शनिवार, 26 जुलाई 2008

मैं एक माँ हूँ


इन्दीरा चौधरी



प्रताड़ना, उपेक्षा, दुत्कार,
दुर्वचन, अवहेलना, तिरस्कार,
अपमान, छिन-भिन्न कर दे ?
निजता को,
व्यक्तिता को,
शांत रहे तो कैसे ?
शान्ति
अशान्ति,
कोई वार्तालाप,
कोई विनय नहीं,
केवल आक्रोश
विरोध के स्वर चुप-चाप,
स्वयं को ढालने, गलाने,
तपाने से कुछ नहीं हाथ आया
एवं
भीतर की ओर,
स्वयं को जानने का प्रयत्न किया
मिथ्या अहम मिटा,
अलौकिक लौकिक अनुभति ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक और यथार्थ। माँ तो माँ होती है पर उसकी दुर्दशा हमें दिखाई भी देती है तो टाल जाते हैं ए कहते हुए की माँ है।

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  2. jahaan desh me nadiyon aur gay tak ko maa kaha jaata hai,khud us desh ko bharatmata kaha jaata hai ye us desh ka sabse badaa aur kadua sach hai

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  3. विरोध के स्वर चुप-चाप,
    स्वयं को ढालने, गलाने,
    तपाने से कुछ नहीं हाथ आया
    बहुत सुन्दर।

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