व्यंग्यकार, शंभु चौधरी
रामप्रसाद जी गांव जा रहे थे। रास्ते में बस रूकी रामप्रसाद जी भी हल्का होने के लिये नीचे उतर गये। सड़क के एक किनारे बस के पीछे खड़ा होकर जैसे ही हल्का हो रहे थे उनके कान खड़े हो गए।
कोई जोर-जोर से चिल्ला रहा था - "कद्दू ले लो कद्दू" !
रामप्रसाद जी को लगा कि बस की सवारी के पास आम, लिच्चू, केला, खीरा, शर्बत, चाय बेचते तो बहुत बार देखा पर आज कद्दू बेचते पहली बार ही सुना।
रामप्रसाद जी हल्का होकर पैजामा का नारा ठीक करते हुए कद्दू वाले की तरफ लपक लिए।.. भाई! अरे भाई! जोर से आवाज लगाई, अरे ओअअअ कद्दू वाले भाईईईईई...
कद्दूवाला हो हल्ला में कुछ नहीं सुन रहा था। बस यात्रियों के चारों तरफ बेचने वालों का अजीब सा वातावरण था, जिसमें बेचने वाले की आवाज तो सुनी जा सकती थी, पर आपकी आवाज उनकी तेज आवाज में गुम हो जाती। जैसे रात के एक बजे जब लोग गहरी नींद में थ्री टायर के डब्बे में सोते हुए यात्रा कर रहें हों और किसी प्लेटफार्म पर चाय वाला अंदर घुस कर आवाज लगाने लगता है - चाय पी लो चाय, तभी कोई यात्री अपनी कंबल से मुंह निकाल कर चाय वाले से पूछता है - ओ चाय वाले भाईईईईई. - कौन सा टेशन आया है?
चाय वाले की मन में लगा कि यह चाय मांगेगा, पर जैसे ही उसका पूरा सवाल सुना, चाय वाले का पांव प्रोटोकॉल की तरह अकड़ गया। बेरुखी से जबाब देते हुए .. बोला "बथुआ".. और आगे बढ़ गया.. चाय.. चाय....
रामप्रसाद आवाज देते सोचने लगे.. तभी फिर कद्दू वाला पास आया पूछा बाबू काहे चिल्ला रहे थे?
रामप्रसाद जी उसके कुतर्क से थोड़ा संभलकर अरे नहीं कद्दू का भाव पूछ रहा था। गांव जा रहा हूँ, सोचा बच्चों के लिए कुछ खरीद लूं। कद्दू वाले ने जबाब दिया सौ रुपये किलो, अब रामप्रसाद जी को काटो तो खून नहीं, शहर में तो कद्दू 20-30रुपये का एक मिलता है। पलट के उससे फिर पूछ लिए शायद सुनने में भूल हुई होगी। आवाज की उस भीड़ में फिर जोर से "कितना"?
कद्दू वाले ने फिर वही उत्तर दोहरा दिया। 100रुपये... किलो।
किलो? कद्दू किलो से कब बिकने लगा। बाबू जबसे देश में फ्री की वैक्सीन लगेगी सबको बोल कर 1200-1500 में बिक रही है उससे सवाल करने में आपलोगों की फटती है। गरीब से हजार सवाल? बोल कर आगे बढ़ गया।
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