विडम्बना की बातें की जाती हैं कि एक अरब की जनसंख्या वाले इस राष्ट्र में हिन्दी की दुर्दशा है। जब भी आँसू बहाने की बारी आती है, हिन्दी के दिवस मनाये जाते हैं और फिर एक वर्ष का मौन व्रत। इस भाषा की तरक्की और विस्तार के लिये आखिर बुनियादी स्तर पर कार्य क्या हुआ है? सरकारी फाइलें जो भी कहती हों केवल आँकड़ों का खेल ही होगा। दशा पर बहुत चर्चाएँ हुईं, किंतु दिशा की बातें कम ही हुई हैं। जब मैं सोचता हिन्दी में हूँ, पुकारता हिन्दी में हूँ, खुश हिन्दी में होता हूँ, मन की भड़ास हिन्दी में, तो भाई यह अंग्रेज़ी कब तक गुप-चुप "मम्मी-लेंगवेज" रहेगी?....। चिड़िया की कहानी याद आती है। खेत में घोसला था और रोज किसान खेत काटने की बात करता और किसी न किसी रिश्तेदार को काम सौंप कर चला जाता। चिड़िया नित्य चर्चा सुनती और निश्चिंत होकर काम पर निकल जाती। एक दिन जब किसान ने कहा कि निकम्मे हैं सारे लोग “कल खेत मैं काटूंगा”, चिड़िया बच्चों सहित खेत से उड गयी, जानती थी कि खेत ज़रूर कटेगा। और ऐसा ही हुआ। साहित्य शिल्पी को ऐसा ही प्रयास कहा जा सकता है जहाँ रचनाधर्मी उर्जा ने यह ठान लिया कि हिन्दी के लिये अब हमें ही जुटना होगा, पूरी गंभीरता और ताकत के साथ।
यह प्रश्न उठता है कि साहित्य शिल्पी द्वारा अंतरजाल को ही माध्यम क्यों चुना गया। इस प्रश्न का उत्तर तकनीक और साहित्य के प्रयोग की ओर इंगित करता है। अखबारों में इन दिनों प्रकाशित हो रही कविताओं/कहानियों आदि को देखें तो लगता है कि या तो लेखन खो गया है या वास्तविक लेखन की प्रिंट-मीडिया तक पहुँच आसान नहीं रही। जो स्थापित पत्रिकायें हैं, उन तक पैंठ नये साहित्य सर्जकों की आसान भी नहीं।...। फिर तकनीक के परिप्रेक्ष्य में अंतरजाल जैसे व्यापक माध्यम को अछूता क्यों छोड दिया जाय? अंतरजाल पर हिन्दी सामग्री अभी बहुत अधिक दृष्टिगोचर नहीं होती। कुछ वेब-पत्रिकायें, कुछ अखबारों के हिन्दी संस्करण तथा कुछ समाचार प्रधान साइटों के परे साहित्यिक हलचल से अंतर्जाल जगत अभी अछूता ही है। हाँ, हाल ही में यूनिकोड टाईपिंग द्वारा हिन्दी लिखना और उसका वेब-प्रस्तुतिकरण अवश्य आसान हुआ है। साहित्य शिल्पी ने अंतरजाल जगत की इसी नब्ज को और यूनिकोड की ताकत को पहचाना है। हिन्दी की पुनर्स्थापना का रास्ता कंप्यूटर के कीबोर्ड से हो कर भी जाता है।
साहित्य शिल्पी वस्तुत: हिन्दी तथा साहित्य की सेवा के लिये समर्पित रचनाकारों का समूह है। इस मंच पर कविता, कहानी, नाटक, संस्मरण, समसामयिक विषयों पर परिचर्चायें, कार्टून विधा, बाल साहित्य आदि तो प्रस्तुत हो ही रहे हैं, साथ ही विद्वान हिन्दी सेवियों के साक्षात्कार भी प्रस्तुत हुए हैं। गोपालदास नीरज, शहरयार, नासिरा शर्मा, लाला जगदलपुरी, मानव कौल, श्याम माथुर, ज़ाकिर अली ‘रजनीश’, पूर्णिमा वर्मन आदि के साक्षात्कार के बाद साहित्य शिल्पी प्रसिद्ध कवि कुँवर बैचैन का साक्षात्कार प्रस्तुत करने की तैयारी में है। प्रसिद्ध अभिनेता मनोज बाजपेयी नें साहित्य शिल्पी को अपने साक्षात्कार में इस अभियान की प्रशंसा करते हुए इसे साहित्य के लिये किया जा रहा सार्थक प्रयास बताया।
कविता पर रिकार्ड हुए गीत, कवि की आवाज में रिकार्ड कवितायें, कविता पर बने वीडियो आदि समय समय पर साहित्य शिल्पी द्वारा प्रस्तुत किये गये। इस श्रंखला की महत्वपूर्ण प्रस्तुतियों में महेन्द्र भटनागर के गीत उनके पुत्र आदित्य विक्रम के स्वर व संगीत में, गीता बाल निकेतन फरीदाबाद के बच्चों द्वारा तैयार किया गया एलबम - अनहद गीत, पंडित नरेन्द्र शर्मा की रचनायें लावण्याशाह की के सौजन्य से, देवेन्द्र मणि पाण्डेय की कवितायें हरीश भिमानी के स्वर में आदि प्रमुख हैं। आगामी आकर्षणों में प्रख्यात कथाकार तेजिन्दर शर्मा की कहानियों के ऑडियो भी मंच पर प्रस्तुत किये जाने हैं।
नाटक विधा को अंतर्जाल पर स्थान दिलाने के अपने अभियान में साहित्य शिल्पी नें न केवल स्थायी स्तंभ इस दिशा में आरंभ किया है अपितु पहली बार सत्यजीत भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित एक नाटक “राई-द स्टोन” का विडियो इस मंच पर प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्तुति के दौरान साहित्य शिल्पी को प्राप्त हुई प्रतिक्रियाओं नें यह सिद्ध किया कि नाटक को आज भी दर्शकों की कमी नहीं है।
कार्टून को विधा का दर्जा दिलाना साहित्य शिल्पी का उद्देश्य है। इस कडी में एक गंभीर प्रयास करने की कोशिश व्यंग्यकार अविनाश वाचस्पति तथा प्रख्यात कार्टूनिष्ट कीर्तिश भट्ट् द्वारा की गयी। दोनों ने नैनो कार पर व्यंग्य और कार्टून की जुगलबंदी प्रस्तुत की जिसे पाठकों नें भी हाँथो-हाँथ लिया। प्रसिद्ध कार्टूनिष्ट अभिषेक तिवारी साहित्य शिल्पी पंच पर सप्ताह का कार्टून स्तंभ भी चला रहे हैं। साथ ही साथ माह में दो बार कीर्तिश भट्ट के कार्टून मंच पर प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
साहित्य शिल्पी मंच यह मानता है कि हमारे साहित्यकार हमारी निधि हैं। यदि हम अपने माननीय साहित्यकारों की यादों को सजो कर नहीं रखेंगे तो साहित्य को ही खो देंगे।साहित्य शिल्पी सभी स्थापित रचनाकारों/साहित्यकारों के जन्मदिवस अथवा पुण्यतिथि पर उनको स्मरण करते हुए उनके जीवन एवं कृतीत्व पर आलेख प्रस्तुत करता रहा है। इस कडी में रामधारी सिंह दिनकर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिली शरण गुप्त, त्रिलोचन, हरिवंशराय बच्चन, अमृता प्रीतम, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, प्रेम चंद, पंडित मुकुटधर शर्मा आदि मनीषियों के संदर्भ में साहित्य शिल्पी संग्रहालय से सामग्री प्राप्त की जा सकती है, जो निरंतर समृद्दि की ओर है। युगप्रवर्तकों में भगत सिंह, दुर्गाभाभी, सुभाष चंद्रबोस जैसे क्रांतिकारियों का भी जीवन परिचय साहित्य शिल्पी संग्रहालय में है।
साहित्य शिल्पी पर चलाये जा रहे प्रमुख नीयमित स्तंभों में हिन्दी साहित्य का इतिहास तथा ग़ज़ल- शिल्प और संरचना प्रमुख हैं। बाल साहित्य को भी इस मंच पर प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है। देश भर में हो रही साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को भी प्रमुखता से मंच पर स्थान दिया गया है। प्रसिद्ध समालोचक सुशील कुमार जी काव्यालोचना स्तंभ आरंभ कर मंच पर प्रकाशित कविताओं की समीक्षा कर रहे हैं।
साहित्य शिल्पी मंच पर नये रचना-प्रस्तोता साहित्यकारों को मार्गदर्शन मिल सके और इस मंच के स्तर में उत्तरोत्तर सुधार हो इसके लिये वरिष्ठ साहित्यकारों का भी मार्गदर्शन व आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है। साहित्य शिल्पी समूह के लिये यह गर्व का विषय है कि कई स्थापित व वरिष्ठ साहित्यकार भी इस अभियान की मशाल थाम रहे हैं। साहित्य शिल्पी यह गर्व के साथ कह सकता है कि हमने हिन्दी और साहित्य की सेवा के लिये न केवल भारत अपितु विदेशों में बसे रचनाकारों को भी इस सूत्र में जोडा है। इस मंच की विचारधारा है सृजन। हमने इसे किसी पंथ/विचार या संघ से नहीं जोडा बल्कि हर प्रकार के विरोधाभासों को स्थान देने का यत्न किया है जिससे सार्थक परिचर्चायें जन्म लें और हिन्दी तथा साहित्य का विकास हो।
आपलोग बहुत ही स्तरीय महत कार्य कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंआपलोगों का शुभ प्रयास पूर्ण सार्थक हो , यही ईश्वर से प्रार्थना है.
साहित्य शिल्पी नें कम समय में बडा कार्य कर दिखाया है। निस्संदेह वह इस समय की श्रेष्ठ ई-पत्रिकाओं में एक है।
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