बुधवार, 1 जून 2011

सकारात्मकता या नकारात्मकता - शम्भु चौधरी


Shambhu Choudharyमहाभारत में जब भगवान श्री कृष्ण सारथी स्वरूप अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे थे। उस समय एक साथ दो क्रियाऐं चल रही थी। एक तरफ श्री अर्जुन के अशान्त मन को शन्ति प्राप्त हो रही थी तो दूसरी तरफ धृतराष्ट्र जैसे-जैसे संजय से श्री कृष्ण की वाणी सुन रहे थे, उनका मन विचलित और अशान्त होते जा रहे था। एकबार मेरी पत्नी मुझसे यह प्रश्न किया कि ’’हम दुःखी क्यों होतें हैं?’’ जबाब सरल था। जिस क्रिया को हम स्वीकार नहीं कर पाते उससे हमें दुःख पंहुचता है। उदाहराणार्थः किसी अशुभ समाचार का सुनना। इसी प्रकार कई ऐसे भी समाचार होते हैं जो एक साथ दो परिणाम देते हैं जैसे चुनाव परिणाम की घोषणा। आमतौर पर आजकल सकारात्मक पहल की बात ज्यादा होती है। एकबार एक सदस्य ने लिखा कि जब हम किसी बात से संतुष्ट नहीं होते तो नकारात्मक विचार पैदा करने लगते हैं। संभवतः कुछ हद तक यह बात सही हो, परन्तु हमें बात भी समझने कि है कि आखिर में जो बात पदाधिकारियों को नकारात्मक लग रही है वह संस्था के हित में सकारात्मक हो? हमें यह समझने की जरूरत है कि जिस बात को हम सकारात्मक या नकारात्मक नज़रिये से लेते हैं वे सिर्फ हमारी सोचने की प्रक्रिया का एक मात्र परिणाम हो। ऐसा नहीं कि हम जो भी सोचे, वही सही हो। एकबार सिकंदर विश्व विजयी बनने के लिये निकला लेकिन एक संत के तर्क से हार गया। कारण मात्र संतोष की मात्रा तय करने से है। कोई एक रोटी मिल जाने से संतुष्ट हो जाता है तो किसी को सारा भंडारा भी मिल जाए तो उसे संतोष प्राप्त नहीं होता। प्रायः साधारण सभाओं में सदस्यों का असंतोष उभरकर सामने आता है पदाधिकारीगण ऐसे असंतोष को नकारात्मक क्रिया की संज्ञा देकर खुद का बचाव कर लेते हैं या किसी ऐसे अवसर की तलाश करते हैं जब वो सदस्य किसी विशेष व्यक्ति को दोषी ठहराने का प्रयास करे या जब कोई बात खुद के अहम को आहत कर दें ऐसी बातों को हम नकारात्मक संज्ञा के दायरे में डाल देते हैं। अर्थात सकारात्मकता या नकारात्मकता के अनुपात में परिवर्तन हमारे ग्रहण करने अथवा न करने से तय होती है।
दुर्योधन के अपमान जनक शब्दबाण के वाबजूद कुरुक्षेत्र में श्री अर्जुन अपने परिजनों को देख विचलित होने लगे थे। जबकि अपने पुत्र के जीत को लेकर आशान्वित धृतराष्ट्र श्री कृष्ण के प्रवचन से अशान्त होते जा रहे थे। क्या गीता में हमें नकारात्मक संदेश मिलता है? नहीं। यदि आपके अन्दर विचारों का भण्डार है तो उससे हर वो व्यक्ति कंपित होगा जो सत्ता को अपनी जमींदारी समझता है। बस आपको यह सोचना है कि आपके मन में उत्पन्न विचार दूरगामी प्रभाव देने वाले हों। कौन किस बात को सकारात्मक लेगा या उसका अर्थ नकारात्मक लेगा इसे आप कभी नहीं सोचें अन्यथा आपके मन में उत्पन्न विचार कभी भी आपको स्थापित नहीं कर सकेगा।

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