भ्रष्टाचार बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा
राफेल सौदे की पुनरीक्षण याचिका पर केन्द्र सरकार, दलील पर दलील दिये जा रही है कि चौकीदार चोर नहीं हैं इसके साथ ही वा ‘‘शासकीय बात अधिनियम, 1923’’ का हवाला भी दे रही है कि जो दस्तावेज अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के द्वारा अपनी दलील में दिये गये हैं वे सभी दस्तावेज़ चोरी से प्राप्त किये गए हैं। परन्तु चौकीदार की सरकार इस बात को अपनी जिरह में बताना भूल जाती है कि यदि भ्रष्टाचार से जुड़ा ममला है तो ‘‘शासकीय बात अधिनियम, 1923’’ यहां लागू होता है या नहीं ? जबकि आरटीआई एक्ट, 2005 के अध्याय - 6, धारा -24 की उपधारा - 4 "देश के हरेक नागरिकों को भ्रष्टाचार व मानवाधिकार के मामले में सुरक्षा प्रदान करती है। " देश की कोई भी अदालत किसी भी ऐसे भ्रष्टाचार को ‘‘शासकीय बात अधिनियम, 1923’’ के बहाने ना तो सुनवाई से इंकार ही कर सकती है ना ही उसके प्रस्तुत दस्तावेज़ों को इंकार ही कर सकती है।
पिछले मंगलवार (14 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर बहस हुई, सरकार नहीं चाहती कि मोदी के भ्रष्टाचार को किसी भी हालात में उजागर किया जाय इसके लिये वह राष्ट्र की सुरक्षा की दुहाई दे रही है। जैसे एक आंतंकवादी अपने बचाव में धर्म की दुहाई देता है। सवाल उठता है यह दलील तो बोफोर्स के मामले में भी लागू होती थी, तब तो आरटीआई एक्ट भी अस्थित्व में नहीं आया था। आज मोदी सरकार देश की सुरक्षा की दुहाई दे रहें हैं तक क्या हुआ था? बोफोर्स ने तो करगील युद्ध में अपना लोहा भी मना दिया था।
अपराधी को कानून से सजा मिले यही अदालत का प्रमुख लक्ष्य है। सुप्रीम कोर्ट आज जिस दौराहे पर खड़ी नजर आ रही है। इससे ऐसा लगता है कि अदालत, "आरटीआई एक्ट, 2005 के अध्याय - 6 धारा -24 की उपधारा - 4" की नई व्याख्या का कोई मार्ग खोज रही है जिससे देश की सुरक्षा के नाम पर इसे दरकिनार किया जा सके। जो संविधान संशोधन से ही संभव हो सकता है । अब चुकिं चुनाव की घोषणा भी हो चुकी है तो मोदी सरकार के लिए यह भी संभव नहीं कि वे संविधान में संशोधन कर अपना बचाव कर सके।
फिलहाल 14 मार्च की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। साथ ही अदालत में सुनवाई के दौरान हुई बहस से भी यह आभास भी हो रहा था कि अदालत उन सभी दस्तावेज़ों को भ्रष्टाचार की श्रेणी में मानते हुए स्वीकार कर ले और मोदी सरकार पर देश की सबसे बड़ी अदालत को (शीलबंध लिफाफे में) गुमराह करने के लिए दोषी मानते हुए अपने पूर्व के सभी आदेशों को वापस लेते हुए इसकी जांच के लिए कोई कमिशन ऑफ इन्क्वायरी की नियुक्ति कर दे। कुछ भी संभव है।
अब हमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना चाहिये। देखना है कि जिस भ्रष्टाचार से लड़ने की दुहाई देनेवाली मोदी सरकार खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाई जाती है कि नहीं?
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं। - शंभु चौधरी
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