रविवार, 17 मार्च 2019

चाय-पकौड़ा बिचवाया, अब चौकीदारी करो ?


2014 में चुनाव में मोदी का सबसे बड़ा मुद्दा था, काला धन, भ्रष्टाचार और तेल-डालर के दाम के साथ-साथ, देश के युवाओं को प्रति साल दो करोड़ नौकरी देने के वादा किया था।  ‘‘अच्छे दिन आयेंगे, 15 लाख देश के लोगों के खाते में जमा करायेगें। यह सब बातें झूठे वादे साबित हुए। चाय बेच कर सरकार बनायी और आते ही सबसे पहले यह बोल दिया कि पकौड़े बेचो । भाजपा के अध्यक्ष अमित साह ने खुद स्वीकार किया चुनाव में जो वादे किये थे सभी वादे जुमले थे। तब तो इनकी देश भक्ति का यह नये नाटक को भी जुमला ही क्यों ना मान लिया जाए?
गत् पांच सालों में मोदी ने बिना किसी संस्थान के अनुमति के नोट बंदी किया जिसका परिणाम हमने देखा कि 25 दिनों में आरबीआई को बार-बार नियमों में बदलाव लाना पड़ा, सैकड़ों लोगों की जान चली गई। ठीक इसी प्रकार 'जीएसटी' को लेकर जिस एक्ट में जितनी धाराएं नहीं उससे अधिक तो एक साल में इनको संशोधन लाना पड़ा। 100 पेज के एक्ट में 200 पेज का संशोधन यह है हमारे पढ़े-लिखे मोदी का हाल । व्यापारियों की कमर तौड़ डाली । लाखों युवाओं की नौकरी चली गई। किसानों की आत्महत्या थमने का नाम नहीं ले रही। कालेधन के नाम देश को गुमराह किया गया । नोट बंदी से आतंकवाद को लगाम तो नहीं लगा पाये सेनाओं की जम कर हत्या करवाते रहे। पठानकोट, उरी, पुलमावा जैसी कई आतंकवादी घटना भारत की सीमा में आकार, आतंकवादी ‘‘सर्जिकल आतंक’’ करते रहे और पांच साल मोदी जी हाथ पर हाथ धरे चुप-चाप आतंकवाद को कश्मीर में (मु्फ्ती सरकार) समर्थन देते रहे।
तमाम संवैधानिक संस्थाओं, आरबीआई, सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों में हेरा-फेरी, कॉलिजियम के द्वारा तय नामों में बिना सहमति से बदलाव, पूर्व में तय नामों की सूची में हेरा-फेरी, चुनाव आयोग में भ्रष्ट अधिकारियों का चयन इस बात का इंगित करता है कि मोदी सरकार देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को कठपुतली बनाकर अपने भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का काम करते पाये गये। जिस प्रकार राफेल सौदा किया गया, देश की एक दिवालिया कंम्पनी के मालिक को राफेल का कान्ट्रेक्ट दिलाया गया यह सब कई खतरनाक संकेतों की तरफ इशारा कर रहा है।
अब जब मोदी को लगा कि उनकी सरकार पिछले पांच सालों में देश की जनता का ठगा और छला ही छला है। खुद विदेश के दौरा करते रहे और इधर देश में कभी गाय के नाम पर कभी छदम राष्ट्रवाद के नाम पर तो कभी भारत माता के नाम पर देश की जनता को 'गोदी मीडिया' के सहयोग से उलझाये रखकर नीरव मोदी या दिवालिया कंम्पनी के मालिकों के साथ फोटो खिंचवाने में लगे रहे । 100 से भी अधिक देशों के चक्कर लगाने वाला चौकीदार भ्रष्टाचार के इतने खिलाफ था कि पिछले पांच सालों में 'लोकपाल' का गठन तक नहीं होने दिया ।
जब लोकसभा का चुनाव सर पर आ गया तो इनका मानसिक दिवालियापन देखिये ये अब देश भक्ति को भजाने में लगे हैं । देश के युवाओं को नौकरी तो दे नहीं सके सबको बोल रहें कि चौकीदारी करो अब। 
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

शनिवार, 16 मार्च 2019

भ्रष्टाचार बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा

भ्रष्टाचार बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा

राफेल सौदे की पुनरीक्षण याचिका पर केन्द्र सरका, दलील पर दलील दिये जा रही है कि चौकीदार चोर नहीं हैं इसके साथ ही वा ‘‘शासकीय बात अधिनियम, 1923’’ का हवाला भी दे रही है कि जो दस्तावेज अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के द्वारा अपनी दलील में दिये गये हैं वे सभी दस्तावेज़ चोरी से प्राप्त किये गए हैं। परन्तु  चौकीदार की सरकार इस बात को अपनी जिरह में बताना भूल जाती है कि यदि भ्रष्टाचार से जुड़ा ममला है तो ‘‘शासकीय बात अधिनियम, 1923’’ यहां लागू होता है या नहीं ? जबकि आरटीआई एक्ट, 2005 के अध्याय - 6, धारा -24 की उपधारा - 4  "देश के हरेक नागरिकों को भ्रष्टाचार व मानवाधिकार के मामले में सुरक्षा प्रदान करती है। " देश की कोई भी अदालत किसी भी ऐसे भ्रष्टाचार को  ‘‘शासकीय बात अधिनियम, 1923’’ के बहाने ना तो सुनवाई से इंकार ही कर सकती है ना ही उसके प्रस्तुत दस्तावेज़ों को इंकार ही कर सकती है।
पिछले मंगलवार  (14 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर बहस हुई, सरकार नहीं चाहती कि  मोदी के भ्रष्टाचार को किसी भी हालात में उजागर किया जाय इसके लिये वह राष्ट्र की सुरक्षा की दुहाई दे रही है। जैसे एक आंतंकवादी अपने बचाव में धर्म की दुहाई देता है।  सवाल उठता है यह दलील तो बोफोर्स के मामले में भी लागू होती थी, तब तो आरटीआई एक्ट भी अस्थित्व में नहीं आया था।  आज मोदी सरकार देश की सुरक्षा की दुहाई दे रहें हैं तक क्या हुआ था? बोफोर्स ने तो करगील युद्ध में अपना लोहा भी मना दिया था। 
अपराधी को कानून से सजा मिले यही अदालत का प्रमुख लक्ष्य है। सुप्रीम कोर्ट आज जिस दौराहे पर खड़ी नजर आ रही है। इससे ऐसा लगता है कि अदालत,  "आरटीआई एक्ट, 2005 के अध्याय - 6 धारा -24 की उपधारा - 4"  की नई व्याख्या का कोई मार्ग खोज रही है जिससे  देश की सुरक्षा के नाम पर इसे दरकिनार किया जा सके। जो संविधान संशोधन से ही संभव हो सकता है । अब चुकिं चुनाव की घोषणा भी हो चुकी है तो मोदी सरकार के लिए यह भी संभव नहीं कि वे संविधान में संशोधन कर अपना बचाव कर सके। 
फिलहाल 14 मार्च की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। साथ ही अदालत में सुनवाई के दौरान हुई बहस से भी यह आभास भी हो रहा था कि अदालत उन सभी दस्तावेज़ों को भ्रष्टाचार की श्रेणी में मानते हुए स्वीकार कर ले और मोदी सरकार पर देश की सबसे बड़ी अदालत को (शीलबंध लिफाफे में)  गुमराह करने के लिए दोषी मानते हुए अपने पूर्व के सभी आदेशों को वापस लेते हुए इसकी जांच के लिए कोई कमिशन ऑफ इन्क्वायरी की नियुक्ति कर दे। कुछ भी संभव है।
अब हमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना चाहिये। देखना है कि जिस भ्रष्टाचार से लड़ने की दुहाई देनेवाली मोदी सरकार खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाई जाती है कि नहीं? 
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

मंगलवार, 12 मार्च 2019

नामुमकिन अब' मुमकिन नहीं ? - शंभु चौधरी

एयर स्ट्राइक के  साथ-साथ ही दो झूठे और मनगढंत बात मोदी सरकार की तरफ से जारी की गई- 
पहला कि - मोदीजी रातभर साये नहीं। 
दूसरा ‘‘350 आतंकवादी सहित मसूद को छुड़ाने वाला युसूफ भी मारा गया’’ प्रश्न यहीं से उठने शुरू हो गये जब अमित शाह ने 250 आंतकियों के मारे जाने की बात कही, फिर सेना को आकर बयान देना पड़ा कि संख्या सरकार बातायेगी। इस आंकड़ों के झूठ ने एक बार फिर मोदी के झूठ को नंगा कर दिया था। 
इन सब बातों को कड़ी दर कड़ी जोड़ दिया जाय तो पुलमावा की साजिश में मोदी सरकार की एक करतूत है जो भारतीय सेनाओं की शहादत पर अपनी राजनीति रोटी सैंकने में लगी है।    

भारत के प्रधानमंत्री अपने पांच साल की असफलता, देश की समस्त लोकतांत्रिक संस्थाओं को कठपुतली बना देने के बाद भी उनको सत्ता की पिपासा इस कदर उन पर हॉबी है कि जैसे ही मोदी जी को लगा कि पिछले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार और आगामी लोकसभा के चुनाव में भाजपा को 100 से अधिक सीटों का नुकसान होने का संभावना है, गोदी मीडिया सहित कई लोगों कि नींद खराब कर दी थी। सबको यह लगने लगा कि मोदी अब पाकिस्तान पर कोई बड़ी कार्यवाही जरूर करेंगे, तभी उनकी सत्ता में नई जान फूंकी जा सकेगी । परिणाम स्वरूप क्रमवार मोदी सरकार की हरकतों पर नजर डालें तो यह साफ हो जायेगा कि पुलवामा का हमला मोदी सरकार की एक सोची समझी रणनीति का ही हिस्सा था जिसे जानबूझकर ठीक चुनाव के ऐनवक्त पर करवाया गया ।  यदि साफ शब्दों में लिखा जाए पुलमावा में सैनिकों की हत्या की गई ।
क्रमवार देखें -
1. राम मंदिर का मुद्दा उछाला गया, जब यह बात सामने आई कि भाजपा चुनाव आते ही इस मुद्दे को भुनाने में लग जाती है तो मोदी ने एक कदम पीछे कर लिए ।
2. किसानों की बदहाली पर मोदी को पांचवें साल ध्यान आया जब सरकार को अंतिम बजट पेश करना था वह भी ‘ऊंट में जीरा’  जब इससे भी बात नही बनी तो,
3. वीवीआईपी हेलीकॉप्टर अगस्ता वेस्टलैंड केस की चल रही 10 साल  पुराने  गड़े मुर्दे को फिर से जिंदा किया गया ताकी कांग्रेस पर हमला किया जा सके। 
4. रॉबर्ट वाड्रा की फाइलें खंखाली जाने लगी।
5. यहां भी जब बात नहीं बनी तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव पर सीबीआई के द्वारा दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह कांग्रेस के साथ गठजोड़ न करें। 
6. पश्चिम बंगाल में सीपीएम के टाईम हुए चिटफंड घोटाले में ममता की सरकार को परेशान किया जाने लगा।

सवाल उठता हे पांच साल मोदी जी क्या कर रहें थे? ये सभी मामले तो पांच साल पुराने थे, पांच साल चुप्पी के बाद , लोकसभा चुनाव के ठीक कुछ महीने पूर्व इनकी सक्रियता क्या दर्शाती है?
कारण साफ था देश की जनता मोदी सरकार के कई तानाशाही फ़ैसलों से इतनी परेशान थी कि उनके सामने एक ही विकल्प था कि किसी भी प्रकार से मोदी को सत्ता से बेदखल कर दिया जाए । इसके लिये मोदी के नाम पर मोदी भक्तों की अफ़वाहों के प्रचार और गोदी मीडिया से लोहा लेना जरूरी हो गया था।
जैसे ही मोदी-शाह की जोड़ी को लगा कि अब उनकी सत्ता उनके हाथ से खिसकनेवाली ही और सत्ता के जाते ही  सबसे पहले राफेल के घोटाले और नोटबंदी के समय हुए नोटों की अदला-बदली के घोटालों से पर्दा उठ जायेगा। 
पुलमावा का हमला,  भारतीय सैनिकों की शहादत को लेकर यह आशंका पहले से ही चर्चा में थी जैसे 1990 में बाबरी मस्जिद ढहाने के समय था। सबको पता था कि ऐसा होने जा रहा  है ठीक इस बार भी या चर्चा आम थी कि मोदी सैनिकों की कोई बड़ी कार्यवाही कर सकते हैं।

भारत सरकार की गुफिया ऐजेंसिंया इस बात की आशंका पहले ही जाहिर कर चुकी थी और मोदी सरकार चाहती थी खतरे को टाला ना जाए ।  घटना का राजनीति लाभ लेने की मंशा मोदी ने मन ही मन बना चुकी थी। जैसे ही पुलमावा में 14 फरवारी 2019 को हमला हुआ, मोदी जी शांत भाव से चुनावी भाषण देने में लगे थे मानो सबकुछ प्लान के अनुसार चल रहा हो। बस उन्होंने मन ही मन इसकी नई योजना बाननी शुरू कर दी। जिसका आभास टाइम्स  ऑफ़ फ इंडिया के स्वामीनाथन एस.ए अयर (24 फरवरी, 2019 ) के लेख में साफ संकेत थे कि  "Between now and the elections, can Modi launch another surgical strike or bombing of terrorist camps in Pakistan?" अर्थात यह साफ हो चुका था कि मोदी राजनैतिक लाभ लेने के लिये फिर वही नाटक करेगा जो उसने 2016 में किया था। जिसकी कहानी  दो साल बाद उनको याद आई कि वे रात भर नहीं सो पाये थे। ठीक वही कहानी इसबार भी दौहराई गई। जैसे ही मीडिया में यह समाचार प्रसारित किया गया कि भारतीय वायु सेना ने एयर स्ट्राइक किया है साथ-साथ ही दो झूठे और मनगढंत बात मोदी सरकार की तरफ से जारी की गई- 
पहला कि - मोदीजी रातभर साये नहीं। 
दूसरा ‘‘350 आतंकवादी सहित मसूद को छुड़ाने वाला युसूफ भी मारा गया’’ प्रश्न यहीं से उठने शुरू हो गये जब अमित शाह ने 250 आंतकियों के मारे जाने की बात कही, फिर सेना को आकर बयान देना पड़ा कि संख्या सरकार बातायेगी। इस आंकड़ों के झूठ ने एक बार फिर मोदी के झूठ को नंगा कर दिया था। 
इन सब बातों को कड़ी दर कड़ी जोड़ दिया जाय तो पुलमावा की साजिश में मोदी सरकार की एक करतूत है जो भारतीय सेनाओं की शहादत पर अपनी राजनीति रोटी सैंकने में लगी है।  
सच में मोदी है तेा कुछ भी नामुमकिन नहीं । 
भले ही सेना को कश्मीर में जूतें क्यों ना खाने पड़े या लोकतंत्र के  चौथे खंभे को घूटनों के बल रेंगना पड़े।
कश्मीर विधानसभा में  तीन साल मोदी सरकार ने उस मुफ्ती (बाप-बेटी) की सरकार चलाई जिसने 'जैस ए मोहम्मद' के सरगना को आजाद किया था। जिसने भारत के विमान अपहरण पर  आतंकवादियों  को छुड़वाने में भारत पर दबाव बनाया था, और खुद भारत के गृह मंत्री (मुफ्ती मोहम्मद सईद) रहते भारत सरकार के मंत्री को आतंकवादियों के साथ कंधार भेजा था। जिसने अपनी बेटी डॉक्टर रूबिया का अपहरण का नाटक रचकर खुंखार आतंकवादियों को जेल से रिहा करवा दिया था। जिसे खुद मोदी ने जम्बू-कशमीर विधानसभा चुनाव में आतंकवादी कहा था के साथ सरकार बना ली थी । आज कश्मीर की इस हालात का एक मात्र दोषी मोदी है जिसके चलते करगील के बाद सेनाओं की लगातार हत्या कश्मीर में  हो रही है और सरकार चुपचाप सब कुछ देखती रही।  देशप्रेम और देश सुरक्षा से गद्दारी करने वाला प्रधानमंत्री मोदी जब छुप के पाकिस्तान जातें हैं तब उनकी देशभक्ति कहां चली गई थी?
लोकसभा के चुनाव में अपनी पांच साल कि विफलताओं को छुपाने का सबसे बड़ा हथियार यही था कि लोगों को देश की रक्षा के नाम पर बड़गलाया जा सके। भले ही मोदी सरकार इसमें एक बार सफल हो कर पुनः जोड़-तौड़कर पांच साल सत्ता में आजाए, पर भारत के पत्रकारों को यह बात डायरी में लिख लेनी चाहिये कि लोकतंत्र का अंत अब निकट आ चुका है। कलतक जो पत्रकार गुलामी करते थे वे अब गुमनामी की जिंदगी जियेगें। जयहिन्द।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

चौकीदार के रहते चोरी हो गई ?


जबसे मोदी जी ने प्रधानमंत्री पद को सुशेभित किया है तबसे ‘चौकीदार’ शब्द की गरिमा को गहरा सदमा लगा है। एकतरफ ‘चायवाले’ सबके सब जश्न माना रहे थे कि उनकी जमात का एक ‘भाई’ प्रधानमंत्री बन गया, तो वहीं दूसरी तरफ ‘चौकीदारी’ पेशे से जुड़े लोगों को हर तरफ शक की निगाह से देखा जाने लगा । विपक्ष ताबड़तोड़ ‘चौकीदारी चोर है!’ बोल-बोलकर ऑक्सफ़ोर्ड की डिक्शनरी में   ‘चौकीदार’ शब्द की  नई परिभाषा गढ़ने  में तुला हुआ है। 
जब ‘चोर की दाड़ी में तिनका’ हो तो चोर कितना भी शातिर, चालाक क्यों न हो कोई न कोई निशानी जरूर छोड़ देता है।  कुछ ऐसा ही राफेल के सौदे को लेकर उच्चतम न्यायालय के पिछले फैसले में हुआ- जब माननीय उच्चतम न्यायालय ने ‘शीलबंद’ लिफाफे की सुनवाई करते हुए अपना एकतरफा फैसला सुना कर चौकीदार की वफ़ादारी पर मोहर लगा दिया था, तो इस फैसले के साथ भी यही हुआ।
          एक दिन ऐसा भी आया जब फ्रांस की कंपनी दसाॅल्ट से 36 राफेल विमान सौदे पर  प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जिनकी याचिका को उच्चतम अदालत ने पिछली सुनावाई के दौरान रद्द कर दिया था पुनः उनकी दलीलों पर सुनवाई करने का फैसला वह भी खुली अदालत में करने का निर्णय ले लिया और पुनरीक्षण याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में पुनः सुनवाई भी शुरू कर दी। 
इस बार उच्चतम अदालत का रूख कुछ अलग था । जहां एक तरफ सरकार बचाव की मुद्रा में खड़ी देश की सुरक्षा की दुहाई दे रही थी और अदालत को इशारों-इशारों में यह बताने का प्रयास किया जा रहा था कि चौकीदार का अर्थ है ‘‘सुप्रीमो ऑफ इंण्डिया’’ साथ ही जिस सच को छुपाने का शीलबंद लिफाफे का खेल केन्द्र की सरकार ने उच्चतम अदालत की प्रतिष्ठा का दाव में लगा कर खेला था, जब इसका सच हिन्दू समाचार पत्र ने सार्वजनिक कर दिया तो, सरकारी वकील व अटाॅर्नी जनरल वेणुगोपाल ने अदालत से कहा कि वे दस्तावेज जो हिन्दू समाचार  में छपे थे, वे चोरी किये गए दस्तावेज हैं। 
अर्थात सरकार यह मानती है कि उन दस्तावेजों में जो कुछ भी लिखा हुआ है वह सच तो है पर चोरी किये हुए दस्तावेज़ हैं। सरकार स्वीकार करती है कि प्रधानमंत्री का सीधा हस्तक्षेप राफेल के सौदे में था पर वह चूंकि दस्तावेज चोरी किये गये हैं इसलिये वह अपराध की श्रेणी में नहीं आ सकते।
अर्थात सरकार गोपनीयता व सरकारी दस्तावेज गोपनीयता कानून की दुहाई देकर यह बताने का प्रयास कर रही है कि उसने खून तो किया है पर यह खून अपराध नहीं है। इसलिये इसकी जांच कोई नहीं कर सकता और अदालत को भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये ।
जब से मोदी की सरकार आई है तब से देश भक्ति के नाम पर कुछ भगवाधारण गिरोह ‘मोदीभक्त’ बनकर गाहे-बगाहे देश में देश भक्ति का नया अर्थ गढ़ रहें हैं। 
कभी देश भक्ति, कभी हिंदुओं की रक्षा, तो कभी देश की सुरक्षा, मोदी सरकार का सारा जबाब इसी केन्द्र बिंदु पर आकर सिमट जाता है। 

सवाल उठता है  एक भ्रष्ट चौकीदार अपने बचाव में देश की सुरक्षा की दुहाई कब तक देता रहेगा? क्या राफेल की सारी फाइलें जब इनका कार्यकाल समाप्त हो जायेगा तो जला दिया जायेगी या गायब कर दिया जायेगी अथवा मोदी जी की कार्यकाल की सभी फैसले देश की सुरक्षा के नाम पर तहखाने में भारत सरकार दबाकर रख देगी ? क्या उच्चतम अदालत, बंद अदालतों में ही सभी फैसले किया करेंगी और निर्णय की जगह खाली रखकर , देश की सुरक्षा की दुहाई देगी, जैसा केग ने किया है?
आज उच्चतम अदालत को यह भी सोचना होगा कि देश की सुरक्षा की दुहाई देकर मोदी सरकार ने 130 करोड़ जनता के विश्वास पर जो गद्दारी की है, जिसने देश की सुरक्षा को व्यापार में बदल दिया,  जिसने कैग की रिपोर्ट से भी आंकड़ों को मिटा दिया, जिसने उच्चतम अदालत को कह दिया कि ‘‘उच्चतम अदालत को ‘‘इज और हैज’’ नहीं मालूम’’, जो सरकार राफेल के सौदे पर लगातार झूठ पर झूठ बोल रही है । इस सौदे का सबसे बड़े लाभार्थी एक पत्रकार पर 5000 करोड़ का मानहानि का दावा ठोक सकता है। अदालत को उस लाभार्थी से भी यह तो जरूर पूछना चाहिये कि आपके के स्वामित्व वाली रिलायंस कम्युनिकेशंस  जब खुद को दिवालिया घोषित कर रही है तो आपकी कीमत 5000 करोड़ की आंकी जाए या दो कौड़ी की?
आज उच्चतम अदालत के हाथ में देश का भविष्य उम्मीद की आस लगाये बैठा है । देश की सुरक्षा के नाम पर जो सौदेबाजी चल रही है इसपर विराम लगाने का समय आ गया है। दस्तावेज यदि सही है तो भले ही वे दस्तावेज चोरी से लाये गये हैं सरकार या तो इस दस्तावेज का सिरे से इंकार करे कि अन्यथा अदालत को चाहिये कि इसपर संज्ञान लेते हुए, चौकीदार की इस चोरी और धोखाघड़ी पर कठोर से कठोर फैसला लें ताकि भविष्य में कोई भी प्रधानमंत्री ऐसा करने की जुर्रत ना कर सके । जयहिन्द !
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी
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