शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

चुनाव-2019: भेड़िया आया


कोलकाता- 2 नवंबर 2018
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की एक लघु कथा है ‘भेड़िया’ गांव में एक बालक हर बार गाँववालों को मुर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा किया करता था। जब भी उसको गांव वालों को मुर्ख बनाने की जरूरत पड़ती वह गांव में भागा-भागा आता और जोर-जोर से चिल्लाता ‘‘भेड़िया आया... भेड़िया आया...’’ बस गांव के सारे लोग उस बालक के कहे-कहे भेड़िया को मारने दौड़ पड़ते। पर हाथ कुछ नहीं आता । बालक मन ही मन गांव वालों की मुर्खता पर इतराता और मजा लेता था ।
इस बार के चुनाव में इस बालक को पहले से अंदाज हो चुका है कि उसे लोक सभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। जिसमें राजस्थान, तेलंगाना मध्य प्रदेश और मिजोरम और छत्तीसगढ़। इसमें तीन राज्यों राजस्थान, तेलंगाना मध्य प्रदेश में भाजपा की हालात बहुत खराब बताई जा रही है।  इन सभी राज्यों में लोकसभा की 83 सीटें हैं। यदि हम प्रमुख तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और मिजोरम और छत्तीसगढ़ की बात करें इन तीन राज्यों में भाजपा के पास अभी 16वीं लोकसभा की 61 सीटें हैं। भाजपा को लगता इन राज्यों में हमने जनता को इतना छल्ला है कि अब धोखे से भी हमारी बात में नहीं आयेगें। विधानसभा चुनाव से उनके तलवे की जमीं अभी से ही खिसकती दिखाई दे रही है। 
लगे हाथ आपको बताता चला जाऊँ कि इस बार भाजपा को सत्ता में लाने के लिये चुनाव आयोग खुलकर जनता के साथ धोखा/साज़िश करने का मन बना चुकी है। पूरी की पूरी चुनाव आयोग की टीम तोता बन चुकी है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण पिछली चुनावी घोषणा के ठीक एक दिन पूर्व भाजपा के द्वारा तेल के दामों में 2.5 रुपये की कटौती करना । इसका स्पष्ट अर्थ निकलता है कि चुनाव आयोग भाजपा की ‘बी टीम’ के रूप में कार्य कर रही है। 16वीं लोकसभा का गठन 4 जून 2014 को हुआ था एवं इसके इसका कार्यकाल 3 जून 2019 को स्वतः समाप्त हो जायेगा । स्पष्ट है कि आगामी चुनाव की तिथि की घोषणा आगामी जनवरी-फरवरी माह में किसी भी समय कर दी जायेगी 
आज एक पंचतंत्र की कहानी सही साबित हो रही चालाक सियार ने शेर के खोल धारण कर लिया है। आरएसएस की मुंबई में हुए तीन दिवसीय शिविर के समापन में संघ के महासचिव व भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने नया सगुफा छोड़ दिया । एक चोर साहुकार बनकर दूसरे चोर को चेतावनी दे डाली कि ‘‘राम मंदिर को लेकर पुनः 1992 जैसा आंदोलन करेगी’’ । पिछले 70 सालों में संघ का यह चेहरा नया नहीं है । हर चुनावी मौसम में संघ कोई न कोई नया पैंतरा दिखाता ही है। 
अबकी सबको पता है कि मोदी का वह जूमला जिसमें तेल के दाम, डालर के बढ़ते मूल्य, मंहगाई, भ्रष्टाचार, कालेधन, जवानों के दो सर, युवाओं को नौकरी, अच्छे दिन के वादा जैसे कोई खोखले वादे नहीं चलने वाला है। काठ की हांडी  पूरी तरह से जलकर खाख हो चुकी है। अब मोदी को वे सभी संवैधानिक संस्थाये बचाने का प्रयास करेगी जिसके प्रमुख को मोदी ने तमाम नियमों को ताख पर रखकर पदास्थिापित किया है।
इस बार के चुनाव में एक तरफ व्यापारी वर्ग काफी नाराज है उन्हें लग रहा हे मोदी ने उनके साथ धोखा किया। वहीं यही हालात किसानों की है, तो आरक्षण विवाद भी एक प्रकार से मोदी सरकार के गले की हड्डी बन चुकी है। पिछले पांच सालों में मोदी की विदेश यात्रा, राफेल सौदे में देश को गुमराह करना, सभी संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बना देना मोदी सरकार की उपलब्धि रही है । अब यह देखना है कि गांव को हर बार झलने वाला व्यक्ति क्या इस बार भी सफल हो जायेगा देश को अपने जुमले सुनाकर या संध के नये पैंतरे से देश को मुर्ख बनाया जायेगा?
-शंभु  चौधरी, लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं व विधि विशेषज्ञ भी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें