मंगलवार, 4 मार्च 2014

अण्णाजी की राजनीति? - शम्भु चौधरी

संसद में लोकपाल बिल पारित करते समय अण्णाजी को जिन व्यक्तियों ने गुमराह किया उनमें से एक चौथी दुनिया के प्रधान संपादक श्री संतोष भारतीय भी हैं, जिन्होंने  अपने नये संपादकिया देखें 24 फरवरी का अंक ‘‘लोकतंत्र को तमाशा ना बनने दें’’ में श्री अण्णा हजारे के उस 17 सूत्रीय कार्यक्रम का जिक्र करते हुए आपने ममता बनेर्जी की काफी प्रसंशा की है। 
कोलकाताः (दिनांक 04 मार्च 2014) 
अण्णाजी जी ने जिस प्रकार ममता दीदी को लेकर राजनीति शुरू की है यह भी ठीक उसी राजनीति का हिस्सा है जिसप्रकार अण्णाजी ने जी ने रालेगणसिद्धी में बैठकर अनशण किया और पलकों में ही केन्द्र की कांग्रेस सरकार और भाजपा के दो एजेण्टों ने मिलकर अण्णाजी को गुमराह किया था। अब यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वे दो एजेण्ट कौन थे। खुद अभी भाजपा में शामिल हुए जनरल वि.के.सिंह ने स्वीकारा किया कि ‘अण्णाजी’ एक सशक्त 'लोकपाल बिल' लाना चाहते थे। फिर देश को गुमराह क्यों किया गया? इसका जबाब अभी रहस्य बना हुआ है। परन्तु जिस प्रकार लोकपाल समिति के चयन पर रोजाना उठ रहे विवाद और चयनित सदस्यों के द्वारा पद से त्यागपत्र इस बात पर संकेत तो दे ही रहा है कि कहीं दाल में काला है जिसे कांग्रेस और भाजपा दोनों मिलकर छुपाना चाहते हैं।

संसद में लोकपाल बिल पारित करते समय अण्णाजी को जिन व्यक्तियों ने गुमराह किया उनमें से एक चौथी दुनिया के प्रधान संपादक श्री संतोष भारतीय भी हैं, जिन्होंने  अपने नये संपादकिया देखें 24 फरवरी का अंक ‘‘लोकतंत्र को तमाशा ना बनने दें’’ में श्री अण्णा हजारे के उस 17 सूत्रीय कार्यक्रम का जिक्र करते हुए आपने ममता बनेर्जी की काफी प्रसंशा की है।  

आप लिखते हैं कि 30 जनवरी को कोलकाता के पैरेड ग्राउंड में ममताजी की रैली में 30 लाख लोग आये थे।  20 लाख मैदान में 5 लाख मैदान के बहार और 5 लाख लोग कोलकाता की सड़कों पर। मुझे ताजूब होता है कि श्रीमान संपादकजी को कोलकाता की भौगोलिक स्थिति का कोई अंदाजा तक नहीं है। शहर में 15 लाख लोग यदि एक साथ प्रवेश कर जाएं तो टॉलिगंज से श्यामबजार और हवड़ा स्टेशन से सियालदाह स्टेशन के सभी मार्ग व सभी मैदान जाम हो जायेगें।  वैसे बिग्रेड पैरेड मैदान की अधिकतम क्षमता ही 5 लाख लोगों की है यदि अंदर और बहार चारों तरफ आदमियों से पट जाए।

 खैर! यह इनके सोचने का नजरिया है। जहाँ तक अण्णाजी के 17 सूत्रीय पत्र की बात है तो संपादक जी ने ‘अपने संपादकिय में कहीं भी ‘आप’ पार्टी का जिक्र तक नहीं किया जबकि इनको इस बात का पता था कि अरविंदजी ने इस पत्र पर पहले ही अण्णाजी से मिलकर अपनी स्वीकृति दे दी थी। ना तो संपादक ने अपने पत्रकारिता के धर्म को निभाने के प्रयास किया ना ही वे भारतीय राजनीति में ‘आप’ का अपने लेख में चिन्हीत तक ही किया। यदि अरविंद जी किसी समाचार मीडिया की बात करते है तो उनमें "चौथी दुनिया" समूह का विद्वेष साफ झलकता है। 

संपादक की माने तो ‘भारतीय राजनीति में ममता बनेर्जी के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। सुश्री ममता बनेर्जी स्वयं एक कुशल नेत्री है परन्तु उनकी टीम में आज भी बहुत से ऐसे लोग हे जिस पर बंगाल की जनता को पूरा विश्वास नहीं है।  इससे साफ हो जाता है कि अण्णाजी और ममता जी को राजनीति फायदे के लिय इस्तमाल किया जा रहा है "संतोष भारतीय" ने इन दोनों को अपने राजनीति फायदे और केजरीवाल को नूकशान पंहुचाने के लिये प्रयोग करना शुरू कर दिया है। जो कहीं न कहीं नीच मनसिकता का परिचायक है।  इससे ममता बनेर्जी को कोई फायदा नहीं होगा। ना ही ममता बनर्जी का बंगाल से बहार कोई कद बनने की संभावना वर्तमान राजनीति में दिखाई देती है। - शम्भु चौधरी

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