मंगलवार, 16 सितंबर 2008

आजतक द्वारा किये जा रहे पाँच दिन प्यापी बहस में हिस्सा लें:


दिल्ली में सीरियल धमाके और बंगलौर - अहमदाबाद के पहले ही सूचनातंत्र को मेल भेजकर इंडियन मुजाहिद्दीन नामक धर्मनिरपेक्ष संस्था ने यह बता दिया था कि भारत की सुरक्षा में लगे ये खुफियातंत्र कितने सतर्क हैं । हम जिस वोट के लिए व्याकुल दिखते हैं, धीरे-धीरे वे तत्त्व ही हमारी धर्मनिरपेक्षता को लील रहे हैं । राजस्थान के बाद ठीक तीन माह के भीतर ही इन तत्त्वों ने एक के बाद एक शहर को निशाने पर ले लिया और हमारी एजेंसियां देखती रह गई । शायद इनको इस बात का खतरा था कि कहिं इनके किसी भी हरकतों से देश की धर्मनिरपेक्षता को खतरा न हो जाय, नहीं तो ऐसी क्या बात थी कि राजस्थान, बंगलौर - अहमदाबाद में हुए धमाके के बाद देश की राजधानी में पुनः बड़ा धमाका हो गया और हम देखते रह गये । श्रृंखलाबद्ध इन धमाकों ने यह बताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी कि इन तत्त्वों की ताकत हमारी राजनीतिज्ञों के धर्मनिरपेक्ष चहेरे को कितना काला कर रही है, अभी हाल ही में इनकी नंगी प्रस्तुतीकरण हमें संसद के भीतर देखने को मिली थी। ईमेल संदेश इस बात का भी संकेत देते हैं कि इन तत्त्वों के पीछे किसी आतंकवादी संगठन का हाथ न होकर धार्मिक कट्टरवादीता है । निश्श्चित रूप से यह देश के राजनेताओं के ढ़ोंगी धर्मनिरपेक्षता का ही परिणाम माना जायेगा । ऐसा प्रतीत होता है कि इनको देश से कोई हमदर्दी नहीं कोई वोट के, तो कोई नोट के लिये संसद में जाता है । हर मानसिकता में धर्मनिरपेक्षता को बचाने की ताकत काम कर रही है । ऐसी धर्मनिरपेक्षता जो इनके वोट बेंक को बरकरार रख पाये । मानो वोट के लिए देश को भी बेच देंगे ये धर्मनिपेक्षता के पहरेदार ।
इस धर्मनिरपेक्षता ने देश को अंधकार में धकेल दिया है । कोई भी सरकार कुछ करने से घबराने लगी, सुरक्षा एजेंसियां कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर पाती, कानून को पंगू बना दिया गया है, लोग मारे जा रहे हैं और यह सब हम देखकर भी लाचार हो चुके हैं । शायद हमारी नियती को घुन लग गया है जो धीरे-धीरे हमारी धर्मनिरपेक्ष पहचान को भीतर ही भीतर चाटता जा रहा है। किसी अजगर की तरह निगल जाये इससे पहले हमें इसके परिणाम को खुली आंखों से देखना होगा न कि वोट की आंखों से । यह मामला धारा 370 का नहीं, देश की एकता और अखंडता से ताल्लुक रखता है। जिस तरह सांप्रदायिकाता से हमें खतरा है ठीक इससे कई गुणा हमें धर्मनिपेक्षता से होने लगा है, हमें किसी तीसरे मार्ग को तलाशना होगा जहाँ ये दोनों सर को कुचले जा सकें । आपकी राय भी हमें लिख भेजे। - शम्भु चौधरी

Email: Ehindi Sahitya shabha

1 टिप्पणी:

  1. हाँ जी मैं देखता हूँ .
    बहुत ही अच्छा प्रयास है . सत्ता के लिए सियाशी चालों की बखूबी जानकारी दी जा रही है . जो की आज के बढ़ते आतंक वाद की लिए जिम्मेदार हैं .

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