रविवार, 20 जुलाई 2008

कलियों को मुसकाने दो

बेटा आया, खुशियां आईं
सोहर-मांगर छम-छम-छम
बेटी आयी, जैसे आया
कोई मातम का मौसम
मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो।
इस कवि का हृदय जानने के लिये शीर्षक " कलियों को मुसकाने दो " पूरी कविता नीचे लिंक में दिया हुआ है। आप भी भाग लेवें इस बहस में। आगे देखें - बहस : भ्रूण हत्या

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