प्रकाश चण्डालिया
संपादक 'राष्ट्रीय महानगर' (हिन्दी साप्ताहिक)
हिन्दी दैनिक सन्मार्ग के संचालक-संपादक श्री राम अवतार गुप्ता का मंगलवार 23 सितंबर को स्वर्गवास हो गया। वे 83 वर्ष के थे। अदम्य साहस और प्रबल इच्छाशक्ति के प्रतीक गुप्ताजी ने सन्मार्ग को निर्विवाद रूप से पूर्वी भारत का सर्वाधिक प्रसारित हिन्दी दैनिक बनाया। किसी जमाने में वे इस समाचार पत्र के प्रबन्धक हुआ करते थे। तत्कालीन संचालकों ने जब अखबार को बन्द करने का निर्णय किया तो श्री गुप्ता को यह फैसला रास न आया और उन्होंने मालिकों से सन्मार्ग खरीदने की इच्छा प्रकट की। अत्यन्त संघर्ष के बाद उन्होंने सन्मार्ग खरीदा, इसे बखूबी पटरी पर लाए और जीवन की अंतित सांस तक इसकी विकास यात्रा के सारथि बने रहे। उनके इकलौते पुत्र का वर्षों पहले असामयिक निधन हुआ था। इस कारण इस समाचार पत्र को उन्हें स्वयं के पराक्रम से ही संचालित करना पड़ा। बल्कि यूं भी कहा जा सकता है कि कालान्तर में सन्मार्ग परिवार के सभी सदस्य इनके पुत्र सरीखे हो गए। गुप्ताजी अंतिम समय तक अखबार में निरंतर निखार लाने में लगे रहे। न्यूजप्रिंट की कीमतों का हिंसाब तो कोई गुप्ताजी से सीखे। विज्ञापन के क्षेत्र में भी वे एक-एक सेंटीमीटर का मोल समझा करते थे। हिन्दी समाचार पत्र संचालकों में उनका नाम देश भर में आदर के साथ लिया जाता रहा है। वे समाचारपत्र संचालकों की अखिल भारतीय संस्था आईएनएस के पदों पर भी रहे। प्रतिष्ठित मातुश्री पुरस्कार से भी उन्हें नवाजा गया था। श्री राम अवतार गुप्ता अन्य सम्पादकों के मुकाबले आत्मप्रचार से सर्वदा दूर रहे। ऐसा भी नहीं था कि शोहरत ने उन्हें दंभी या आत्ममुग्ध बना दिया था। हिन्दी पत्रकारिता के विकास के लिए उनकी प्रेरणा से अ.भा.हिन्दी पत्रकारिता विकास परिषद की स्थापना की गयी।
गुप्ताजी पर रामजी की कृपा अवश्य थी। सन्मार्ग की यात्रा रामनवमी से शुरू हुयी, उनका नाम राम अवतार था और उनका निधन मंगलवार को हुआ। यह महज संयोग हो सकता है, पर आस्था रखने वाले के साथ प्रभु कहीं न कहीं लीलाएं करते ही रहते हैं। गुप्ताजी के कक्ष में रामदरबार का चित्र सहज ही किसी की भी श्रद्धा का केंद्र बन जाता था।
देश के किसी कोने में भी यदि राष्ट्रीय स्तर का कोई समाचारपत्र प्रकाशन यात्रा शुरु करता है तो स्थानीय स्तर पर अपेक्षाकृत कम संसाधनों पर चलने वाले अखबारों पर प्रतिकूल असर तो पड़ता ही है। पर सन्मार्ग इस मामले में अपवाद माना जा सकता है। नवभारत टाइम्स भी यहां से निकला पर सन्मार्ग को टक्कर नहीं दे पाया। 1991 में इण्डियन एक्सप्रेस के हिन्दी दैनिक जनसत्ता का प्रकाशन शुरू होने पर गुप्ताजी को विचलित होते अवश्य देखा गया था, पर उन्होंने अपनी दूरदर्शिता के साथ सन्मार्ग में कई आमूलचूल परिवर्तन करते हुए पेज बढ़ाए, नतीजतन जनसत्ता की भारी भरकम सम्पादकीय फौज और तेवरों से लोहा लेने में वे कभी पीछे नहीं रहे। जनसत्ता के बाद शहर में और कई बड़े घरानों के अखबारों ने अपनी प्रकाशन यात्रा शुरु अवश्य की, पर सन्मार्ग के करीब आजतक कोई नहीं है। सन्मार्ग का कोलकाता संस्करण देश के इस भूभाग के हजारों हिन्दी पाठकों का पहला प्यार है। हजारों लोगों की नींद सन्मार्ग देखकर खुलती है।
हालांकि यह भी सत्य है कि गुप्ताजी ने जब पेज तीन (अब 4 पर) पर छपास रोगियों की फोटुओं को विज्ञापन का दर्जा देकर प्रकाशित करना शुरु किया तो सुधी पाठक इसे पचा नहीं पाए। आज भी इसे पत्रकारिता के मानदण्ड के खिलाफ माना जाता है। पर इस सम्बन्ध में गुप्ताजी से पूछा जाता तो वे कभी मुंह नहीं छुपाते थे। साफ कहते-यार, यहां हर किसी को अपनी फोटू छपाने का रोग है, किसकी छापें, किसको इनकार करें। छपास रोगियों को आज विज्ञापन की दर से सन्मार्ग में अपनी तस्वीर छपानी पड़ती है। हालांकि यह सिलसिला और अखबारों में भी है, लेकिन सन्मार्ग के अपने तेवर हैं। यही कारण है कि लोग सन्मार्ग में हजारों रुपए देकर फोटुएं छपाते हैं। सन्मार्ग में फोटू छपाने के लिए कुछ का सालाना बजट तो लाखों का है। इसमें भी दो राय नहीं कि ऐसा अधिकतर मारवाड़ी समाज के कुछ मध्यमवर्गीय लोग ही अपनी भड़ास निकालने के लिए करते हैं। कभी कभी तो छपास रोगियों की फोटुएं हास्यास्पद बन जाती हैं। इन सब स्थिति को भांपते हुए लगता है, गुप्ताजी ने सही कदम उठाया था।
गुप्ताजी अन्यान्य सम्पादकों की तरह सामाजिक संस्थाओं में अधिक फेरी नहीं लगाते थे। जब उनकी ऐसा करने की उम्र थी, उनका अपना दौर था, तब भी नहीं। उन्हें इतवारी समारोहों में मंचों पर ज्यादा नहीं देखा जाता था। यही नहीं, सन्मार्ग कार्यालय के समीप ही विशुद्धानन्द सरस्वती विद्यालय में मारवाड़ी समाज का पारम्परिक होली व दीपावली का सम्मेलन हुआ करता है। मारवाड़ी समाज का प्रतिनिधि प्रीति सम्मेलन होने का दावा किया जाता है, पर गुप्ताजी शायद ही ऐसे आयोजनों में शरीक हुए। मेल-मिलाप की रस्म अदायगी के लिए वे कार्यक्रम की समाप्ति पर सभा स्थल पर अवश्य जाते और लोगों से दुआ-सलाम कर वापस अपने कक्ष में लौट जाया करते। सम्मेलन की सभा में मैंने हाल के वर्षों में उन्हें कभी नहीं देखा। इसके पीछे कारण कुछ भी रहा हो, पर मुझे गुप्ता जी के इस कदम पर स्वाभिमानी सम्पादक की भूमिका नकार आती है। वैसे भी जिस प्रतिनिधि प्रीति सम्मेलन में समाज की नेतागिररि करने वाले बमुश्किल 100-150 लोग उपस्थित होते हों, वहां गुप्ताजी जैसे वरिष्ठ पत्रकार की उपस्थिति उनकी कमजोरी पर मुहर ही तो लगाती।
इन पंक्तियों के लेखक को गुप्ताजी का स्नेह एवं आशीर्वाद सदैव प्राप्त हुआ। सन 1999 में मेरे संपादन में निकलने वाले महानगर गार्जियन पर हमला होने पर गुप्ताजी को सूचित किया तो न सिर्फ उन्होंने तत्कालीन विधायक स्व. सत्यनारायण बजाज की तरह हर संभव सहयोग का आश्वासन देकर मनोबल बढ़ाया बल्कि सन्मार्ग में इस घटना को प्रमुखता से प्रकाशित भी किया था। यहां अग्रज पत्रकार की भूमिका साफ नकार आती है।
राष्ट्रीय महानगर को भी श्री राम अवतार गुप्ता ने सदैव अपने स्नेह से नवाजा। सांध्य दैनिक से साप्ताहिक संस्करण में तब्दील किए जाने के उपरान्त नए तेवर में आए राष्ट्रीय महानगर की पेज सज्जा और सामग्री के चयन पर उन्होंने अत्यन्त हर्ष व्यक्त किया था और अपना भरपूर आशीर्वाद दिया था। सन्मार्ग के प्रधान संवाददाता सुरेंद्र सिंह ने बताया कि गुप्ताजी ने किस प्रकार सन्मार्ग के सम्पादकीय विभाग के सहयोगियों के समक्ष राष्ट्रीय महानगर को सराहा था। (यह अलग बात है कि जब श्री सुरेंद्र सिंह ने मुझे फोन पर यह जानकारी दी थी, मैं शहर के ही एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार के साथ अहमदाबाद से उदयपुर की यात्रा पर था और वे महाशय राष्ट्रीय महानगर के नए तेवर पर अपनी ईर्ष्यात्मक प्रतिक्रिया दे रहे थे)।
वरेण्य श्री राम अवतार गुप्ता के निधन पर ई-हिन्दी साहित्य सभा परिवार की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। गुप्ताजी का नहीं रहना सन्मार्ग के लिए तो दु:खद है ही, पत्रकारिता से जुड़े हर शख्स के लिए यह निजी क्षति जैसी घटना है।
दु:ख की इस घड़ी में उनके उत्तराधिकारी पौत्र विवेक गुप्ता तथा समस्त परिजनों, सन्मार्ग परिवार के समस्त साथियों को परमपिता संबल प्रदान करें, यही कामना है।
dukhad....
जवाब देंहटाएंmera naman....