गुजरात चुनाव-2022 -शंभु चौधरी
आगामी माह गुजरात व हिमाचल प्रदेश की विधान सभाओं के चुनाव होने जा रहें हैं। इस बार के चुनाव में इन दोनों राज्यों में चुनाव त्रिकोणीय होने संभावना प्रवल
बनती जा रही है। मेरे इस लेख को गुजरात चुनाव तक केंद्रित कर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बंगाल में वामपंथी दलों को शासन 35 साल चलां, लोगों को लगता था कि इनकी जड़ें इतनी मजबूत है कि इसे बंगाल से उखाड़ फैंकना नामुमकिन ही नहीं असंभव भी प्रतित होता है। इसके बावजूद ममता के नये संगठन ने उसे मिट्टी में मिला दिया। आज बंगाल में वामपंथियों को राजनीतिक रूप से नई जमीन तलाशनी पड़ रही है।
वामपंथियों की तरह ही गुजरात में भी पिछले 27 सालों से मोदी समूह (भाजपा) का एक छत्र राज्य कायम है। पिछले चुनाव में कांग्रस पार्टी ने पाटीदारों के वोट शेयर प्राप्त करने के बाद भी भाजपा से पिछड़ गई और कांग्रेस पार्टी के कुछ विधायक साबीआई के खौफ से डर कर भाजपा में चले गए। आज इस बात को लिखने में जरा भी हिचक नहीं, भाजपा पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से ना तो चुनाव लड़ रही है ना ही लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता प्राप्त कर रही है। जिसके कई उदाहरण हमारे सामने है। विधायकों को तौड़ना, उन्हें विभिन्न एजेंसियों से धमका कर खरीदना, जिस दल के साथ समझौता करती है उसे तौड़ना, उसके संगठन को कमजोर करना और अपनी सत्ता की भूख मिटाना इस राजनीति दल का उद्देश्य बन चुका है। बिहार व महाराष्ट्र इसके ताजा उदाहरण है। दिल्ली
व पंजाब में भी इसकी कोशिश की गई थी तो सफल नहीं हो सकी ।
गुजरात विधानसभा की 182 सीटों का चुनाव अगले माह होने
जा रहा है यदि मोदी जी के गुजरात में या गुजरात चुनाव के संदर्भ में दिये गऐ ताजा
बयानों का ही जिक्र करें तो उनके अनुसार गुजरात में कोई बाहरी ताकतें रेवड़ी बांट
कर राज्य की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगी । इस बयान को गुजरात की जनसंख्या पर नजर
डाल के देखतें हैं तो मैं पाता हूँ कि गुजरात में 90 प्रतिशत आबादी जिसमें ओबीसी
48 प्रतिशत, आदिवासी समाज 14.75 प्रतिशत, पाटीदार समाज 11 प्रतिशत, दलित
समाज 7 प्रतिशत, मुस्लीम समाज 9 प्रतिशत है । शेष 10.25 प्रतिशत में
क्षत्रिय, ब्राह्मण समाज, व बनिया वर्ग के अलाव संपन्न वर्ग के लोग आते हैं।
यदि इन मतदाताओं को आर्थिक रूप से बांट दिया जाय तो गुजरात में 70 प्रतिशत आबादी
गरीबी रेखा के अंदर गुजर-बसर करती है। वहीं 20 से 25 प्रतिशत मतदाता मध्यम श्रेणी
और शेष 5 प्रतिशत उच्च वर्ग में आतें हैं। उच्च वर्ग को तेल व गैस के दाम प्रभावित
नहीं करते ना ही उनके घरों में होने वाली बिजली के बिल से उन्हें कुछ भी फर्क पड़ता
है। इनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं। इन्हें अच्छी चिकित्सा भी प्राप्त है।
जबकि मध्यम वर्ग का एक तबका इससे प्रभावित होते हुऐ भी मोदी जी के हिन्दूवादी
कार्ड का शिकार बन चुका है। मोदी के गुजरात मॉडल में शेष 70 प्रतिशत लोगों के लिए
कोई सुविधा पिछले 27 सालों से मोदी की भाजपा सरकार ने नहीं दी, ऊपर से उनकी आमदनी
कम कर दी गई, नौकरी से निकाल दिए गए या इनकी आय इतनी नहीं कि किसी भी प्रकार से
परिवार का दैनिक खर्च वहन कर सके।
यह असंतोष पिछले चुनाव में साफ देखा जा रहा था। अब इन
पांच सालों में स्थिति और खराब ही हुई है। इस बार के 15वीं विधानसभा चुनाव में आम
आदमी पार्टी जिसका चुनाव चिन्ह झाड़ू है, ने गुजरात चुनाव में नये रूप से अपनी
उपस्थिति दर्ज की है। शुरूआती दौर में तो लगता था कि आम आदमी पार्टी की
स्थिति सामान्य राजनीतिक दलों की तरह है जो चुनाव के समय सक्रिय दिखती है और चुनाव
के बाद उस दल का कोई अता-पता नहीं होता। परन्तु आम आदमी पार्टी ने जिस
प्रकार पंजाब में जमी-जमाई राजनीतिक पार्टियों का सुपड़ा साफ कर दिया, दिल्ली में
मोदी के प्रचंड बहुमत को घूल चटा दी, से लगता है गुजरात में इसबार के विधानसभा
चुनाव में कुछ नया हो सकता है। विभिन्न राजनीतिक विश्लेषकों की बात से यह तो
अंदाज हो चुका कि गुजरात में एक तरफ कांग्रेस के मत प्रतिशत में तेजी से गिरावट
दर्ज की जा रही है वहीं आम आदमी पार्टी, भाजपा के वोट बैंक में भी सेंध लगाती सफल
दिख रही है। जिस रफ्तार से आम आदमी पार्टी गुजरात की पहली पसंद होती जा रही है
इससे मोदी के खेमें में हलचल तो पैदा हो ही चुकी है। 27 सालों से जिस शिक्षा की
बात मोदी जी ने कभी नहीं कि इस बार उनको शिक्षा मॉडल के डेमो देना पड़ा।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता भी प्रश्नचिन्ह अभी से साफ
दिख रहे हैं। हिमाचल में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी गई जबकि गुजरात में अभी
घोषणा की जानी है। कुल मिलाकर एक इंदिरा गांधी के आपातकाल जैसे हालात गुजरात में
चारों तरफ देखा जा रहा है। लोकतंत्र के नाम पर डर ही बना हुआ है। जो एक ऑटो चालक
को रातों-रात थाने में बुलाकर जिस प्रकार उसे डराया गया फिर उसे मोदी टोपी पहना कर
सामने लाया गया और डेमो स्कूल के पर्दाफास हो जाने पर आम आदमी पार्टी के लोगों को
घटनास्थल से उठाकर ले जाया गया। यह सब आपातकाल की घटना को दर्शाता है।
चुनाव परिणाम जिस किसी के पक्ष में आये। यह बात तो
मान लेनी होगी आम आदमी ने लोकतंत्र के पर्व में मोदी को खुली चुनौती तो ही डाली
है। - जयहिन्द।
लेखक: पेशे से अधिवक्ता और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से
मास्टर की शिक्षा प्राप्त की है एवं स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।
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