आप और हम सभी साधारण प्राणी मात्र हैं। हमारे जीवन में हर जगह महापुरुषों की उपस्थिति संभव नहीं हो सकती। यह कार्य खुद ही हमें करना होगा, जिसे हम इस "जीवन उर्जा" के स्त्रोत से पूरा करने का प्रयास करेंगे।
हमने देखा है कि कई बार परिवार में कोई घटना घटती है तो हम उस घटना की सूचना मात्र से ही रो पड़ते हैं या किसी खुशी के समाचार से मिठाईयाँ बाँटने लग जाते हैं। हम किसी भी झण या तो खुद को कमजोर अनुभव करने लगते हैं या दौड़ने लगते हैं। किसी इच्छा पूर्ति से जब हम परिवार में खुशियाँ बाँटते हैं तो आशानुकूल न होने पर गम में पूरे वातावरण को परिवर्तित कर देते हैं।
परन्तु श्री अर्जुन के समक्ष ऐसी कोई घटना अकस्मात नहीं घटती है, फिर भी श्री अर्जुन अपने आपको शिथिल क्यों समझने लगे थे। -
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