मंगलवार, 12 मार्च 2019

नामुमकिन अब' मुमकिन नहीं ? - शंभु चौधरी

एयर स्ट्राइक के  साथ-साथ ही दो झूठे और मनगढंत बात मोदी सरकार की तरफ से जारी की गई- 
पहला कि - मोदीजी रातभर साये नहीं। 
दूसरा ‘‘350 आतंकवादी सहित मसूद को छुड़ाने वाला युसूफ भी मारा गया’’ प्रश्न यहीं से उठने शुरू हो गये जब अमित शाह ने 250 आंतकियों के मारे जाने की बात कही, फिर सेना को आकर बयान देना पड़ा कि संख्या सरकार बातायेगी। इस आंकड़ों के झूठ ने एक बार फिर मोदी के झूठ को नंगा कर दिया था। 
इन सब बातों को कड़ी दर कड़ी जोड़ दिया जाय तो पुलमावा की साजिश में मोदी सरकार की एक करतूत है जो भारतीय सेनाओं की शहादत पर अपनी राजनीति रोटी सैंकने में लगी है।    

भारत के प्रधानमंत्री अपने पांच साल की असफलता, देश की समस्त लोकतांत्रिक संस्थाओं को कठपुतली बना देने के बाद भी उनको सत्ता की पिपासा इस कदर उन पर हॉबी है कि जैसे ही मोदी जी को लगा कि पिछले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार और आगामी लोकसभा के चुनाव में भाजपा को 100 से अधिक सीटों का नुकसान होने का संभावना है, गोदी मीडिया सहित कई लोगों कि नींद खराब कर दी थी। सबको यह लगने लगा कि मोदी अब पाकिस्तान पर कोई बड़ी कार्यवाही जरूर करेंगे, तभी उनकी सत्ता में नई जान फूंकी जा सकेगी । परिणाम स्वरूप क्रमवार मोदी सरकार की हरकतों पर नजर डालें तो यह साफ हो जायेगा कि पुलवामा का हमला मोदी सरकार की एक सोची समझी रणनीति का ही हिस्सा था जिसे जानबूझकर ठीक चुनाव के ऐनवक्त पर करवाया गया ।  यदि साफ शब्दों में लिखा जाए पुलमावा में सैनिकों की हत्या की गई ।
क्रमवार देखें -
1. राम मंदिर का मुद्दा उछाला गया, जब यह बात सामने आई कि भाजपा चुनाव आते ही इस मुद्दे को भुनाने में लग जाती है तो मोदी ने एक कदम पीछे कर लिए ।
2. किसानों की बदहाली पर मोदी को पांचवें साल ध्यान आया जब सरकार को अंतिम बजट पेश करना था वह भी ‘ऊंट में जीरा’  जब इससे भी बात नही बनी तो,
3. वीवीआईपी हेलीकॉप्टर अगस्ता वेस्टलैंड केस की चल रही 10 साल  पुराने  गड़े मुर्दे को फिर से जिंदा किया गया ताकी कांग्रेस पर हमला किया जा सके। 
4. रॉबर्ट वाड्रा की फाइलें खंखाली जाने लगी।
5. यहां भी जब बात नहीं बनी तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव पर सीबीआई के द्वारा दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह कांग्रेस के साथ गठजोड़ न करें। 
6. पश्चिम बंगाल में सीपीएम के टाईम हुए चिटफंड घोटाले में ममता की सरकार को परेशान किया जाने लगा।

सवाल उठता हे पांच साल मोदी जी क्या कर रहें थे? ये सभी मामले तो पांच साल पुराने थे, पांच साल चुप्पी के बाद , लोकसभा चुनाव के ठीक कुछ महीने पूर्व इनकी सक्रियता क्या दर्शाती है?
कारण साफ था देश की जनता मोदी सरकार के कई तानाशाही फ़ैसलों से इतनी परेशान थी कि उनके सामने एक ही विकल्प था कि किसी भी प्रकार से मोदी को सत्ता से बेदखल कर दिया जाए । इसके लिये मोदी के नाम पर मोदी भक्तों की अफ़वाहों के प्रचार और गोदी मीडिया से लोहा लेना जरूरी हो गया था।
जैसे ही मोदी-शाह की जोड़ी को लगा कि अब उनकी सत्ता उनके हाथ से खिसकनेवाली ही और सत्ता के जाते ही  सबसे पहले राफेल के घोटाले और नोटबंदी के समय हुए नोटों की अदला-बदली के घोटालों से पर्दा उठ जायेगा। 
पुलमावा का हमला,  भारतीय सैनिकों की शहादत को लेकर यह आशंका पहले से ही चर्चा में थी जैसे 1990 में बाबरी मस्जिद ढहाने के समय था। सबको पता था कि ऐसा होने जा रहा  है ठीक इस बार भी या चर्चा आम थी कि मोदी सैनिकों की कोई बड़ी कार्यवाही कर सकते हैं।

भारत सरकार की गुफिया ऐजेंसिंया इस बात की आशंका पहले ही जाहिर कर चुकी थी और मोदी सरकार चाहती थी खतरे को टाला ना जाए ।  घटना का राजनीति लाभ लेने की मंशा मोदी ने मन ही मन बना चुकी थी। जैसे ही पुलमावा में 14 फरवारी 2019 को हमला हुआ, मोदी जी शांत भाव से चुनावी भाषण देने में लगे थे मानो सबकुछ प्लान के अनुसार चल रहा हो। बस उन्होंने मन ही मन इसकी नई योजना बाननी शुरू कर दी। जिसका आभास टाइम्स  ऑफ़ फ इंडिया के स्वामीनाथन एस.ए अयर (24 फरवरी, 2019 ) के लेख में साफ संकेत थे कि  "Between now and the elections, can Modi launch another surgical strike or bombing of terrorist camps in Pakistan?" अर्थात यह साफ हो चुका था कि मोदी राजनैतिक लाभ लेने के लिये फिर वही नाटक करेगा जो उसने 2016 में किया था। जिसकी कहानी  दो साल बाद उनको याद आई कि वे रात भर नहीं सो पाये थे। ठीक वही कहानी इसबार भी दौहराई गई। जैसे ही मीडिया में यह समाचार प्रसारित किया गया कि भारतीय वायु सेना ने एयर स्ट्राइक किया है साथ-साथ ही दो झूठे और मनगढंत बात मोदी सरकार की तरफ से जारी की गई- 
पहला कि - मोदीजी रातभर साये नहीं। 
दूसरा ‘‘350 आतंकवादी सहित मसूद को छुड़ाने वाला युसूफ भी मारा गया’’ प्रश्न यहीं से उठने शुरू हो गये जब अमित शाह ने 250 आंतकियों के मारे जाने की बात कही, फिर सेना को आकर बयान देना पड़ा कि संख्या सरकार बातायेगी। इस आंकड़ों के झूठ ने एक बार फिर मोदी के झूठ को नंगा कर दिया था। 
इन सब बातों को कड़ी दर कड़ी जोड़ दिया जाय तो पुलमावा की साजिश में मोदी सरकार की एक करतूत है जो भारतीय सेनाओं की शहादत पर अपनी राजनीति रोटी सैंकने में लगी है।  
सच में मोदी है तेा कुछ भी नामुमकिन नहीं । 
भले ही सेना को कश्मीर में जूतें क्यों ना खाने पड़े या लोकतंत्र के  चौथे खंभे को घूटनों के बल रेंगना पड़े।
कश्मीर विधानसभा में  तीन साल मोदी सरकार ने उस मुफ्ती (बाप-बेटी) की सरकार चलाई जिसने 'जैस ए मोहम्मद' के सरगना को आजाद किया था। जिसने भारत के विमान अपहरण पर  आतंकवादियों  को छुड़वाने में भारत पर दबाव बनाया था, और खुद भारत के गृह मंत्री (मुफ्ती मोहम्मद सईद) रहते भारत सरकार के मंत्री को आतंकवादियों के साथ कंधार भेजा था। जिसने अपनी बेटी डॉक्टर रूबिया का अपहरण का नाटक रचकर खुंखार आतंकवादियों को जेल से रिहा करवा दिया था। जिसे खुद मोदी ने जम्बू-कशमीर विधानसभा चुनाव में आतंकवादी कहा था के साथ सरकार बना ली थी । आज कश्मीर की इस हालात का एक मात्र दोषी मोदी है जिसके चलते करगील के बाद सेनाओं की लगातार हत्या कश्मीर में  हो रही है और सरकार चुपचाप सब कुछ देखती रही।  देशप्रेम और देश सुरक्षा से गद्दारी करने वाला प्रधानमंत्री मोदी जब छुप के पाकिस्तान जातें हैं तब उनकी देशभक्ति कहां चली गई थी?
लोकसभा के चुनाव में अपनी पांच साल कि विफलताओं को छुपाने का सबसे बड़ा हथियार यही था कि लोगों को देश की रक्षा के नाम पर बड़गलाया जा सके। भले ही मोदी सरकार इसमें एक बार सफल हो कर पुनः जोड़-तौड़कर पांच साल सत्ता में आजाए, पर भारत के पत्रकारों को यह बात डायरी में लिख लेनी चाहिये कि लोकतंत्र का अंत अब निकट आ चुका है। कलतक जो पत्रकार गुलामी करते थे वे अब गुमनामी की जिंदगी जियेगें। जयहिन्द।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

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