रविवार, 25 नवंबर 2018

व्यंग्य: रामनाम सत्य है-

मोदी जी को पता है कि 2014 में मोदी की लहर 2019 में नहीं हैं । मोदी जी का पता है जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग उनके पाले से घसक चुका है । मोदी जी को पता है कि चुनाव आयोग के हाथ बंधे हुएं हैं । उसे पता है कि जिस सीबीआई को उन्होंने बर्वाद कर दिया वह मामला जल्द सुलझने वाला नहीं है ....
कोलकाता- 25 नवम्बर 2018
मोदी जी के कार्यकाल के चंद दिन ही गिनती के बचे हैं ओैर इधर पांच विधानसभा के चुनाव क्रमशः राजस्थान, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, मिजोरम और छत्तीसगढ़। इसमें तीन राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की हालात बहुत खराब बताई जा रही है। तेलंगना पहले सह तेल भरने गया हुआ है । राजस्थान तो मानो हाथ से निकल ही चुका है मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा अपनी सांप्रदायिक कार्ड को खेल चुकी है। अर्थात बस किसी प्रकार जनता को फिर पांच साल गुमराह किया जाय । भाजपा और पंतजलि के विज्ञापन दाताओं को लगता है कि कहीं यही हाल उनका लोकसभा के चुनाव में ना हो जाय ? सो अभी से विश्व हिन्दू परिषद और आर.एस.एस और महाराष्ट्र का थूकचाटूकार नेता जो महाराष्ट्र में हिन्दीवासी प्रवासियों को पिटवाने में खुद की राजनीति मानतें हैं माननीय उद्धव ठाकरे 70 साल के इतिहास में पहली बार अयेध्या में रामनाम सत्य का नारा लगाने सबके सब पंहुच गये।
कहने का अर्थ है मोदी जी 2019 में नोटबंदी की सफलता पर नहीं, सीबीआई के घमाशान पर नहीं, अपने किये पापों के काले कारनामों पर नहीं, राफेल में हुए भ्रष्टाचार पर नहीं, गैस की किमतों में हुए  इजाफे पर नही तेल के दामों हुई लूट पर नहीं, ‘‘अच्छे दिन आयेंगे-कालाधन लायेंगे’’ पर नहीं, सेनाओं की मौत पर नहीं, देश की अर्थव्यवस्था को कंगाली के कगार पर ला दिया पर नहीं, बेरोजगारों के रोजगार पर नहीं, किसानों की मौत पर नहीं, अब या तो कांग्रेस को गाली देगी या फिर अपनी मां को चुनाव में भजाने का प्रयास मोदी जी करेगें।
2019 के चुनाव में मोदी की एक रणनीति साफ दिख रही है वह राममंदिर को लेकर देश में वातावरण को गरम कर देना चाहतें हैं और लोकसभा चुनाव की घोषणा का पहला भाषण होगा’ ‘‘उसे संसद के साथ-साथ राज्यसभा में भी बहुमत चाहिये’’  इसके लिये एक राममंदिर पर झूठा बिल इस बार लोकसभा में लाया जायेगा। जिसे लाकेसभा पारित कर राज्यसभा में भेजेगा कहेगा,  देखो हमारी सरकार राज्यसभा में अभी भी अल्पमत है आप मुझे लोकसभा के साथ-साथ राज्य सभा में भी बहुमत दे दो ।
मोदी जी को पता है कि 2014 में मोदी की लहर 2019 में नहीं हैं ।  मोदी जी का पता है जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग उनके पाले से घसक चुका है । मोदी जी को पता है कि चुनाव आयोग के हाथ बंधे हुएं हैं । उसे पता है कि जिस सीबीआई को उन्होंने बर्वाद कर दिया वह मामला जल्द सुलझने वाला नहीं है। वैसे भी सीबीआई उनके लोकसभा चुनाव में बाल भी नहीं उखाड़ के दे सकती । उन्हें पता है कि आरबीआई उनकी बात अब नहीं सुन रही और उन्हें पता है कि सुप्रीमकोर्ट अभी पूर्णरूपेन उनके साथ नहीं खड़ा हो सकता ।  इधर भाजपा का एक बड़ा खेमा अमित षाह और मोदी के व्यवहार से नाराज चल ही रहा है अरुण षौरी ने तो मोदी के षासन काल को हिटलर से तुलना तक कर ही दी । ऐसे में संघ को लगता है कि कहीं मोदी का ‘‘राम नाम सत्य’’ न हो जाए ? इसके लिये राम का सहारा लेना जरूरी हो गया । जब किसी व्यक्ति को षमशान घाट पंहुचाया जाता है तो लोग इसी बात की जयघोष करतें हैं  ‘‘राम नाम सत्य’’ ।

व्यंग्य: सीलबंद लीफाफा


अब मुख्य न्यायाधीश महोदय गोगई को कुछ तो करना ही होगा तो सीलबंद लिफाफे में सारी प्रक्रिया मांगते हुए सरकार को यह भी बोल दिये किसी अदालती आदेश के लिये नहीं बल्कि सिर्फ जनता को गुमराह करने के लिये और मामले को रफा-दफा करने के लिये वे सीलबंद लीफाफे में बस सौदे की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है उसे देख लेना चाहते हैं।  जैसे सुप्रीम कोर्ट सीलबंद फैसला भी देने लगेगी ? मानो देश में मोदी से जुड़े तमाम भ्रष्ट्राचार के मामले बस सीलबंद ही रहेंगे।
कोलकाता- 18 नवम्बर 2018
सुप्रीम कोर्ट इन दिनों सीलबंद लिफाफे के चलते मशहूर हो चला है। राफेल सौदे से लेकर सीबीआई के आलोक वर्मा की जांच तक मानो सड़क पर एक पंडित जी महोदय एक तोते को पिंजड़े से बहार निकालकर सीलबंद एक लिफाफा लाने को कहता है और उस लिफाफे में लिखी बात उस व्यक्ति को बताकर उसका भविष्य बताता है ।  जब से माननीय रंजन गोगई महोदय सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश बने हैं तब से सीलबंद लिफाफे का रहस्य भी गहराता चला जा रहा है ।
अब राफेल सौदे में क्या रहस्य छुपा है सब तो किस्तों में जनता के सामने सच आ गया कि जिस दिन से मोदी सरकार सत्ता में आई तब से अनिल अंबानी नई कंपनी बननी शुरू कर दी थी। इस साहुकार से कोई यह पूछे कि इन कंपनियों को बनाने के पीछे उनकी मंशा जब राफेल सौदे को लेने की थी ही नहीं तो  एक के बाद एक शुरू में तीन कंपनियों का पंजीकरण, फिर दो नई कंपनी का गठन किन कारणों से हुआ? कि क्या साहुकार के साथ-साथ चाौकीदार भी हिस्सेदार हैं देश को लूटने में? जब बात उच्चतम अदालत में पंहुची तो अब मुख्य न्यायाधीश महोदय गोगई को कुछ तो करना ही होगा तो सीलबंद लिफाफे में सारी प्रक्रिया मांगते हुए सरकार को यह भी बोल दिये किसी अदालती आदेश के लिये नहीं बल्कि सिर्फ जनता को गुमराह करने के लिये और मामले को रफा-दफा करने के लिये वे सीलबंद लीफाफे में बस सौदे की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है उसे देख लेना चाहते हैं।  जैसे सुप्रीम कोर्ट सीलबंद फैसला भी देने लगेगी ? मानो देश में मोदी से जुड़े तमाम भ्रष्ट्राचार के मामले बस सीलबंद ही रहेंगे।
अब सीबआई के मामले में देख लें इनका लिफाफा मीडिया वाले उड़ा लिया। साथ ही सीलबंद लिफाफे में जिस सीवीसी ने जांच की, वह खुद पाप के घड़े से लदा पड़ा है । उसकी जांच में क्या निकलेगा सबको पता है। तो आलोक वर्मा का सीलबंद लिफाफे को ही किसी ने सार्वजनिक कर दिया और उसका ठीकरा आलोक वर्मा के उपर ही फोड़ दिया । अब माननीय गोगई ने यह पहले से ही सोच लिया है कि उनको सिर्फ वही करना है जो चाौकीदार चाहेगा अर्थात राकेश अस्थाना की पुनः नियुक्ति वह भी उस पद पर जिसपर आलोक वर्मा कुछ दिन पूर्व विराजमान थे। कहने का अर्थ है सब कुछ सीलबंद सौदा है।

बुधवार, 7 नवंबर 2018

लोकतंत्र: भाइयों कुछ तो गड़बड़ है?


कोलकाता- 8 नवंबर 2018
 अभी हाल में ही रिजर्व बैंक का सुरक्षित कोष जो कि  देश की जनता का धन है उसका एक तिहाई हिस्सा सरकार उन लुटेरों  अडानी, अनील अंबनी व नीरव मोदी जैसे देश के महान लुटारों, जिन्होंने  देश लूटने में  उनको मदद की थी  के खातों में डाल देने का दबाव बना रही है ।  एक बात पुनः यहां उल्लेख करना चाहता हूँ पंतलजि का विज्ञापन लोकतंत्र को धराशाही करने में मोदी सरकार को सहयोग कर रहा है यह बात कई बार प्रमाणित हो चुकी है 
दुष्यंत कुमार की एक कविता - दोस्तों, अब मंच पर सुविधा नहीं है, आज कल नेपथ्य में संभावना है। 
आज इस बात को इतिहास में लिखना जरूरी हो गया कि भारत की प्रायः सभी संवैधानिक संस्थाएं जिसमें सुप्रीम कोर्ट से लेकर, चुनाव आयोग, सीबीआई, भारतीय रिजर्व बैंक, सीवीसी, व अन्य तंत्र पूर्ण रूप से मौजूदा हिटलरशाही मोदी सरकार के गिरफ़्त में आ चुकी है । सीबीआई में किस प्रकार राकेश अस्थाना की नियुक्ति से लेकर उनके काले कारनामों को बचाने के लिए जिस प्रकार रातों-रात सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं को ताख पर रख कर सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को उनको उनके पद से हटा दिया गया। ठीक यही घटना कुछ दिनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट में हुई जिसमें चार जजों ने मीडिया के सामने आकर अपना दुखड़ा रोया था कि "सबकुछ ठीक नहीं चल रहा "। आदरणीय रजंन गोगोई की मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति से लेकर अन्य जजों की नियुक्तियों पर संध का हस्तक्षेप,  जिस प्रकार अभी से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मोदी सरकार को मजबूत करने का राग दौहरने लगे, जिस प्रकार सेना के तीनों मुख्य सेनापति सरकार की सुरक्षा में तैनात दिखे,  आज रिजर्व बैंक की बात सामने आ गई - आरबीआई गवर्नर (पालतू) उर्जित पटेल जिसने नोटबंदी के समय से अबतक मोदी सरकार के कहे-कहे देश को गुमराह किया, आज उसी पर इतना भीतरी दबाब है कि वे खुद इस्तीफा देने की पेशकेश करने वाले हैं। ‘‘ दाल में काला तो जरूर है ’’ मोदी जी की ही भाषा में - ‘‘काली रात को काली करतूत - भाइयों कुछ तो गड़बड़ है? अब रात के अंधेरे में क्या होता है क्या यह भी  बताने की जरूरत है  आपको ! ’’
दुख तो तब होता है जब लोकत्रंत का प्रहरी मीडिया तंत्र जो खुद को लोकतंत्र का चौथा खंभा मानती है  उसका एक वर्ग पेट के रोग से ग्रसित हो चुका है उनके पेट में चांदी के जूतों का जौंक पैदा हो चुका है जो भीतर ही  भीतर शरीर रूपी लोकतंत्र का खून पीने लगा है । कभी हमें धर्म की खुंटी पीलाई जा रही है, कभी हमें राष्ट्रवाद की तो कभी देश की सुरक्षा की दुहाई दी रही है । मानो अचानक से सब कुछ खतरे में पड़ चुका हो । वही व्यक्ति जब देश के साथ गद्दारी करता है और भारतीय जवानों को भारत की सड़कों पर ही जूतों से पीटवाता हो ।  देश द्रोहियों (मोदी जी ने ही कहा था) के साथ सरकार बनाता हो तब इनकी देशभक्ति किस अंतरिक्ष यात्रा पर चली जाती है ? ‘‘भारत माता की जय’’ या  ‘‘गाय का मांस खाने की बात’’ क्यों टाल दी जाती जब इनको सरकार बनानी होती?  राममंदिर इनका चुनावी मुद्दा बनकर क्यों रह गया? यह सोचने की बात है।  पिछले पांच सालों की कुव्यवस्था से आज देश की अर्थव्यवस्था विनाश के कगार पर आ चुकी है । तेल व गैस के दामों से जनता को लूटने के बाद भी, बच्चों की शिक्षा पर 18% प्रतिशत जीएसटी (GST) लगा देने बाद भी, डालर अपनी रफ्तार पकड़ेे हुए है ।  अभी हाल में ही रिजर्व बैंक का सुरक्षित कोष जो कि जनता का धन है का एक तिहाई हिस्सा सरकार उन लुटेरों - अडानी, अनील अंबनी व नीरव मोदी जैसे देश के महान लुटारों, जिन्होंने  देश लूटने में  इनको मदद की  के खातों में डाल देने का दबाव बना रही है । एक नीरव मोदी से देश के किसानों को भला हो सकता था पर नहीं हुआ। एक अनिल अंबानी से देश के सैकड़ों गांवों में शिक्षा व इलाज की व्यवस्था हो सकती थी नहीं हुई, पर मोदी सरकार देश को गंभीर आर्थिक संकंट में डालने के हर उस कदम पर मोहर लगा रही हैं जो देश को बर्वाद करने में तुली हो।  यह किसी आर्थिक खतरों की तरफ संकत दे रहा है कि देश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा ।
एक बात पुनः यहां उल्लेख करना चाहता हूँ पंतलजि का विज्ञापन लोकतंत्र को धराशाही करने में मोदी सरकार को सहयोग कर रहा है यह बात कई बार प्रमाणित हो चुकी है।  अतः मीडिया तंत्र को कहीं लकवा ना मार जाए इस बात पर बहस जरूरी है कि उन प्रतिष्ठानों में काम लोकतंत्र की  शर्त पर की जाय या नही ?
 - शंभु चौधरी, लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं व विधि विशेषज्ञ भी है।

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शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

चुनाव-2019: भेड़िया आया


कोलकाता- 2 नवंबर 2018
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की एक लघु कथा है ‘भेड़िया’ गांव में एक बालक हर बार गाँववालों को मुर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा किया करता था। जब भी उसको गांव वालों को मुर्ख बनाने की जरूरत पड़ती वह गांव में भागा-भागा आता और जोर-जोर से चिल्लाता ‘‘भेड़िया आया... भेड़िया आया...’’ बस गांव के सारे लोग उस बालक के कहे-कहे भेड़िया को मारने दौड़ पड़ते। पर हाथ कुछ नहीं आता । बालक मन ही मन गांव वालों की मुर्खता पर इतराता और मजा लेता था ।
इस बार के चुनाव में इस बालक को पहले से अंदाज हो चुका है कि उसे लोक सभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। जिसमें राजस्थान, तेलंगाना मध्य प्रदेश और मिजोरम और छत्तीसगढ़। इसमें तीन राज्यों राजस्थान, तेलंगाना मध्य प्रदेश में भाजपा की हालात बहुत खराब बताई जा रही है।  इन सभी राज्यों में लोकसभा की 83 सीटें हैं। यदि हम प्रमुख तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और मिजोरम और छत्तीसगढ़ की बात करें इन तीन राज्यों में भाजपा के पास अभी 16वीं लोकसभा की 61 सीटें हैं। भाजपा को लगता इन राज्यों में हमने जनता को इतना छल्ला है कि अब धोखे से भी हमारी बात में नहीं आयेगें। विधानसभा चुनाव से उनके तलवे की जमीं अभी से ही खिसकती दिखाई दे रही है। 
लगे हाथ आपको बताता चला जाऊँ कि इस बार भाजपा को सत्ता में लाने के लिये चुनाव आयोग खुलकर जनता के साथ धोखा/साज़िश करने का मन बना चुकी है। पूरी की पूरी चुनाव आयोग की टीम तोता बन चुकी है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण पिछली चुनावी घोषणा के ठीक एक दिन पूर्व भाजपा के द्वारा तेल के दामों में 2.5 रुपये की कटौती करना । इसका स्पष्ट अर्थ निकलता है कि चुनाव आयोग भाजपा की ‘बी टीम’ के रूप में कार्य कर रही है। 16वीं लोकसभा का गठन 4 जून 2014 को हुआ था एवं इसके इसका कार्यकाल 3 जून 2019 को स्वतः समाप्त हो जायेगा । स्पष्ट है कि आगामी चुनाव की तिथि की घोषणा आगामी जनवरी-फरवरी माह में किसी भी समय कर दी जायेगी 
आज एक पंचतंत्र की कहानी सही साबित हो रही चालाक सियार ने शेर के खोल धारण कर लिया है। आरएसएस की मुंबई में हुए तीन दिवसीय शिविर के समापन में संघ के महासचिव व भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने नया सगुफा छोड़ दिया । एक चोर साहुकार बनकर दूसरे चोर को चेतावनी दे डाली कि ‘‘राम मंदिर को लेकर पुनः 1992 जैसा आंदोलन करेगी’’ । पिछले 70 सालों में संघ का यह चेहरा नया नहीं है । हर चुनावी मौसम में संघ कोई न कोई नया पैंतरा दिखाता ही है। 
अबकी सबको पता है कि मोदी का वह जूमला जिसमें तेल के दाम, डालर के बढ़ते मूल्य, मंहगाई, भ्रष्टाचार, कालेधन, जवानों के दो सर, युवाओं को नौकरी, अच्छे दिन के वादा जैसे कोई खोखले वादे नहीं चलने वाला है। काठ की हांडी  पूरी तरह से जलकर खाख हो चुकी है। अब मोदी को वे सभी संवैधानिक संस्थाये बचाने का प्रयास करेगी जिसके प्रमुख को मोदी ने तमाम नियमों को ताख पर रखकर पदास्थिापित किया है।
इस बार के चुनाव में एक तरफ व्यापारी वर्ग काफी नाराज है उन्हें लग रहा हे मोदी ने उनके साथ धोखा किया। वहीं यही हालात किसानों की है, तो आरक्षण विवाद भी एक प्रकार से मोदी सरकार के गले की हड्डी बन चुकी है। पिछले पांच सालों में मोदी की विदेश यात्रा, राफेल सौदे में देश को गुमराह करना, सभी संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बना देना मोदी सरकार की उपलब्धि रही है । अब यह देखना है कि गांव को हर बार झलने वाला व्यक्ति क्या इस बार भी सफल हो जायेगा देश को अपने जुमले सुनाकर या संध के नये पैंतरे से देश को मुर्ख बनाया जायेगा?
-शंभु  चौधरी, लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं व विधि विशेषज्ञ भी है।

गुरुवार, 1 नवंबर 2018

चुनाव-2019: काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती

चुनाव-2019:  काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती
कोलकाता- 2 नवम्बर 2018
हम सभी इस बात से भलीभांती अवगत हैं कि 16वीं लोकसभा का गठन 4 जून 2014 को हुआ था एवं इसके इसका कार्यकाल 3 जून 2019 को स्वतः समाप्त हो जायेगा । स्पष्ट है कि आगामी चुनाव की तिथि की घोषणा आगामी जनवरी-फरवरी माह में किसी भी समय कर दी जायेगी । 
भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 में भारत के चुनाव आयोग को इसका अधिकार दिया गया है। वहीं अनुच्छेद 83(2) में इसका कार्यकाल 5 वर्ष का तय किया गया और आपात किसी स्थिति में एक साल का कार्यकाल संसद में कानून बना के बढ़ाया जा सकता है । वहीं भारत के नागरिकता कानून, 1951 की धारा 14 में नई लोकसभा गठन की प्रक्रिया दी गई है। जिसमें लिखा है कि नई लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव करायें जायेगें । इसके लिए पूर्व की लोकसभा की समाप्ति जो कि जून 2019 में हो जायेगी के छः माह अर्थात 1 दिसम्बर-2018 से 30 मई 2019 के बीच चुनाव की सभी प्रक्रियाओं को पूरा कर लेनी होगी । अर्थात 16वीं लोकसभा की उलटी गनती शुरू हो चुकी है। 
पिछले पांच सालों में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि मोदीजी ने देश को बहुत बड़े आर्थिक संकट में डाल दिया  है । तेल व गैस के दाम, डालर का मंहगा होना, रसोई गैस का 400/- रुपये से 900/- रुपये का हो जाना, राफेल सौदे में 20 हजार करोड़ का डाका, निरव मोदी का फरार होना, अमित साह के बेटे के धन में रातों-रात, दिन दूनी रात चौकनी कमाई हो जाना, बाबा रामदेव के 850 करोड़ रुपये की कम्पनी का 11526 करोड़ की कम्पनी हो जानी, बाबा के विज्ञापनों के माध्यम से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को नपूंसक बना देना का षड़यंत्र, नोटबंदी से 60 प्रतिशत नये करोड़पतियों की उपज, कालेधन पर चुप्पी, आतंकवाद के नाम पर देश को धोखा देना, सेना का इस्तमाल अपनी रक्षा में प्रयोग करना, बच्चों की शिक्षा पर भी जीएसटी लागू कर देना। कभी गाय के नाम पर कभी धर्म के नाम पर  तो कभी राष्ट्रवाद के नाम पर देश को गुमराह करना, देश के युवाओं को पकौड़े बेचने को कहना, ‘‘मान न मान - मैं तेरा मेहमान’’ विश्वभर में 80 से अधिक बार विदेश की यात्रा, मानहानी के मुकदमों का नया दौर शुरू कर अपने विरोधियों की आवाज को दबा देना। रिजर्व बैंक, सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग, सीबीआई, आईबी, लोकपाल, आदि सभी संवैधनिक संस्थाओं को पिछले पांच सालों में कमजोर कर लोकतंत्र को धराशाही करने में लगातार कार्यरत रहना यह मोदी सरकार की पिछले पांच साल की प्रमुख उपलब्धीयां हैं । 

  • आज हमें सोचना होगा कि क्या हम लोकतंत्र की रक्षा करना चाहते हैं कि बाबा रामदेव के विज्ञापनों के पीछे कुत्ते की तरह दुम हिल्लाकर अपनी कलम को, पत्रकारिता को गिरबी रखना चाहतें हैं?
  • आज हमें सोचना होगा कि धर्म की आड़ लेकर जो भेड़िया हमें पिछले 25 सालों से नोचता रहा वह पुनः उसी खाल में हमें लुटने तो नहीं आ रहा?
  •  आज हमें सोचना होगा जिसने 2014 के चुनाव में हमें जो सपने दिखाये थे उसका क्या हुआ।
  • आज हमें साचेना होगा घरों की रसोई की गैस में ऐसी कौन सी आग लग गई की मोदी सरकार ने पांच सालों में इसके मूल्य को 400 से 900 कर दिये?
  • आज हमें यह भी सोचना होगा जिस लोकपाल के गठन को लेकर पूरा देश आंदोलनरत हो चुका था, उसका गठन मोदी सरकार ने क्यों नहीं किया? 
  • ऐसे हजार सवाल हो सकते हैं साथ ही एक सवाल यह भी उठता है कि मोदी नहीं तो फिर कौन?
  • स्वाल बहुत गंभीर है। क्या हमारे पास कोई विकल्प नहीं? क्या एक सवाल यह भी किया जा सकता है मोदी ने इन पांच सालों में हमारी सोच को भी विकलांग बना दिया कि हम किसी विकल्प की बात भी नहीं सोच सकते?  जयहिन्द !  
- शंभु चौधरी, लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं व विधि विशेषज्ञ भी है।