पहले देश, फिर पार्टी और अंत में खुद -लालकृष्ण आडवाणी
लालकृष्ण आडवाणी ने अपने पांच साल की चुप्पी पर विराम लगाते हुए अपने ब्लाॅग में एक लेख लिखा जिसका मूल सार- मोदी और शाह की जोड़ी से देश सतर्क करना है और यह बताने का प्रयास है कि हर बात में आपकी बातों से जो सहमत ना हो वह देशद्रोही नहीं हो सकता। उन्होंने अपने लेख में कई जगह यह संकेत भी दिया और अपने दर्द को बिना उजागर करते हुए लिखा कि ‘‘ भाजपा में हम सभी के लिए यह महत्वपूर्ण अवसर है कि हम पीछे देखें, आगे देखें और भीतर देखें। ’’ साथ ही एक प्रकार से गांधीनगर कि जनता का भी आभार व्यक्त करते हुए लिखा ‘‘जिन्होंने 1991 के बाद छह बार मुझे लोकसभा के लिए चुना है। उनके प्यार और समर्थन ने मुझे हमेशा अभिभूत किया है।’’
अपने संघर्षपूर्ण राजनैतिज्ञ जीवन की कुछ बातों को साझा करते हुए आडवाणी जी ने लिखा कि ‘‘ मेरे जीवन का मार्गदर्शक सिद्धांत - सबसे पहले देश, फिर पार्टी और अंत में खुद को पाता हूँ और सभी परिस्थितियों में, मैंने इस सिद्धांत का पालन करने की कोशिश की है और आगे भी करता रहूंगा।’’
आपने माना कि भारतीय लोकतंत्र का सार विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान है। पार्टी व्यक्तिगत और राजनीतिक स्तर पर प्रत्येक नागरिक की पसंद की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। कोई राजनीति विरोधी दल या व्यक्ति हमारे विचारों से सहमत होना या ना होना उनकी निजी राय हो सकती है परन्तु उनको बात-बात में राष्ट्र विरोधी मानना पार्टी के सिद्धांतों में नहीं है। लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा, पार्टी का लक्ष्य रहा है।
आगे आपने आपातकाल के दौरान की याद दिलाते हुए लिखा कि ‘‘संक्षेप में, सत्य (सत्य), राष्ट्र निष्ठा (राष्ट्र के प्रति समर्पण) और लोकतंत्र (लोकतंत्र, पार्टी के भीतर और बाहर) बनाये रखना पार्टी का मुख्य लक्ष्य होना चाहिये।
यह लेख ऐसे समय आया है जब भारत में लोकसभा के प्रथम चरण के मतदान अगले सप्ताह होने जा रहा है। यह लेख मोदी के सत्ता में आने के बाद पहली बार पिछले पांच सालों में पहली बार लिखा गया है जिसका राजनैतिक गलियारों में कई कयास लगाये जा रहें जिसमें गांधीनगर की जनता को भी एक संदेश छुपा है ‘‘कि लोकतंत्र की रक्षा के लिये ऐसे लोगों को हरा दें जो भारतीय लोकतंत्र और तमाम संवैधानिक संस्थाओं को मजाक बना कर रख दिया है। ’’ पार्टी ऐसे विचारों को कभी सहमति नहीं प्रदान करती है। इन दिनों भाजपा के अंदर मोदी आतंकवादियों (मोदी सेना) की एक फौज सक्रिय है जो भातीय लोकतंत्र को तालिबानी व्यवस्था में ले जाने को पक्षधर है। पिछले पांच सालों में हमने इनके तालिबानी बोल और फरमानों एक लंबी सूची देखी है जिसमें किस प्रकार लोकतंत्र का गलाा धीरे-धीरे दबाने का प्रयास जारी है। आज यह लोकतंत्र का तकाजा है है कि हर बुद्धिजीवि, देशभक्तों व पत्रकारों को इस पर समय रहते चिन्तन शुरू कर देना चाहिये। जयहिन्द !
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं। - शंभु चौधरी
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 540वीं जयंती - गुरु अमरदास और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
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