सोमवार, 4 मई 2020

व्यंग्य: बहारों फूल बरसाओ !

....शंभु चौधरी, कोलकाता ।


इस युद्ध में  रामप्रसाद जी का पूरा परिवार लहू’लुहान हो चुका था भक्तों के शब्द बाणों से निकली माँ-बहन-बेटी किसी को बाकी नहीं छोड़ा गया । युद्ध महाभारत बन चुका था । देशद्रोही का आधार कार्ड बांटा जा रहा था । देर रात रामप्रसाद जी भले थक कर सो गए पर भक्तों का हमला जारी था ।

4 मई 2020, कोलकाता (भारत):
रामप्रसाद जी ने 30 साल पत्रकारिता क्या कर ली खुद को प्रधानसेवक से ही ऊपर समझने लगे । बात-बात में सवाल-जबाब करने लगते । अब कल की ही बात लो, प्रधानसेवक ने देश के सभी सेना विंगों को बुलाकर गुप्त रूप से कहा कि लॉकडाउन के दूसरे चरण की सफलता पूर्वक समाप्ति के अवसर को एक उत्सव के रूप में मनाये और भारतीय सेना के तीनों सेनाध्यक्षों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी । अचानक से सेना के तीनों सेनाध्यक्ष मीडिया के सामने आकर जो कहा उससे रामप्रसाद जी के तो तोते ही उड़ गये। 

जो क्षेत्र आवाज प्रतिबंधित है वहाँ सेना के जवानों ने जाकर उसकी बैन्ड बजा दी, हेलीकेप्टरों से फूलों की बरसात करने की घोषणा की । भला इसमें क्या गलत है ? यह तो गर्व की बात है । सेना के जवानों के द्वारा फूलों की बरसात, बैन्ड-बाजों से स्वागत, पर रामप्रसाद जी लगे प्रधानसेवक से सवाल-जबाब करने । आदत से मजबूर हर अच्छे काम को उल्टे चश्मे से देखना ।

आजकल पत्रकारों के पास बिना कांच का चश्मा प्रधानसेवक ने भिजवा दिया जिसके अंदर से नोटों की बरसात होती है । पर इनको कौन समझाए । सारे पत्रकारों के अच्छे दिन आ गए । अब जिसके भाग्य में रामप्रसाद जी जैसे मुर्ख पत्रकारों की लकीर लिखी हो उसे फकीर बनने से कौन रोक सकता है। एक बार सच क्या लिख दिये, नौकरी गई ।

‘‘आगे से सच मत लिखा करो’’ 
जिला मजिस्ट्रेट ने बेल देते हुए कहा कि - ‘‘ जब सच्ची बात लिखने से किसी का अपमान होता तो क्यों लिखते हो? पांच सौ रुपये का जुर्माना ठोकते हुए चेतावनी दी ‘‘आगे से सच मत लिखा करो’’ ’’

‘‘तूमने झूठी खबरें क्यों छापी?’
दूसरी बार रामप्रसाद फिर मजिस्ट्रेट के सामने खड़े हुए तो मजिस्ट्रेट सा’ब ने पूछा - ‘‘तूमने झूठी खबरें क्यों छापी?’’ फिर पांच सौ रुपये का जुर्माना ठोकते हुए चेतावनी दी ‘‘आगे से झूठी खबरें   मत छापा करो’’ ’’
मजिस्ट्रेट के सामने तब भी लाचार थे अब भी लाचार ।

अब रामप्रसादजी घर में बैठकर थाली पीटते हैं। कल तक घर में जो इज्जत पत्नी-बच्चे किया करते उस बैलेंस शीट में कारोबारी डेप्रिएसिएशन हिन्दी में (औद्योगिक मूल्यह्रास) होने लगा था । इस प्रथा में मजदूरों के शारीरिक क्षय होने से उसकी आमदनी कम हो जाती है जबकि उद्योगों में लाभ माना जाता है। यानी कि जिस उद्योग में जितना बड़ा डेप्रिएसिएशन मिलता है कम्पनी को उतना बड़ा लाभ होता है। मूल्यह्रास की इस प्रथा को अंग्रेजी में आर्थिक विकास बोलते हैं । 
रामप्रसाद जी की आदत है बातों को भटका के कहने की ।
पाठकों के इनकी बात उनके सर के ऊपर से निकल जाती थी । 
तभी तो इनका मूल्यह्रास भी जल्दी हो गया और इनका आर्थिक विकास भी नहीं हो सका । कलम घिसते-घिसते साठिया गए, पर अब तक साठ का पहाड़ा याद नहीं कर सके । 

जमा पूंजी के नाम पर बैंक बैलेन्स जीरो बटा जीरो । खैर अपने स्वभाव से जिद्दी रामप्रसाद जी आजकल सोशल मीडिया के ही सहारे जी रहें हैं। लगे प्रधानसेवक को ट्विट करने ।

रामप्रसाद जी ने पहला ट्विट किया ‘‘सड़कों पर हजारों मजदूर फंसे पड़े हैं सर! जी उनको इन हेलिकप्टरों से उठाकर उनके गांव छुड़वा देते ।’’

बस क्या था प्रधानसेवक के भक्त उन पर गिद्ध की तरह टूट पड़े ।
‘‘किसी ने लिखा तेरे बाप का क्या जाता है ? देखते नही ये फूल सड़कों पर नहीं, कोरोना से लड़ रहे उन योद्धाओं पर बरसाया जा रहा है जो हम लोगों की जान बचाने में पिछले 40 दिनों से लगे हैं।’’

अब तर्क तो बहुत तगड़ा था। रामप्रसाद जी चिंता में डूब गए । पर रामप्रसाद जी कहां थमने वाले थे।
उन्होंने भी नहले पर दहला मारा । आखिर, उनको भी तीस साल की पत्रकारिता का तजुर्बा जो था ।

भक्त के ट्विट पर रामप्रसाद जी ने जबाब दिया - "सड़कों पर हजारों मजदूरों ने कौन सा अपराध कर दिया कि इनको पैदल ही गांव जाना पड़ रहा है। दरअसल देखा जाए तो असली योद्धा तो ये लोग है जो सरकार से बिना किसी फ़रियाद के चुपचाप सैकड़ों मील पैदल ही गांव की तरफ अपने परिवार व बच्चों को लेकर निकल पड़े । कुछ तो रहम करो । इनके लिए भी सरकार कुछ सोचे ?"

भक्त कहां रूकने वाले थे ।
दूसरे भक्त ने पलट के एक तमाचा मारा । ‘‘ सर जी ! दिखने में आप समझदार लगते हो पर अक़ल घास के बराबर है। आपकी उम्र का लिहाज कर रहा हूँ। जिसे आप देश के योद्धा बोल रहे हो दरअसल ये लोग देश के गद्दार हैं जिन्होंने लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं किया । जब लोगों को निकलना बंद कर दिया गया, तो ये लोग गांव क्यों जा रहें ?

रामप्रसाद जी ने फिर लिखा - ‘‘ आप समझदार लगते हो लिखते हो तो मानो ट्विटर से फूलों की बरसात हो रही हो । इनका कसूर तो इतना ही है कि ये मजदूर हैं दो वक्त की रोटी कमाने शहर आये थे । अब, जब, सब, बंद हो चुका तो कहाँ रहें? मालिकों ने इनकी छुट्टी कर दी ‘‘ बोले अपने-अपने घर जाओ । काम नहीं है ।’’

मालिकों ने  प्रधानसेवक की भी बात भी नहीं मानी  - ‘‘बोले जाकर उनसे पैसा ले लो।’’
अब शहर में जीना, वह भी काम के बिना कैसे संभव होगा?
साथ में सत्तू-चुड़वा है जो पांच-सात रोज चलेगा । इसके बाद ?
गांव पंहुच गये तो कम से कम खाने को दाना तो मिल जाएगा इनको । बड़े विनम्रभाव से उसकी बातों का जबाब दिए ।

पर भक्तों का गुस्सा तो सातवें आसमान में चढ़ चुका था ।
‘‘ सब व्यक्तिगत हो कर गाली पर उतर आया ’’ बोलने लगा अरे ‘‘$#$#’’ तेरा दिमाग ठिकाने लगा दूंगा अब एक शब्द भी लिखा तो ।

रामप्रसाद जी कहाँ थमने वाले थे । रामप्रसाद जी ने भी दो-दो हाथ करने की सोच ली, इनका भी खून पानी की तरह खौलने लगा । वैसे भी साठ साल की उम्र में शरीर का सारा खून पानी हो जाता है। आमदनी के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। प्रेस मालिकों को लगता है कि अब यह पत्रकार भोथरा हो चुका है। मशीनों की तरह हमें भी बदल दिया जाता है। उम्र ढल जाने से लिखावट में भी धार कहाँ रहती ? 

खुद से सवाल करते हुए राम प्रसाद जी फिर भक्तों के मना करने के बाबजूद फिर जबाब देने बैठे गए - ‘‘भाई ! हमने हिंजड़ों को सड़क पर नाचते बहुत देखा था । पर देश को नाचते पहली बार देख रहा हूँ ।’’ 

वह भी तब जब देश में कोरोना महामारी का फन सांप की तरह लोगों को डसे जा रहा है। अस्पतालों में लोग मरे जा रहे हैं । अस्पतालों की हालात दर्दनीय बनी हुई है । सरकार द्वारा जरूरी सुविधा अब तक इन डाक्टरों तक नहीं पंहुच पाई है। रोजाना डाक्टर भी कोरोना के शिकार होते जा रहें हैं । किस बात का घमंड हो गया आपको?

‘‘कभी थाली बजाओ’’ लोग थाली बजाने लगे । मानो कोरोना थाली की आवाज से डर जाएगा । सरकार जिस दिन थाली पीटवा रही थी, उस दिन संक्रमित लोगों की संख्या एक हजार से कम थी । 

जिस दिन घर-घर दीये जलाये गये उस दिन देश में संक्रमित लोगों की संख्या चार हजार पार कर गई । बड़ी संख्या में लोगों की मरने की सूचना आने लगी।  पहले घर में अंधेरा करो फिर दीया जलाओ। तबतक अस्सी से सौ घरों के दीये बूझ चुके थे । 

अब जब 3 मई को भारतीय सेनाओं ने पुष्प वर्षा की तो मेरा मन और भी हर्षित होकर झूम उठा । आखिर सेना के जवानों पर गर्व जो ना करे वह देशद्रोही ही होगा । सेना दिन-रात हमारी रक्षा में लगी है उनके ऊपर सवाल उठाना किसी भी अपराध से कम नहीं होगा । सड़कों पर देश के हजारों भूखे-प्यासे मजदूरों ने भी सर उठा कर जरूर महसूस किया होगा कि देखो ‘‘मेरा भारत कितना महान है।’’ सेना की कलाबाजियों से एक बार तो ये लोग भी अपनी भूख-प्यास भी भूल गए होंगे । टीवी चैनलों के द्वारा सेना के गौरवपूर्ण कलाबाजियों को दिखाये सरकार थक नही रही थी मनोरंजन से भरपूर इस कलाबाजियों को भला कौन सलाम नहीं करेगा? हवा से लेकर समुद्र तक सेना के तीनों विंग कहीं बैण्डबाजों से कोरोना के योद्धाओं का उत्साहवर्धन कर रहे थे तो कहीं हेलिकेप्टरों के द्वारा फूलों की बरसात हो रही थी, वहीं समुद्र में नव सेनाओं ने आतिशबाजी कर कोरोना के योद्धाओं को सलामी ठोकी ।

अब भक्तों का पारा सातवें आसमान पर था । एक साथ कई भक्तों ने मोर्चा संभाल लिया ।
एक तरफ रामप्रसाद जी शहीद होने को तैयार थे, तो दूसरी तरफ प्रधानसेवक की सेना निहत्थे रामप्रसाद पर गोलियां बरसाने में लगी थी ।

इस युद्ध में रामप्रसाद जी का पूरा परिवार लहू’लुहान हो चुका था भक्तों के शब्द बाणों से निकली माँ-बहन-बेटी किसी को बाकी नहीं छोड़ा गया । युद्ध महाभारत बन चुका था । देशद्रोही का आधार कार्ड बांटा जा रहा था । देर रात रामप्रसाद जी भले थक कर सो गए पर भक्तों का हमला जारी था । चुकी उनको पता था कि घनघोर बादलों में सेना के लड़ाकू विमान दुश्मनों के राडार से बच निकलेगें ।

दूसरे दिन रामप्रसाद जी उठे तो देखा कि भारत में मरने वालों की संख्या तेरह सौ के पार कर चुकी थी। रामप्रसाद जी गुणगुणाने लगे ‘‘ बहारों फूल बरसाओ ’’ सुबह एक नया समाचार आया कि मजदूरों को वापस लाने वाली स्पेशल ट्रेन में नब्बे सीटें खाली थी,  मजदूरों को इसलिए  ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया गया क्योंकि उन मजदूरों के पास टिकट के पैसे नहीं थे । मजदूरों पर आंसू बहाने वाले प्रधानसेवक कल एक दिन में करोड़ों रुपये का तेल, फूल सिर्फ छोटे से अहंकार में फूंक डाले, लाखों मजदूर, गरीब मरे तो मरे पर हिन्दू धर्म खतरे में नहीं होना चाहिए।  शायद यह देश भी अब इन मजदूरों का नहीं रहा। क्योंकि हर तरफ इन्हें ही दोषी करार दिया जा रहा है। ये लोग सड़कों पर क्यों? जब देश लॉकडाउन का उत्सव मना रहा हो। जयहिन्द !


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