुछ मुख्यमन्त्रियों ने इस कानून के तहत लोकायुक्तों के गठन पर आपत्ति जताई है। लेकिन उन्हें याद दिलाया गया कि सूचना के अधिकार के एक कानून के तहत ही केन्द्र और राज्यों में एक साथ सूचना आयोगों का गठन हुआ था तो इसका कोई जवाब वे नहीं देते।

      मुद्दे : 12. भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल भ्रष्टाचार उजागर करने वालों, गवाहों और भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों को सुरक्षा मुहैया करायेगा
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है
    • टिप्पणी: सरकार का कहना है कि भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा के लिए अलग से क़ानून बनाया जा रहा है। लेकिन वो क़ानून इतना कमजोर है कि पिछले महीने संसद की स्टैण्डिंग कमेटी ने भी इसे बेकार बताया है। इस कमेटी की अध्यक्ष जयन्ती नटराजन हैं। लोकपाल बिल की संयुक्त ड्राफ्टिंग कमेटी की 23 मई की बैठक में यह तय किया गया था कि लोकपाल को एक अलग क़ानून के तहत भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जायेगी और उस क़ानून पर चर्चा और उसमें सुधार इसी कमेटी में किया जायेगा। लेकिन यह नहीं किया गया।

      मुद्दे : 13. उच्च न्यायालयों में स्पेशल बेंच
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: सभी उच्च न्यायालयों में भ्रष्टाचार के मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच बनाये जाएंगे
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इसका प्रावधान नहीं है
    • टिप्पणी: एक अध्ययन के अनुसार भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की सुनवाई पूरी होने में 25 साल लगते हैं। अब समय आ गया है कि इसका समाधान निकाला जाये।

      मुद्दे : 14. सीआरपीसी
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई पूरी होने में कोर्ट में इतना समय क्यों लगता है और क्यों हमारी जांच एजेंसियां इस तरह के मामले हार जाती हैं? इस तरह के पुराने अनुभवों के आधार पर और हर मामलें लगातार स्टे लेने से बचने के लिए सीआरपीसी के कुछ प्रावधानों में बदलाव की बात कही गई है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: नहीं शामिल किया गया है
    • टिप्पणी: No Comments

      मुद्दे : 15. भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों का निलम्बन
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: जांच पूरी होने के बाद भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ कोर्ट में मुक़दमा दायर करने के साथ साथ लोकपाल की एक बेंच खुली सुनवाई करते हुए उस अधिकारी को नौकारी से निकालने का निर्णय दे सकती है।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: मंत्री यह तय करेंगे कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकाला जाये या नहीं। देखा यह गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में मंत्री भ्रष्टाचार का लाभ उठा रहे होते हैं, खास तौर पे जब बडे़ अधिकारी इसमें शामिल हों, ऐसी स्थिति में पुराने अनुभव बताते है कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकालने की जगह मंत्री उसे सम्मानित करते हैं।
    • टिप्पणी: भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को नौकरी से हटाने का अधिकार लोकपाल को दिया जाना चाहिए ना कि उसी विभाग के मंत्री को।

      मुद्दे : 16. भ्रष्टाचार करने वालों के लिए दण्ड
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अधिकतम आजीवन कारावास बडे़ अधिकारियों को अधिक सजा अगर दोषी उद्योगपति हो तो अधिकतम जुर्माना लगाया जायेगा अगर किसी उद्योगपति को एक बार सजा हो जाती है तो उसे भविष्य में हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया जायेगा
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इनमें से कोई नहीं स्वीकार किया गया। केवल अधिकतम सजा 7 से बढ़ा कर 10 साल कर दी
    • टिप्पणी: No Comments

      मुद्दे : 17. वित्तीय स्वतन्त्रता
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के 11 सदस्य यह तय करेंगे कि उन्हें कितना बजट चाहिए
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: वित्त मन्त्रालय यह तय करेगा कि लोकपाल को कितना बजट दिया जाये
    • टिप्पणी: यह लोकपाल की वित्तीय स्वतन्त्रता से बड़ा समझौता है

      मुद्दे : 18. भविष्य में होने वाले नुकासन को रोकना
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: अगर लोकपाल के समक्ष वर्तमान में चल रहे किसी प्रोजेक्ट से सम्बंधित भ्रष्टाचार का कोई मामला आता है तो लोकपाल की यह जिम्मेदारी होगी कि वो भ्रष्टाचार रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे। ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने पर लोकपाल उच्च न्यायालये से आदेश भी प्राप्त कर सकता है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है।
    • टिप्पणी: 2 जी घोटाले के सम्बन्ध् में यह कहा जाता है कि जब इसकी प्रक्रिया चल रही थी उस समय ही इससे सम्बंधित जानकरियां बाहर आ गई थीं। क्या कुछ एजेंसियों की यह जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि इस तरह के मामलों में जब भ्रष्टाचार चल रहा था तभी रोकने के लिए कार्रवाई करें ना कि बाद में लोगों को सजा दी जाए।

      मुद्दे : 19. फोन टैपिंग
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल की बेंच फोन टैपिंग का आदेश दे सकती है
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: गृह सचिव अनुमति देंगे
    • टिप्पणी: गृह सचिव उन्हीं लोगों के नियन्त्रण में काम करते है जिनके खिलाफ कार्रवाई करनी होती है। इससे जांच करने का कोई फायदा नहीं होगा।

      मुद्दे : 20. अधिकारों का बटवारा
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: लोकपाल के सदस्य केवल बड़े अधिकारियों और नेताओं या बड़े स्तर पर हुए भ्रष्टाचार के मामलों की हीं सुनवाई करेंगे। बाकी मामलों की जांच लोकपाल के अन्दर के अधिकारी करेंगे।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: सभी तरह के काम केवल लोकपाल के 11 सदस्य ही करेंगे। वास्वत में अधिकारों का कोई बटवारा ही नहीं है।
    • टिप्पणी: इससे यह तय है कि लोकपाल आने से पहले ही समाप्त हो जायेगा। केवल 11 सदस्य सभी मामलों पर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। कुछ ही समय में शिकायतों के बोझ से लोकपाल दब जायेगा।

      मुद्दे : 21. एनजीओ
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: केवल सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही दायरे में
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: छोटे, बड़े सभी तरह के एनजीओ और संगठन होंगे
    • टिप्पणी: भ्रष्टाचार के आन्दोलनों और गैर सरकारी संगठनों को दबाने का नया तरीका है

      मुद्दे : 22. फालतू और निराधार शिकायतें
    • जनलोकपाल के प्रस्ताव: किसी तरह की कैद नहीं केवल जुर्मानें का प्रावधान। लोकपाल यह तय करेंगे कि कोई शिकायत फालतू और निराधार है या नहीं।
    • सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव: 2 से 5 साल तक की कैद और जुर्माना। आरोपी शिकायतकर्ता के खिलाफ कोर्ट में शिकायत दायर कर सकता है। दिलचस्प बात यह है कि आरोपी को कोर्ट में केस करने के लिए वकील और उस पर होने वाले सभी खर्चे सरकार वहन करेगी। साथ ही शिकायतकर्ता को आरोपी को क्षतिपूर्ति भी देनी पड़ सकती है।
    • टिप्पणी: इससे अरोपी अधिकारियों को एक हथियार मिल जायेगा जिससे वो शिकायतकर्ता को धमका सकते हैं। हर मामले में वो शिकायतकर्ताओं के खिलाफ कोर्ट केस दायर कर देंगे जिससे कोई भी भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पायेगा। एक और दिलचस्प बात यह है कि भ्रष्टाचार साबित होने पर न्यूनतम कैद 6 महीने की है, लेकिन गलत शिकायत करने पर 2 साल की कैद होगी।
  • शनिवार, 25 जून 2011

    हमारी मदद करें...



    भ्रष्टमुक्त भारत, सुन्दर भारत, शक्तिशाली भारत की लड़ाई में आयें अपनी आहुति हम मिलकर अर्पित करें।
    हमें 16 अगस्त’2011 से भारत के नव निर्माण हेतु क्या-क्या तैयारी करनी है।
    क्या करें और क्या न करें।
    1. भ्रष्टमुक्त भारत, सुन्दर भारत, शक्तिशाली भारत की लड़ाई लड़ने के लिये खुद का और दूसरों का मानस बनायें।
    2. छोटी-छोटी टीम बनायें और अनशन, धरना, सड़क मार्च, केंडल मार्च करें। जेल भरो अभियान के लिए तैयारी रखें।
    3. सभी जिला पंचायतों में महामहीम राष्ट्रपति जी के नाम से अपना एक ज्ञापन ‘‘भ्रष्टमुक्त भारत, सुन्दर भारत, शक्तिशाली भारत’’ के नव निर्माण के प्रति अपनी वचनबद्धता दर्शाते हुए ज्ञापन जमा दें और इसकी एक-एक प्रति निम्न पतों पर भी भेजें-
    1. Shri Anna Hazare "Iac"
    India Against Corruption
    A-119, Kaushambhi,
    Ghaziabad - 201010
    Utter Predesh
    2. Sri Shambhu Choudhary "Iac"
    India Against Corruption-IT Division
    FD-453/2, Salt Lake City,
    Kolkata-700106.

    4. अपने नाम के साथ "Iac" OR "IAC" (India Against Corruption) Likes Shambhu Choudhary Iac or IAC को जोड़ दें ताकी हमारी ताकत का अंदाज सरकार को हो सके।
    5. जगह-जगह बेनर’स, "IAC" (India Against Corruption) के लोगो का प्रयोग करें। छोटे स्टीकर बना कर अपने डाक लिफाफे पर चिपकावें या अपनी संस्थान के लिफाफे ही छपवा लें। "IAC" (India Against Corruption) के लोगो का प्रयोग अपने Walls, Blogs पर करें।
    6. बच्चों के साथ मिलकर लेख, कविता व चित्र प्रतियोगिता करायें ‘‘ कैसा हो मेरे सपने का भारत’’ विषय देवें।
    7. रोजना कम से कम एक कार्य जो आप लें सकते हैं करें। इस योजना के दस नये सदस्य बनाकर एक पूल का निर्माण करें। महिलाओं की भागीदारी के साथ कार्य को इंजाम दें।
    8. कुछ भी लिखें, कहें या आन्दोलन करें उसमें संयम जरूर से बरते। किसी भी प्रकार की हिंसात्मक कार्य को बढ़ावा न दें।
    9. सूचना आदान-प्रदान हेतु पूल तैयार करें ताकी कम समय में ही दिल्ली से लेकर कन्याकुमारी तक हमलोगों की सूचना का प्रसार बैगर किसी मीडिया के सहारे हो सके।
    10. भारत के नव निर्माण और भ्रष्टाचार के खिलाफ जन समर्थन जुटाने के लिये हिन्दी भाषा में लिखे लेखों को अन्य भाषा में करवा कर छपवायें। सूचना को अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें।

    शुक्रवार, 24 जून 2011

    लोकतंत्र के प्रहरी - शम्भु चौधरी



    चाळो केंद्रीय भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री या बात तो कबूल करी कि वे समाज का सदस्यावां साथे कुछ मुद्दा म अभी भी असहमत है। यानी कि बिना के ही मुंडा से आ बात निकली कि वे ‘‘कुछ बिंदुओं पर हम असहमत होने के लिए सहमत हो गए हैं।’’ आ बात पढ़ मेरो तो माथो ही ठिनकगो। भ्रष्टाचार का मुख्य-मुख्य जो स्त्रोत हा सबने वे बिल से हठा दिया या जान संगळा का पौ-बारह हो गया। सारा भारत में दीपावली मनाने को एलान कर दियो। कई लोग राजना कहता कि दिल्ली भ्रष्टलोगां की नगरी है दिल्ली के संसद के शीतकालिन सभागार में जो नये-नये विचार पैदा होते हैं वह तो बंगाल में भी नहीं हो सकते। बंगाल वाले को बड़ा गुमान था ‘‘बंगाल जो आज सोचता है, भारत उसे कल सोचता है।’’ अब देखो आपने कभी सपने में भी यह सोचा था इतना तगड़ा बयान सरकार की तरफ से आयेगा कि लोग सोचते ही रह जायेगें कि आखिर जब सरकार सहमत हो चुकी तो फिर विवाद का प्रश्न ही कहाँ बचा। समाज के सदस्यों को तो सिर्फ धमकी देना आता है। देश के तमाम अखबार जिनको सरकारी रिश्वत बतौर विज्ञापन मिलते हैं उन सबको सूचना भेज दी गई कि वे सरकार का पक्ष मजबूती के साथ जनता के सामने रखें और जो सरकार को अधिक खुश यानी अन्ना के खिलाफ सरकारी पक्ष का साथ देगें उनका कोटा डबल कर दिया जायेगा। अब आप ही सोचिये घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या? खासकर उन समाचार पत्रों को तो सोचना ही पड़ता है जो डरपोक किस्म के प्रजाति के प्राणी हैं। जिनको समाचार की भूख से ज्यादा विज्ञापनों की भूख रहती है। जिस पर सरकारी विज्ञापन न मिले तो इनके प्राण पखेरू ही उड़ जायेगें। अखबार हालां कि या हालत देख मुझे कबीरदास की दो लाइनें याद आने लगी-


    माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
    एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥


    रोजना सरकार को भला बुरा कहने वाले मीडिया और समाचार वाले भ्रष्टाचार बिल पर इस कदर चुहे की तरह बिल में जा छुपे कि कोई इनको लोकतंत्र का रक्षक कहे तो सुनने में भी अब शर्म आने लगी। बेचारे कबीरदास ने भी नहीं कल्पना की होगी की उनके दोहे का मट्टी से भी बुरा हाल कर देगें ये राजनीतिज्ञों के दलाल जो खुद को लोकतंत्र का प्रहरी बताते हैं और आम जनता के पीठ पर ही कलम की धार से वार करने में नहीं चुकते। इस लेख के माध्यम से एक सीध सा सवाल सबसे करना चाहता हूँ देश में पिछले पांच-दस सालों में भ्रष्टाचार के जो मामले मीडिया और समाचार पत्र वालों न मिलकर उजागर किये वे सभी के सभी किस समूह से जुड़े हुए थे? जिसमें सत्ता पक्ष से जुड़े कितने थे और अन्य मामाले जिसमें सरकारी अधिकारियों के कितने थे? चाहे वो राज्य सत्ताधारियों के मामले रहे हों या केंद्र सत्ताधारी के हों। सरकार किसकी रही हो या नहीं रही हो। देश के तमाम राजनैतिज्ञों को खुली चुनोती देता हूँ कि वे इस बात के आंकड़े प्रस्तुत करें कि पिछले 10 सालों में भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आयें हैं उनमें कोई भी सांसद, विधायक, मंत्री का नाम शामिल नहीं है और जो भी मामले सामने आये हैं वे सभी झूठे और मनगढ़ंत मामले हैं जिनमें भ्रष्टाचार का कोई मामला बनता ही नहीं। आपके उत्तर का मुझे बेसब्री से इंतजार रहेगा।

  • Q-1: हाँ! उन समाचार वाले से भी एक प्रश्न करता हूँ- सरकार, अन्ना हजारे की बात को जरा भी तबज्जू न दें पर सरकार जिस बिल को संसद में लाना चाहती है उन बिल के दायरे में इन भ्रष्टाचारी लोगों को होना जरूरी हो कि नहीं? जो इस बात का जबाब दे सकेगा उनकी गुलामी जिंदगी भर करूँगा, यह मेरा वादा रहा। प्रश्न - "देश के तमाम राजनैतिज्ञों/समाचार वाले को खुली चुनोती देता हूँ कि वे इस बात के आंकड़े प्रस्तुत करें कि पिछले 10 सालों में भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आयें हैं उनमें कोई भी सांसद, विधायक, मंत्री का नाम शामिल नहीं है और जो भी मामले सामने आये हैं वे सभी झूठे और मनगढ़ंत मामले हैं जिनमें भ्रष्टाचार का कोई मामला बनता ही नहीं।"

  • Q-2: दूसरा प्रश्न देश के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग विशेष से भी करना चाहता हूँ कि आप लोगों की ‘‘कुछ बिंदुओं पर हम असहमत होने के लिए आपसे सहमत होते हुए’’ एक सरल सा सवाल करता हूँ- देश में कानून किस लिए बनाया जाता है? और कानून की परिभाषा क्या कहती है? देश के सरकारी कर्मचारियों और आम नागरिकों के लिए भ्रष्टाचार कानून तो बने पर सरकारी पक्ष और सांसदों को इससे दूर रखा जाय। कहने का अर्थ है कि भ्रष्टाचार के अलग-अलग दो अर्थ कैसे हो सकते हैं? आने वाली पीढ़ी को भ्रष्टाचार के कितने अर्थ पढ़ने पड़ेगें जरा शब्दकोष में इसको भी परिभाषित कर देगें तो पाठ्यक्रमों में बच्चों को समझने में सुविधा रहेगी।
  • Q-3: तीसरा और अन्तीम प्रश्न देश के तमाम सांसदों से भी है जिनको लेकर 3 जुलाई को सरकार सर्वदलीय बैठक का आयोजन कर राजनीति का नया मोहरा फेंका है। आम सहमती का। भाई! किस बात की आम सहमती? सरकार पहले यह तो स्पष्ट करे की देश में किस वर्ग को वो भ्रष्टाचारी मानती है और किस वर्ग को नहीं जिनको नहीं मानती उनकी सूची तो जरा जारी करें सरकार। तब तो पता चले कि इस बिल को किन पर लागू किया जाय और किन पर नहीं।
  • गुरुवार, 23 जून 2011

    व्यंग्यः कांग्रेसी दांत - शम्भु चौधरी



    जिस शख्स ने भी इस कहावत को ‘‘हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और’’ लिखा, शायद उसे पता भी नहीं होगा कि भारत में एक राजनैतिक दल जिसका नाम कांग्रेस पार्टी है उसके लिए भी इस कहावत को लागू कर दिया जायेगा। जब से कांग्रेस जोंकपाल बनाम लोकपाल बिल बनाने के कसरत में लगी है कांग्रेस पार्टी नये-नये शब्दों का गठन कर कभी अन्ना हजारे तो कभी बाबा रामदेव पर हमला कर रही है तो कभी खुद का बचाव करने में। अब कांग्रेसियों ने दावा किया है कि पिछले 6 माह में इन लोगों ने 68 हजार करोड़ काले धन को सफेद बना दिया है। कांग्रेसीगण इस बात का जबाब हमें शायद नहीं देगी कारण की ‘‘हमरी कलमवा किसी भी चुनावी मैदान से चुन कर पैदा नहीं हुई। साली भ्रष्टाचार के काले कमाई से पैदा होल’वाणी। अब ईंमे हमनी’के का दोष बाड़े? सारे देसवां में’ईं ईईई... धनवा सूरा आआअ...साळा चलते-चलते काला हो गईंल’बां। ऐई..में कांग्रेसियां लोगण’का का दोष देवे का कोणु बात नैईखे बां।’’
    अब लो भाई बंगाल में रह कर हमारी कलम भी माकपा की तरह गरीबों की मसीहा बन गई। दिते हुबे...दिते हुबे- पुरिये देबो...पुरिये दिबो... करते-करते किसानों की जमीन ही डकारने लगी। एई तो ममता दीदी छीलो ना होले कांग्रेसी’रा तो चुप कोरे बोसे’ही छिलो। टाटा हो या जैकोनू’क न हो अमार बाबा होअ..क जैखाने साले दूटा फसल होसछिळो सेई जमीनटा के बाममांर्चा सरकार जोर जर्बदस्ती कोरे निये, टाटा के दिये दिळो। दिल्ली'तिके कांग्रेसी'रा बोललो... कार..खा....ना तो लगाते होबे ना होले काज खोथाई पावे? कोनो स्पे..से (चांद) तो नैनोकार बनाते पारेबे ना। ऐखून कांग्रेसीरा, बामदले लोग’रा ताकते ही थाकलो। टाटा गुजराते नरेन्द्र मोदी गोदीते गिए बोसेगिलो आई....रे बाबा ईं कि होळो? खासकोरे बामदले’र लोग भांपते ही पारळो ना की टाटा चुप कोरे गुजराते पालिये जाबे। अब ममता दीदी की सरकार में आते ही सारी अनियमितताओं को दुरस्त करने में लगी है तो कुछ लोग कोर्ट के चक्कर लगाने लगे तो कुछ लोकपाल बिल को भुनाने के लिए सड़कों पर दावा ठोकने में लग गये कि देश में हम कांग्रेसी लोग ही भ्रष्टाचार को मिटाने में दिल से लगे हैं और बाकी के सब या तो नाटक कर रहें हैं या अड़ंगा लगा कर विवाद खड़ा कर रहें हैं। भला विवाद हो भी क्यों नहीं? देश में शायद यह पहला कानून बनेगा जिसमें सरकार की तरफ से नाकाम कोशिशों के वाबजूद के बाद कि बिल के सभी प्रवधानों को इतना जटील बना दिया जाय कि जिसमें भ्रष्टाचारी को कम सजा और भ्रष्टाचारी को पकड़ाने में मदद करने वालों का अधिक सजा मिलेगी। न सिर्फ सजा की मियाद अधिक होगी, अपराधी को निर्दोष साबित होने के लिए उसकी दो बार सुनवाई सुननी होगी। सुनावाई में वरी हो जाने पर सरकारी खर्च पर उस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा लड़ा जायेगा जो भ्रष्टाचारी के खिलाफ मुकदमा दायर किया था और उसे कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जायेगी। सरकार से जरा कोई चुने हुए सांसदों में कोई एक माई का लाल संसद में पूछे कि भाई! इतनी दया किस बात की इन भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए? देश की आम जनता पर तो आप इतनी दया नहीं दिखाते? दस-बीस मुकदमें में भ्रष्टाचारी यदि तथ्य के अभाव में बरी हो भी जाएं तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसका अपराध कम हो गया। दरअसल कांग्रेस आम जनता को पहले से ही डरा देना चाहती है कि सोच लो बेटा मुकद्दमा किये तो हम तो बरी हो ही जायेगें पर तेरी खैर नहीं।
    जब से बाबा रामदेव जी अचानक सूं दिल्ली म अनशन करणे’री सोची मेरी तो नींद ही गुमगी। म सोचन लाग्यो कि ‘कि’म’की’ दाळ में काळो है। दिल्ली म बाबा की अगवाई से तो सारी बात दर्पण सूं भी साफ-सुथरी झळकण लाग्गी। भाया! व्यापारी से बड़ों भ्रष्टाचारी थाने कुण मिलसी। एक तो व्यापारी ऊपर से संत, वा कहावत थे सुणी थी कि न’इ थाणे फेर सूं ठाह करा दूँ - ‘‘एक तो करेला ऊपर से नींम चढ़ा’’ खैर बाबा रामदेव बेचारा को तो कांग्रेसी’रां जो कियो सो किया निर्दोष जनता ण’भी ळाठियां मुफ्त म खानी पड़गी। चाळो आपां तो यूँ ही थारो दिमाग चाट लियों अब मेरे मनकी तो म निकाळ’ळी। थे थारो सर भीत सूँ फोड़ता फिरो।

    बुधवार, 22 जून 2011

    Govt. Lokpal Bill vs Jan Lokpal Bill Table Chart




    Date: June 22, 2011


    This law will have jurisdiction over 65,000 central government employees, 4.5 lakh registered NGOs, lakhs of movements (and unregistered NGOs) and no companies.
    It applies to only Group A officers of central government, but does not apply to other central government employees.
    It does not apply to any state government employee. However, it applies to all state and central NGOs – whether registered or not.
    Minimum punishment against a corrupt person is six months.
    Minimum punishment against false complainant is two years. Government will provide the lawyer and expenses to the corrupt officer to file a case against his complainant.

    Please See below Table .....

    Please click this Link....


































































































































    Issue
    Our viewGovernment’s viewComments
    Prime MinisterLokpal should have power to investigate allegations of corruption against PM.
    Special safe guards provided against frivolous and mischievous complaints
    PM kept out of Lokpal’s purview.As of today, corruption by PM can be investigated under Prevention of Corruption Act. Government wants investigations to be done by CBI, which comes directly under him, rather than independent Lokpal
    JudiciaryLokpal should have powers to investigate allegation of corruption against judiciary.
    Special safe guards provided against frivolous and mischievous complaints
    Judiciary kept out of Lokpal purview.Government wants this to be included in Judicial Accountability Bill (JAB).
    Under JAB, permission to enquire against a judge will be given by a three member committee
    (two judges from the same court and retd. Chief justice of the same court).
    There are many such flaws in JAB. We have no objections to judiciary being included in JAB if a strong and effective JAB were considered and it were enacted simultaneously.
    MPsLokpal should be able to investigate allegations that any MP had taken bribe to vote or speak in Parliament.Government has excluded this from Lokpal’s purview.Taking bribe to vote or speak in Parliament strikes at the foundations of our democracy. Government’s refusal to bring it under Lokpal scrutiny virtually gives a license to MPs to take bribes with impunity.
    Grievance redressalViolation of citizen’s charter (if an officer does not do a citizen’s work in prescribed time) by an officer should be penalized and should be deemed to be corruption.No penalties proposed. So, this will remain only on paper.Government had agreed to our demand in the Joint committee meeting on 23rdMay. It is unfortunate they have gone back on this decision.
    CBIAnti-corruption branch of CBI should be merged into Lokpal.Government wants to retain its hold over CBI.CBI is misused by governments. Recently, govt has taken CBI out of RTI, thus further increasing the scope for corruption in CBI. CBI will remain corrupt till it remains under government’s control
    Selection of Lokpal members1. Broad based selection committee with 2 politicians, four judges and two independent constitutional authorities.
    2. An independent search committee consisting of retd. Constitutional authorities to prepare first list.
    3. A detailed transparent and participatory selection process.
    1. With five out of ten members from ruling establishment and six politicians in selection committee, government has ensured that only weak, dishonest and pliable people would be selected.
    2. Search committee to be selected by selection committee, thus making them a pawn of selection committee
    3. No selection process provided. It will completely depend on
    Government’s proposal ensures that the government will be able to appoint its own people as Lokpal members and Chairperson. Interestingly, they had agreed to the selection committee proposed by us in the meeting held on 7thMay. There was also a broad consensus on selection process. However, there was a disagreement on composition of search committee. We are surprised that they have gone back on the decision.
      Selection Committee 
    Who will Lokpal be accountable to?To the people.
    A citizen can make a complaint to Supreme Court and seek removal.
    To the Government. Only government can seek removal of LokpalWith selection and removal of Lokpal in government’s control, it would virtually be a puppet in government’s hands, against whose senior most functionaries it is supposed to investigate, thus causing serious conflict of interest. Cont…..Page-3
    Integrity of Lokpal staffComplaint against Lokpal staff will be heard by an independent authorityLokpal itself will investigate complaints against its own staff, thus creating serious conflicts of interestGovernment’s proposal creates a Lokpal, which is accountable either to itself or to the government. We have suggested giving these controls in the hands of the citizens.
    Method of enquiryMethod would be the same as provided in CrPC like in any other criminal case. After preliminary enquiry, an FIR will be registered. After investigations, case will be presented before a court, where the trial will take place CrPC Being amended. Special protection being provided to the accused. After preliminary enquiry, all evidence will be provided to the accused and he shall be heard as to why an FIR should not be regd against him. After completion of investigations, again all evidence will be provided to him and he will be given a hearing to explain why a case should not be filed against him in the court.
    During investigations, if investigations are to be started against any new persons, they would also be presented with all evidence against them and heard.
    Investigation process provided by the government would severely compromise all investigations. If evidence were made available to the accused at various stages of investigations, in addition to compromising the investigations, it would also reveal the identity of whistleblowers thus compromising their security. Such a process is unheard of in criminal jurisprudence anywhere in the world. Such process would kill almost every case.
    Lower bureaucracyAll those defined as public servants in Prevention of Corruption Act would be covered. This includes lower bureaucracy.Only Group A officers will be covered.One fails to understand government’s stiff resistance against bringing lower bureaucracy under Lokpal’s ambit. This appears to be an excuse to retain control over CBI because if all public servants are brought under Lokpal’s jurisdiction, government would have no excuse to keep CBI.
    LokayuktaThe same bill should provide for Lokpal at centre and Lokayuktas in statesOnly Lokpal at the centre would be created through this Bill.According to Mr Pranab Mukherjee, some of the CMs have objected to providing Lokayuktas through the same Bill. He was reminded that state Information Commissions were also set up under RTI Act through one Act only.
    Whistleblower protectionLokpal will be required to provide protection to whistleblowers, witnesses and victims of corruptionNo mention in this law.According to govt, protection for whistleblowers is being provided through aseparate law. But that law is so bad that it has been badly trashed by standing committee of Parliament last month. The committee was headed by Ms Jayanthi Natrajan. In the Jt committee meeting held on23rdMay, it was agreed that Lokpal would be given the duty of providing protection to whistleblowers under the other law and that law would also be discussed and improved in joint committee only. However, it did not happen.
    Special benches in HCHigh Courts will setup special benches to hear appeals incorruption cases to fast track themNo such provision.One study shows that it takes 25 years at appellate stage in corruption cases. This ought to be addressed.
    CrPCOn the basis of past experience on why anti-corruption cases take a long time in courts and why do ouragencies lose them, some amendments to CrPC have been suggested to prevent frequent stay orders.Not included 
    Dismissal of corrupt government servantAfter completion of investigations, in addition to filing a case in a court for prosecution, a bench of Lokpal will hold open hearings and decide whether to remove the government servant from job.The minister will decide whether to remove a corrupt officer or not. Often, they are beneficiaries of corruption, especially when senior officer are involved. Experience shows that rather than removing corrupt people, ministers have rewarded them.Power of removing corrupt people from jobs should be given to independent Lokpal rather than this being decided by the minister in the same department.
    Punishment for corruption1. Maximum punishment is ten years
    2. Higher punishment if rank of accused is higher
    3. Higher fines if accused are business entities
    4. If successfully convicted, a business entity should be blacklisted from future contracts.
    None of these accepted. Only maximum punishment raised to 10 years.  
    Financial independence Lokpal 11 members collectively will decide how much budget do they needFinance ministry will decide the quantum of budget This seriously compromises with the financial independence of Lokpal
    Prevent further lossLokpal will have a duty to take steps to prevent corruption in any ongoing activity, if brought to his notice. If need be, Lokpal will obtain orders from High Court.No such duties and powers of Lokpal2G is believed to have come to knowledge while the process was going on. Shouldn’t some agency have a duty to take steps to stop further corruption rather than just punish people later?
    Tap phonesLokpal bench will grant permission to do soHome Secretary would grant permission.Home Secretary is under the control of precisely those who would be under scanner. It would kill investigations.
    Delegation of powersLokpal members will only hear cases against senior officers and politicians or cases involving huge amounts. Rest of the work will be done by officers working under LokpalAll work will be done by 11members of Lokpal. Practically no delegation. This is a sure way to kill Lokpal. The members will not be able to handle all cases. Within no time, they would be overwhelmed.
    NGOsOnly government funded NGOs coveredAll NGOs, big or small, are covered. A method to arm twist NGOs
    False, Frivolous and vexatious complaintsNo imprisonment. Only fines on complainants. Lokpal would decide whether a complaint is frivolous or vexatious or false. Two to five years of imprisonment and fine. The accused can file complaint against complainant in a court. Interestingly, prosecutor and all expenses of this case will be provided by the government to the accused. The complainant will also have to pay a compensation to the accused. This will give a handle to every accused to browbeat complainants. Often corrupt people are rich. They will file cases against complainants and no one will dare file any complaint. Interestingly, minimum punishment for corruption is six months but for filing false complaint is two years.

    मंगलवार, 21 जून 2011

    भ्रष्टमत सरकार के भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री कपिल सिब्बल-शम्भु चौधरी



    1. सरकार से बात करने के लिए पहले चुनकर आयें-
    सरकार के चुने हुए सांसदों और सिविल सोसाईटी के तानाशाहों के बीच कल मैराथन बैठकों का दौड़ समाप्त हो गया। चुने हुए केंद्रीय भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने बैठक के बाद मीडिया के माध्यम से अचुने हुई जनता को जानकारी दी की सरकार जल्द ही भ्रष्टाचार संरक्षक कानून संसद के अगले मानसून सत्र में ले आयेगी। कांग्रेसी सरकार के चुने हुए केंद्रीय भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने कल पुनः प्रमाणित कर दिया कि समाज के सदस्यों के साथ बैठकों का वे सिर्फ नाटक का रहे थे करना उनको वही है जो कांग्रेस का गुप्त एजेण्डा है। इसके लिए अब कांग्रेस किसी से भी हाथापाई करने को तैयार है। भला हो भी क्यों नहीं लोकतंत्र में किसी दूसरे को समानान्तर सरकार चलाने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती। सरकार को गुमान हो गया है कि वे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि है जिन लोगों को सरकार से बात करना हो चाहे वे पत्रकार ही क्यों न हो पहले उनको भी चुन कर आना होगा। ये मीडिया और अखबार वाले हमेशा सरकार से किसी न किसी बात पर बवाल मचाती है कि देश की जनता यह जानना चाहती है! वह जानना चाहती है! अब आपको इस तरह के सवाल करने का कोई हक नहीं बनता। आप चुने हुए जन-प्रतिनिधि तो है नहीं? फिर सरकारी पक्ष से आपको बात करने का कोई हक नहीं बनता। आपको जो कुछ पूछना हो चुनाव के समय ही पूछ लिया किजिये। सरकार गठन कर लेने के बाद वे चुने हुए प्रतिनिधि बन जाते हैं। अब हर कोई आकर उनसे कानून बनाने के लिए कहेगा तो कैसे होगा। जैसे मानो 64 सालों में सरकार को कानून बनाने के लिए हर बार जनता ही आकर ही कहती रही। अब देखिये कानून तो जनता बना नहीं सकती सलाह और सूझाव भी नहीं दे सकती और आन्दोलन भी नहीं कर सकती।


    2. पोलियोग्रस्त लोकपाल बिल लायेगी केन्द्र की भ्रष्ट सरकार-
    Anna-Hazare at Pariament House on 21st June 2011
    चुने हुए भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री श्री कपिल सिब्बल का मानना है कि टीम अन्ना की मांगे देश में समानान्तर सरकार चलाने की है जो किसी भी स्थिति में मानी नहीं जा सकती। इसलिए वे लोकपाल बिल के टीम अन्ना द्वारा प्रस्तावित उन सभी पहलुओं को खुद ही समाप्त करते हुए इसे समानान्तर सरकार चलाने की संज्ञा दे दी। संसद में इस बात की बहस की कोई जरूरत उनको नहीं लगती। शब्दों के खिलाड़ी कांग्रेस के चुने हुए भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री श्री कपिल सिब्बल को बिल बनने से पुर्व ही अन्ना का भूत उनको सताने लगा कि कहिं इस बिल के आते ही उनके उस बयान की भी जाँच शुरू न हो जाय जिसमें उन्होंने 3जी मामले में केग की जाँच रिर्पोट को पलक झपकते ही गलत करार दे दिया था। आज जब उसी रिर्पोट के आधार पर संयुक्त संसदीय जाँच समिति बैठ गई और सत्ता पक्ष के एक के बाद एक मंत्री जेलों में बन्द होते जा रहें है और श्री मान् भ्रष्टतम सरकार के गृहमंत्री श्री पी. चिदम्बरम जी का नम्बर आने ही वाला है को लेकर इनको अभी से ही चिन्ता सताने लगी की कहीं उनकी पोल भी न खुल जाए। शायद इसीलिए चुने हुए भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री श्री कपिल सिब्बल व इनकी टीम ने मन बना लिया है कि लोकपाल बिल तो लाया जाय चुंकि जनता की आंखों में धूल अब तो झोंकना तो पड़ेगा ही अन्यथा इससे पिंड नहीं मिलेगा। अतः बिल के सभी प्रवाधनों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर संसद में पेश किया जाए कि लोकपाल बिल की भ्रूणहत्या न भी की जा सके तो उसे पोलियोग्रस्त तो बनाया ही जा सकता है।

    लेख आगे भी जारी रहेगा.....2

    सोमवार, 20 जून 2011

    Let me make it clear: - शम्भु चौधरी




    Let me make it clear
    THE CONGRESS VIEW ON PRESENT SITUATION - 1 JUNE 2011 AICC :


    Congress party updated his Website by Saying that His party is very honest to Present Lokpal Bill to introduced for Curb the Crruption's of India. but Where his Honesty?
    Point-12. Let us make it clear: The Congress party and the governments that it leads at the Centre and the States are committed to good governance. The Congress party is implacably opposed to corruption and will not hesitate to take stern and exemplary action against any one who is found to be corrupt. The party that should hang its head in shame is the BJP. Several ministers of the BJP have been charged with corruption in Punjab, Madhya Pradesh, Karnataka and Gujarat. A former National President of the BJP faces a charge of accepting bribes. The government in Karnataka today is a byword for corruption.
    Point-13. In recent months, the Congress party has taken a number of steps that will clearly manifest its intentions. For example, the Government is engaged in drafting a strong and sound Lokpal Bill that will be introduced in the monsoon session of Parliament. It has entrusted grave allegations of corruption that may involve people in high places to investigation by the CBI. It has welcomed the Supreme Court’s oversight of the investigations. The Government has ratified the UN Convention Against Corruption. It has introduced a Bill to punish bribery of foreign public officials. Please Read My Reply Also....- Shambhu Choudhary


    भारत के सबसे बड़े घोटाले के जिम्मेदार चुने हुए देश के सबसे बड़े ईमानदार कांग्रसी प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ जाए कि ‘‘भाया नाव तो चालती देखी पर पानी में चाल रही थी कि बालू पर सो मणे कोणी दिखी म तो गठबंधन का गांठ से बन्धो पड्यो थो’’।


    कोलकाता-21जून,2011:
    Let me make it clear: - शम्भु चौधरी
    Point-12. कांग्रेस पार्टी खुद कितनी दूध की धुली है यह भी साथ में इनको लिखना चाहिये कि रक्षा सौदों से लेकर खेल के मैदानों तक में अरबों का खपला वह खुद कर चुकी है। चुनी हुई सरकारी पक्ष का बयान है कि हाल के दिनों में जितने भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आयें हैं जिसमें 3जी, हो या कामनवेल्थ के खेल हों या खाद्य प्रदाथों में वृद्धि का मामला हो सभी के सभी गठबंधन धर्म के कारण हुए हैं। जब कांग्रेस की सरकार इस बात से सहमत है कि सरकार में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पंहुच चुका है जो गठबंधन की मजबूरियों का परिणाम है। कहने का अर्थ कांग्रसी चोर नहीं कांग्रेस की सरकार को मदद देने वाले चोर हैं तो सरकार इसका कोई नया समाधान क्यों नहीं खोजती? कांग्रेस पार्टी जब खुद स्वीकार करती है कि सरकार बनाने के लिए देश के चुने हुए सभी चोर, लुटेरे और बेईमानों को साथ लेकर उन्होंने सरकार बनाई है तो इस सरकार में इन चुने हुए सांसदों से देश की जनता अब क्या अपेक्षा कर सकती है।

    देश की जनता के द्वारा चुने हुए लोग हैं आप लोग भला जनता की बात अब क्यों सुनेगें? जिस जनता ने इनको चुन कर संसद में भेजा है वे पहले से ही इनको बहुत सारे काम दे रखें हैं। अब हर व्यक्ति आकर कहेगा कि अमूक कानून बनाओं तो भला ऐसे कैसे हो सकता है? आखिर चुने हुए सांसद हैं। कोई मजाक थोड़े ही है भाई! जनता के प्रति इनकी बस इतनी ही जबाबदेही है कि वे उन्हें लाठियों से हांक दें बस। अनपढ़ गांवार जनता भला लोकपाल के बारे में क्या जानती है? ये चार-पांच आदमी झूठ-मुठ का खुद को जनता का प्रतिनिधि बताते हैं। ये तो इनकी भली मानसिकता है कि कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता करने वाली एक नादान लेडी है जो देश के भ्रष्ट नेताओं के दांव-पेंच नहीं जनती सो बेचारी अन्नाजी की इज्जत के चक्कर में इस पचड़े में फंस गई वरणा अन्नाजी को जेल के भीतर बन्द कर 2-4 दिनों में ही होश ठिकाने लगा देते।
    Point-13. ये लो चुने हुए कांग्रेसी सांसदों का एक नया बयान क्या कह रहें हैं जनाब - "In recent months, the Congress party has taken a number of steps that will clearly manifest its intentions. For example, the Government is engaged in drafting a strong and sound Lokpal Bill that will be introduced in the monsoon session of Parliament. It has entrusted grave allegations of corruption that may involve people in high places to investigation by the CBI." इनकी ईमानदारी पर जरा नजर डालिये "Government is engaged in drafting a strong and sound Lokpal Bill" लोकपाल बिल का ड्राफ्ट का सारा श्रेय खुद को दे रहें हैं। अन्ना हजारे के पूरे आन्दोलन को दरकिनार कर दिया। यही कांग्रेसी चरित्र है जो देश की आजादी के हजारो शहिदों के इतिहास को डकारती रही है। आज अन्ना की बलदानी को भी उनके सामने ही डकार गई। इतनी जल्दी भी क्या थी भाई! इस बात को लिखने की कम से कम अन्ना को मर तो जाने देते। तब तक जनता भी सारी बातें भूल जाती। खैर! लोकपाल बिल को कांग्रेस के योगदान में जमा कर लियो हो ता अब थोड़ी तो शर्म करो कि इस बिल को शख्ती के साथ संसद में लाकर पारित करवा दो। ना जाने फिर कहीं गठबंधन धर्म आड़े हाथ न आ जाए और भारत के सबसे बड़े घोटाले के जिम्मेदार चुने हुए देश के सबसे बड़े ईमानदार कांग्रसी प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ जाए कि ‘‘भाया नाव तो चालती देखी पर पानी में चाल रही थी कि बालू पर सो मणे कोणी दिखी म तो गठबंधन का गांठ से बन्धो पड्यो थो’’।

    रविवार, 19 जून 2011

    लोकपाल चक्रव्यूह - शम्भु चौधरी



    कोलकाता-20जून,2011: कांग्रेस पार्टी की लोकपाल बिल को लेकर नई व्यूह रचना की तैयारी जोरों से चल रही है। अर्थात योजनानुसार कार्य को इंजाम देना।
    लोकपाल चक्रव्यूह क्या है-
    1. कांग्रेस पार्टी देश में चारों तरफ सहयोगी मीडिया व समाचार संपादकों के माध्यम से इस बात को प्रचारित करेगी कि सिविल सोसाइटी के सदस्य तानाशाही रवैया अपना रहे हैं। उनकी सभी मांगे नहीं मानी जा सकती।
    2. सभी विपक्षी पार्टी को भी भयभीत करना ताकी सिविल सोसाइटी के अड़ियल रूख को नजरअंदाज किया जा सके।
    3. चुने हुए सदस्यों की परिभाषा के सामने में रखते हुए तमाम चुने हुए सदस्यों का एक अलग समूह का निर्माण करना। अर्थात सभी सांसद दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कांग्रेस पार्टी का साथ दें यानी कि ‘‘चोर-चोर मौसेरे भाई’’ का नारा देकर सिविल सोसाइटी को अलग-थलग करना।
    4. सिविल सोसाइटी से दो-दो हाथ करना।


    अब इसी क्रम में सरकार ने हमला बोल की राजनीति शुरू करते हुए देश के तमाम बड़े समाचार समूह को प्रलोभन दिया जा चुका है। कि ये लोग सरकारी बात को महत्व प्रदान कर सिविल सोसाइटी सदस्यों को भिलन के तौर पर जनता के समक्ष प्रस्तुत करें। माननीय श्री प्रणव मुखर्जी, श्री कपिल सिब्बल, गृहमंत्री श्री पी.चिदम्बरम मानती है कि देश की जनता नासमझ है उनको बिल के किसी भी प्रावधान की कोई जानकारी नहीं है। और चुने हुए सांसदों की देश के प्रति जिम्मेदारी है। साथ ही गृहमंत्री श्री पी.चिदम्बरम जी भी फरमाते हैं कि गांधीजी के सत्याग्रह के हथियार से किसी देश में कानून नहीं बनाया जा सकता। अन्ना का अनशन गांधीजी के अनशन से भिन्न है। अब कांग्रेस सहित प्रायः सभी दल को इस बात कि चिन्ता सताने लगी कि यदि सिविल सोसाइटी की बातें को मान ली गई तो संभतः एक समय ऐसा भी आ सकता है जब देश के आधे से अधिक सांसदों को जेल की सलाखों के अन्दर जाना पडे। श्री अरविन्द केजरीवाल ने भी माना कि भला कोई अपना सुसाइडल नोट भला क्यों लिखेगा? सरकारी पक्ष अब अन्ना समूह से दो-दो हाथ करने का मन बना चुकि है। इस चक्रव्यूह योजना के तहत कांग्रेस अब तमाम राजनैतिक दलों को साथ लेकर चलना चाहती है। कांग्रेस पार्टी मानती है कि वो खुद तो इस बिल को लेकर बुरी तरह उलझ ही चुकि है अब देश के तमाम पार्टियों को भी इसमें 30 जून से पहले ही उलझा दिया जाये ताकि संसद के सत्र में उसकी पोल न खुले। कांग्रेस पार्टी अब जानबुझ कर बिल का विवादित हिस्से को बेतुके सवालों में उलझाने कि योजना बना चुकी है। ताकी बिल संसद के पटल पर रखने से पूर्व ही विवादों में घिर जाय और भ्रष्टाचार निरोधक लोकपाल बिल बैगर किसी अधिक बहस के सदन से बाहर कर दिया जाए। जिस तरह महिला आरक्षण बिल संसद में अपनी लम्बी सांसें भर रहा है लोकपाल बिल का भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। देश के 70 प्रतिशत सासंद और विधायक इस बिल के किसी भी प्रावधन से सहमत नहीं होगें। संसद या विधानसभाओं में जिस धारा के अंर्तगत उनको वोट देने और बोलने का अधिकार प्राप्त है समाज का मानना है कि इस अधिकार के तहत ही संसद और विधानसभाओं में भ्रष्टाचार व्याप्त है। जबकि सरकार का कहना है कि यह लोकतंत्र नहीं तानाशाही है। उनके स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन है। इस तरह के प्रस्ताव लाने का अर्थ है संसद के आधे से अधिक सांसद पर किसी भी समय मुकद्दमा चलाया जा सकेगा। जबकि सिवलि सोसाइटी कहती है कि जबतक कानून बनाने वाले सही आचरण या वर्ताव नहीं करेगें तब तक देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता। उनके कहने का सरल सा अर्थ है जो भी कड़े कानून बने उसे ऊपर से ही लागू किया जाना चाहिये। अन्यथा लोगों को कहने का अवसर मिलेगा कि चोर प्रधानमंत्री बरी संत्री को कड़ी। जैसा कि 3जी मामले में साफ छवि की आड़ में डा. मनमोहन सिंह बचते आ रहे हैं। गृहमंत्री का नाम अब सामने आ ही गया। कुछ दिनों में प्रधानमंत्री को भी सीबीआई के समक्ष प्रस्तुत होना पड़ सकता है चुंकि कांग्रेस इस बात को पहले से ही जानती है कि इस बिल के पारित होते ही उनकी सरकार 3जी मामले में खतरे में पड़ती दिखाई देती है तो इन लोगों ने प्रधानमंत्री को एक संस्था का नाम देकर बचाव की मुद्रा में पहले से ही दिखाई दे रहे हैं। अब सिविल सोसाइटी के सामने एक ही विकल्प बचा है कि वे देश के तथाकतित चुने हुए प्रतिनिधियों को साफ कर दें कि जनता ने उनको चुन कर भेजा है इसका अर्थ है वे जनता के प्रति न सिर्फ जिम्मेदार हैं उनका दायित्व भी बनता है कि वे जनता की बातों पर अमल भी करें। सरकारी पक्ष अपनी बैतुकी बातों से जनता को गुमराह करने की जगह बिल के सभी पक्षों पर ईमानदारी से बहस करें। क्या सही है और क्या गलत पर पहले ही बहस न कर खुले दिमाग से बिल को संसद के सामने प्रस्तुत करें न कि खुद को स्थापित करने के लिए बिल को संसद में प्रस्तुत व बहस करने से पूर्व ही बिल के मूलभूत संरचना से छेड़छाड़ और खिलवाड़ करना शुरू कर दें। कुछ काम संसद के अन्दर चुने हुए सांसदों के उपर भी छोड़ दें वे भी आपके जैसे चुने हुए ही सांसद हैं जो लोकपाल बिल को पारित करेगें या उनको आपलोगों द्वारा सुझाये हुए प्रावधानों पर अपनी राय देगें। सारा काम आपकी समिति के पांच सदस्य ही तय कर लेगें तो संसद के अन्दर बाकी बचे 540 सदस्य क्या खाख करेगें। लोकपाल बिल के मूल प्रस्तावों के साथ सदन में प्रस्तावित करना ही देश की प्रगति का नया अघ्याय होगा। कांग्रेस पार्टी इस बात को गंभीरता से लेकर अपने शातिरों पर लगाम कसे।

    शनिवार, 18 जून 2011

    लोकपाल बिलः कांग्रसी अलाप - शम्भु चौधरी



    आखिरकर जैसे-जैसे 30जून सामने आते जा रही है, कांग्रसी शातिरों का असली चेहरा भी सामने आने लगा। पहले यही काम वे बाबा रामदेव को अपना मोहरा बनाकर सिविल सोसाइटी के लोगों को मुर्ख बनाने एवं फूट डालो राज करो कि अंग्रजी चाल का पासा चला जब वो चेहरा बेनकाब होकर जनता के सामने उसके परचे-परचे उखड़ गये तो अब कांग्रसी लोगों को गांधीवादी अन्ना हजारे तानाशाह नजर आने लगे। चलिये पहले हम पिछले दिनों तेजी से बदलते स्वर पर एक नजर डाल लेते है। अन्ना के अनशन से उठे जनसैलाब के भय से कांग्रेस की सरकार शुरू में इस बात पर जोर देने लगी वो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता के साथ है और ईमानदारी पूर्वक वो भी इस बिल को संसद में लाने की पक्षधर है। परन्तु इसके लिए एक प्रक्रिया है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंर्तगत जरूरी है कि समाज और सरकार के सदस्य मिलकर इस बिल के ड्राफ्ट को बना संसद में पारित करने हेतु भेजे। सरकार ने आनन-फानन में अन्ना हाजारे के अनशन को समाप्त कराने के लिए रातों-रात सरकारी छापाखाना खुलवा गजट भी जारी करवा दिया। दरअसल में सरकार का यह चेहरा उनके शकुनि विजय का था जिसको लेकर वे राहत की सांस लेने लगे थे कि बड़ी सावधानी से उनलोगों ने सिविल सोसाइटी के सदस्यों को एक पिंजरे में बन्द कर दिया है।
    बैठकें शुरू हुई सरकार की मंशा एवं लोकपाल बिल को लेकर उनका नेक इरादा सामने आने लगा। एक-दो बैठकों के बाद ही इन लोगों ने अन्ना से नाराज खेमे बाबा रामदेव की महत्वकांक्षी भूख को मिटाने के लिए योजनाबध तरिके को अपनाकर उनसे सरकारी बयान दिला दिया। सरकार के पांच-पांच मंत्री बाबा के आवभगत में भेजे गये। खैर बाबा का क्या हर्ष कांग्रेसी तानाशाहों ने किया उसे सारी दुनिया ने देख ही लिया। तानाशाह का अर्थ क्या होता है इससे बड़ा उदाहरण और क्या दिया जा सकता है कि आधी रात को सोई हुई जनता पर लांठियां बरसाई गई। रातों-रात हीलन से भीलन बना दिये गये बाबा रामदेव। कारण स्पष्ट था गुप्त समझौते के अनुसार बाबा का कांग्रसी आदेशों का पालन न करना था। आधीरात को गहरी नींद में सोई हुई निर्दोष जनता के न सिर्फ कपड़े व तिरपाल से बने पंडाल के भीतर आंसू गैस के गोले दागे, बिजली व संचार के सारे तार काट दिये गये पंडाल को खाली करने का समय न देते हुए लाठियों की बरसात शुरू कर दी। जबतक जनता या प्रेस के कर्मी कुछ समझ पाते चारों तरफ भगदड़ मच गई। पंडाल में आग लग जाने से बाबा को पंडाल से झलांग भी लगानी पड़ी कारण की पंडाल के पिछले मार्गा में आंसू गैस के गोले से आग तो लग ही चुकी थी, धुंआ भी भर चुका था। बाबा भीड़ का फायदा लेकर भागने में असफल रहे। इस स्थिति का कुल आंकलन किया जाय तो सरकार एंव बाबा रामदेव के समझौते में शाम ढलते-ढलते श्रीमान कपिल सिब्बल के पेट में दर्द शुरू हो गया और उन्होंने सोचा कि अब बाबा का भांडा फोड़ दिया जाय। सरकार ने जैसे ही बाबा रामदेव के एक सहयोगी का पत्र प्रेस-मीडिया को जारी किया, इससे सरकारी की मंशा साफ हो गई कि वो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कितनी गंभीर नजर आती है। तब तक इस प्रकरण से दो बातें साफ हो चुकी थी कि 1. सरकार ऐन-केन प्रकारेण लोकपाल बिल के ड्राफ्ट समिति को विवादों में डालकर किसी भी प्रकार से अपने गुप्त ऐजेंडे के तहत खानापूर्ती करना। 2. कांग्रेस खुद के काले करनामे को उजागर न कर जनता के सामने खुद को पाक-साफ रखना इनका लक्ष्य रहा है।
    बाबा का प्ररकरण पर शतरंजी विजय प्राप्त कर लेने वाले कांग्रसी के हौसले अब तक बुलंदियों पर पंहुच चुके थे। श्रीमती सोनिया गांधी सहित भ्रष्टाचार में लिप्त देश के तमाम राजनेताओं ने होली मनाई। मानो इनके खुशी के ठिकाने भी न रहे। कुछ बिकाओ पत्रकार व संपदकों ने भी अपनी शैतानी कलम का रूख अन्ना की तरफ मोड़ दिया।
    कांग्रेस इस सफलता का दूसरा निशाना अन्ना और सिविल सोसाइटी की तरफ मोड़ दिया। बैठकों में खुलकर अपने गुप्त ऐजेंडे को लेकर बोलने लगे। बैठक के बहार और अन्दर अभद्र शब्दों का प्रयोग और संसद के चुने हुए प्रतिनिधि और न चुने हुए प्रतिनिधि की बात कहने में भी संकोच नहीं किया। ये तो गनीमत थी कि सरकारी गजट हो चुका है अन्यथा कांग्रेस इनको (समाज के सदस्यों को) बैठक में आमंत्रित भी न करती।


    संसद के चुने हुए प्रतिनिधि और न चुने हुए प्रतिनिधि -
    सरकारी प्रवक्ता इस बात पर बार-बार जोर दे रहें है कि वे चुने हुए जनता के प्रतिनिधि हैं। इसका क्या अर्थ होता है? कि वे जनता की बात सुनने या मानने से इंकार कर दें? आखिर में सरकार और सरकारी चापलूसी करने वाले मीडियाकर्मी व संपादक ये भी बताये कि चुने हुए इस भ्रष्ट लागों का रोल क्या है? इनकी संवैधानिक जिम्मेदारियां क्या-क्या है? संसद के अन्दर इनकी क्या जिम्मेदारी है और संसद के बाहर क्या-क्या है? उल्फा या गोरखालेंड के प्रतिनिधियों में से कितने चुने हुए सांसद है जिनकी मांगे मानी गई। उल्फा को तो सरकार ने आर्थिक पैकेज तक दे दिया। सांसद जनता के प्रति भी जिम्मेदार है कि सिर्फ संसद के प्रति? सांसदों को जो सुविधा प्रदान की जाती है वो सभी उनको मौज-मस्ती करने के लिए ही दी जाती है क्या? भ्रष्टाचार देश की समस्या है कि नहीं? यदि है तो इसके लिए सरकार ने इसे समाप्त करने के लिए अबतक क्या-क्या उपाय किये? ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, जिसे लिखा जा सकता है।


    सरकार की मंशा में खोटः
    गत पांच बैठकों के अब तक मिले परिणामों और आपसी तालमेल की कमी से सरकारी पक्ष के बयान काफी निराशाजनक नजर आते हैं। सिविल सोसाइटी की बात काटने के जो विकल्प सरकारी पक्ष ने रखें हैं उनमें सबसे बड़ी बात सरकार ने कही की "सोसाइटी के लोग धमकी के स्वर में बात कर रहे हैं ये दोनों बातें अर्थात बात और धमकी साथ-साथ नहीं हो सकती।" अच्छा एक बात बताइये सरकार न क्या किया? पांच जून की रात सरकार ने जनता के साथ क्या सलूक किया। आप कहेगें उसे छोड़ दिजिये वो बाबा रामदेव की कहानी थी, तो आपने आठ जून को एकतरफा बैठक कर क्या ऐलान किया? कि सिविल सोसाइटी के सदस्यों के बैगर भी वे 30 जून तक ड्राफ्ट संसद में भेज देगें। इसे क्या समझा जाए? रही 16 अगस्त को अनशन की बात तो यह बात तो अन्ना ने गजट बनने के तुरन्त बाद ही कह दी थी कि यदि सरकार बिल के मौसेदे को सही तरह से नहीं लाती तो वे पुनः अनशन करेगें। अब इसे सरकार बार-बार सुनती है और डर जाती है तो इसका क्या अर्थ निकाला जा सकता है? साफ तौर पर सरकारी पक्ष को लग रहा है कि वे अपने गुप्त ऐजेंडे को किसी प्रकार लागू करवा सके इसीलिए सरकारी पक्ष बैठकों में उनके द्वारा किये जा रहे व्यवहार को जनता के सामने लाने हिचक रही है। जबकि सिविल सोसाइटी का मानना है कि यदि सरकारी पक्ष बिल के प्रति ईमानदारी से पेश आना चाहती है तो इसका सीधा प्रसारण से डर क्यों रही है? दरअसल बात कुछ ओर है कांग्रेस की सरकार न तो कभी इस बिल को लेकर गंभीर रही है न आज है। इनका सीधा सा मकशद है किसी तरह जनता और मीडियाकर्मी को भ्रमित कर अपना उल्लू सीधा कर लें। कांग्रेस सहित तमाम पार्टी जिसमें भाजपा, माकपा, भाकपा, राकंपा, समाजवादी, तृणमूल, करुणनिधि, जयललिता, लालू-माया जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं ये सभी जानते है कि इस बिल के पारित हो जाने से सबसे ज्यादा उनको क्षति होने वाली है। अर्थात इससे देश का व्योरोकेट अधिकारियों को कम उनको सबसे अधिक इसका सामना करना पड़ेगा। कारण साफ है सरकार बनती और बिगड़ती है और भ्रष्टाचार की शुरूआत संसद और विधानसभाओं में बहुमत को लेकर ही होती है। अब आप कल्पना किजिए कोई अपने पांव पर ही कुल्हाड़ी क्यों मारेगा। इसलिए सब के सब इस मामले को इतिश्री का इंतजार बड़ी बेसब्री कर रहे हैं। इसलिए ज्यों-ज्यों दिन गुजरता जा रहा अन्ना की बात कांग्रेस को धमकी लगने लगी।

    शुक्रवार, 17 जून 2011

    Suggestions Letter To Lokpal



    आदरणीय अध्यक्ष महोदय,
    लोकपाल बिल ड्राफ्ट समिति,
    नई दिल्ली, भारत।


    महोदय,
    आपने देश के सभी राजनैतिक दलों व राज्य सरकारों को एक पत्र लिख कर निम्न बिन्दूओं पर उनकी राय जाननी चाही। मैं समझता हूँ कि भारत सरकार इस पत्र को आम जनता के लिए जारी करेए कारण कि जिन दलों को या सरकार की राय आपने जाननी चाही उनको देश की जनता ही चुनती है। आप इस बात को स्वीकार करेगें कि पिछले 15-20 सालों में संसद व विधानसभा की गरिमा को गहरा आघात लगा है।
    किस प्रकार संसद के भीतर नोटों के बण्डल उछाल कर भाजपा संसदों ने लोकतंत्र की धजी उड़ाई थी। प्रायः विश्वास मत प्राप्त करते समय संसदों व विधायकों की खुले आम खरीद-फरोक्त होती रही है। जिसके चलते स्वण्भजनलाल की भजन मंण्डली की कहानी अथवा शिबु सोरेन की सौदेबाजी से संसद शर्मसार होता रहा है। कुछ ऐसा ही हाल देश के सभी प्रान्तों में है। आपने जो प्रश्न उठाये उन सभी का यदि एक उत्तर दिया जाय तो यह कि कम से कम भ्रष्टाचार निरोधक इस बिल को बनाते समय दोंनो पक्ष ईमानदारी से जनता के सामने पेश आये। यह काम सिर्फ कांग्रेस के बुते का ही है। आपकी पार्टी में आज भी आप जैसे कुछक ईमानदार लोग बचे हैं। बल्की मैं मानता हूँ इस बिल में सभी कड़े से कड़े प्रवाधान शामिल कर लिये जाने चाहिये कि जिससे संसद व विधानसभाओं की मर्यादाओं को धन-बल की ताकत से चलाने वाले राजनैतिक दलों का नकाब उतारा जा सके। बात काफी है पर इशारा एक ही है देश का भविष्य कैसे सुरक्षित हाथों में रहे इस बात को ध्यान में रखते हुए आपके निम्न प्रश्नों पर मेरी राय आप सभी सदस्यों के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ। आशा है मेरे पत्र को लोकपाल बिल ड्राफ्ट समिति के पटल पर रखा जायेगा।


    Suggestions Letter To Joint Drafting Committee in April 2011







    (i) There have been demands from the Civil society members that one single Act should provide for both the Lokpal in the Centre and Lokayukta in the State. Would your State Government be willing to accept a draft provision for the Lokayukta on the same lines as that of the Lokpal ?
    1. राज्य सरकारों को यह अधिकार देने का अर्थ होगा कि बिल के मूल को अपनी जरूरतों के अनुसार कमजोर करना होगा। अतः मेरी राय होगी कि इस बिल के ड्राफ्ट के मूल से कोई समझौता न किया जाना चाहिये।

    (ii) Should the Prime Minister be brought within the purview of the Lokpal? If the answer is in the affirmative, should there be a qualified inclusion (in which case you may also suggest qualifications for such an inclusion).
    2. आप इस बात से सहमत होंगे जब-जब हंग संसद का गठन हुआ है उस समय प्रधानमंत्री बनने के लिए सांसदों में एक प्रकार से Horse Riding होने लगती है। इस तरह के मुद्दे प्रधानमंत्री की छवि को कई बार विवाद में डाल चुकि है। अतः इस प्रश्न को खुले दिमाग से हल करने की जरूरत है। मेरा उत्तर हाँ है।

    (iii) Should judges of the Supreme Court / High Court be brought within the purview of the Lokpal?

    3. देश का अदालती इतिहास इस बात का गवाह है कि आज अदालतों में न्याय बिकना षुरू हो गया है। अदालत को ईमानदार बनाये रखने के लिये इसे उन पर लागू करना निहायत ही जरूरी है।

    (iv) Should the conduct of Members of Parliament inside Parliament 1 (speaking on voting in the House) be brought within the purview of the Lokpal? (Presently such actions are covered under Article 105 (2) of the Constitution).

    4. आप इस बात से सहमत होगें जब भी सरकार किसी मुद्दे में अल्पमत में आ जाती है तो सरकार को बचाने को लेकर जो मत विभाजन होता है इस समय साफ तौर पर संसदों की खरीद-फरोक्त का मामला सामने आता ही है। इस प्रवाधान से संदिग्ध संसदों की जाँच लोकपाल द्वारा निहायत ही जरूरी है।

    (v) Whether articles 311 and 320 (3) (c) of the Constitution notwithstanding members of a civil service of the Union or an all lndia service or a civil service of a State or a person holding a civil post under the Union or State, be subject to enquiry and disciplinary action including miss all removal by the Lokpal/Lokayukta, as the case may be?

    Yes it Must be


    (vi) What should be the definition of the Lokpal, and should it itself exercise quasi-judicial powers also or delegate these powers to its subordinate officers?

    Yes it Must be


    अन्त में आप सभी सदस्यों से अनुरोध रहेगा कि यह सुनहरा अवसर जो कांग्रेस की सरकार को मिला है इस पर ईमानदारी व जिम्मेदारी पूर्ण दायित्वों का निर्वाह करते हुए इस बिल का सर्वमान्य रास्ता निकालते हुए मजबूती के साथ बिल के प्रारूप न सिर्फ तैयार ही करें सोसाइटी सदस्यों को सम्मान भी देंवे। उनका स्वार्थ सिर्फ देश को भ्रष्टमुक्त करना है न कि आपकी सरकार को गिराना। यह लड़ाई कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं जिसके लिये आप लोगों ने विभिन्न तरह के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिये। सभी सदस्य या तो इतिहास के हिस्से बन जायेगें और देश की आनेवाल पीढ़ी आपलोगों को हमेशा याद करेगी या फिर आप लोगों का नाम सदैव काले अक्षरों में अंकित होकर रह जायेगा। आईये हम प्रण लें कि देश का हमसब मिलकर नव निर्माण करें। जय हिन्द!

    - शम्भु चौधरी, कोलकाता मोबाः 9831082737

    गुरुवार, 16 जून 2011

    लोकपाल बिल की भ्रूण हत्या - शम्भु चौधरी


    ड्राफ्ट कमिटि के सरकारी शातिरों ने एक नई पहल शुरू कर बिल को मूल रूप में न सिर्फ परिवर्तन करने का प्रयास किया उन लोगों ने बाबा रामदेव को जिस हथियार से लहूलूहान किया अब उनके दिमाग ने एक नई पहल शुरू कर दी है। उनको देश के संसद की अब बहुत याद सताने लगी। उनका यह मानना है कि संसद में इस अपूर्ण बिल को प्रस्तावित कर वे एक पंथ दो काज करने में सफल भी हो जायेगें। संभवतः उनका यह भी मानना है कि सिविल सोसाईटी के पांच सदस्य खुद को संसद से उपर न समझे। आखिर में संसद को हथियार बनाकर देश की जनता को गुमराह करने का राजनीतिक हथकंडा अपनाया जाने की तैयारी जोरों से शुरू हो चुकी है। एक पर एक लगातार जनता व मीडिया को गुमराह कर भ्रष्टाचारी व्यवस्था को संसद के भीतर बिल को भैंट चढ़ाने की तैयारी सरकार ने कर ली है। यह बात गत बैठक से ही सामने आने लगी जब सिविल सोसाइटी के सदस्यों द्वारा एक बैठक में गैरहाजीर रहने पर सरकारी पक्ष ने सीधे से एक प्रकार से घोषणा कर दी थी कि वे बैगर समाज के सदस्य के भी बिल को 30 जून तक संसद को बनाकर भेज देगें। यानी एकतरफा ऐलान की घोषणा साफ तौर पर सरकारी पक्ष की गुंडागर्दी सामने आ गई। सरकारी पक्ष की सोच है कि ड्राफ्ट कमिटि गठित हो जाने के बाद अब वे अपनी मनमानी कर एक तरह से लोकपाल बिल की आड़ में सरकारी भ्रष्टाचारी बचाव बिल संसद के पटल पर पटक देंगे, जिस पर संसद बहस करे और एक अपंग और लंगड़ा बिल देश के माथे ठोक कर अपनी गिरती हुई शाख को बचा लेंगे। देश की आजादी से लेकर आज तक कांग्रेस सिर्फ अल्पसंख्यकों के मामाले में ईमानदार रही बाकी कोई भी एक काम जिसे ईमानदारी का तगमा दिया जा सके मेरी नजर में तो नहीं है जो लोग सिविल सोसाईटी के सदस्यों या अन्ना हजारे को कठघरे में लाने का प्रयास कर रहें हैं वे वही लोग हैं जो पक्ष भ्रष्ट व्यवस्था के प्रवल समर्थक माने जाते हैं। देश किस प्रकार भ्रष्ट लोगों के हाथ से मुक्त हो इस पर उनके कोई राय नहीं है। कोलकाता के एक समाचार ने तो लिख ही दिया कि सरकार सिविल सोसाईटी की बात न माने न ही उन्हें कोई महत्व दिया जाय । इस संपादक का मानना ह कि देश संसद सदस्य चलाते हैं। सिविल सोसाईटी नहीं। जिन सदस्यों को जनता चुनकर संसद में भेजती है। जी संपादक जी! यह आपको बताने की जरूरत नहीं कि किसे कौन चुन कर संसद में भेजता है। सिविल सोसाईटी की बात भी जनता की आवाज है आपको इसका पैमाना तय करना है कि देश में भ्रष्टाचार काई मुद्दा है कि नहीं तो आप संसद को भंग कर जनता के बीच इस बात का फैसला करने का अधिकार सौंप दें। और एक बात कांग्रेसी को भी बता देना उचित होगा कि अन्ना हजारे बाबा रामदेव नहीं जिसे आप पांच सितारे होटल में बुलाकर ब्लेकमेल कर सको। सिविल सोसाईटी का आन्दोलन बाबा रामदेव का अनशन समझने की भूल न करें। इसे न सिर्फ आम जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त है कांग्रेस के परचे-परचे सड़क पर लड़खड़ाने लगेगें। संसद की आड़ में जनता को गुमराह करने की आदत से बाज आये कांग्रेसीगण लोकपाल बिल की सभी पहलुओं पर ईमानदारी से अपना पक्ष रखें जो बात आपकी सही होगी जनता स्वतः आपको समर्थन करेगी। मीडिया वाले दोस्तों से भी अपील है कि एक घर तो डायन भी छोड़ती है। भारत देश, अपना देश कैसे भ्रष्टमुक्त हो इस पर अपनी राय दें न कि जो लोग इस नेक कार्यों का अपना तन-मन-धन लुटाकर सामने आयें हैं उनके मजबूत इरादों को कमजोर करने जैसी टिप्पनियों की बोछार सिर्फ अपने तुक्ष्य इरादे की पूर्ति करने के लिये न करें। बिल पास हो न हो इससे सिविल सोसाईटी को क्या फर्क पड़ेगा? कांग्रेस के भ्रष्टी जो चाहतें हैं वही बिल संसद में आ जाय तो देश का क्या भला हो जायेगा? आज देश को एकतरफा फैसला लेना होगा कि हम देश को भ्रष्टमुक्त देखना चाहते हैं कि नहीं? यदि आपका उत्तर हाँ में हो तो सरकारी पक्ष की वकालत छोड़ कर जनता के बीच में खड़े हो जाएं इसी में देश का भला है।

    मंगलवार, 7 जून 2011

    कांग्रेस की घिनौनी रणनीति

    तीन जून को दिल्ली के होटल के अन्दर काग्रेस नंगी हो कर बैठी थी। बाबा रामदेव तीन दिन की कांग्रसी मेहमानबाजी का आनन्द उठा रहे थे, मन ही मन सोच रहे थे कि ये चमत्कार कैसे और क्यों हो रहा है। एक बार तो इनको सपने में भी विश्वास नहीं हुआ कि ये भ्रष्ट और बेईमान लोग इतनी आसानी से कैसे उनकर मांगे मान रहें हैं। कहावत है ‘‘चोर चोरी से जाए - हैरा फेरी से न जाए’’ इस बात को आज पत्रकारों के लिए कोट करता हूँ कि ‘‘कलम जब चलती है तो उसकी स्याही खुद व खुद निकलती है, जब रुक जाती है तो स्याही सुख जाती है।’’ भारतीय पत्रकारिता विदेशी पत्रकारिता की तर्ज पर काम न करें। भ्रष्टाचार मिटाने का सारा जिम्मा अन्ना हजारे, बाबा रामदेव जी व अरविन्द केजरीवाल ने ही नहीं उठा रखा है। इस यज्ञ में हमारी भी आहुति होनी चाहिये। देश भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के जाल से जकड़ा हुआ है। उनकी इच्छाशक्ति कभी भी इस व्यवस्था को समाप्त करने की नहीं होगी। हमें चौतरफा हमला करना होगा ताकी तमाम राजनीतिज्ञों के नकाबपोश को उतारा जा सके। 2जी, या कॉमनवेल्थ घोटाले का हमें कभी पता न चलता यदि हमारे पास ‘‘सूचना का अधिकार कानून’’ नहीं होता। हमें जनता को बताना होगा कि ये कितने नकाबपोश देश के गद्दार हैं जो देश को भीतर ही भीतर खोखला किये जा रहें है। बाबा रामदेव जी के साथ 3 जून को दिल्ली के होटल के भीतर क्या घटना घटी इस सच को उजागर करते मेरे पत्रकार मित्र श्री हंसराज सुज्ञ जी का लेख यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया आप अपने समाचार व ब्लॉग पर इसे स्थान दें। - शम्भु चौधरी


    - हंसराज सुज्ञ -


    बाबा रामदेव ने जबसे चार जून को आंदोलन का ऐलान किया था। तब से ही सरकार ने अपनी घिनौनी रणनीति बनानी शुरु कर दी थी। रही बात माँगो की तो मांगे तो कांग्रेस कभी भी किसी भी हालत में नही मान सकती थी। क्यों कि क्या कोई चोर और उसके साथी कभी भी ये मान सकते है कि वो अपनी चोरी का खुलासा करें।
    जब सुप्रीम कोर्ट कह कह के थक गया कि कालेधन जमा करने वालो की सूची जारी करें। जब इस भ्रष्ट सरकार ने आज तक सूची तक नही जारी की। तो काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना और उसको वापस लाना तो बहुत दूर की बात है। क्यों कि ये बात 100 % सही है की खुद इस गांधी फैमिली का अकूत धन स्विस बैँक में जमा है। इस बारे में सनसनी खेज खुलासे बाबा रामदेव की 27 फरवरी की रामलीला मैदान की विशाल रैली में भी हुये थे। जिसमें विशाल जनसमूह उमड़ा था और इस बिके मीडिया ने उस रैली को प्रसारित नही किया था। और जब आस्था चैनल ने उस रैली को दिखाया तो तुरंत इस सरकार ने आस्था चैनल पर इस रैली को दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया। उसके बाद से कांग्रेस का केवल एक ही उददेश्य था कि कुछ ऐसा किया जाये जिससे बाबा रामदेव पे लोगों का विश्वास उठ जाये।
    क्यों कि कांग्रेस जानती थी की उसको किसी भी विपक्षी पार्टी से इतना खतरा नही है जितना बाबा रामदेव से है। क्यों कि उनके साथ विशाल जन समर्थन है। इसलिये कांग्रेस ने एक ऐसी घिनौनी साजिश रची । कि जिससे लोगों का विश्वास रामदेव से उठ जाये। एक जून को जब चार मंत्री एयरपोर्ट पर बाबा को लेने गये तो आम जनता या मीडिया को तो छोड़ो । स्वयं बाबा रामदेव भी नही समझ पाये। कि ये उल्टी गंगा कैसे बही? जब कि कांग्रेस के इस पैतरें का केवल एक ही उद्देश्य था। कि किसी तरह बाबा को प्रभावित करके एक चिटठी लिखवा ली जाये। ताकि बाद में ये साबित किया जा सके। कि अनशन फिक्स था और लोगों का विश्वास बाबा से उठ जाये।
    लेकिन बाबा ने कोई पत्र नही लिखा।
    कांग्रेस ने हार नही मानी दुबारा मीटिँग की फिर भी असफल रही। और फिर उसने तीसरी मीटीँग होटल में की । वहाँ उन नेताओं के पास बाबा की गिरफ्तारी का आदेश भी था। और होटल के बाहर काफी फोर्स भी पहुच गयी थी। नेताओं ने बाबा पर बहुत दबाब बनाया। और ये कहा कि आप की सारी मांगे मान ली जायेँगी लेकिन आप एक पत्र लिखे कि आप अपना अनशन खत्म कर देँगे। आपको ये पत्र लिखना बहुत जरुरी है। क्यों कि ये पत्र प्रधानमंत्री को दिखाना है।और ये एक आवश्यक प्रक्रिया है।
    बिना पत्र लिखे वो बाबा को छोड़ ही नही रहे थे। इसीलिये उस मीटीँग में 6 घंटे का समय लग गया। उस समय बाबा रामदेव ये समझ गये थे कि कुछ षडयंत्र बुना जा रहा है। तब उन्होने संयम से काम लेते हुये पत्र लिखवाने पर तो मान गये लेकिन खुद साइन नही किया बल्कि आचार्य बालक्रष्ण से करवाया। हालाकि कांग्रेस बाबा से खुद साइन करने का दबाब डालते रहे लेकिन बाबा ने समझदारी से काम लेते हुये खुद साइन नही किया।
    तब जाकर बाबा उस होटल से बाहर निकल पाये। उन्होने रामलीला मैदान पहुचते ही ये बता दिया कि उनके खिलाफ षडयंत्र रचा जा रहा है और वक्त आने पर खुलासा करेँगे। उसके बाद चार तारीख को नेताओं ने बाबा को फोन करके झूठ बोल दिया। कि आपकी अध्यादेश लाने की मांगे मान ली गयी है और आप अनशन खत्म करने की घोषणा कर दे। कांग्रेस इस बात का इंतजार कर रही थी कि एक बार बाबा अनशन खत्म की घोषणा कर दे तो उसके बाद वो पत्र मीडिया में जारी कर दिया जाये जिससे ये साबित हो जाये की अनशन फिक्स था और लोगों की नजर में बाबा नीचे गिर जाये। बाबा ने फिर घोषणा भी कर दी की सरकार ने हमारी माँगे मान ली है और वो जैसे ही हमें लिखित में दे देगी ।हम अनशन खत्म कर देँगे। सरकार फिर फस गयी क्यों कि उसने बाबा से झूठ बोला था कि वो अध्यादेश लाने की बात
    लिख कर देगी ।जब कि वास्तव में उसने कमेंटी बनाने की बात लिखी थी। और बाबा जब तक अध्यादेश लाने की बात लिखित रुप से नही देखेँगे। तब तक वो आंदोलन नही खत्म करेँगे। तब कांग्रेस के चालाक वकील मंत्री सिब्बल ने तुरंत मीडिया को पत्र दिखाया और ये जताया कि ये अनशन पहले से फिक्स था। क्यों कि
    सिब्बल जानता था कि मीडिया बिना कुछ सोचे समझे बाबा की धज्जियाँ उड़ाने में लग जायेगा। हुआ भी यही मीडिया ने बिना कुछ समझे चिल्लाना शुरु कर दिया की बाबा ने धोखा किया। लोगों की भावनाओं से खेला आदि।
    जब बाबा को पता चला कि सिब्बल ने एक कुटिल चाल खेली है। तब उन्होने बड़ी वीरता से उस धज्जियाँ उड़ाने को आतुर मीडिया को सारे सवालो के जबाब दिये और स्थिति को संभाल लिया। कांग्रेस अपनी इतनी बड़ी चाल को फेल होते हुये देख बौखला गयी। और उस मूर्ख कांग्रेस ने मैदान में रावणलीला मचा कर अपनी कब्र खोदने की शुरुआत कर दी।

    सोमवार, 6 जून 2011

    सत्याग्रह की नई व्याख्या अन्ना हजारे लिखेगें - शम्भु चौधरी, कोलकाता


    अपनी बातः कांग्रेसी चरित्र
    कोलकाताः 7 जून 2011;
    देश की आजादी से लेकर आज तक कांग्रसी लोगों का एक ही चरित्र सामने उभर कर आया है। पहले नेहरु जी, बापूजी को गुमराह किया करते थे आज सारे के सारे कांग्रसी देश को गुमराह करने के फिराक में लगे रहते हैं। इनके पास तीन प्रमुख हथियार है।
    1. सोनियाजी या गांधी परिवार का नाम,
    2. लोकपाल बिल व भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र की कल्पना एवं
    3. नई-नई व्याख्या करना।

    1. सोनियाजी या गांधी परिवार का नाम:
    सोनियाजी या गांधी परिवार का नाम किसी दूसरे के मुंह से सुनना या उनके नाम पर की जाने वाली किसी भी टिप्पणियों पर तत्काल आपे से बहार आकर सबके सब यह दिखाने का अवसर तलाशते रहते हैं कि कैसे वे भी कांग्रेसी दरबार के विश्वास पात्र बन जाये। स्व. सीताराम केसरी, बापू जगजीवन राम और अब हमारे प्रियतम प्रधानमंत्री श्री श्री 420 मनमोहन सिंह जी की कड़ी बनने की ताक में सभी के सभी कतार लगाये खड़े हैं। कब किसका नम्बर आ जाये? बेचारे प्रणब दा इस फिराक में दो बार फिसल चुके हैं। एकबार तो इनको कांग्रेस तक छोड़ना पड़ा, बाद में कहीं दाल न गली तो वापस उसी कचरे के डब्बे में जाकर शामिल हो गये। अब तो उनको नम्बर2 से ही संतोष करना पड़ता है। चुंकि इस बीच कई दूसरे 1नम्बर में स्थान प्राप्त कर लिए। शरद पवार की गर्त आपके सामने है। यह तो रहा कांगे्रसी नेताओं की नौकरी का सवाल। अब देखिये इनके प्रांतीय नेताओं के हाल- बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बंगाल, उडीसा एवम् महाराष्ट्र जैसे प्रान्तों की हालत। सारे के सारे प्रान्तीय नेताओं के पर कुतर-कुतर कर इन प्रान्तों को दूसरे राजनैतिक दल या खुद के दल से टूटे हुए नेताओं के सहारे किसी प्रकार अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाये रखने में लगे हैं। अभी बंगाल में ही देखिये एक समय ममता दीदी को प्रणब दा एण्ड पार्टी ने कांग्रेस से बहार निकाल फेंक, बामपंथियों का हाथ थामे बंगाल का 35 साल तक बंटाधार करते रहने वाले श्रीमान् महोदय को ममता दीदी ने एक बार कह दिया सो कह दिया लेना हो तो लो नहीं तो जाओ। झक मरवाकर इनको ममता दीदी से समझौता करना पड़ा। ठीक ऐसी ही हालात कम व वैसी अन्य प्रान्तों की हो चुकी है। अब तो इस डूबती नैया को सहारा मात्र सांप्रदायिकता की आड़ में एक धर्म विशेष को बार-बार याद करना इनका मुख्य और एक मात्र एजेन्डा बचा गया है।
    अब इनके दूसरे चरित्र को देखें-
    2. लोकपाल बिल व भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र की कल्पनाः
    श्री अन्ना हजारे एवं उनके सहयोगियों द्वारा बनाये जा रहे लोकपाल बिल को किसी तरह एक तरफा बिल बनाकर देश को थोपने की रणनीति के तहत कांग्रेसी शातिर दिमाग के धनी श्री कपिल सिब्बल साहेब ने पहले बाबा रामदेव को उकसाया, उन्हें सर पर बैठाया। फिर देखे कि यह बन्दर तो पेड़ से नीचे ही नहीं उतर रहा तो पेड़ को ही रातों रात काट डाला। यह एक सोची समझी साजिश का एक हिस्सा है। सरकार की मंशा कभी भी भ्रष्टाचारियों को सजा देना है ही नहीं, सरकार उनको बचाने के उपाय इस बिल के माध्यम से लाने का प्रयास कर रही है। कल की लोकपाल बिल विधयेक की बैठक में जब ‘समाज’ ने भाग न लेने का फैसला कर लिया तो सरकार ने एक तरफा बैठक कर अपने निर्णय सुना दिये। सरकार को पता है कि यह जो समिति के नाम का जो नाटक उसने रचा है उसके क्या परिणाम निकलने वाले हैं। इस बिल के एक हिस्से पर ‘समाज’ के सदस्यों के विरोध को देखते हुए ही शातिर दिमागी श्री सिब्बल जी ने बाबा रामदेव जी सामने खड़ा कर उनसे एक बयान दिलवाया था कि प्रधानमंत्री एवं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को लोकपाल बिल से अलग रखा जाए। इस बात को लेकर श्री अरविन्द केजरीवाल नाराज भी हुए एवं कहा कि हम बाबा रामदेव जी से बात करेगें। परन्तु तब बाबा रामदेव जी को राजनीति के शातिरों की चालाकी नहीं समझ में आ रही थी। खर! अब बाबा के साथ जो हुआ इसे हम किसी भी दृष्टि से जायज नहीं ठहरा सकते। लोकतंत्र में राजनीति चालें जब तक चली जाती है तब तक जनता लाचार होती है परन्तु जब प्रशासनिक हथियार जब सरकार उठा लेती है तो जनता उसका जबाब देकर रहती है। कांग्रेस अब इसे राजनैतिक रंग देने के लिए कहना शुरू कर दिया कि बाबा रामदेव के पीछे भाजपा एवं संघ के लोग हैं। यह बात कांग्रेस को पाँच दिन पहले नहीं दिखाई दे रही थी क्या? आज अचानक से उन्हें वोट बैंक की राजनीति शुरू करनी पड़ गई। कांग्रेस का यह दूसरा और सबसे खतरनाक कार्ड होता है मुसलमानों को डराना एवं उनके वोट को अपनी झौली में बनाये रखना। यही कारण है जब भी इनको अवसर मिलता है वे हर मुद्दे को सांप्रदायिकाता से जोड़ने का प्रयास करते हैं। अब जरा आप ही सोचिये यह जो विदेशों में कालाधन एवम् देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से सांप्रदायिकता या मकपा, भापका, भाजपा, धर्म-जाति से क्या लेना? हां है लेना-देना है। कांग्रेस की सत्ता इस एक बिल से भारत से समाप्त हो जायेगी। भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना मात्र से कांग्रेस का इस जमीन से सफाया हो जायेगा। भला आप भी कल्पना किजियेगा। हां! एक बात और कल माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को दिल्ली के रामलीला मैदान में आधी रात को सोते हुए सत्याग्रहियों पर लाठियों की बरसात एवं अंश्रू गैस छोड़े जाने की घटना पर संज्ञान लेते हुए नोटीस जारी की है। कांग्रेसीगण जरा यह बतायेगें कि यह सुप्रीम कोर्ट कौन सी पार्टी के सदस्य हैं?
    इनका तीसरा चरित्र-
    3. नई-नई व्याख्या करनाः
    कांग्रेसियों ने अपने तरह से सत्याग्रह के नये तरिके से मापदण्ड तय करने का प्रयास किया जैसे कांग्रेसियों के अलावा किसी ने आन्दोलन किया ही नहीं हो। बल्कि कांग्रेसियों ने तो सिर्फ सत्याग्रह के नाम पर अपनी रोटी सैंकी है। सिर्फ भारत की ही बात करें तो गांधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन के बाद कोई भी कांगे्रसी ने कभी भी कोई सत्याग्रह किया ही नहीं। न तो आजादी के पहले का कोई इतिहास है ना ही आजादी के बाद का। जो भी आन्दोलन या सत्याग्रह हुए हैं वे सभी गांधीजी के समय के हैं। इसके बाद केवल लाश बेचने, सांप्रदायिकता भड़काने, मुसलमानों को डराने व उनको एकत्रित कर उनके वोट पर सत्ता प्राप्त कर उनका कभी भी विकास न करना और नेहरु परिवार के इर्दगिर्द चक्कर लगाते हुए अपनी राजनीति धरातल को बनाये रखना यही कांग्रसियों का कुल मिलाकर इतिहास रहा है। कांग्रेसियों की व्याख्या से अब भारत का निर्माण नहीं किया जायेगा। सत्याग्रह की नई व्याख्या अब अन्ना हजारे लिखेगें। जयहिन्द! वन्देमातरम्!

    रविवार, 5 जून 2011

    अपनी बातः ढाक के तीन पाँत - शंभू चौधरी

    Anna Ham Tumare Sath


    कोलकाता, दिनांक 6जून 2011;
    आज निम्न तीन बिन्दुओं पर आपसे बात करूँगाः
    1. भाजपा का अन्धापन,
    2. बाबा रामदेव बनाम लोकपाल बिल एवम्
    3. लोकपाल विधयेक पर सरकार की मंशा।


    1. भाजपा का अन्धापनः
    इस देश में गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, मंहगाई, महिलाओं पर अत्याचार, अराजकता, सांप्रदायिकता, कुपोषन, चिकित्सा, आर्थिक अपराधिकरण, असामाजिक आचरण वालों का राजनैतिक संरक्षण, शिक्षा, किसानों द्वारा आत्महत्या, किसानों की उपजाओ जमीन का व्यवसायीकरण, अनैतिक अधिग्रहण जैसे सैकड़ों मुद्दे भारत के कण-कण में विखरे पड़े हैं, परन्तु पता नहीं संसद के अन्दर पैसे लेकर प्रश्न उठाने वाले भाजपा सांसदों को ये मुद्दे क्यों नहीं वक्त से पहले दिखाई देते। जब कोई इन मुद्दों पर आन्दोलन करता है तो भाजपा वाले सबसे पहले यहाँ पहुँच कर अपनी छवि बनाने का प्रयास करती रही है। रामजन्म भूमि विवाद से लेकर भ्रष्टाचार सहित सभी आन्दोलनों में भाजपा का एक ही चरित्र देखने को मिला कि वो अपने 90 साल के प्रधानमंत्री प्रत्यासी को लेकर लकड़ी से घास खिलाने का काम करती रही है। कभी जिन्ना के नाम पर तो कभी राम के नाम सत्ता का स्वाद लेने की नकाम दौड़ जारी है। पिछले दिनों सरकार ने पेट्रोल के 5 रु. दाम बढा दिये, भाजपा ने एक दिन सांकेतिक हल्ला कर लोगों को सड़कों पर परेशान किया। फिर वही ढाक के तीन पाँत। क्या हुआ? बाबा रामदेव को सबसे पहले मलहम लगाने दौड़ने चाली भाजपा के नेताओं से एक सीधा सा प्रश्न है कि नियत साफ है तो संसद से सारे सदस्यों को इस्तीफा देने को कह कर देश में मध्याविधि चुनाव के लिए जनता के बीच में जाएं और एक शपथ लें कि वे भ्रष्टमुक्त राष्ट्र की कल्पना को मुर्तरूप देने के लिए देश की जनता के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलेगी।

    2. बाबा रामदेव बनाम लोकपाल बिल
    अब बाबा को यह स्वीकार कर लेना चाहिये कि भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने के लिए सभी को साथ लेने की जरूरत है। जिसमें किसी भी राजनैतिक दल का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सहयोग इस लड़ाई को कमजोर करना है। बाबा को मान लेना चाहिये कि यदि राजनेताओं में इतनी ही ईमानदारी हुई होती तो बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल या किरण बेदी की कोई जरूरत नहीं होती। देश को आपलोगों से काफी अपेक्षाऐं हैं। बस एक मंच से एक होकर लड़ने कि हमें जरूरत है। आज से ही आप एह ऐलान कर दें कि यह देश की लड़ाई है इसे हम सब मिलकर लड़ेगें।

    3. लोकपाल विधयेक पर सरकार की मंशाः
    जिस प्रकार कांग्रेसी सरकार के शातिर दिमाग ने बाबा रामदेव को अपने जाल में फांस अपने कांटे को निकालने के लिए जनता के दिमाग का 'आईवास' कर रामदेवजी क आन्दोलन को कुचलने की साजिश रची और आंशिक सफल भी रहे माना जा सकता है। हमको यह मान लेना चाहिये कि लोकपाल विधयेक पर सरकार की मंशा को लेकर जनता के बीच जाने की जरूरत है। इसके लिए हमें अब मध्याविधि चुनाव का मार्गा अपनाने की तरफ कदम बढा़ना होगा।

    हम श्री अरविन्द जी को विश्वास दिलाते हैं


    हमारी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ उस व्यवस्था से है जो इसका पोषन करती आ रही है। न कि किसी व्यक्ति विशेष या सरकार के नुमाईदों के साथ है। बाबा रामदेव ने जब काले धन और भ्रष्ट तंत्र की बात शुरू की तो एक विचारधारा के सभी लोगों का एक मंच पर जमा होना स्वभाविक सा था। इस क्रम में स्वामी अग्निवेश जी, श्री अन्ना हजारे, श्री अरविन्द केजरीवाल एवं किरण बेदी का एक साथ एक मंच पर आना इस लड़ाई को बल देने लगा।
    अपने स्वभाव से उग्र श्री अन्ना हजारे ने इस लड़ाई को आर-पार की लड़ाई कर अनशन का मार्ग चुन लिया जबकि श्री बाबा रामदेव जी सरकार को सिर्फ खोखली धमकी देते रहे। अन्न जी ने जैसे ही इसका दिल्ली में अनशन शुरू किया बाबा को एकबार लगा कि उनका मुद्दा अन्ना जी ने हाईजेक कर उसे किनारे कर दिया है। वे एकबार मंच पर दिखे पर बड़े वेमन से मंच आये। तब तक देश की जनता पुरी तरह से अन्ना के आंदोलन से जुड़ चुकी थी। एक ही रात में अन्ना के नाम से केन्द्र सरकार हिल चुकी थी। पहले दिन आनाकानी करने वाल श्री सिब्बल जी एवं प्रनव दा के स्वर बदलने लगे। सरकार सभी बातों को क्रमवार मानते चली गई। बाबा को लगा कि उसे किनारा कर दिया गया हो, फिर ड्राफ्टींग कमिटि में खुद के नाम को न पाकर सिविल सोसाइटी द्वारा नामांकित कुछ नामों पर अपनी आपत्ति तक दर्ज करा दी। यही कसक बाबा को नागवार गुजरा जिसको लेकर वे एक योजना के तहत कार्य करने लगे। इस घटना के बाद अन्ना सहित उन सभी लोगों को बाबा के मंच पर आने न तो निमंत्रन दिया गया। न ही बाबा की तरफ से कोई ऐसी पहल की गई। कांग्रेस के चतुर राजनीतिज्ञों ने इस बीच के दरार को दो फाड़ करने के लिए जहाँ एक तरफ बाबा को एक ही मुद्दे पर तुल देने लगे तो दूसरी तरफ सिविल सोसाईटी के सदस्यों के साथ कड़ाई से पेश आने लगे। अन्ना के साथीगण इस दोहरी राजनीति के शिकार हाने लगे। इनको लगा कि बाबा की इस पहल से कांग्रस पार्टी इस ड्राफ्टिंग कमिटि की हवा निकाल देगी।
    सबकुछ सिलसिले बार चल रहा था। बाबा को लगा कि अब वे कांग्रेस पार्टी के कहे चलकर अपना उल्लू सीधा कर लेगें। परन्तु वे अपने और पराये का फर्क नहीं समझ पाये। वे कांग्रेस के श्री कपिल सिब्बल एवं श्री सुबोधकांत सहाय को अपना विश्वासपात्र मान उनके बुलावे पर उनके मांद में वैगर किसी को बताये चुपचाप समझौता कर आये। मजे कि बात यह कि अपने एक सहयोगी द्वारा लिखित समझौते को पुरे दिनभर मीडिया से छुपाये रखा। खर! हम बाबा रामदेव की इस भूल को हमारी हार मानते हुए पुनः संगठित रूप से इस लडा़ई को आगे जारी रखेगें एवं बाबा रामदेव जी की प्रतिष्ठा को सम्मान करते हुए हम श्री अरविन्द जी को विश्वास दिलाते हैं कि हम सभी आपके साथ हैं। पूर्व में लिखे मेरे दोनों लेख को हटाने की घोषणा करते हुए आगे के आदेश की अपेक्षा करता हूँ। शम्भु चौधरी, कोलकाता