इलाहाबाद, 6 फ़रवरी 2009 ।
"साहित्य से दिन-ब-दिन लोग विमुख होते जा रहे हैं। अध्यापक व छात्र, दोनों में लेखनी से लगाव कम हो रहा है। नए नए शोधकार्यों के लिए सहित्य जगत् में व्याप्त यह स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है।" उक्त विचार उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मन्त्री डॊ.राकेश धर त्रिपाठी ने हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा आयोजित सम्मान व लोकार्पण समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उत्तर प्रदेश भाषा विभाग द्वारा संचालित हिन्दी व उर्दू भाषा के संवर्धन हेतु सन् 1927 में स्थापित हिन्दुस्तानी एकेडेमी की श्रेष्ठ पुस्तकों के प्रकाशन की श्रृंखला में इस अवसर पर अन्य पुस्तकों के साथ एकेडेमी द्वारा प्रकाशित डॊ. कविता वाचक्नवी की शोधकृति "समाज-भाषाविज्ञान : रंग-शब्दावली : निराला-काव्य" को लोकार्पित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यह पुस्तक अत्यन्त चुनौतीपूर्ण विषय पर केन्द्रित तथा शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक है। इस अवसर पर एकेडेमी के सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय द्वारा सम्पादित 'सूर्य विमर्श' तथा एकेडेमी द्वारा वर्ष १९३३ ई. में प्रकाशित की गयी पुस्तक 'भारतीय चित्रकला' का द्वितीय संस्करण (पुनर्मुद्रण) भी लोकार्पित किया गया। किन्तु जिस पुस्तक ने एकेडेमी के प्रकाशन इतिहास में एक मील का पत्थर बनकर सबको अचम्भित कर दिया है वह है डॉ. कविता वाचक्नवी द्वारा एक शोध-प्रबन्ध के रूप में अत्यन्त परिश्रम से तैयार की गयी कृति "समाज-भाषाविज्ञान : रंग-शब्दावली : निराला-काव्य"। इस सामग्री को पुस्तक का आकार देने के सम्बन्ध में एक माह पूर्व तक किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। स्वयं लेखिका के मन में भी ऐसा विचार नहीं आया था। लेकिन एकेडेमी के सचिव ने संयोगवश इस प्रकार की दुर्लभ और अद्भुत सामग्री देखते ही इसके पुस्तक के रूप में प्रकाशन का प्रस्ताव रखा जिसे सकुचाते हुए ही सही इस विदुषी लेखिका द्वारा स्वीकार करना पड़ा। कदाचित् संकोच इसलिए था कि दोनो का एक-दूसरे से परिचय मुश्किल से दस-पन्द्रह मिनट पहले ही हुआ था। यह नितान्त औपचारिक मुलाकात अचानक एक मिशन में बदल गयी और देखते ही देखते मात्र पन्द्रह दिनों के भीतर न सिर्फ़ बेहद आकर्षक रूप-रंग में पुस्तक का मुद्रण करा लिया गया अपितु एक गरिमापूर्ण समारोह में इसका लोकार्पण भी कर दिया गया। रंग शब्दों को लेकर हिन्दी में अपनी तरह का यह पहला शोधकार्य है। इसके साथ ही साथ महाप्राण निराला के कालजयी काव्य का रंगशब्दों के आलोक में किया गया समाज-भाषावैज्ञानिक अध्ययन भावी शोधार्थियों के लिए एक नया क्षितिज खोलता है। निश्चय ही यह पुस्तक हिदी साहित्य के अध्येताओं के लिए नयी विचारभूमि उपलब्ध कराएगी।
इस समारोह में एकेडेमी की ओर से हिन्दी, संस्कृत एवम उर्दू के दस लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों प्रो. चण्डिकाप्रसाद शुक्ल, डॉ. मोहन अवस्थी, प्रो. मृदुला त्रिपाठी, डॉ. विभुराम मिश्र, डॉ. किशोरी लाल, डॉ. कविता वाचक्नवी, डॉ. दूधनाथ सिंह, डॉ. राजलक्ष्मी वर्मा, डॉ. अली अहमद फ़ातमी और श्री एम.ए.कदीर को सम्मानित भी किया गया। यद्यपि इनमें से डॉ. दूधनाथ सिंह, डॉ. राजलक्ष्मी वर्मा, डॉ. अली अहमद फ़ातमी और श्री एम.ए.कदीर अलग-अलग व्यक्तिगत, पारिवारिक या स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उपस्थित नहीं हो सके, तथापि सभागार में उपस्थित विशाल विद्वत् समाज के बीच छः विद्वानों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए शाल, नारियल, व सरस्वती की अष्टधातु की प्रतिमा भेंट कर सम्मानित किया गया। प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किए गए। एकेडेमी द्वारा अन्य अनुपस्थित विद्वानों के निवास स्थान पर जाकर उन्हें सम्मान-भेंट व प्रशस्ति-पत्र प्रदान कर दिया जाएगा।
सम्मान स्वीकार करते हुए अपने आभार प्रदर्शन में डॊ. कविता वाचक्नवी ने कहा कि इस लिप्सापूर्ण समय में कृति की गुणवता के आधार पर प्रकाशन का निर्णय लेना और रचनाकार को सम्मानित करना हिन्दुस्तानी एकेडेमी की समृद्ध परम्परा का प्रमाण है, जिसके लिए संस्था व गुणग्राही पदाधिकारी निश्चय ही साधुवाद के पात्र हैं।
आरम्भ में हिन्दुस्तानी एकेडेमी के सचिव डॊ. एस. के. पाण्डेय ने अतिथियों का स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि वे स्वयं संस्कृत के विद्वान हैं , उनके कार्यकाल में एकेडेमी का सारस्वत कायाकल्प हो गया है। इस अवसर पर समारोह के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त ने सरस्वती दीप प्रज्वलित किया और सौदामिनी संस्कृत विद्यालय के छात्रों ने वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया। एकेडेमी के ही अधिकारी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने खचाखच भरे सभागार में उपस्थित गण्यमान्य साहित्यप्रेमियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। *
अतिशय धन्यवाद !
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