कल तक जो काँग्रेसी और भाजपाई ‘‘आम आदमी पार्टी’’ को भारत की राजनीति में कोई महत्व तक देने को तैयार नहीं थे आज चुनाव परिणामों को देख कर ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी के नीचे की जमीन खिसक गई, भाजपा पार्टी के भी दाँत खट्टे कर दिये। चुनाव परिणाम के दो दिन पूर्व तक जो पार्टी आम आदमी के सदस्यों को तोड़ने की गंदी साजिश करने का प्रयास कर रही थी? आज अचानक से नैतिकता की बात करने लगी। डॉ. हर्षवर्धन कल तक अपनी जीत का दावा करते नहीं थक रहे थे आज उनको विपक्ष में बैठने का ज्ञान जग गया।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम में किसी एक राजनीति दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में आप आदमी पार्टी का अच्छा प्रदर्शन देश की राजनीति में हलचल सी पैदा कर दी है। 125 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के स्टार केंपेनर श्री राहुल गांधी ने इस बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि दिल्ली में उनकी पार्टी की शीला दीक्षित के अच्छे कार्यों के बावजूद उनकी पार्टी आम आदमी की बात को समझने में भूल की है। उन्होंने अपने नेताओं को भी कड़ा संदेश देते हुए आम आदमी पार्टी के नेताओं से सीख लेने की सलाह तक दे डाली।
कल तक जो काँग्रेसी और भाजपाई ‘‘आम आदमी पार्टी’’ को भारत की राजनीति में कोई महत्व तक देने को तैयार नहीं थे आज चुनाव परिणामों को देख कर ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी के नीचे की जमीन खिसक गई, भाजपा पार्टी के भी दाँत खट्टे कर दिये। चुनाव परिणाम के दो दिन पूर्व तक जो पार्टी आम आदमी के सदस्यों को तोड़ने की गंदी साजिश करने का प्रयास कर रही थी? आज अचानक से नैतिकता की बात करने लगी। डॉ. हर्षवर्धन कल तक अपनी जीत का दावा करते नहीं थक रहे थे आज उनको विपक्ष में बैठने का ज्ञान जग गया।
मुझे याद है जोड़-तोड़ में माहिर भाजपा के नेताओं ने कई बार राज्यपाल व महामहिम राष्ट्रपति जी को इस आधार पर नैतिकता का पाठ पढ़ा चुके हैं कि उनकी पार्टी संसद या विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है। जनता का जनादेश उनके पक्ष में है। अतः सरकार बनाने का पहला अधिकार उनकी पार्टी को ही मिलना चाहिए। आज नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली पार्टी, जोड़-तोड़ की राजनीति में आस्था रखने वाली पार्टी के मुंह से नमाज पढ़ने की बात गले नहीं उतर रही। कहावत तो हम भी पढ़ते हैं और भाजपा भी पढ़ती है। यदि इसी बात को कहावत में कहा जाए तो ‘‘ सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को ’’ इन पर सटीक बैठता है।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव परिणाम ने देश की तमाम राजनीतिज्ञों को एक चेतावनी भर दी है कि ‘‘ वे इस बात का अहंकार कि ‘‘वे चुन कर आयें हैं’’ इसलिए वे ही आम आदमी के प्रतिनिधि हैं इसके अलावा वे किसी को भी जनता का प्रतिनिधि नहीं मानते और जिनको उनसे बात करनी हो तो पहले चुनाव लड़कर आयें तब ही वे उनसे बात करे।’’
पहली बात तो यह कि यदि आम आदमी ही चुनकर चले गये तो उनसे बात ही क्यों करेंगें? दूसरी बात कि जब आम आदमी ही चुनकर संसद या विधानसभा में पंहुचगें तो आप खुद ही बहार हो जाएंगे। इसलिए यह अहंकार पालने वाले सांसदों को भी आज सोचने की जरूरत है कि जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें।
देश से बड़ा कोई व्यक्ति नहीं होता और लोकतंत्र में संसद या विधानसभा से बड़ा कोई मंदिर। इस मंदिर के पुजारी यदि वहां बैठकर जनता को लूटने में लग जाए। लोकतंत्र के पवित्र मंदिर को अपवित्र कर दे तब प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल, मनीष सीसोदिश, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, संजय सिंह, शाजिया इल्मी जैसे नेता पैदा होते हैं। इतिहास में इनके नाम सदैव स्वर्ण अक्षरों में लिखें जाऐगें।
Date:09/12/2013
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