सोमवार, 23 सितंबर 2013

राष्ट्रीय एकता परिषद बैठक की सफलता-असफलता - शम्भु चौधरी

मुलायम व अखिलेश सरकार को इस बात से अब भी सबक लेने की जरूरत है । अपने पाप का घड़ा दूसरे राजनीति दलों पर फोड़ने की जगह खुद ही इस स्थिति को आगे बड़कर नियंत्रण करते तो आज हजारों मुसलमानों को यह दिन नहीं देखने पड़ते । खैर! अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है उत्तरप्रदेश की सरकार वोट बैंक की राजनीति छोड़कर सबसे पहले उन परिवारों को पुनः बसाने का काम करें इसी में हम सबका भला है ।

कोलकाता- 23 सितम्बर’2013: आज केन्द्र की कांग्रेसी सरकार को अमूमन दो साल के बाद अचानक राष्ट्रीय एकता परिषद की अचानक से याद आ गई । 147 सदस्यों वाली इस समिति की बैठक पिछले दो साल पूर्व 10 सितम्बर 2011 को हुई थी। एनआईसी की बैठक में जिस प्रकार एक राजनीति बहस का मुद्दा छाया रहा इससे तो नहीं लगता कि यह बैठक जिन उद्देश्यों को लेकर बुलाई गई थी उसमें कुछ भी सफलता प्राप्त की होगी । राजनीति दलों के एक कुनबे का एक ही एजेंडा था वोट बैंक की राजनीति । मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के तुरंत बाद बुलाई गई इस बैठक के ऊपर राजनीति महत्वाकांक्षा की पूर्ति तो प्रश्न चिन्ह खड़ा करता ही है साथ ही उन सेकुलरवादी ताकतों को वोट बैंक की राजनीति करने का अवसर भी देती है । लालू यादव सहित तमाम फिरकापरस्ती ताकतों ने इस बैठक को माखौल बनाकर रख दिया ।

प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ने राष्ट्रीय एकता परिषद के मैदान में अपने सभी खिलाड़ियों को गेंद खेलने की आजादी दे दी । इस बैठक में यदि प्रधानमंत्री जी विशेष कर सिर्फ वर्तमान में हुई तीन बड़ी सांप्रदायिक घटना का जिक्र कर उन घटनाओं पर देश का ध्यान ही आकर्षित किये होते और राजनैतिक दलों से इस तरह की घटनाओं पर उनके विचार जाने होते व मुज़फ़्फ़रनगर दंगों की वस्तु स्थिति का बैठक में जायजा लिया गया होता तो भी कुछ हद तक इस बैठक की सफलता मानी जा सकती थी । अफसोस इस बात का रहा इस पर कोई विशेष चर्चा नहीं हो सकी ।

प्रधानमंत्री जी ने इस बैठक को जिन विषयों पर जोर दिया 1. वर्तमान में देश के कुछ प्रान्तों में हुए सांप्रदायिक तनाव व हिंसा 2. महिलाओं की सुरक्षा व उनके ऊपर हो रहे हमले 3. अनुसूचित जाति व अनुसूचित जन जाति पर बढ़ते अत्याचार 4. सोशल मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग व उसके कुपरिणाम व मीडिया के लोगों की भूमिका । आपने कहा कि देश में राष्ट्र विरोधी ताकतें सक्रिय है। चाहे वह किसी भी राजनैतिक दल से संबंधित हो इसमें कोई समझौता नहीं किया जाएगा । कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी । आपने बहुत स्पष्ट होते हुए कहा कि सांप्रदायिक हिंसा से किसी भी राजनैतिक दलों का फायदा नहीं होगा । इन दिनों दंगों के पीछे कुछ लोग वोट बैंक की बात जो लोग कर रहें हैं इसमें फायदा सोचना भी गलत है ।

इस बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बना रहा वहीं श्री नीतिश कुमार की श्री लालकृष्ण आडवाणी जी से मुलाकात से भी कई राजनीति मायने निकाले गये ।

कुल मिलाकर इस बैठक में जो प्रस्ताव पारित हुए वह बैठक की सफलता को कम असफलता और कमजोर नेतृत्व की तरफ इशारा तो करता ही है । असम, किश्तवार और मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से पीड़ित लोगों के लिए कोई राहत लेकर नहीं सामने आ सका ।

हां ! प्रधानमंत्री जी ने बातों-बातों में यह इशारा भी कर दिया कि जिस प्रकार मुज़फ़्फ़रनगर में एक छोटी सी घटना ने दंगा का रूप धारण किया है इसमें प्रशासन की बड़ी चुक रही है । आज इस आग में सैकड़ों लोगों की जहां जान चली गई, वहीं परिणाम स्वरूप हजारों परिवारों को राहत शिविरों में रहना पड़ रहा है । लाखों की संपत्ति का नूकशान भी हुआ है । मुलायम व अखिलेश सरकार को इस बात से अब भी सबक लेने की जरूरत है । अपने पाप का घड़ा दूसरे राजनीति दलों पर फोड़ने की जगह खुद ही इस स्थिति को आगे बड़कर नियंत्रण करते तो आज हजारों मुसलमानों को यह दिन नहीं देखने पड़ते । खैर! अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है उत्तरप्रदेश की सरकार वोट बैंक की राजनीति छोड़कर सबसे पहले उन परिवारों को पुनः बसाने का काम करें इसी में हम सबका भला है ।


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