रविवार, 21 सितंबर 2008

श्रद्धांजलि : डॉ.प्रभा खेतान को




प्रसिद्ध कथाकार डॉ. प्रभा खेतान नहीं रहीं। 66 वर्षीय प्रभा खेतान ने कल देर रात कोलकाता में अंतिम सांस ली। दो दिन पहले ही उन्हें सांस में तकलीफ की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शुक्रवार को उनकी बाईपास सर्जरी की गई थी, जिसके बाद उनकी हालत बिगड़ गई थी।


कवयित्री, उपन्यासकार और नारीवादी-अस्तित्ववादी चिन्तक डॉ. प्रभा खेतान का 19 सितम्बर 2008 को कोलकाता में निधन हो गया। दिनांक 21.09.2008 को इनके पार्थिव शरीर को पंचतत्त्व में विलिन कर दिया गया । गत सप्ताह ही उनसे मेरी मुलाकात हुई थी। आप चाहती थी कि इनके समस्त साहित्य यूनिकोड में परिवर्तित कर इन्टरनेट के पाठकों को उपलब्ध करा दिया जाय। इस क्रम में उनसे दो-तीन बार फोन पर बात भी हुई। अन्तीम बार जब वे हॉस्पीटल में थी तब आप से बात हूई थी। आज जब समाचारपत्र देखा तो, हम सभी दंग रह गये। इनके जीवन जीने का ढंग एक दम से निराला था। संपन्न परिवार में जन्म लेने के बाद भी आपने अपने आस पास कभी संपन्नता को प्रदर्शित नहीं होने दिया। आपका जन्म 1 नवंबर 1942 को हुआ। आपकी प्ररंभिक शिक्षा व उच्च शिक्षा कोलकाता में हुई। दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने "ज्याँ पॉल सार्त्र के अस्तित्त्ववाद" पर पीएचडी की। आपने 12 वर्ष की उम्र से ही अपनी साहित्य यात्रा का शुरुआत कर दिया था। उनकी पहली रचना (कविता) सुप्रभात में छपी थी, तब वे सातवीं कक्षा की छात्रा थी। 1980-81 से आप पूर्ण कालीन साहित्यिक सेवा में लग गई। आपकी छः कविता संग्रह 'अपरिचित उजले' (1981), 'सीढ़ियां चढ़ती हुँ मैं' 91982), 'एक और आकाश की खोज में' (1985), 'कृष्णधर्मा मैं' (1986), 'हुस्नोबानो और अन्य कविताएं' (1987), और 'अहिल्या ' (1988),। आपकी कई गद्य- उपन्यास 'आओ पेपे घर चले ' काफी चर्चित उपन्यास रहा। बाद की औपन्यासिक कृतियां 'तालाबंदी' (1991), ' अग्निसंभवा ' (1992) , 'एड्स ' ,' छिन्नमस्ता ' (1993), ' अपने -अपने चहरे ' (1994), ' पीली आंधी ' (1996), स्त्री पक्ष (1999) सभी उपन्यास साहित्यिक क्षेत्र में प्रशंसित रही। डॉ. प्रभा खेतान के साहित्य में स्त्री यंत्रणा को आसानी से देखा जा सकता है। बंगाली स्त्रियों के बहाने इन्होंने स्त्री जीवन में काफी बारीकी से झांकने का बखूबी प्रयास किया। आपने कई निबन्ध भी लिखे। सिमोन द बोउवा की पुस्तक ‘दि सेकेंड सेक्स’ के अनुवाद ‘स्त्री उपेक्षिता’ ने उन्हें स्त्री विमर्श की पैरोकार के तौर पर पहचान दी। आपकी आत्मकथा 'अन्या से अनन्या ' की तो पूरे हिन्दी जगत में धूम रही । डॉ. प्रभा खेतान को स्त्रीवादी चिन्तक होने का गौरव जहाँ प्राप्त हुआ वहीं स्त्री चेतना के कार्यों में सक्रिय रूप से भी आप हिस्सा लेती रहीं। आप 'कोलकत्ता चेम्बर आफ कामर्स ' की पहली महिला अध्यक्षा भी रहीं। उन्हें ' 'प्रतिभाशाली महिला पुरस्कार ' और टॉप पर्सनैलिटी अवार्ड ' मिला। साहित्य में उल्लेखनीय अवदान के लिये केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का 'महापंडित राहुल सांकृत्यायन ' पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों मिला। अब तक आपकी 6 कविता संग्रह, 7 उपन्यास, 2 उपन्यासिका, 6 चिन्तन, 1 आत्मकथा, 2 अनुवाद प्रकाशित व कई साहित्य संपादन का कार्य। धर्मयुग, हँस, जनसत्ता, कथा देश, सहारा समय, आऊटलुक पत्रिका, तद्भव, दैनिक जागरण में आपके कई लेख प्रकाशित। प्रभा खेतान फाउन्डेशन की संस्थापक अध्यक्षा, नारी विषयक कार्यों में सक्रिय रूप से भागीदारी रही, फिगरेट नामक महिला स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना, 1966 ई. में, 1976 से चमड़े तथा सिले-सिलाए वस्त्रों का निर्यात, अपनी कंपनी 'न्यू होराईजन लिमिटेड' की प्रबंध निदेशिका, हिन्दी भाषा की लब्ध प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कवियित्री तथा नारीवादी चिंतक का इस तरह चले जाने से हिन्दी साहित्य जगत को काफ़ी क्षत्ति हुई है। ई-हिन्दी साहित्य सभा की तरफ से आपको अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि - शम्भु चौधरी

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभा जी के निधन का समाचार पाकर काफी दुख हुआ। हार्दिक श्रद्धांजलि। उनका साहित्‍य हमेशा उन्‍हें जीवित रखेंगे।

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  2. प्रभा जी को हमारी भी श्रद्धांजलि समर्पित है।

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  3. प्रभा खेतान का निधन साहिहत्‍य की अपूर्णीय क्षति है, मैं उनके उपन्‍यास 'छिन्‍नमस्‍ता' का रहा हूं। उनके चले जाने के बाद अब ऐसे उपन्‍यासों पढने को कहां मिलेंगे।

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  4. डॉ स्नेह प्रभा को मेरी भी श्रद्धांजली

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  5. seema jadhav, prabhaji ko bhavbhine shradanjali...sahitya ke jariye aap hamesha hamare saat hongi

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